महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन जर्मन मौसमविद अल्प्रेफड वेगनर ने सन् 1912 किया। यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से संबंधित है वेगनर के अनुसार आज के सभी महाद्वीप कार्बोनिफेरस युग में आपस में जुड़े हुए थे इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया का नाम दिया । पैंजिया का अर्थ है- संपूर्ण पृथ्वी। यह पैंजिया एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था । इस विशाल महासागर को पैंथालासा कहा गया जिसका अर्थ है-जल ही जल। वेगनर के अनुसार लगभग 20करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैंजिया का विभाजन आरंभ हुआ। यह पैंजिया पहले दो बड़े भागो में विभाजित हुआ । उत्तरी भाग लारेशिया (अंगारालैण्ड) और दक्षिणी भाग गोडवानालैंड कहलाया । इन दोनों स्थलीय भागो के बीच एक उथला व संकीर्ण महासागर बना जिसे टेथिस सागर कहते है लारेशिया (अंगारालैण्ड) के विभाजन से उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप व एशिया महाद्वीप बने तथा गोंडवानालैण्ड के विभाजन से दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत, मेडागास्कर द्वीप तथा आस्ट्रेलिया बने।
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन जर्मन मौसमविद अल्प्रेफड वेगनर ने सन् 1912 किया। यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से संबंधित है वेगनर के अनुसार आज के सभी महाद्वीप कार्बोनिफेरस युग में आपस में जुड़े हुए थे इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया का नाम दिया । पैंजिया का अर्थ है- संपूर्ण पृथ्वी। यह पैंजिया एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था । इस विशाल महासागर को पैंथालासा कहा गया जिसका अर्थ है-जल ही जल। वेगनर के अनुसार लगभग 20करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैंजिया का विभाजन आरंभ हुआ। यह पैंजिया पहले दो बड़े भागो में विभाजित हुआ । उत्तरी भाग लारेशिया (अंगारालैण्ड) और दक्षिणी भाग गोडवानालैंड कहलाया । इन दोनों स्थलीय भागो के बीच एक उथला व संकीर्ण महासागर बना जिसे टेथिस सागर कहते है लारेशिया (अंगारालैण्ड) के विभाजन से उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप व एशिया महाद्वीप बने तथा गोंडवानालैण्ड के विभाजन से दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत, मेडागास्कर द्वीप तथा आस्ट्रेलिया बने।
महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में प्रमाण
1. महाद्वीपों में साम्य
दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं । दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील का अफ्रीका की गिनी की खाड़ी में भली-भाँति सटाया जा सकता है। इसी प्रकार अटलांटिक महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों की रूप-रेखा को देखने से यह प्रतीत होता है कि ये सभी स्थल पहले इकद्ठे थे।
2. महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता
दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के अन्धमहासगारीय तटो में समानता मिलाती है इन दोनों किनारो पर पाए जाने वाले समुद्री निक्षेप जुरेसिक काल के हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि कभी ये महाद्वीप मिले हुए थे और इनके बीच अन्ध महासागर की उपस्थिति वहाँ नहीं थी।
3. टिलाइट
हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानें टिलाइट कहलाती हैं। ये चट्टानें गोंडवाना लैंड के छः भागों भारत, अफ्रीका, फॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिक और आस्ट्रेलिया में मिलती हैं। इन स्थाल्खंडो पर हिमावरण का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है इससे यह सिद्ध हो है कभी ये सभी भूखंड एक ही स्थलखंड के भाग थे
4. प्लेसर निक्षेप
अफ्रीका के घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते है सोनायुक्त शिराएँ दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के ब्राजील में पाई जाती हैं। अतः यह स्पष्ट है कि घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े थे।
5. जीवाश्मों का वितरण
‘लैमूर’भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं, कुछ वैज्ञानिकोंने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक सतत् स्थलखंड ‘लेमूरिया’ की उपस्थिति को स्वीकारा। मेसोसारस नाम के छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में ही रह सकते थे- इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत और ब्राजील में इरावर शैल समूह में ही मिलते हैं। ये दोनों स्थान आज एक दूसरे से 4,800 कि0मी0 की दूरी पर हैं और इनके बीच में एक महासागर विद्यमान है।
प्रवाह संबंधी बल
वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण थेः
1. ध्रुवीय फ्रलीइंग बल
2. ज्वारीय बल
ध्रुवीय फ्रलीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से सम्बंधित है। ज्वारीय बल सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण से संबद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं। वेगनर का मानना था कि करोड़ों वर्षों के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हो गए ।
संवहन-धारा सिद्धांत
संवहन-धारा सिद्धांत का प्रतिपादन आर्थर होम्स ने किया संवहन-धरा सिद्धांत के अनुसार मेंटल में उपस्थित रेडियो एक्टिव (रेडियोधमी) तत्वों में ताप की भिन्नता के कारण संवहन धाराएँ उत्पन्न होती है ये धाराएँ चक्रीय प्रवाह के रूप में संचालित होती रहती हैं। इस प्रकार पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का एक तंत्र विद्यमान है। जब धाराएं एक स्थान से दो विपरीत दिशाओं की ओर बहती हैं तो भू-पृष्ठ पर तनाव पैदा हो जाता है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं। परन्तु जब महाद्वीपों के अग्र भागों में दो विपरीत दिशाओं से आकर संवहन धाराएं मिलती हैं तो वे नीचे की ओर जाती हैं और महाद्वीपों के अग्र भाग को दबाती हैं। इस प्रकार महाद्वीप के अग्रभाग में सम्पीड़न उत्पन्न हो जाता है। इससे भू-अभिनतियां बनती हैं इन भू-अभिनतियों से वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
भूकंप व ज्वालामुखियों का वितरण
प्रशांत महासागर के किनारों को सक्रिय ज्वालामुखी के क्षेत्र होने के कारण ‘रिंग ऑफ फायर’ कहा जाता है।
महासागरीय अधःस्तल की बनावट का वर्णन कीजिए।
महासागरीय अधःस्तल को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है
1. महाद्वीपीय सीमा - इसके अन्तर्गत महाद्वीपीय किनारों और गहरे समुद्री बेसिन के मध्य स्थित उच्चावचन स्वरूपों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय मग्लढाल, महाद्वीपीय उभार और गहरी महासागरीय खाइयों आदि को सम्मिलित किया गया है।
2. वितलीय मैदान - ये विस्तृत मैदान महाद्वीपीय तटों व मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाए जाते हैं। वितलीय मैदान, वह क्षेत्र हैं, जहाँ महाद्वीपों से बहाकर लाए गए अवसाद इनके तटों से दूर निक्षेपित होते हैं।
3. मध्य महासागरीय कटक - मध्य महासागरीय कटक आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक शृंखला बनाते है। महासागरीय जल में डूबी हुई, यह पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली संभवतः सबसे लंबी पर्वत शृंखला है।
सागरीय अधस्तल का विस्तार
मध्य महासागरीय कटक व ज्वालामुखी उद्गार में घनिष्ट सम्बन्ध पाया जाता है ज्वालामुखी उद्गार से इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा बाहर निकालते हैं। महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुंबकीय गुणों में समानता पाई जाती है। महासागरीय कटकों के समीप की चट्टाने नवीनतम हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है। महासागरीय पर्पटी की चट्टाने महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। गहरी खाइयों में भूकंप के उद्गम अधिक गहराई पर हैं। जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं। इन तथ्यों और मध्य महासागरीय कटकों के दोनों तरफ की चट्टानों के चुंबकीय गुणों के विश्लेषण के आधार पर हेस ने सन् 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की, जिसे ‘सागरीय अधस्तल विस्तार’ के नाम से जाना जाता है। हेस के अनुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्गार होते है जिससे महासागरीय पर्पटी में विभेदन होता है और नया लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है। इस प्रकार महासागरीय अधस्तल का विस्तार हो रहा है ।
प्लेट विवर्तनिकी
एक विवर्तनिक प्लेट जिसे लिथोस्पेफरिक प्लेट भी कहा जाता है ठोस चट्टान का विशाल व अनियमित आकार का खंड है, जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलमंडलों से मिलकर बना है। ये प्लेटें दुर्बलतामंडल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिश अवस्था में चलायमान हैं।
एक प्लेट को महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट भी कहा जा सकता है जो इस बात पर निर्भर है कि उस प्लेट का अधिकतर भाग महासागर अथवा महाद्वीप से संबद्ध है। उदाहरणार्थ प्रशांत प्लेट मुख्यतः महासागरीय प्लेट है, जबकि यूरेशियन प्लेट को महाद्वीपीय प्लेट कहा जाता है।
प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ, खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं।
1, अफ्रीकी प्लेट – यह एक मिश्रित महाद्वीपीय व महासागरीय प्लेट है। इसमें पूर्वी अटलांटिक तलशामिल है
2. इंडो-आस्ट्रेलियन-न्यूजीलैंड प्लेट– इस प्लेट के अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप व आस्ट्रेलिया की स्थलीय पर्पटी तथा हिन्द महासागर एवं प्रशान्त महासागर की दक्षिणी-पश्चिमी महासागरीय पर्पटी सम्मिलित है।
3. यूरेशियन प्लेट– यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो अधिकांशतः महाद्वीपीय पर्पटी से निर्मित है। इसमें पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल सम्मिलित है
4. उत्तरी अमेरिकी प्लेट - इसमें पश्चिमी अटलांटिकतल सम्मिलित है तथा दक्षिणी अमेरिकन प्लेटव कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धारण करते हैं
5. दक्षिण अमेरिकी प्लेट – इसमे पश्चिमी अटलांटिक तल सम्मलित है उत्तरी अमेरिकी प्लेट व कैरेबियनद्वीप इसकी सीमा का निर्धारण करते हैं
6. प्रशान्त प्लेट – यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो पूर्णरूप से महासागरीय पर्पटी से निर्मित है।
7. अण्टार्कटिक प्लेट – अण्टार्कटिक प्लेट का अधिकांश भाग हिमाच्छादित है। यह प्लेट अण्टार्कटिका महाद्वीप के चारों ओर मध्य महासागरीय कटकों तक विस्तृत है।
कुछ महत्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं:
(i) कोकोस प्लेट - यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
(ii) नजका प्लेट - यह दक्षिण अमेरिका व प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
(iii) अरेबियन प्लेट – इसमें अधिकतर अरब प्रायद्वीप का भू-भाग सम्मिलित है।
(iv) फिलिपीन प्लेट -यह एशिया महाद्वीप और प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
(v) कैरोलिन प्लेट - यह न्यूगिनी के उत्तर में फिलिपियन व इंडियन प्लेटके बीच स्थित है।
रूपांतर भ्रंश
रूपांतर भ्रंश दो प्लेट को अलग करने वाले तल हैं जो सामान्यतः मध्य-महासागरीय कटकों से लम्बवत स्थिति में पाए जाते हैं।
प्लेट संचरण की सीमाएं
प्लेट संचरण के फलस्वरूप तीन प्रकार की प्लेट सीमाएँ बनती हैं।
अपसारी सीमा /रचनात्मक प्लेट किनारे
जब दो प्लेट एक दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है। उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं। वह स्थान जहाँ से प्लेट एक दूसरे से दूर हटती हैं, इन्हें प्रसारी स्थान भी कहा जाता है। अपसारी सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण मध्य-अटलांटिक कटक है। जहाँ उत्तरी अमेरिकन तथा दक्षिणी अमेरिकन प्लेटें, यूरेशियन तथा अफ्रीकी प्लेट से अलग हो रही हैं।
अभिसरण सीमा/विनाशात्मक प्लेट किनारे
जब दो प्लेटें आमने-सामने सरकती हैं तो एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है तथा वहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है उसे अभिसरण सीमा या विनाशात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं। । वह स्थान जहाँ प्लेट धँसती हैं, इसे प्रविष्ठन क्षेत्र भी कहते हैं।
अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है-
1. महासागरीय व महाद्वीपीय प्लेट के बीच
2. दो महासागरीयप्लेटों के बीच
3. दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच।
रूपांतर सीमा
जहाँ दो प्लेट दूसरे के साथ-साथक्षैतिज दिशा में सरकती हैं। वहां न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटीका विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं।
प्लेट प्रवाह दरें
प्लेट प्रवाह की दरें बहुत भिन्न हैं। आर्कटिक कटक की प्रवाह दर सबसे कम है 2.5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष से भी कम। ईस्टर द्वीप के निकट पूर्वी प्रशांत महासागरीय उभार, जो चिली से 3,400 कि.मी. पश्चिम की ओर दक्षिण प्रशांत महासागर में है, इसकी प्रवाह दर सर्वाधिक है जो 5 से.मी. प्रति वर्ष से भी अधिक है
प्लेट को संचलित करने वाले बल
ऐसा माना जाता है कि दृढ़ प्लेट के नीचे चलायमान चट्टानें वृत्ताकार रूप में चल रही हैं। उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, फैलता है और धीरे-धीरे ठंडा होता है फिर गहराई में जाकर नष्ट हो जाता है। यही चक्र बारंबार दोहराया जाता है और वैज्ञानिक इसे संवहन प्रवाह कहते हैं।
पृथ्वी के भीतर ताप उत्पत्ति के दो माध्यम हैं रेडियोर्ध्मी तत्वों का क्षय और अवशिष्ट ताप।
भारतीय प्लेट का संचलन
भारतीय प्लेट में प्रायद्वीप भारत और आस्ट्रेलिया महाद्वीपीयभाग सम्मिलित हैं। हिमालय पर्वत श्रेणियों के साथ-साथ पाया जाने वाला प्रविष्ठन क्षेत्र इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण करता है तथा महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण के रूप में है।
इसकी पूर्वी सीमा एक विस्तारित तल है, जो आस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिणी पश्चिमी प्रशांत महासागर में महासागरीय कटक वेफ रूप में है। इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती है। भारत एक वृहत् द्वीप था, जो आस्ट्रेलियाई तट से दूर एक विशाल महासागर में स्थित था। लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पहलेतक टेथीस सागर इसे एशिया महाद्वीप से अलग करता था। लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले जब पैन्जिया का विभाजन हुआ तब भारतीय प्लेट उत्तर की ओर सरकने लगी। लगभग 4 या 5 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्रायद्वीप एशिया से जा टकराया। फलस्वरूप टेथिस का मलवा वलित होकर हिमालय पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया। लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50® दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। भारतीय प्लेट और एशियाई प्लेट के मध्य टेथिस सागर स्थित था और जब भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट की ओर सरक रही थी उस समय लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। लावा जमाव की प्रक्रिया का प्रारम्भ 6 करोड़ वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ और काफी अधिक लम्बे समय तक चलता रहा। भारतीय उपमहाद्वीप उस समय की भूमध्य रेखा के समीप स्थित था और आज भी इसकी स्थिति भूमध्य रेखा के समीप ही उत्तरी गोलार्द्ध में है। हिमालय निर्माण की प्रक्रिया आज से लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुई व आज भी जरी है। और आज भी हिमालय का उत्थान हो रहा है।
- निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की सम्भावना व्यक्त की?(क) अल्फ्रेड वेगनर (ख) अब्राहमें आरटेलियस(ग) एनटोनियो पेलेग्रिनी (घ) एडमण्ड हैस (ख)
- पोलर फ्लीइंग बल (Polar fleeing Force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?(क) पृथ्वी का परिक्रमण (ख) पृथ्वी को घूर्णन(ग) गुरुत्वाकर्षण (घ) ज्वारीय बल (ख)
- इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?(क) नजका (ख) फ़िलिपीन(ग) अरब (घ) अण्टार्कटिक (घ)
- सागरीय अधःस्तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए हैस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?(क) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ(ख) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण(घ) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु । (ग)
- हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?(क) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण(ख) अपसारी सीमा(ग) रूपान्तरण सीमा(घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण (घ)
- महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का उल्लेख किया?वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन के लिए निम्न बलों का उल्लेख किया है1.पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल2.ज्वारीय बल
- मैंटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?संवहन धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों से ताप भिन्नता के कारण मैंटल में उत्पन्न होती हैं। ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों की उपलब्धता के कारण ही मैंटल में बनी रहती हैं तथा इन्हीं तत्त्वों से संवहनीय धाराएँ आरम्भ होकर चक्रीय रूप में प्रवाहित होती रहती हैं।
- प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर क्या है?प्लेट की रूपान्तर सीमा में पर्पटी का न तो निर्माण होता है और न ही विनाश। जबकि अभिसरण सीमा में पर्पटी का विनाश होता है तथा अपसारी सीमा में पर्पटी का निर्माण होता है।
- दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखण्ड की स्थिति क्या थी?आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय स्थलखण्ड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। भारतीय उपमहाद्वीप व यूरेशियन प्लेट को टैथीस सागर अलग करता था इण्डियन प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना लावा प्रवाह के कारण दक्कन टैप का निर्माण हुआ। अत: भारतीय स्थलखण्ड दक्कन टैप निर्माण के समय भूमध्य रेखा के निकट स्थित था।
- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित प्रमाण प्रमुख रूप से दिए जाते हैं
1. महाद्वीपों में साम्य- दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं। दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील का अफ्रीका की गिनी की खाड़ी में भली-भाँति सटाया जा सकता है। इसी प्रकार अटलांटिक महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों की रूप-रेखा को देखने से यह प्रतीत होता है कि ये सभी स्थल पहले इकद्ठे थे। बाद में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के परिचम की ओर खिसकने से अटलाटिक महासागर का निर्माण हुआ।
2. महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता -दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के अन्धमहासगारीय तटो में समानता मिलाती है इन दोनों किनारो पर पाए जाने वाले समुद्री निक्षेप जुरेसिक काल के हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि कभी ये महाद्वीप मिले हुए थे और इनके बीच अन्ध महासागर की उपस्थिति वहाँ नहीं थी।
3. टिलाइट-हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानें टिलाइट कहलाती हैं। ये चट्टानें गोंडवाना लैंड के छः भागों भारत, अफ्रीका, फॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिक और आस्ट्रेलिया में मिलती हैं। इन स्थाल्खंडो पर हिमावरण का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है इससे यह सिद्ध हो है कभी ये सभी भूखंड एक ही स्थलखंड के भाग थे
4. प्लेसर निक्षेप - अफ्रीका के घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते है सोनायुक्त शिराएँ दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के ब्राजील में पाई जाती हैं। अतः यह स्पष्ट है कि घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े थे।
5. जीवाश्मों का वितरण - ‘लैमूर’ भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं, कुछ वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक सतत् स्थलखंड ‘लेमूरिया’ की उपस्थिति को स्वीकारा।मेसोसारस नाम के छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में ही रह सकते थे- इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत और ब्राजील में इरावर शैल समूह में ही मिलते हैं। ये दोनों स्थान आज एक दूसरे से 4,800 कि0मी0 की दूरी पर हैं और इनके बीच में एक महासागर विद्यमान है। - महाद्वीपीय विस्थापन एवं प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में प्रमुख अन्तर निम्न हैं(1) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन अल्फ्रेड वेगनर ने किया जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त का प्रतिपादन मैकेन्जी, पारकर एवं मोरगन ने किया ।
(2) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार आरम्भिक काल में सभी महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। इस जुड़े स्थल रूप को वेगनर ने ‘पैन्जिया’ कहा है। जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीप एवं महासागर अनियमित एवं भिन्न आकार वाले प्लेटों पर स्थित हैं और गतिशील हैं।
(3) वेगनर के अनुसार महाद्वीपों का प्रवाह ध्रुवीय फ्लाइंग बल एवं ज्वारीय बल के कारण हुआ जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार प्लेट दुर्बलता मण्डल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान है। इनकी गति का प्रमुख कारण मैण्टिल में उत्पन्न होने वाली संवहनीय धाराएँ हैं।
(4) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार स्थलखण्ड सियाल के बने हैं जो अधिक घनत्व वाले सीमा पर तैर रहे हैं। अर्थात् केवल स्थलखण्ड गतिशील हैं। जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार एक विवर्तनिक प्लेट जो महाद्वीपीय एवं महासागरीय स्थलखण्डों से मिलकर बनी है, एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में गतिशील है।
- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं ?वेगनर
- टिलाइट किसे कहते हैहिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानें टिलाइट कहलाती हैं।
- कोकोस प्लेट कहाँ स्थित है?कोकोस प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका एवं प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।
- प्रथम श्रेणी के उच्चावच क्या हैं?पृथ्वी तल पर मिलने वाले महाद्वीप व महासागरों को प्रथम श्रेणी के उच्चावच माना जाता है क्योंकि इनकी रचना सबसे पहले हुई।
- रूपांतर भ्रंश से क्या अभिप्राय हैरूपांतर भ्रंश दो प्लेट को अलग करने वाले तल हैं जो सामान्यतः मध्य-महासागरीय कटकों से लंबवत स्थिति में पाए जाते हैं।
- वेगनर ने पेंजिया किसे कहा ?वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में समस्त महाद्वीप एक स्थलखण्ड के रूप में स्थित थे। इस संयुक्त स्थलखण्ड को ही पेंजिया कहा गया है।
- महाद्वीप व महासागरों की उत्पत्ति के सर्वमान्य सिद्धान्त कौन-से हैं?महाद्वीप व महासागरों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में महाद्वीपीय विस्थापन एवं विवर्तनिकी नामक सिद्धान्त सर्वमान्य हैं।
- स्थलमंडल से क्या तात्पर्य है?स्थलमंडल में पर्पटी एवं ऊपरी मैंटल को सम्मिलित किया जाता है, जिसकी मोटाई महासागरों में 5 से 100 कि0मी0 और महाद्वीपीय भागों में लगभग 200 कि0मी0 है।
- प्रविष्ठन क्षेत्र क्या होता है?अभिसरण सीमा पर जहाँ भू-प्लेट धंसती है, उस क्षेत्र को प्रविष्ठन क्षेत्र कहते हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र इसका प्रमुख उदाहरण है
- रूपान्तरण सीमा क्या है?जहाँ दो प्लेट दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरकती हैं। वहां न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं।
- विवर्तनिक प्लेट क्या हैएक विवर्तनिक प्लेट जिसे लिथोस्पेफरिक प्लेट भी कहा जाता है, ठोस चट्टान का विशाल व अनियमित आकार का खंड है, जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलमंडलों से मिलकर बना है। ये प्लेटें दुर्बलतामंडल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान हैं।
- टेथीस भूसन्नति के दोनों ओर के भूखण्डों के नाम लिखिए।टेथोस भूसन्नति के दोनों ओर के भागों के लिए क्रमश: उत्तर में स्थित भाग के लिए अंगारालैण्ड (लारेशिया) व दक्षिणी भाग के लिए गौंडवाना लैण्ड शब्द का प्रयोग किया गया था।
- अपसारी सीमा क्या है? इसका एक उदाहरण दीजिए।जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है तो उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं। अपसारी सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है।
- पेंथालासा से आपका क्या आशय है?कार्बोनिफेरस युग में समस्त महाद्वीप एक स्थलखण्ड के रूप में स्थित थे, इस संयुक्त स्थलखण्ड (पेंजिया) के चारों ओर विशाल महासागर था जिसे पेंथालासा कहा जाता है।
- वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन जर्मन मौसमविद अल्प्रेफड वेगनर ने सन् 1912 किया। यह सिद्धांत महाद्वीप एवंमहासागरों के वितरण से संबंधित है वेगनर के अनुसार आज के सभी महाद्वीप कार्बोनिफेरस युग में आपस में जुड़े हुए थे इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया का नाम दिया। पैंजिया का अर्थ है- संपूर्ण पृथ्वी। यह पैंजिया एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। इस विशाल महासागर को पैंथालासा कहागया जिसका अर्थ है- जल ही जल। वेगनर के अनुसार लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैंजिया का विभाजन आरंभ हुआ। यह पैंजिया पहले दो बड़े भागो में विभाजित हुआ उत्तरी भाग लारेशिया(अंगारालैण्ड) और दक्षिणी भाग गोडवानालैंड कहलाया इन दोनों स्थलीय भागो के बीच एक उथला व संकीर्ण महासागर बना जिसे टेथिस सागर कहते है लारेशिया(अंगारालैण्ड) के विभाजन से उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप व एशिया महाद्वीप बने गोंडवानालैण्ड के विभाजन से दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत, मेडागास्कर द्वीप तथा आस्ट्रेलिया बने
- प्लेट कितने प्रकार की होती हैं? स्पष्ट कीजिए।संरचना के आधार पर प्लेटों को निम्न भागों में बाँटा गया है1. महाद्वीपीय प्लेट – जिस प्लेट का सम्पूर्ण या अधिकांश भाग स्थलीय हो, वह महाद्वीपीय प्लेट कहलाती है। यूरेशियन प्लेट2. महासागरीय प्लेट – जिस प्लेट का सम्पूर्ण या अधिकांश भाग महासागरीय तली के अन्तर्गत होता है वह महासागरीय प्लेट कहलाती है। प्रशान्त प्लेट3. महसागरीय – महाद्वीपीय प्लेट-जिस प्लेट पर महाद्वीप व महासागरीय तली दोनों का विस्तार होता है।
- अभिसरणं सीमा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार से हो सकता है?जब दो प्लेटें आमने-सामने सरकती हैं तो एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है तथा वहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है उसे अभिसरण सीमा या विनाशात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं। अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है-1. महासागरीय व महाद्वीपीय प्लेट के मध्य,2. दो महासागरीय प्लेटों के मध्य,3. दो महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य
- संवहन धारा सिद्धान्त क्या है?संवहन-धरा सिद्धांत का प्रतिपादन आर्थर होम्स ने किया संवहन-धरा सिद्धांत के अनुसार मेंटल में उपस्थित रेडियो एक्टिव (रेडियोधमी ) तत्वों में ताप की भिन्नता के कारण संवहन धाराएँ उत्पन्न होती है ये धाराएँ चक्रीय प्रवाह के रूप में संचालित होती रहती हैं। इस प्रकार पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धराओं का एक तंत्र विद्यमान है। जब धाराएं एक स्थान से दो विपरीत दिशाओं की ओर बहती हैं तो भू-पृष्ठ पर तनाव पैदा हो जाता है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं। परन्तु जब महाद्वीपों के अग्र भागों में दो विपरीत दिशाओं से आकर संवहन धाराएं मिलती हैं तो वे नीचे की ओर जाती हैं और महाद्वीपों के अग्र भाग को दबाती हैं। इस प्रकार महाद्वीप के अग्रभाग में सम्पीड़न उत्पन्न हो जाता है। इससे भू-अभिनतियां बनती हैं इन भू-अभिनतियों से वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
- महासागरीय अधःस्तल की बनावट का वर्णन कीजिए।महासागरीय अधःस्तल को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है
1.महाद्वीपीय सीमा - इसके अन्तर्गत महाद्वीपीय किनारों और गहरे समुद्री बेसिन के मध्य स्थित उच्चावचन स्वरूपों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय मग्लढाल, महाद्वीपीय उभार और गहरी महासागरीय खाइयों आदि को सम्मिलित किया गया है।
2. वितलीय मैदान -ये विस्तृत मैदान महाद्वीपीय तटों व मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाए जाते हैं। वितलीय मैदान, वह क्षेत्र हैं, जहाँ महाद्वीपों से बहाकर लाए गए अवसाद इनके तटों से दूर निक्षेपित होते हैं।
3. मध्य महासागरीय कटक - मध्य महासागरीय कटक आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक शृंखला बनाते है। महासागरीय जल में डूबी हुई, यह पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली संभवतः सबसे लंबी पर्वत शृंखला है। - पृथ्वी का स्थलमंडल कितनी भूमण्डलीय प्लेटों से बना हुआ है मुख्य भूमण्डलीय प्लेटों का वर्णन कीजिए
प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धांतके अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ, खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं।
1. अफ्रीकी प्लेट – यह एक मिश्रित महाद्वीपीय व महासागरीय प्लेट है। इसमें पूर्वी अटलांटिक तल शामिल है
2.इंडो-आस्ट्रेलियन-न्यूजीलैंड प्लेट – इस प्लेट के अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप व आस्ट्रेलिया की स्थलीय पर्पटी तथा हिन्द महासागर एवं प्रशान्त महासागर की दक्षिणी-पश्चिमी महासागरीय पर्पटी सम्मिलित है।
3.यूरेशियन प्लेट– यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो अधिकांशतः महाद्वीपीय पर्पटी से निर्मित है। इसमें पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल सम्मिलित है
4.उत्तर अमेरिकी प्लेट - इसमें पश्चिमी अटलांटिक तल सम्मिलित है तथा दक्षिणी अमेरिकन प्लेट व कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धरण करते हैं
5.दक्षिण अमेरिकी प्लेट – इसमे पश्चिमी अटलांटिक तल सम्मलित है उत्तरी अमेरिकी प्लेट व कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धारण करते हैं
6.प्रशान्त प्लेट– यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो पूर्णरूप से महासागरीय पर्पटी से निर्मित है।
7.अण्टार्कटिक प्लेट – अण्टार्कटिक प्लेट का अधिकांश भाग हिमाच्छादित है। यह प्लेट अण्टार्कटिका महाद्वीप के चारों ओर मध्य महासागरीय कटकों तक विस्तृत है।