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3. मानव विकास

वृद्धि और विकास 
वृद्धि और विकास दोनों का संबंध समय के अनुसार परिवर्तन से हैं। 
वृद्धि मात्रात्मक होती है और मूल्य निरपेक्ष होती है 
वृद्धि धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकती है 
विकास गुणात्मक होता है। और मूल्य सापेक्ष होता है। 
विकास सदैव सकारात्मक (धनात्मक) होता है ।
मानव विकास
मानव विकास की अवधरणा का प्रतिपादन डॉमहबूब- उल-हक ने किया डॉ. हक के अनुसार मानव विकास एक ऐसे विकास के रूप में होता है जो लोगों के विकल्पो में वृद्धि करता है और उनके जीवन स्तर में सुधार लाता है ताकि वे आत्म-सम्मान के दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जी सके ।
भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का यह मानना है कि 'विकास का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता में वृद्धि करना है। स्वतन्त्रता में वृद्धि ही विकास करने वाला सशक्त माध्यम है।
डॅा. महबूब-उल-हक ने 1990 ई. में मानव विकास सूचकांक निर्मित किया। 1990 ई. में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रथम मानव विकास रिपोर्ट का प्रकाशन किया है। तब से यह संस्था प्रतिवर्ष विश्व मानव विकास रिपोर्ट को प्रकाशित करती आ रही है। 
मानव विकास के स्तंभ/घटक 
1. समता  - समता का आशय एक ऐसे समाज या प्रदेश से है जिसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था उपलब्ध हो। अर्थार्त किसी प्रदेश में उपलब्ध समस्त संसाधनों की वहाँ निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से उपलब्धता को समता कहा जा सकता है। लोगों को उपलब्ध अवसर या संसाधन लिंग, प्रजाति, आय तथा जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान रूप से मिलने चाहिए। यद्यपि विश्व के अधिकांश भागों में ऐसा नहीं होता है। भारत जैसे विकासशील देश में महिलाओं, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले अधिकांश लोग विकास के इन अवसरों से प्राय: वंचित रह जाते हैं। अत: मानव विकास के लिए यह आवश्यक है कि विकास के अवसरों या संसाधनों की समान उपलब्धता समाज के हर व्यक्ति को प्राप्त हो।
2. सतत पोषणीयता - मानव विकास की अवधारणा में सतत पोषणीयता टिकाऊ विकास की अभिव्यक्ति है। सतत पोषणीयता का अर्थ है अवसरों की उपलब्धता में सततता। किसी क्षेत्र में उपलब्ध पर्यावरणीय, वित्तीय तथा मानवीय संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से इस प्रकार किया जाये जिससे इन संसाधनों की उपलब्धता समान रूप से आगे आने वाली पीढ़ियों को हो सके। वस्तुत: उक्त संसाधनों का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए इन संसाधनों की उपलब्धता के अवसरों को सीमित कर देगा जिससे मानव विकास की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होंगे।
3. उत्पादकता - मानव विकास अवधारणा के सन्दर्भ में उत्पादकता का आशय है-मानव श्रम उत्पादकता या मानव कार्यों के सन्दर्भ में उत्पादकता । इसके लिए यह आवश्यक है कि मानवीय समुदाय में साक्षरता को बढ़ाने तथा उत्तम चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध करायी जायें जिससे उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाकर उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि की जा सकती है
4. सशकतीकरण - मानव विकास की अवधारणा के अन्तर्गत सशक्तीकरण का आशय है-मानव को अपने विकल्पों का चयन करने की शक्ति का प्राप्त होना। मानव की बढ़ती हुई स्वतन्त्रता तथा कार्यक्षमता से मानव को अपने विकल्पों का चयन करने की शक्ति प्राप्त होती है। लोगों को सशक्त करने के लिए देश में लोकोन्मुखी नीतियों के साथ-साथ उत्तम शासन व्यवस्था की आवश्यकता होती है।  
मानव विकास के उपागम 
मानव विकास के अध्ययन के लिए निर्धारित चार उपागमों का उपयोग प्रमुख रूप से किया जाता है-
1. आय उपागम - मानव विकास के अध्ययन का यह सबसे पुराना उपागम है। इसमें मानव विकास का निर्धारण मानव की आय के साथ जोड़कर ज्ञात किया जाता है। इस सन्दर्भ में यह माना जाता है कि किसी व्यक्ति की आय का स्तर उच्च है तो उसके मानव विकास की स्तर भी ऊँचा ही होगा।
2. कल्याण उपागम -मानव विकास के अध्ययन में कल्याण उपागम मानव को एक लाभार्थी या सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में मान्यता प्रदान करता है। यह उपागम प्रत्येक मानव की शिक्षा स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा तथा सुख-साधनों पर पर्याप्त धनराशि के सरकारी व्यय को आवश्यक मानता है। सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि मानवीय कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानवीय विकास के स्तरों में वृद्धि करे। कल्याण उपागम यह मानता है कि लोग विकास में प्रतिभागी नहीं हैं लेकिन वे विकास के निष्क्रिय प्राप्तकर्ता हैं।
3. आधारभूत आवश्यकता उपागम - मानव विकास के इस उपागम का प्रतिपादन अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने किया। इसके अन्तर्गत मानव की छ: आधारभूत आवश्यकताओं जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता तथा आवास की पहचान की गयी तथा मानव विकास के लिए उक्त छहों मूलभूत आवश्यकताओं की समुचित व्यवस्था पर जोर दिया गया। 
4. क्षमता उपागम - मानव विकास के इस उपागम का प्रतिपादन भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने किया। उनका मानना है कि मानवीय क्षमताओं का निर्माण कर उनकी संसाधनों तक पहुँच को बढ़ाया जा सकता है तथा यही मानव विकास की कूँजी है।
मानव विकास सूचकांक (HDI)
विश्व के विभिन्न देशों में मानव विकास के स्तर को मापने के लिए स्वास्थ्य , शिक्षा एवं संसाधनों तक पहुँच के आधार पर एक सांख्यिकी सूचकांक तैयार किया जाता है जिसे मानव विकास सूचकांक कहते है 
मानव विकास सूचकांक स्वास्थ्य, साक्षरता तथा संसाधनों तक पहुँच के सन्दर्भ में मापा जाता है। इनमें से प्रत्येक आयाम  को 1/3 भारिता दी जाती है। इस आधार पर मानव विकास सूचकांक का मूल्य 0 से । के मध्य होता है। मानव विकास सूचकांक का मूल्य एक के जितना अधिक समीप होता है, उतना ही मानव विकास का स्तर अधिक माना जाता है या उच्च ही माना जाता है। मानव विकास का 0.938 मूल्य मानव विकास का उच्च स्तर माना जाता है,
जबकि 0.268 मूल्य मानव विकास का अत्यन्त निम्न स्तर माना जाता है।
मानव विकास सूचकांक के आयाम (क्षेत्र)
1. स्वास्थ्य - स्वास्थ्य का मूल्यांकन जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा से किया जाता है। यह जीवन प्रत्याशा वर्षों के रूप में मापी जाती है। जितनी ही उच्च जीवन प्रत्याशा होगी, उतना ही अधिक विकास का सूचकांक होगा। उच्चतर जीवन-प्रत्याशा का अर्थ है कि लोगों के पास अधिक दीर्घ और अधिक स्वस्थ जीवन जीने के ज्यादा अवसर हैं।
2. साक्षरता - साक्षरता के मूल्यांकन के लिए प्रौढ़ साक्षरता दर, विद्यालयों में सकल नामांकित बच्चों की संख्या तथा स्कूलिंग की अवधि को आधार माना जाता है।
3. संसाधनों तक पहुँच - संसाधनों तक पहुँच का आशय उत्तम ढंग से जीवन जीने हेतु साधनों की प्राप्ति से है। इसे राष्ट्रीय आय या प्रति व्यक्ति आय या मानव की क्रय शक्ति के आधार पर मापा जाता है। 
मानव गरीबी सूचकांक 
यह सूचकांक मानव विकास में कमी मापता है। यह एक बिना आय वाला माप है। मानव विकास प्रतिवेदन 1997 में सर्वप्रथम मानव गरीबी सूचकांक प्रस्तुत किया गया 
मानव गरीबी सूचकांक निम्नांकित तीन प्रकार की कमियों पर आधारित होता है 
1. उत्तरजीविता में कमी - 40 वर्ष की आयु तक जीवित न रह पाने वाले लोगों का प्रतिशत 
2. शिक्षा व ज्ञान में कमी -प्रौढ़ निरक्षरता दर
3. आर्थिक प्रावधान में कमी – इसकी गणना तीन चारों स्वच्छ जल तक पहुँच न रखने वाले लोगों की संख्या, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच से बाहर लोगों की संख्या व 5 वर्ष से कम उम्र के अल्पभार वाले बच्चों की संख्या  द्वारा की जाती है। प्रायः मानव गरीबी सूचकांक, मानव विकास सूचकांक की अपेक्षा अधिक कमी उद्घाटित करता है। मानव विकास के इन दोनों मापों का संयुक्त अवलोकन किसी देश में मानव विकास की स्थिति का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है।
मानव विकास सूचकांक और गरीबी सूचकांक यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो
महत्त्वपूर्ण सूचकांक हैं।
भूटान विश्व में अकेला देश है जिसने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता  को देश की प्रगति का आधिकारिक माप घोषित किया है। 
मानव विकास सूचकांक की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ
प्रदेश के आकार और प्रति व्यक्ति आय का मानव विकास से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। प्रायः बडे़ देशों की अपेक्षा छोटे देशों का मानव विकास सूचकांक उच्च पाया जाता है  इसी प्रकार निर्धन राष्ट्रों का मानव विकास सूचकांक  धनी देशों से उच्च पाया जाता है उदाहरण के तौर पर अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्थाएँ होते हुए भी श्रीलंका, ट्रिनिडाड और टोबैगो का मानव विकास सूचकांक भारत से ऊँचा है। इसी प्रकार कम प्रति व्यक्ति आय के बावजूद केरल का मानव विकास सूचकांक पंजाब और गुजरात से अधिक है। मानव विकास के उच्च स्तरों वाले देश सामाजिक सेक्टरों में अधिक निवेश करते हैं और राजनैतिक उपद्रव और अस्थिरता से प्रायः स्वतंत्र होते हैं। इन देशों में संसाधनों का वितरण भी अपेक्षाकृत समान है।दूसरी ओर मानव विकास के निम्न स्तरों वाले देश सामाजिक सेक्टरों की बजाय प्रतिरक्षा पर अधिक व्यय करते हैं।अर्जित मानव विकास स्कोर के आधार पर विश्व के देशों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है 
1. अति उच्च मानव विकास सूचाकांक वाले देश - उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश वे हैं जिनका स्कोर 0.8 से ऊपर है। नार्वे, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांग-कांग व आइसलैंड सहित विश्व के 66 देश इस श्रेणी में शामिल हैं 
2. उच्च मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान .700 से 0.799 के बीच होता है ट्रिनिडाड, क्यूबा, ईरान श्रीलंका, थाईलैंड सहित विश्व के 53 देश इस श्रेणी में शामिल है 
3. मध्यम मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान 0.550 से 0.699  के बीच होता है ईरान, नामीबिया, भारत, भूटान व बांग्लादेश सहित विश्व के 37 देश इस श्रेणी में शामिल है
4. निम्न मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान 0 0.549 से नीचे होता है हेती, नाइजीरिया, तंजानिया,युगांडा व रवांडा सहित विश्व के 33 देश इस श्रेणी में शामिल है
मानव विकास प्रतिवेदन 2006 के अनुसार भारत 126 वें स्थान पर था। 2020 में यह और नीचे, 131वें पद पर चला गया है।
  1. मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट कौन तैयार करता है ?
    संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(UNDP)
  2. मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया ?
    डॉ. महबूब-उल-हक ने 
  3. डॅा. महबूब-उल-हक ने  मानव विकास सूचकांक कब निर्मित किया?
    1990 ई. में
  4. मानव विकास प्रतिवेदन 2020 के अनुसार विश्व में सर्वाधिक मानव विकास सूचकांक वाला देश कौनसा है ?
    नार्वे 
  5. UNDP का पूरा नाम लिखिए 
    संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम 
  6. मानव विकास का कौन-सा उपागम प्रो. अमर्त्य सेन द्वारा प्रतिपादित कियागया ?
    क्षमता उपागम
  7. विश्व के किस देश ने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को देश की प्रगति की अधिकारिता माप घोषित किया है?
    भूटान
  8. उच्च एवं निम्न  श्रेणी के मानव विकास सूचकांक में कितने देश सम्मिलित हैं ?
    उच्च श्रेणी के मानव विकास सूचकांक में 53 देश एवं निम्न श्रेणी के मानव विकास सूचकांक में 33 देश सम्मिलित हैं
  9. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रथम मानव रिपोर्ट कब प्रकाशित की गई?
    1990 ई॰ में
  10. मानव विकास का विचार किन संकल्पनाओं (घटकों/स्तंभों) पर आधारित है ?
    1. समता   2. सतत पोषणीयता   3. उत्पादकता    4. सशक्तिकरण
  11. स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए कौनसा सूचक चुना गया है ?
    जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 
  12. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठनa (I.L.O.) ने मूलरूप से किस मानव विकास के उपागम को प्रस्तावित किया था ?
    अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.0.) ने मूलरूप से आधारभूत आवश्यकता उपागम को प्रस्तावित किया था।
  13. मानव विकास का केंद्र बिंदु क्या है ?
    स्वास्थ्य , शिक्षा एवं संसाधनों तक पहुँच मानव विकास का केंद्र बिंदु  है 
  14. वृद्धि और विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
    वृद्धि मात्रात्मक होती है और मूल्य निरपेक्ष होती है  जबकि विकास गुणात्मक होता है। और मूल्य सापेक्ष होता है। 
    वृद्धि धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकती है जबकि विकास सदैव सकारात्मक (धनात्मक) होता है ।
  15. मानव विकास के सन्दर्भ में उत्पादकता से क्या अभिप्राय है  ?
    मानव विकास अवधारणा के सन्दर्भ में उत्पादकता का आशय है-मानव श्रम उत्पादकता या मानव कार्यों के सन्दर्भ में उत्पादकता । 
  16. मानव विकास के सन्दर्भ में सशकतीकरण से क्या अभिप्राय है  ?
    मानव विकास की अवधारणा के अन्तर्गत सशक्तीकरण का आशय है-मानव को अपने विकल्पों का चयन करने की शक्ति का प्राप्त होना। 
  17. मानव विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण/सार्थक पक्ष कौनसे है ?
    दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जीना (स्वास्थ्य), ज्ञान प्राप्त कर पाना (शिक्षा) तथा पर्याप्त ससाधनों की उपलब्धता (संसाधनों तक पहुँच) मानव विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है 
  18. मानव विकास के सन्दर्भ में समता से क्या अभिप्राय है ?
    समता का आशय एक ऐसे समाज या प्रदेश से है जिसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था उपलब्ध हो। अर्थार्त किसी प्रदेश में उपलब्ध समस्त संसाधनों की वहाँ निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से उपलब्धता को समता कहा जा सकता है। 
  19. मानव विकास की अवधारणा क्या है इसका प्रतिपादन किसने किया ? या 
    मानव विकास से आप क्या समझते हैं ? 
    मानव विकास एक ऐसे विकास के रूप में होता है जो लोगों के विकल्पो में वृद्धि करता है और उनके जीवन स्तर में सुधार लाता है ताकि वे आत्म-सम्मान के दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जी सके ।इसका प्रतिपादन डॉ. महबूब उल हक ने किया 
  20. सार्थक जीवन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए 
    सार्थक जीवन वह जीवन है जिसमें -
    1. लोग स्वस्थ हो
    2. लोग अपने  विवेक  और बुद्धि  का विकास करें 
    3.लोग समाज में प्रतिभागिता करे 
    4. लोग अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हो 
  21. मानव विकास के चार प्रमुख उपागमों के नाम लिखिए। 
    1. आय उपागम
    2. कल्याण उपागम 
    3. आधारभूत आवश्यकता उपागम 
    4. क्षमता उपागम
  22. मानव विकास सूचकांक किसे कहते हैं  ?
    विश्व के विभिन्न देशों में मानव विकास के स्तर को मापने के लिए स्वास्थ्य , शिक्षा एवं संसाधनों तक पहुँच के आधार पर एक सांख्यिकी सूचकांक तैयार किया जाता है जिसे मानव विकास सूचकांक कहते है इनमें से प्रत्येक आयाम को 1/3 भारिता दी जाती है। HDI का मान 0 से 1 के मध्य होता है 
  23. मानव विकास सूचकांक के आधार पर विश्व को कितने समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है वर्णन कीजिए 
    अर्जित मानव विकास स्कोर के आधार पर विश्व के देशों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है
    1. अति उच्च मानव विकास सूचाकांक वाले देश - उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश वे हैं जिनका स्कोर 0.8 से ऊपर है। नार्वे, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांग-कांग व आइसलैंड सहित विश्व के 66 देश इस श्रेणी में शामिल हैं 
    2. उच्च मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान .700 से 0.799 के बीच होता है ट्रिनिडाड, क्यूबा, ईरान श्रीलंका, थाईलैंड सहित विश्व के 53 देश इस श्रेणी में शामिल है 
    3. मध्यम मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान 0.550 से 0.699  के बीच होता है ईरान, नामीबिया, भारत, भूटान व बांग्लादेश सहित विश्व के 37 देश इस श्रेणी में शामिल है
    4. निम्न मानव विकास सूचाकांक वाले देश – इन देशों के मानव विकास सूचकांक  का मान 0 0.549 से नीचे होता है हेती, नाइजीरिया, तंजानिया,युगांडा व रवांडा सहित विश्व के 33 देश इस श्रेणी में शामिल है
  24. मानव विकास सूचकांक का मापन किस प्रकार किया जाता  है ?
    मानव विकास सूचकांक स्वास्थ्य, साक्षरता तथा संसाधनों तक पहुँच के सन्दर्भ में मापा जाता है। इनमें से प्रत्येक आयाम  को 1/3 भारिता दी जाती है। इस आधार पर मानव विकास सूचकांक का मूल्य 0 से । के मध्य होता है। मानव विकास सूचकांक का मूल्य एक के जितना अधिक समीप होता है, उतना ही मानव विकास का स्तर अधिक माना जाता है या उच्च ही माना जाता है। मानव विकास का 0.938 मूल्य मानव विकास का उच्च स्तर माना जाता है, जबकि 0.268 मूल्य मानव विकास का अत्यन्त निम्न स्तर माना जाता है।
  25. मानव गरीबी सूचकांक क्या होता है ?
    यह सूचकांक मानव विकास में कमी मापता है। यह एक बिना आय वाला माप है। मानव विकास प्रतिवेदन 1997 में सर्वप्रथम मानव गरीबी सूचकांक प्रस्तुत किया गया 
    मानव गरीबी सूचकांक निम्नांकित तीन प्रकार की कमियों पर आधारित होता है 
    1. उत्तरजीविता में कमी - 40 वर्ष की आयु तक जीवित न रह पाने वाले लोगों का प्रतिशत 
    2. शिक्षा व ज्ञान में कमी -प्रौढ़ निरक्षरता दर
    3. आर्थिक प्रावधान में कमी – इसकी गणना तीन चारों स्वच्छ जल तक पहुँच न रखने वाले लोगों की संख्या, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच से बाहर लोगों की संख्या व 5 वर्ष से कम उम्र के अल्पभार वाले बच्चों की संख्या  द्वारा की जाती है। 
  26. मानव विकास सूचकांक के आयामों /क्षेत्रों का वर्णन कीजिए 
    1. स्वास्थ्य- स्वास्थ्य का मूल्यांकन जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा से किया जाता है। यह जीवन प्रत्याशा वर्षों के रूप में मापी जाती है। जितनी ही उच्च जीवन प्रत्याशा होगी, उतना ही अधिक विकास का सूचकांक होगा। उच्चतर जीवन-प्रत्याशा का अर्थ है कि लोगों के पास अधिक दीर्घ और अधिक स्वस्थ जीवन जीने के ज्यादा अवसर हैं।
    2. साक्षरता -साक्षरता के मूल्यांकन के लिए प्रौढ़ साक्षरता दर, विद्यालयों में सकल नामांकित बच्चों की संख्या तथा स्कूलिंग की अवधि को आधार माना जाता है।
    3. संसाधनों तक पहुँच -संसाधनों तक पहुँच का आशय उत्तम ढंग से जीवन जीने हेतु साधनों की प्राप्ति से है। इसे राष्ट्रीय आय या प्रति व्यक्ति आय या मानव की क्रय शक्ति के आधार पर मापा जाता है। 
  27. मानव विकास के प्रमुख स्तंभों का वर्णन कीजिए
    1. समता  - समता का आशय एक ऐसे समाज या प्रदेश से है जिसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था उपलब्ध हो। अर्थार्त किसी प्रदेश में उपलब्ध समस्त संसाधनों की वहाँ निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से उपलब्धता को समता कहा जा सकता है। लोगों को उपलब्ध अवसर या संसाधन लिंग, प्रजाति, आय तथा जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान रूप से मिलने चाहिए। अत: मानव विकास के लिए यह आवश्यक है कि विकास के अवसरों या संसाधनों की समान उपलब्धता समाज के हर व्यक्ति को प्राप्त हो।
    2. सतत पोषणीयता - मानव विकास की अवधारणा में सतत पोषणीयता टिकाऊ विकास की अभिव्यक्ति है। सतत पोषणीयता का अर्थ है अवसरों की उपलब्धता में सततता। किसी क्षेत्र में उपलब्ध पर्यावरणीय, वित्तीय तथा मानवीय संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से इस प्रकार किया जाये जिससे इन संसाधनों की उपलब्धता समान रूप से आगे आने वाली पीढ़ियों को हो सके। वस्तुत: उक्त संसाधनों का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए इन संसाधनों की उपलब्धता के अवसरों को सीमित कर देगा जिससे मानव विकास की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होंगे।
    3. उत्पादकता - मानव विकास अवधारणा के सन्दर्भ में उत्पादकता का आशय है-मानव श्रम उत्पादकता या मानव कार्यों के सन्दर्भ में उत्पादकता । इसके लिए यह आवश्यक है कि मानवीय समुदाय में साक्षरता को बढ़ाने तथा उत्तम चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध करायी जायें जिससे उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाकर उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि की जा सकती है
    4. सशकतीकरण -मानव विकास की अवधारणा के अन्तर्गत सशक्तीकरण का आशय है-मानव को अपने विकल्पों का चयन करने की शक्ति का प्राप्त होना। मानव की बढ़ती हुई स्वतन्त्रता तथा कार्यक्षमता से मानव को अपने विकल्पों का चयन करने की शक्ति प्राप्त होती है। लोगों को सशक्त करने के लिए देश में लोकोन्मुखी नीतियों के साथ-साथ उत्तम शासन व्यवस्था की आवश्यकता होती है।  
  28. मानव विकास के विभिन्न उपागमों का वर्णन कीजिए 
    मानव विकास के अध्ययन के लिए निर्धारित चार उपागमों का उपयोग प्रमुख रूप से किया जाता है-
    1. आय उपागम -मानव विकास के अध्ययन का यह सबसे पुराना उपागम है। इसमें मानव विकास का निर्धारण मानव की आय के साथ जोड़कर ज्ञात किया जाता है। इस सन्दर्भ में यह माना जाता है कि किसी व्यक्ति की आय का स्तर उच्च है तो उसके मानव विकास की स्तर भी ऊँचा ही होगा।
    2. कल्याण उपागम -मानव विकास के अध्ययन में कल्याण उपागम मानव को एक लाभार्थी या सभी विकासात्मक
    गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में मान्यता प्रदान करता है। यह उपागम प्रत्येक मानव की शिक्षा स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा तथा सुख-साधनों पर पर्याप्त धनराशि के सरकारी व्यय को आवश्यक मानता है। सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि मानवीय कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानवीय विकास के स्तरों में वृद्धि करे। कल्याण उपागम यह मानता है कि लोग विकास में प्रतिभागी नहीं हैं लेकिन वे विकास के निष्क्रिय प्राप्तकर्ता हैं।
    3. आधारभूत आवश्यकता उपागम - मानव विकास के इस उपागम का प्रतिपादन अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने किया। इसके अन्तर्गत मानव की छ: आधारभूत आवश्यकताओं जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता तथा आवास की पहचान की गयी तथा मानव विकास के लिए उक्त छहों मूलभूत आवश्यकताओं की समुचित व्यवस्था पर जोर दिया गया। 
    4. क्षमता उपागम - मानव विकास के इस उपागम का प्रतिपादन भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने किया। उनका मानना है कि मानवीय क्षमताओं का निर्माण कर उनकी संसाधनों तक पहुँच को बढ़ाया जा सकता है तथा यही मानव विकास की कूँजी है।

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