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5. भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल को अंतर्जात बल जबकि पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल कहते हैं। अंतर्जात बल का संबंध पृथ्वी के भू-गर्भ से है जबकि बहिर्जात बल का संबंध मुख्यतः वायुमंडल से है। अंतर्जात बल से पृथ्वी में क्षैतिज तथा लम्बवत् संचलन उत्पन्न होते हैं। बहिर्जात बल पृथ्वी के अंतर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने में सतत् प्रयत्नशील रहते हैं इसलिये बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल भी कहते हैं।
भू-आकृतिक प्रक्रियाएँः- धरातल के पदार्थों पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं।
1. अंतर्जनित प्रक्रियाएँ - पृथ्वी के भू-गर्भ में अदृष्य रूप से क्रियाशील शक्तियों को अन्तर्जात बल/अन्तर्जात शक्तियां/भू-गर्भिक शक्तियां कहते है ये शक्तियां भूपटल पर विषम स्थलाकृतियों (पर्वत, पठार, मैदान )का निर्माण करती और भूतल पर असमानताएं लाती है सामान्यतः अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं
अन्तर्जात प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पृथ्वी की वे समस्त भू-गर्भिक प्रक्रियाएं सम्मलित है जो भूगर्भ में चट्टानों के उथल पुथल में सक्रिय रहती है इन प्रक्रियाओं को पृथ्वी के अंदर रेडियोधर्मी क्रियाओं, घूर्णन एवं ज्वारीय घर्षण तथा पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी ऊष्मा द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है । भू-तापीय प्रवणता एवं अंदर से निकले ऊष्मा प्रवाह से प्राप्त ऊर्जा पटल विरूपण एवं ज्वालामुखीयता को प्रेरित करती है।
◾ पटल विरूपण- ये दीर्घकालिक प्रक्रियाएं है जो बहुत लम्बें समय तक प्रभावी रहकर धीमी गति से भूतल पर परिवर्तन लाती है इसके अन्तर्गत महाद्वीप व पर्वत निर्माणकारी शक्तियां, स्थानीय भूतल के उपर उठने व नीचे धंसने की घटनाएं, लम्बवत मोङ, भ्रंश, वलन जैसी घटनाएं आती है
◾ आकस्मिक अन्तर्जात प्रक्रियाएं- इन प्रक्रियांओं द्वारा भूतल पर अचानक तेजी से परिवर्तन या प्रलय जैसा दृष्य घटित हो जाता है इसमें ज्वालामुखीयता व भूकम्प सम्मलित है
◾ ज्वालामुखीयता -ज्वालामुखीयता के अंतर्गत लावा का भूतल की ओर संचलन एवं अनेक आंतरिक तथा बाह्य ज्वालामुखी स्वरूपों का निर्माण सम्मिलित होता है।
2. बहिर्जनिक प्रक्रियाएं- पृथ्वाी की सतह पर उत्पन्न होने वाली शक्तियों को बर्हिजात बल कहते है ये शक्तियां पृथ्वी के अंतर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने का कार्य करती है बर्हिजात बल का प्रमुख कार्य भूपटल पर अनाछादन है जिसमें अपक्षय व अपरदन सम्मलित है।
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य की गर्मी एवं धरातल की ढाल प्रवणता से प्राप्त करती है पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेश स्थित हैं इसलिए बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्न होती हैं।
◾ अनाच्छादन-विभिन्न बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय,वृहत संचलन,अपरदन, परिवहन आदि के कारण धरातल की चट्टानों का उपरी आवरण हट जाता है इसे अनाच्छादन कहते है
◾ भू-आकृतिक कारक - प्रकृति का कोई भी बहिर्जनिक तत्त्व जैसे-प्रवाहित जल,हिमनी, वायुए लहरें व भूमिगत जल इत्यादि, जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम है, को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील होते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृतिककारक कहा जा सकता है गुरुत्वाकर्षण बल ढाल के सहारे सभी पदार्थों को गतिशील बनाने वाले दिशात्मक बल होने के साथ-साथ धरातल के पदार्थों पर दबाव डालता है। अप्रत्यक्ष गुरुत्वाकर्षक प्रतिबल लहरों एवं ज्वार-भाटा जनित धाराओं को क्रियाशील बनाता है। गुरुत्वाकर्षण एक ऐसा बल है जिसके माध्यम से हम धरातल से संपर्क में रहते हैं। यह वह बल है जो भूतल के सभी पदार्थों के संचलन को प्रारंभ करता है।
◾ अपक्षय :- प्राकृतिक कारको द्वारा अपने ही स्थान पर चट्टानों का यांत्रिक विखण्डन या रासायनिक वियोजन/अपघटन अपक्षय कहलाता है
अपक्षय प्रक्रियाओं के तीन प्रमुख प्रकार हैं
1. रासायनिक अपक्षय :- जब चटृटानो का अपघटन विभिन्न रासायनिक क्रियाओं जैसे कि विलयन/घोलन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण द्वारा होता है तो इसे रासायनिक अपक्षय कहते है।
2. भौतिक या यांत्रिक अपक्षय - विभिन्न भौतिक कारको ताप, दाबए गुरूत्वाकर्षण बल आदि द्वारा चट्टानों विघटन या विखण्डन होता है तो इसे भौतिक या यांत्रिक अपक्षय कहते है
3. जैविक अपक्षय : - पृथ्वी की सतह पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियो, जीव-जन्तुओं या मानव द्वारा चट्टानो का विखण्डन व अपघटन होना जैविक अपक्षय कहलाता है।
◾ अपक्षय का महत्त्व
1. अपक्षय द्वारा चट्टाने ढीली हो जाती और विखण्डित व वियोजित होकर छोटे-छोटे टुकङो में टूट जाती है जिससे मिट्टी का निर्माण होता है
2. अपक्षय अपरदन में सहायक है अपक्षय द्वारा चट्टानें ढाीली हो जाती है और सरलता से परिवहित हो जाती है जिससे धरातल समतल होता हे
3. अपक्षय द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है
4. शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपक्षय मूल्यवान खनिजों जैसे- लोहा, मैंगनीज,एल्यूमिनियम, ताँबा के अयस्कों के समृद्वीकरण एवं संकेंन्द्रण में सहायक होता है। जब शैलों का अपक्षय होता है तो कुछ पदार्थ भूमिगत जल द्वारा रासायनिक तथा भौतिक निक्षालन के माध्यम से स्थानांतरित हो जाते हैं तथा शेष बहुमूल्य पदार्थों का संकेन्द्रण हो जाता है।
◾ अपक्षय के विशेष प्रभाव
1. अपशल्कनः- शैलों की ऊपरी परत के गर्म व ठण्डी होने से शैलों का छिलकों की तरह टूटना अपशल्कन कहलाता है। शैलें सामान्यतः ताप की कुचालक होती हैं। इसलिए अधिक गर्मी के कारण शैलो की बाहरी परतें जल्दी से फैल जाती हैं। लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। बार-बार फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से शैलों की परतें, प्याज के छिलकों की तरह अलग हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को अपशल्कन कहते हैं।
2. बृहत् संचलन :- चट्टानों के वृहत मलबे का गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के साहरे ऊपर से नीचे की ओर स्थानान्तरण वृहत संचलन कहलाता है बृहत् मलबे की संचलन गति मंद से तीव्र हो सकती है इसके अंतर्गत विसर्पण, बहाव, स्खलन एवं पतन सम्मिलित होते हैं।
बृहत् संचलन के लिए अपक्षय अनिवार्य नहीं है, परंतु यह बृहत् संचलन को बढावा देता है बृहत् संचलन अपक्षयित ढालों पर अनपक्षयित ढालों की अपेक्षा बहुत अधिक सक्रिय रहता है।
वृहत् संचलन में पदार्थों का संचलन एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है। परन्तु वृहत् संचलन अपरदन के अंदर नहीं आता है क्योंकि वृहत् संचलन में गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है तथा कोई भी भू-आकृतिक कारक जैसे- प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराएँ बृहत् संचलन की प्रक्रिया में सीधे रूप से सम्मिलित नहीं होते है
◾ वृहत् संचलन की सक्रियता के कारक
1. प्राकृतिक एवं कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने के आधार का हटाना।
2. ढालों की प्रवणता एवं ऊँचाई में वृद्वि
3. पदार्थों के प्राकृतिक अथवा कृत्रिम भराव के कारण उत्पन्न अतिभार,
4. अत्यधिक वर्षा व ढाल के पदार्थों के स्नेहन द्वाराउत्पन्न अतिभार,
5. मूल ढाल की सतह पर से पदार्थया भार का हटना, ;
6. भूकंप आना
7. विस्पफोट या मशीनों का कंपन
8. अत्यधिक प्राकृतिक रिसाव,
9. झीलों, जलाशयों एवं नदियों से भारी मात्रा में जल निष्कासन 
10. प्राकृतिक वनस्पति का अंधाधुंध विनाश।
◾ वृहत संचलन रूप:-
1. अनुप्रस्थ विस्थापन 2. प्रवाह 3. स्खलन।
1. भूस्खलन :- आधार चट्टानों या आवरण स्तर का भारी मात्रा में नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। इसमे शुष्क पदार्थों का स्खलन होता हैं।
◾ भूस्खलन के प्रमुख रूप
(i) अवसर्पण :- पश्च-आवर्तन के साथ शैल-मलबे कीएक या कई इकाइयों के फिसलन कोअवसर्पण कहते हैं 
(ii) मलबा स्खलन :- पश्च-आवर्तनके बिना मलबे का तीव्र लोटनया स्खलनमलबा स्खलन कहलाता है।
(iii)  शैल स्खलनः- एक वृहत आाधार शैल का अपने ढलवां आधार तल पर सर्पण (फिसलना) शैल स्खलन कहलाता है
(iv) शैल पतनः-किसी तीव्र ढाल के सहारे शैलखंडों का ढाल से दूरी रखते हुए स्वतंत्रा रूप से गिरना शैल पतन कहलाता है।
(v) अपरदनः - गतिशील शक्तियों जैसे वायु , प्रवाहित जल,हिमानी, लहरो व धाराओं तथा भूमिगत जल द्वारा शैलों  को काटना, खुरचना एवं उससे प्राप्त मलबे या अवसाद को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है
अपरदन द्वारा उच्चावचन का निम्नीकरण होता है, अर्थात् भूदृश्य विघर्षित होते हैं।इसका तात्पर्य है कि अपक्षय अपरदन में सहायक होता है, लेकिन अपक्षय अपरदन के लिए अनिवार्य नहीं है।
अपरदन बृहत् संचलन से भिन्न होता है। अपरदन में शैल मलबे का स्थानान्तरण अपरदनात्मक शक्तियों (जल, वायु, हिम) के द्वारा है जबकि बृहत् संचलन में शैल मलबे का स्थानान्तरण गुरूत्वाकर्षण शक्ति के द्वारा होता है
◾ तल संतुलनः-धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन कहते है
◾ निक्षेपणः-ढाल में कमीके कारण जब अपरदन के कारकों के वेग में कमी आ जाती है तो अवसादों का जमाव प्रारंभ हो जाता है। अवशादों के जमाव की यह क्रिया निक्षेपण कहलाती है निक्षेपण में पहले बङे तथा बाद में सूक्ष्म पदार्थ निक्षेपित होते हैं। निक्षेपण से निम्न भूभाग भर जाते हैं। निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है।
◾ मृदा :- मृदा धरातल पर प्राकुतिक तत्वों का ऐसा संगठन है जिसमें जीवों तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है
◾ मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ
मृदा निर्माण की प्रकिया सर्वप्रथम अपक्षय से प्रारम्भ होती है अपक्षयव अपरदन द्वारा चट्टानों का विघटन होकर किसी स्थान विषेष पर निक्षेपण होता है इन निक्षेपित पदार्थो में बैक्टेरिया तथा गौण जीव अपना आवास बना लेते है इन जीवो व वनस्पतियों के मृत्त अवशेष मृदा में ह्यूमस के एकत्राीकरण मे सहायक होते हैं। प्रारंभ में इस मृदा में गौण घास एवं फर्न जैसे लघु पौधें की वृद्वि हो सकती है बाद में वायु, जल व पक्षियें द्वारा लाए गए बीजों द्वारा मृदा में वनस्पतियां उगने लगती है इस मृदा में निवास करने वाले तथा बल बनाने वाले जीव जन्तु मृदा कणों को ऊपर नीचे करते हैं, जिससे मृदा में निहित पदार्थ छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाते है। जिससे मृदा में जल-धारण करने की क्षमताव वायु के प्रवेश करने की क्षमता विकसित हो जाती है जिसके कारण अंततः परिपक्व, खनिज एवं जीव युत्त मृदा का निर्माण होता है।
◾ मृदा निर्माण के कारक
(i) मूल पदार्थ- मृदा निर्माण में मूल पदार्थ एक निष्क्रिय कारक है मृदा निमार्ण के लिए मूल पदार्थ शैलो के अपक्षय से प्राप्त होते है मूल पदार्थ उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलबा या लाये गये निक्षेप हो सकते है। मृदा निर्माण मलबे के आकार, संरचना तथा निक्षेपपित मलबे के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है। मृदा का रंग, संरचना तथा उसमें उपस्थित खनिज मूल पदार्थपर ही निर्भर करते है
(ii) स्थलाकृतिः-स्थलाकृतिभी मृदा निर्माण में एक निष्क्रिय कारक है। स्थलाकृति के घटक जैसे उंचार्इ्र, उच्चावच, ढाल आदि मिट्टी के जमाव तथा अपरदन पर प्रभाव डालते है तीव्र ढालों पर मोटे कणों वाली मृदा की पतली परत तथा मंद ढाल वाले क्षेत्र में मृदा कीमोटी परत बनती है साधारण ढाल जहाँ अपरदन न्यून तथा जल का संग्रहण अच्छा होता है वहां मृदा निर्माण अच्छी प्रकार से होता है
(ii) जैविक क्रियाएँ:- मृदा में नमीधारण करने की क्षमता तथा नाइट्रोजन आदि की उपस्थिति जैव पदार्थो के माध्यम से होती है जीवाश्म तथा वनस्पति मृदा को ह्यूमस प्रदान करते हैं। कुछ जीवाणु जैसे राइजोबियम वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजनी पदार्थो में परिवर्तित कर देते हैं जिनका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। चींटी, दीमक व केंचुए मृदा निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है क्योंकि वे मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते हैं। केचुआ मिट्टी खाकर उसे अधिक उपजाऊ बनाते है
(iv) जलवायु:- जलवायु मृदा निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण सक्रिय कारक है मृदा निमार्ण में छोटी अवधि तक मूल पदार्थ महत्वपूर्ण होते है परन्तु लम्बी अवधि में जलवायु का महत्व अधिक हो जाता है भिन्न-भिन्न जनक पदार्थ एक ही प्रकार की जलवायु में एक ही प्रकार की मृदा का निर्माण करते है इसी प्रकार एक ही प्रकार के जनक पदार्थ विभिन्न प्रकार की जलवायु में अलग अलग प्रकार की मृदा का निमार्ण करते है
(v) कालावधिः- मृदा निर्माण की प्रक्रियामें लगने वाली अवधि का बहुत बङा महत्व होता है एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएँ लंबे काल तक पार्श्विका का निर्माण करते हुए कार्यरत रहती हैं। मृदा निर्माण धीमी गति से हाता है लम्बी कालावधि में बनी मृदा अधिक समृद्ध व उपजाऊ होती है नदियों तथा हिमानियों द्वारा निक्षेपित जलोढ मिट्टी व गोलाष्मी मिट्टी युवा अवस्था की मिट्टियां होती है इनमें जनक पदार्थेि की प्रधानता होती है और मृदा पर्श्विका कम विकसित होती है लम्बे समय के बाद मृदा पर जलवायु व जैविक पदार्थो के प्रभाव से प्रौढ अवस्था प्राप्त करती है इस अवस्था में मृदा पर्श्विका पूर्ण विकसित हो जाती है और जनक पदार्थे की प्रधानता हट जाती है अन्त में मृदा बहुत अधिक पुरानी होकर जीर्ण अवस्था प्राप्त कर लेती है
  1. निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
    (क) निक्षेप                         (ख) ज्वालामुखीयता
    (ग) पटल-विरूपण                  (घ) अपरदन                               (घ)
  2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
    (क) ग्रेनाइट                        (ख) क्वार्ट्ज
    (ग) चीका (क्ले) मिट्टी             (घ) लवण                                 (घ)
  3. मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
    (क) भू-स्खलन                      (ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचालन
    (ग) मन्द प्रवाही बृहत् संचलन       (घ) अवतल/धसकन                       (क)
  4. अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
    किसी क्षेत्र की जैव विविधता उस क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर करती है अपक्षय चटटनों को छोटे-छोटे टुकड़ो मे तोडने एवं मृदा निर्माण मे सहायक होताहै। जिससे मृदा में नई सतहों का निर्माण होता है तथा मृदा में ह्यूमस का निर्माण होता है और मृदा उपजाऊ बनती है जिसमे विभिन्न प्रकार की वनस्पति का विकास होता है
  5. बृहत संचलन जो वास्तविकतीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैंवह क्या हैसूचीबद्ध कीजिए।
    चट्‌टानों के वृहत मलबे का गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के साहरे ऊपर से नीचे की ओर स्थानान्तरण वृहत संचलन कहलाता है बृहत्‌ मलबे की संचलन गति मंद से तीव्र हो सकती है इसके अंतर्गत विसर्पणबहावस्खलन एवं पतन सम्मिलित होते है
  6. विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य सम्पन्न करते हैं?
    प्रकृति का कोई भी बहिर्जनिक तत्त्व जैसे— प्रवाहित जलहिमनीवायुलहरें व भूमिगत जल इत्यादि जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम हैको भू—आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील होते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। प्रवाहित जलहिमनीवायुलहरें व भूमिगत जल को भू—आकृतिक कारक कहा जा सकता है ये गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक अपरदन या काटव करते है। इनके द्वारा उभरा हुआ धरातलीय भू-भाग अवतलित होता रहता है तथा अवतलित क्षेत्रों में भराव अथवा अधिवृद्धि होती है।
  7. क्या मृदा-निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
    मृदा-निर्माण में अपक्षय आवश्यक है। अपक्षय से ही मृदा निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है अपक्षय मृदा निर्माण के लिए जनक पदार्थ उपलब्ध करता है मूल शैल को अपक्षय छोटे कण के रूप में परिवर्तित कर देता है और वही कण धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेते है अपक्षय शैलों को न केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ कर मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं बल्कि अपरदन के लिए भी उत्तरदायी हैं। इसलिए अपक्षय मृदा-निर्माण में आवश्यक अनिवार्यता है।
  8. हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है।” विवेचना कीजिए।
    भूतल पर परिवर्तन दो बलों के कारण होता है— अंतर्जात बल तथा बहिर्जात बल। पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल को अंतर्जात बल जबकि पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल कहते हैं। अंतर्जात बल का संबंध पृथ्वी के भू—गर्भ से है जबकि बहिर्जात बल का संबंध मुख्यतः वायुमंडल से है। अंतर्जात बल से पृथ्वी में क्षैतिज तथा लंबवत्‌ संचलन उत्पन्न होते हैं। बहिर्जात बल पृथ्वी के अंतर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने में सतत्‌ प्रयत्नशील रहते हैं इसलिये बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल भी कहते हैं। ये अंतर्जात बल तथा बहिर्जात बल क्रमशः अंतर्जनित व बर्जिनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ को जन्म देते है अंतर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भूपटल पर विषम स्थलाकृतियों (पर्वतपठारमैदान ) का निर्माण करती और भूतल पर असमानताएं लाती है दूसरी तरफ बर्जिनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अंतर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा भूपटल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने का कार्य करती है अतएव दोनों प्रक्रियाओं की यह भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनिक बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। इस प्रकार पृथ्वी इन शक्तियों के खेल का रंगमंच है।
  9. बर्जिनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।” व्याख्या कीजिए
    बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा 'सूर्य से प्राप्त करती है बहिर्जनिक प्रक्रियाओं का प्रमुख कार्य भूपटल पर अनाछादन है जिसमें अपक्षय व अपरदन सम्मलित है अपक्षय व अपरदन सूर्य से ही ऊर्जा प्राप्त करती हैं। अपक्षय के लिए उतरदायी कारक तापक्रम व वर्षण को ऊर्जा सूर्य से ही मिलती है सूर्य की गर्मी की वजह से शैले फैलती है और सर्दी की वजह से सीकुड़ती है जिससे शैलो का अपक्षय होता है अपरदन के कारक जैसे वायु के प्रवाह व जल प्रवाह में तापमान व वर्षण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है सूर्य से प्राप्त ऊर्जा से ही वर्षा होती है और हवा चलती है हिम पिघलती है प्रवाहित जल व हवा अपरदन के लिए उतरदायी है इस प्रकार हम कह सकते है कि बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा 'सूर्य से प्राप्त करती है
  10. क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक- दूसरे से स्वतन्त्र हैंयदि नहीं तो क्योंसोदाहरण व्याख्या कीजिए।
    भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र नहीं हैं। क्योंकि दोनो ही प्रक्रियाएँ चट्टानों को छोटे –छोटे टुकड़ो में तोड़ती है भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ एक दूसरे पर निर्भर करती हैं। उदाहरणत: रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ जैसे विलयनकार्बोनेशनजलयोजन तथा ऑक्सीकरन एवं न्यूनीकरण आदि चट्टानों का अपघटन करती हैं। ये अपघटित चट्टानें भौतिक अपक्षय की प्रक्रियाओं जैसे भारविहीनीकरणतापमान में परिवर्तन एवं तुषार अपक्षय द्वारा आसानी से तोड़ी जा सकती हैं। इसी प्रकार रासायनिक अपक्षय भी भौतिक अपक्षय पर निर्भर करता हैक्योंकि भौतिक अपक्षयरासायनिक अपक्षय के लिए आधार तैयार करता है। उदाहरणत: भौतिक अपक्षय के कारक चट्टानों को तोड़ते हैं इन खंडित चट्टानों पर रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएं आसानी से अपना प्रभाव डालती हैं। अत: भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय एक-दूसरे से अलग-अलग होते हुए भी स्वतन्त्र नहीं हैं
  11. आप किस प्रकार मृदा-निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा कारकों के बीच अन्तर ज्ञात करते हैंजलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा-निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
    मृदा निर्माण के कारक- मृदा निर्माण को नियंत्रित करने वाले कारकों में उच्चावचसमयमूल शैलजलवायु तथा जैविक तत्व शामिल हैं। उच्चावचसमयमूल शैलउच्चावचसमय,और जलवायु तथा जैविक तत्व को क्रियाशील कारक कहते हैं। आधारी शैल तथा जलवायु मृदा निर्माण के दो आवश्यक कारक हैंक्योंकि ये अन्य कारकों को प्रभावित करते हैं। मृदा-निर्माण की प्रक्रिया में चट्टानों का अपक्षयअपरदननिक्षेपण व निक्षेपित पदार्थों में ह्यूमस का मिलना सम्मलित है जबकि मृदा-निर्माण के कारकों के अन्तर्गत जलवायुस्थलाकृतिमूल पदार्थजैविक क्रियाओं और काल अवधि को सम्मिलित किया जाता है अत: मृदा-निर्माण की प्रक्रिया में मृदा का निर्माण होता है तथा मृदा-निर्माण के कारक मृदा निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करते है
    मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ अपक्षय के विभिन्न कारकों द्वारा चट्टानों के विघटन एवं अपघटन से शुरू होती हैं। अपक्षय एवं अनाच्छादन के विभिन्न कारक भू-तल पर चट्टानों को तोड़-फोड़ कर शैल चूर्ण के रूप में परिवर्तित कर देते हैं यह शैल चूर्ण एक विशेष स्थान इपर निक्षेपित हो जाता है इन निक्षेपित पदार्थो में बैक्टेरिया तथा गौण जीव अपना आवास बना लेते है इस मृदा में गौण घास एवं फर्न जैसे लघु पौधें की वृद्धि हो सकती है बाद में धीरे-धीरे पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं का गला-सड़ा अंश मिल जाता हैजिसे ह्यूमस कहते हैं। इस मृदा में वायुजल व पक्षियें द्वारा लाए गए बीजों द्वारा वनस्पतियां उगने लगती है इस मृदा में निवास करने वाले तथा बिल बनाने वाले जीव जन्तु मृदा कणों को ऊपर नीचे करते हैंजिससे मृदा में निहित पदार्थ छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाते है। जिससे मृदा में जल-धारण करने की क्षमता व वायु के प्रवेश करने की क्षमता विकसित हो जाती है जिसके कारण अंततः परिपक्वखनिज एवं जीव युत्त मृदा का निर्माण होता है।
    मृदा निर्माण की प्रक्रिया मृदा निर्माण के कारको द्वारा नियंत्रित होती है ये कारक हैं मूल पदार्थस्थलाकृति जलवायुजैविक क्रियाएँ एवं कालावधि
    1. जलवायु-मृदा के निर्माण में जलवायु एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है। एक ही प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र में दो विभिन्न प्रकार के जनक पदार्थ एक ही प्रकार की मिट्टी का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरणत: पश्चिमी राजस्थान में बलुआ पत्थर तथा ग्रेनाइट दो भिन्न जनक पदार्थ हैंपरन्तु शुष्क जलवायु के प्रभाव के कारन एक ही प्रकार की बलुई मिट्टी को जन्म दिया है। इसी प्रकार से एक ही प्रकार के जनक पदार्थ विभिन्न प्रकार की जलवायु में विभिन्न प्रकार की मिट्टी का निर्माण करते है उदाहरणत: ग्रेनाइट चट्टानों से राजमहल की पहाड़ियों की आद्र जलवायु में लेटराइट मिट्टी बनती हैजबकि आन्ध्र प्रदेश की शुष्क जलवायु में चीका मिट्टी का निर्माण होता है।
    2. जैविक क्रियाए - मृदा में ह्यूमस निर्माण,नमी धारण करने की क्षमताजल धारण करने की क्षमता जैव पदार्थो के माध्यम से होती है जीवाश्म तथा वनस्पति मृदा को ह्यूमस प्रदान करते हैं। कुछ जीवाणु जैसे राइजोबियम वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजनी पदार्थो में परिवर्तित कर देते हैं जिनका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। चींटीदीमक व केंचुए मृदा निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है क्योंकि वे मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते हैं। केचुआ मिट्टी खाकर उसे अधिक उपजाऊ बनाते है





  1. समस्त वायुमण्डलीय शक्तियों का स्रोत क्या है ?
    सूर्य
  2. पेड़.पौधों के सड़े-गले पदार्थ तथा जीवाणुओं के अवशेष क्या कहलाते हैं ?
    ह्यूमस
  3. भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले  दो मुख्य कारक कौन से है 
    तापक्रम और वर्षा 
  4. वृहत् संचलन में कौनसी शक्ति सहायक होती है ?
    गुरुत्वाकर्षण शक्ति 
  5. मृदा निर्माण के निष्क्रिय  कारकों के नाम लिखिए 
    (i) मूल पदार्थ  (ii) स्थलाकृति
  6. मृदा निर्माण के सक्रीय कारकों के नाम लिखिए 
    (i) जलवायु
  7. तल संतुलन किसे कहते है ?
    धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन कहते है 
  8. बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा  कहां से प्राप्त करती है ?
    बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य की गर्मी एवं धरातल की ढाल प्रवणता से प्राप्त करती है 
  9. अपशल्कन से क्या अभिप्राय है ?
    शैलों की ऊपरी परत के गर्म व ठण्डी होने से शैलों का छिलकों की तरह टूटना अपशल्कन कहलाता है।
  10. भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ किसे कहते है ?
    धरातल के पदार्थों पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं।
  11. अपक्षय किसे कहते है ?
     प्राकृतिक कारको द्वारा अपने ही स्थान पर चट्टानों का यांत्रिक विखण्डन या रासायनिक वियोजन/अपघटन अपक्षय कहलाता है
  12. बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ  पृथ्वी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों  में भिन्न-भिन्न तरीकों से कार्य करती है। इसका क्या कारण है?
    पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेश स्थित हैं इसलिए बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्न होती हैं।
  13. अनाच्छादन से क्या अभिप्राय है ?
    अनाच्छादन-विभिन्न बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय,वृहत संचलन,अपरदन, परिवहन आदि के कारण धरातल की चट्टानों का उपरी आवरण हट जाता है इसे अनाच्छादन कहते है
  14. अपक्षय कितने प्रकार का होता है ?
    अपक्षय मुख्यत: तीन प्रकार का होता है
    (i) भौतिक या यान्त्रिक अपक्षय (ii) रासायनिक अपक्षय (iii) जैविक अपक्षय ।
  15. रासायनिक अपक्षय किसे कहते हैं ? इसकी प्रबलता का क्षेत्र बताइए ।
    जब चटृटानो का अपघटन विभिन्न रासायनिक क्रियाओं जैसे कि विलयन/घोलन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण द्वारा होता है तो इसे रासायनिक अपक्षय कहते है 
  16. जैविक अपक्षय का क्या अर्थ है ?
    पृथ्वी की सतह पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियो, जीव-जन्तुओं या मानव द्वारा चट्टानो का विखण्डन व अपघटन होना जैविक अपक्षय कहलाता है।
  17. वृहत् संचलन क्या है?
    चट्टानों के वृहत मलबे का गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के साहरे ऊपर से नीचे की ओर स्थानान्तरण वृहत संचलन कहलाता है 
  18. भौतिक अपक्षय क्या है? 
    विभिन्न भौतिक कारको ताप, दाबए गुरूत्वाकर्षण बल आदि द्वारा चट्टानों विघटन या विखण्डन होता है तो इसे भौतिक या यांत्रिक अपक्षय कहते है
  19. भू आकृतिक कारक क्या है?
    प्रकृति के तत्व जो धरातल के पदार्थो  का अध्ग्रिहण तथा परिवहन करने मे ं सक्षम ह ै जसै े
    हिम, जल, वायु आदि, उन्हे भू-आकृतिक कारक कहते है। 
  20. अपरदन बृहत् संचलन से भिन्न होता है। कैसे ?
    अपरदन में शैल मलबे का स्थानान्तरण अपरदनात्मक शक्तियों (जल, वायु, हिम) के द्वारा है जबकि बृहत् संचलन में शैल मलबे का स्थानान्तरण गुरूत्वाकर्षण शक्ति के द्वारा होता है
  21. अपरदन की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है?
    गतिशील शक्तियों जैसे वायु , प्रवाहित जल,हिमानी, लहरो व धाराओं तथा भूमिगत जल द्वारा शैलों  को काटना, खुरचना एवं उससे प्राप्त मलबे या अवसाद को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है
  22. अपक्षय प्रक्रिया का महत्व क्या है ?
    1. अपक्षय द्वारा चट्टाने ढीली हो जाती और विखण्डित व वियोजित होकर छोटे-छोटे टुकङो में टूट जाती है जिससे मिट्टी का निर्माण होता है
    2. अपक्षय अपरदन में सहायक है अपक्षय द्वारा चट्टानें ढाीली हो जाती है और सरलता से परिवहित हो जाती है जिससे धरातल समतल होता हे
    3. अपक्षय द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है
    4. शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपक्षय मूल्यवान खनिजों जैसे- लोहा, मैंगनीज,एल्यूमिनियम, ताँबा के अयस्कों के समृद्वीकरण एवं संकेंन्द्रण में सहायक होता है। जब शैलों का अपक्षय होता है तो कुछ पदार्थ भूमिगत जल द्वारा रासायनिक तथा भौतिक निक्षालन के माध्यम से स्थानांतरित हो जाते हैं तथा शेष बहुमूल्य पदार्थों का संकेन्द्रण हो जाता है।

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