अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है।अतः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभी देशों के लिए परस्पर लाभदायक हैं विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कुल मात्रा का केवल एक प्रतिशत हैभारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बदलते प्रारूप
भारत में अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा व संगठन के साथ-साथ दिशा में भी परिवर्तन हुआ है , जिसे निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि :- वर्ष 1950-51 में, भारत का वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1,214 करोड़ रुपए था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रुपए हो गया। विदेशी व्यापार में इस तीव्र वृद्धि के निम्न कारण हैं
1. विनिर्माण के क्षेत्र में गतिशील उठान
2. सरकार की उदार नीतियाँ
3. बाजारों की विविधरूपता
2. भारत के निर्यात-संघटन के बदलते प्रारूप :- भारत में कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि उत्पाद जैसे कॉफी, काजू, दालों आदि परंपरागत वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। हालाँकि पुष्प कृषि उत्पाद, ताज़े फल, समुद्री उत्पाद तथा चीनी आदि के निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई जबकि पेट्रोलियम तथा अपरिष्कृत उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है।अयस्क खनिजों तथा निर्मित सामानों का निर्यात लगभग स्थिर-सा रहा है।
3. भारत के आयात-संघटन के बदलते प्रारूप :- भारत में 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यान्नों कमी थी इसलिए उस समय आयात की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल एवं मशीनरी आदि थे। उस समय आयात मूल्य निर्यात मूल्य से अधिक था 1970 के दशक के बाद हरित क्रांति की सफलता के बाद खाद्यान्नों का आयात कम हुआ लेकिन 1973 में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य में उछाल आया फलतः आयात बजट भी बढ़ गया। खाद्य तेलों के अयात में आई गिरावट के साथ खाद्य तथा समवर्गी उत्पादों के आयात में कमी आई है। भारत के आयात में अन्य प्रमुख वस्तुओं में मोती तथा उपरत्नों, स्वर्ण एवं चाँदी, धातुमय अयस्क तथा धातु छीजन, अलौह धातुएँ तथा इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ आदि आते हैं।
4. व्यापार की दिशा :- भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं। भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। विदेशी व्यापार का छोटा सा भाग नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।
समुद्री पत्तन-अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में
भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है और प्रकृति ने हमें एक लंबी तटरेखा प्रदान की है। जल सस्ते परिवहन के लिए एक सपाट तल प्रदान करता है। भारत में पत्तनों का उपयोग प्राचीन काल से हो रहा है परन्तु पतन यूरोपीय व्यापारियों के आगमन तथा अंग्रेजी द्वारा भारत के उपनिवेशीकरण के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में उभरे भारत में 13 प्रमुख और 200 छोटे या मझोले पत्तन हैं। प्रमुख पत्तनों के लिए केंद्र सरकार तथा छोटे पत्तनों के लिए राज्य सरकारें नीतियाँ बनाती है तथा नियामक क्रियाओं को निभाती हैं। प्रमुख पत्तन कुल यातायात के बड़े हिस्से का निपटान करते हैं।अंग्रेजों ने इन पत्तनों का उपयोग उनके पृष्ठप्रदेशों के संसाधनों के अवशोषण केंद्र के रूप में किया था। आंतरिक प्रदेशों में रेल परिवहन ने स्थानीय बाजारों को क्षेत्रीय बाजारों, क्षेत्रीय बाजारों को राष्ट्रीय बाजारों तथा राष्ट्रीय बाजारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने की सुगमता प्रदान की। देश विभाजन से भारत के दो अति महत्त्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए। कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया और चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान(बांग्लादेश) में चला गया। इस क्षतिपूर्ति के लिए पश्चिम में कांडला तथा पूर्व में हुगली नदी पर कोलकाता के पास डायमंड हार्बर को विकसित किया गया इस बड़ी हानि के बावजूद, देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से भारतीय पत्तन निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। आज भारतीय पत्तन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार का निपटान कर रहे हैं।
भारतीय पत्तन
1. कांडला पत्तन (गुजरात) - कांडला पत्तन कच्छ की खाड़ी के मुँहाने पर अवस्थित है कांडला पत्तन को देश के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग की जरूरतों को पूरा करने और मुंबई पत्तन पर दबाव कम करने के लिए विकसित किया गया है। इस पत्तन को विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं उर्वरकों को ग्रहण करने के लिए बनाया गया है। कांडला पत्तन के दबाव को कम करने के लिए वाडीनार में एक अपतटीय टर्मिनल विकसित किया गया है
2. मुंबई पत्तन(महाराष्ट्र) - मुंबई पत्तन एक प्राकृतिक पत्तन और देश का सबसे बड़ा पत्तन है। यह पत्तन भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट स्थित है यहाँ से देश के विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग संचालित किया जाता है। यह पत्तन 20 कि.मी. लंबा तथा 6-10 कि.मी. चौड़ा है। जिसमें 54 गोदियाँ और देश का विशालतम टर्मिनल हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के भाग मुंबई पत्तन की पृष्ठभूमि की रचना करते हैं।
3. जवाहरलाल नेहरू पत्तन (महाराष्ट्र) - इसे न्हावा-शेवा में मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए एक अनुषंगी पत्तन के रूप में विकसित किया गया था। यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।
4. मार्मागाओ पत्तन (गोवा) - मार्मागाओ पत्तन गोवा का एक प्राकृतिक बंदरगाह है। कोंकण रेलवे ने इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश में महत्त्वपूर्ण विस्तार किया है। कर्नाटक, गोआ तथा दक्षिणी महाराष्ट्र इसकी पृष्ठभूमि की रचना करते हैं
5. न्यू मंगलौर पत्तन (कर्नाटक) - न्यू मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है और लौह-अयस्क और लौह-सांद्र के निर्यात की जरूरतों को पूरा करता है। यह पत्तन भी उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफी, चाय, लुगदी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर, शीरा आदि का निपटान करता है। कर्नाटक इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठप्रदेश है।
6. कोच्चि पत्तन (केरल) - कोच्चि पत्तन बेंवानद कायाल (‘अरब सागर की रानी’/क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के मुँहाने पर स्थित है यह एक प्राकृतिक पत्तन है। इस पत्तन को स्वेज कोलंबो मार्ग के पास अवस्थित होने का लाभ प्राप्त है। यह केरल, दक्षिणी कर्नाटक तथा दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
7. कोलकाता पत्तन(प०बंगाल) - कोलकाता पत्तन हुगली नदी पर अवस्थित है जो बंगाल की खाड़ी से 128 कि.मी. स्थल में अंदर स्थित है। हुगली नदी इसे समुद्र से जुड़ने का मार्ग प्रदान करती है। मुंबई पत्तन की भाँति इसका विकास भी अंग्रेजों द्वारा किया गया था। कोलकाता को ब्रिटिश भारत की राजधानी होने के प्रारंभिक लाभ प्राप्त थे। कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से जूझता रहा है इसके पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और उत्तर-पूर्वी राज्य आते हैं। इन सबके अतिरिक्त, यह पत्तन हमारे भूटान और नेपाल जैसे स्थलरुढ पड़ोसी देशों को भी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
8. हल्दिया पत्तन (प०बंगाल) - हल्दिया पत्तन कोलकाता से 105 कि.मी अंदर अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर स्थित है। इसका निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया है। यह स्थूल नौभार जैसे लौह-अयस्क, कोयला, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, जूट एवं जूट उत्पाद, कपास तथा सूती धागों आदि का निपटान करता है।
9. पारादीप पत्तन (उड़ीसा) - पारादीप पत्तन कटक से 100 कि.मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है। इसका पोताश्रय सबसे गहरा है जो भारी पोतों के निपटान के लिए सर्वाधिक अनुकूल है। इसे मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर लौह-अयस्क के निर्यात के लिए निपटान विकसित किया गया है। इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ आते हैं।
10. विशाखापट्नम पतन(आंध्र प्रदेश) - विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में एक भू-आबद्ध पत्तन है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है। इस पत्तन का विकास लौह-अयस्क, पेट्रोलियम तथा सामान्य नौभार के निपटान हेतु विकसित किया गया है। इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठ प्रदेश आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना है।
11. चेन्नई पत्तन (तमिलनाडु)- चेन्नई पत्तन पूर्वी तट पर स्थित एक कृत्रिम पत्तन है जिसे 1859 में बनाया गया था। तट के निकट उथले जल के कारण यह पत्तन विशाल पोतों के लिए अनुकूल नहीं है। तमिलनाडु और पुदुच्चेरी इसके पृष्ठप्रदेश हैं।
12. एन्नोर पत्तन (तमिलनाडु) - एन्नोर पत्तन चेन्नई(तमिलनाडु) के उत्तर में 25 कि.मी. दूर चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए बनाया गया है।
13. तूतीकोरिन पत्तन (तमिलनाडु)- तूतीकोरिन पत्तन का विकास भी चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था। यह विभिन्न प्रकार के नौभार का निपटान करता है जिसके अंतर्गत कोयला, नमक, खाद्यान्न, खाद्य तेल, चीनी, रसायन तथा पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं।
हवाई अड्डे
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम से कम समय में ले जाने व निपटाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। यह भारी और स्थूल वस्तुओं के वहन करने के लिए बहुत महँगा और अनुपयुक्त होता है। यही कारण अंततः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महासागरीय मार्गों की तुलना में इस क्षेत्र की भागीदारी को घटा देता है।
देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तनों के अंतर्गत अहमदाबाद, बेंगलूरु, चेन्नई, दिल्ली, गोवा, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, थिरुवनंथपुरम, श्रीनगर, जयपुर, कालीकट, नागपुर, कोयम्बटूर, लखनउ, पुणे, चण्डीगढ़, मंगलूरू, विशाखापट्नम, इंदौर, पटना, भुवनेश्वर और कन्नूर हैं।
- भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार वहन होता है-[अ] स्थल और समुद्र द्वार[ब] स्थल और वायु द्वारा[स] समुद्र और वायु द्वारा[द] समुद्र द्वारा [द]
- निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलबद्ध पोताश्रय है?[अ] विशाखापट्नम[ब] एन्नोर[स] मुंबई[द] हल्दिया [अ]
- दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है-[अ] अंतर्देशीय व्यापार[ब] अंतर्राष्ट्रीय व्यापार[स] बाह्य व्यापार[द] स्थानीय व्यापार [ब]
- भारत का सड़क द्वारा व्यापार कौन-से देश के साथ किया जाता है?[अ] नेपाल[ब] भूटान[स] बांग्लादेश[द] उपर्युक्त सभी [द]
- भारत का सबसे बड़ा पत्तन कौनसा है ।[अ] मुंबई[ब] विशाखापट्नम[स] कांडला[द] हल्दिया [अ]
- भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।?[अ] जवाहरलाल नेहरू पत्तन[ब] चेन्नई पत्तन[स] कोच्चि पत्तन[द] कोलकात्ता पत्तन [अ]
- न्हावा शेवा पत्तन किस राज्य में है-[अ] गुजरात[ब] महाराष्ट्र[स] गोवा[द] कर्नाटका [ब]
- भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के किस घटक के परिवर्तन हुआ है ?[अ] मात्रा[ब] संघटन[स] दिशा[द] सभी उपरोक्त [द]
- विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी है।[अ] 1%[ब] 2%[स] 3%[द] 4%. [अ]
- दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है:[अ]. अन्तर्देशीय व्यापार[ब]. बाह्य व्यापार[स]. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार[द]. स्थानीय व्यापार [अ]
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में किसे जाना जाता है ?अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में ‘समुद्री पत्तन’ को जाना जाता है।
- 1970 के दशक के बाद खाद्यानों के आयात की जगह किन उत्पादों का आयात बढ़ गया ?पेट्रोलियम उत्पाद तथा उर्वरक
- भारतीय पत्तनों में से सबसे पुराना व कृत्रिम पत्तन कौन सा है ?चेन्नई पत्तन
- 'अरब सागर की रानी' किस को कहते हैं ?बेंवानद कयाल को
- 1970 के दशक के बाद खाद्यान्नों के आयात में आई कमी का प्रमुख कारण क्या था ?हरित क्रान्ति
- देश विभाजन से भारत के कौनसे दो अति महत्त्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए।कराची पत्तन पाकिस्तान में और चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान(बांग्लादेश) में चला गया।
- भारत की सबसे अधिक निर्यात विश्व में किन प्रदेशों से है ?एशिया और ओशेनिया
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या अर्थ है?विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है
- भारतीय पत्तनों में से कौन-सा समुद्री पत्तन स्थल रूद्ध देशों को पतन सुविधाएं प्रदान करता है? ऐसे किसी एक देश का नाम बताइये?भारतीय पत्तनों में से ‘‘कोलकात्ता पत्तन’’ सुविधाएं प्रदान करता है।पड़ोसी देश - नेपाल व भूटान
- महाराष्ट्र तामिलनाडु व पं० बंगाल के एक-एक पोताश्रय का नाम बताइये जिनका निर्माण पहले से स्थापित पोताश्रयों का दबाव कम करने के लिए किया गया?1. महाराष्ट्र - जवाहर लाल नेहरू पतन2. तामिलनाडु - ऐनोर3. पं० बंगाल - हल्दिया
- पृष्ठ प्रदेश के अर्थ को स्पष्ट कीजिए?बंदरगाह से सटा हुआ भूमि का वह भाग जिससे निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का संग्रह किया जाता है तथा आयात की जाने वाली वस्तुओं का वितरण किया जाता है बन्दरगाह का पृष्ठप्रदेश कहलाता है।
- भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ?1. भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग एवं वायुमार्ग से किया जाता है2. भारत में व्यापार संतुलन सदा ही प्रतिकूल रहा है। अर्थात आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से सदा ही अधिक रहा है।3. विश्व व्यापार में भारत के व्यापार की भागीदारी कुल मात्रा का केवल एक प्रतिशत है
- पत्तन विदेशी व्यापार के केन्द्र बिन्दु है - स्पष्ट करो ?पत्तन व्यापार के प्रवेश द्वार है। एक और पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश से विदेशों को भेजी जाने वाली वस्तुओं के संकलन केन्द्र हैं तथा दूसरी ओर भारत में आयातित वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में वितरित भी करते हैं। इसलिए पत्तन विदेशी व्यापार के केन्द्र बिन्दु है
- पत्तन और पोताश्रय में अन्तर बताइए।
1. पतन पर जहाजों पर सामान चढाने व उतरने की सुविधा होती है जबकि पोताश्रय जहाजो को आश्रय देते है तथा जहाजो की लहरों व तूफानों से सुरक्षा करते है
2. पत्तन व्यापार के द्वार होते हैं जो अपनी पृष्ठभूमि से सड़कों व रेलमार्गों से अच्छी तरह जुड़े होते हैं। जबकि पोताश्रय कटे-फटे समुद्रतट व खाड़ियों पर जहाजो के आश्रय स्थल होते हैं।
3. पतन पर जलयान सामान उतरने एवं चढाने के लिए ठहरते है जबकि पोताश्रय पर जहाज मरम्मत, इंधन भरने व विश्राम के लिए ठहराते है - महाराष्ट्र तामिलनाडु व पं0 बंगाल के एक-एक पोताश्रय का नाम बताइये जिनका निर्माण पहले से स्थापित पोताश्रयों का दबाव कम करने के लिए किया गया ?महाराष्ट्र - जवाहर लाल नेहरू पतनतामिलनाडु – ऐनोरपं0 बंगाल - हल्दिया
- भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ?1. भारत का विदेशी व्यापार सदा ही प्रतिकूल रहा है । आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से सदा ही अधिक रहा है ।2. विश्व के सभी देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध है।3. वस्त्र, अयस्क व खनिज, हीरे आभूषण तथा इलेक्ट्रानिक वस्तुएँ भारत के मुख्य निर्यात है तथा पेट्रोलियम हमारे देश का सबसे बड़ा आयात है4. विश्व व्यापार में भारत के विदेशी व्यापार का योगदान केवल 1% है ।
- पत्तनों को ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार’’ क्यों कहते हैं ?समुद्री पतन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वार कहते हैं।पत्तन जहाज के लिए गोदी, लादनें, उतारने तथा भंडारण की सुविधाएं प्रदान करते हैं। पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेशों से वस्तुएं इकट्ठा करने का काम करते हैं जहां से उन वस्तुओं को अन्य स्थानों पर भेजा जाता है।
- पत्तन और पोताश्रय में अन्तर बताइए ।पत्तन-गोदी, घाट एवं सामान उतारने की सुविधाओं सहित तट पर ऐसा स्थान होता है जहाँ पर समुद्र-मार्ग से आने वाले माल को उतारकर स्थल मार्ग द्वारा आन्तरिक भागों को भेजा जाता है। साथ ही आन्तरिक भागों में आए माल को समुद्र मार्ग द्वारा विदेशों को भेजा जाता है।पोताश्रय-यह समुद्र का वह अंशत: परिषद् क्षेत्र है; जैसे—निवेशिका, नदमुख अथवा समुद्र-अन्तर्गम आदि, जो आने वाले जहाजों को आश्रय देता है।
- मुम्बई पत्तन देश का सबसे बड़ा पत्तन है - कैसे ?मुम्बई पत्तन देश का सबसे बड़ा पत्तन है क्योंकि1. यह एक प्राकृतिक बन्दरगाह है जहां गहरे जल के कारण बड़े-बड़े जहाजों के लिए सुरक्षित सुविधाएं हैं।2. यह पत्तन मध्यपूर्व, भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट है।3. यह भारत का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक व व्यापारिक केन्द्र है।
- ‘‘विभाजन के कारण बड़ी हानि के बावजूद, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय पत्तन निरन्तर वृद्धि कर रहे हैं।’’ इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देकर करें ।आज भारतीय पतन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार के भी भागीदार हैं।अधिकतर सभी पत्तनों में आधुनिकतम तन्त्रों को विकसित किया गया है।कई पुराने पतनों के बोझ को कम करने के लिए नये पतनों को विकसित किया गया है जैसे कलकत्ता के साथ हल्दिया पतन, चेन्नई के साथ नूतीकेरिन पतन।पतनों के आधुनिकीकरण के लिए सरकारों के साथ साथ निजी कम्पनियों/उद्यमियों को भी कार्यभार दिया गया है।अधिकतर भारी मदों का व्यापार समुद्री मार्ग द्वारा ही होता है इसीलिए लगातार पतनों का विकास हो रहा है ।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन की क्या भूमिका है? तथा प्रमुख हवाई अड्डों के नाम बताइये ?अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम से कम समय में ले जाने व निपटाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। यह भारी और स्थूल वस्तुओं के वहन करने के लिए बहुत महँगा और अनुपयुक्त होता है।देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तनों के अंतर्गत अहमदाबाद, बेंगलूरु, चेन्नई, दिल्ली, गोवा, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, थिरुवनंथपुरम, श्रीनगर, जयपुर, कालीकट, नागपुर, कोयम्बटूर, लखनउ, पुणे, चण्डीगढ़, मंगलूरू, विशाखापट्नम, इंदौर, पटना, भुवनेश्वर और कन्नूर हैं ।
- भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों पर स्थित पत्तनों के नाम राज्य सहित लिखिए ?पूर्वी तट 1. कोलकात्ता - पं. बंगाल2. हल्दिया - पं. बंगाल3. पाराद्वीप - उड़ीसा4. विशाखा पट्नम - आन्ध्र प्रदेश5. इन्नोर - तामिलनाडु6. चेन्नई - तामिलनाडु7. तुतीकोरिन – तामिलनाडुपश्चिमी तट 1. कांडला - गुजरात2. मुम्बई - महाराष्ट्र3. जवाहर लाल नहरू बंदरगाह – महाराष्ट्र4. मार्मोगोआ – गोवा5. मंगलौर - कर्नाटक6. कोच्चि - केरल
- भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर टिप्पणी लिखिए ?भारत में अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा व संगठन के साथ-साथ दिशा में भी परिवर्तन हुआ है , जिसे निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है1. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि : - वर्ष 1950-51 में, भारत का वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1,214 करोड़ रुपए था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रुपए हो गया। विदेशी व्यापार में यह तीव्र वृद्धि विनिर्माण के क्षेत्र में गतिशील उठान, सरकार की उदार नीतियाँ, बाजारों की विविधरूपता, भारत के निर्यात-संघटन के बदलते प्रारूप के कारण हुई हैं .2. भारत के निर्यात-संघटन के बदलते प्रारूप :- भारत में कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि उत्पाद जैसे कॉफी, काजू, दालों आदि परंपरागत वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। हालाँकि पुष्प कृषि उत्पाद, ताज़े फल, समुद्री उत्पाद तथा चीनी आदि के निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई जबकि पेट्रोलियम तथा अपरिष्कृत उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है।3. भारत के आयात-संघटन के बदलते प्रारूप :- भारत में 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यान्नों कमी थी इसलिए उस समय आयात की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल एवं मशीनरी थे। उस समय आयात मूल्य निर्यात मूल्य से अधिक था 1970 के दशक के बाद हरित क्रांति की सफलता के बाद खाद्यान्नों का आयात कम हुआ लेकिन 1973 में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य में उछाल आया फलतः आयात बजट भी बढ़ गया।4. व्यापार की दिशा :- भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं। भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। विदेशी व्यापार काछोटा सा भाग नेपाल, भूटान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।