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12. महासागरीय जल

जलीय चक्र
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका उपयोग बार बार किया जा सकता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। महासागरों, झीलों, नदियों, स्थल भाग, पौधों आदि से जल से वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा वाष्प में बदलकर बादल के रूप वायुमंडल में पहुंचता है तथा बदलती हुई मौसमी दशाओं में सघनन द्वारा यह जलराशि पुनः वर्षण के रूप में जलमण्डल तथा स्थलमण्डल पर पहुँचती है। है फिर यह वर्षा का पानी नदी तथा नालों के द्वारा समुद्र में चला जाता है और यह पुनः समुद्र का जल जलवाष्प बनकर वर्षा कराता है। इस प्रकार यह क्रियाएँ एक चक्र के रूप में चलती रहती है, इसे जलीय चक्र कहा जाता है।
'जलीय चक्र के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं-
1. सर्वप्रथम महासागरय भागों, झीलों तथा नदियों का जल सूर्य को गर्मी से वाष्पीकृत होकर जल-वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। इसके अतिरिक्त पादप समुदाय के वाष्पोत्सर्जन से भारी मात्रा में जलवाष्प वायुमण्डल में निष्कासित कौ जाती है। यही जलवाष्प संघनित होकर वायुमण्डलीय भागों में बादलों का निर्माण करती है
2.बादलों की जलवाष्प ठण्डी होकर जल कणों के रूप में संघनित हो जाती है तथा अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर वर्षण के विभिन्‍न रूपो-वर्षा, हिम तथा ओले आदि के रूप में जलमण्डल तथा स्थलमण्डल पर प्राप्त होती हैं।
3.स्थलीय भागों पर वर्षण के माध्यम से प्राप्त होने वाला जल निम्नलिखित तीन मार्गों में से किसी एक मार्ग का अनुसरण करता है-
(1) कुछ जल भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
(2) कुछ जल वाष्पीकरण तथा वाष्पेत्सर्जन क्रिया द्वार पुन; वायुमण्डल में पहुँचा दिया जाता है।
(3) कुछ जल जलधाराओं के माध्यम से स्थलीय भा से प्रवाहित होता हुआ झीलों, सागरों तथा महासागर में पहुँचा दिया जाता है।
स्थलीय भागों द्वार अवशोषित जल भूमिगत जल के रूप मे संगृहित हो जाता है, साथ ही मिट्टी की ऊपरी परतों में जमा हो कर विभिनन प्रकार की वनस्पतियों की वृद्धि के लिये आवश्यक जल की आपूर्ति करता है।
महासागरीय अधस्तल का उच्चावच
महासागर पृथ्वी की बाहरी परत में वृहत गर्तों में स्थित है। पृथ्वी के महासागरीय भाग को पांच महासागरों में बांटा गया है
प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, दक्षिणी महासागर एवं आर्कटिक महासागर
महसागरीय जल के भीतर अनेक प्रकार की भूआकृतियाँ छिपी हुई हैं जो कि महाद्वीपों की भू-आकृतियों से काफी मिलती-जुलती हैं। महासागरीय जल के नीचे पर्वत, पठार, पहाड़ियाँ, खाइयाँ और गड्ढे हैं। महासागरीय अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बाँटा जासकता है
1. महाद्वीपीय शेल्फ / महाद्वीपीय निमग्न तट
महाद्वीपों के किनारे जो महासागरीय जल में डूबे रहते है महाद्वीपीय निमग्न तट या महाद्वीपीय सीमांत या महाद्वीपीय शेल्फ कहलाता है यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। महाद्वीपीय शेल्फ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है जिसे शेल्फ अवकाश कहा जाता है। महाद्वीपीय शेल्फ की चौड़ाई व गहराई एक महासागर से दूसरे महासागर में भिन्न होती है। दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित मिलते हैं। जबकि आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ विश्व में सबसे बड़ा महाद्वीपीय शेल्फ है महाद्वीपीय शेल्फ पर लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछटी अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।
2. महाद्वीपीय ढाल
महाद्वीपीय मग्नतट तथा गहरे सागरीय मैदान के मध्य तीव्र ढाल वाले क्षेत्र को महाद्वीपीय मग्नढाल कहते हैं। इसकी शुरुआत वहाँ होती है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ की तली तीव्र ढाल में परिवर्तित होती है। इस भाग की औसत ढाल 2 से 5 डिग्री के बीच होती है। ढाल वाले प्रदेश की गहराई 200 मीटर एवं 3,000 मीटर के बीच होती है। ढाल का किनारा महाद्वीपों के समाप्ति को इंगित करता है। इसी प्रदेश में कैनियन एवं खाइयाँ दिखाई देते हैं।
3. गहरे सागरीय मैदान
गहरे सागरीय मैदान महासागरीय नितल के मंद ढाल वाले क्षेत्र होते हैं। ये विश्व के सबसे चिकने तथा सबसे सपाट भाग हैं। इनकी गहराई 3,000 से 6,000 मीटर केबीच होती है। ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।
4. महासागरीय गर्त
महासागरीय गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग होते महासागरीय अधस्तल पर लम्बी, तीव्र ढाल वाली, संकरी और चौरस तल की खाइयाँ होती हैं। इन्हें महासागरीय गर्त कहते है अपने चारों ओर की महासागरीय तली की अपेक्षा ये 3 से 5 किमी॰ तक गहरे होते हैं।
महासागरीय गर्त हमेशा महासागरों के बेसिनों के मध्य में नहीं होते है जैसा कि सामान्यतः विश्वास किया जाता है बल्कि ये महाद्वीपीय ढाल के आधार तथा द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं ये गर्त प्रायः ज्वालामुखी और भूकम्पीय हलचल वाले क्षेत्रों के निकट पाए जाते हैं। ये गर्त सभी प्रमुख महासागरों में पाए जाते हैं। प्रशान्त महासागर में इनकी संख्या सबसे अधिक है। प्रशान्त महासागर में स्थित मेरियाना गर्त विश्व में ज्ञात गर्तों में सबसे गहरा है। अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है, जिनमें से 32 प्रशांतमहासागर में, 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंदमहासागर में हैं।
उच्चावच की लघु आकृतियाँ
1. मध्य-महासागरीय कटक
एक मध्य-महासागरीय कटक पर्वतों की दो शृंखलाओं से बना होता है, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किए गए होते हैं। इन पर्वत शृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है
2. समुद्री टीला
यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुँच पाता। समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4,500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। एम्पेरर समुद्री टीला, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप समूहों का विस्तार है इसका एक अच्छा उदाहरण है।
3. सबसे सपाट जलमग्न
कैनियन ये गहरी घाटियाँ होती हैं। कई बार ये बड़ी नदियों के मुहाने से आगे की ओर विस्तृत होकर महाद्वीपीय शेल्फ व ढालों को आर-पार काटती नजर आती है। हडसन कैनियन विश्व का सबसे अधिक जाना माना कैनियन है।
4. निमग्न द्वीप
यह चपटे शिखर वाले समुद्री टीले है। अकेले प्रशांत महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्री टीले एवं निमग्न द्वीप उपस्थित हैं।
5. प्रवाल द्वीप
ये उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों से युक्त निम्न आकार के द्वीप हैं जो कि गहरे अवनमन को चारों ओर से घेरे हुए होते हैं।
महासागरीय जल का तापमान
महासागरीय जल भूमि की तरह सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होते हैं। स्थल की तुलना में जल के तापन व शीतलन की प्रक्रिया धीमी होती है।
तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
1.अक्षांश - साधारण तौर पर महासागरों के जल का तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की तरफ जाने पर घटता जाता है । सूय की किरणे भूमध्य रेखा व आस-पास के क्षेत्रों में सीधी पड़ती है ध्रुवों की तरफ जाने पर किरणों के तिरछेपन एव दूरी दोनो में वृद्धि होती जाती है जिससे महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है
2. स्थल एवं जल का असमान वितरण – उत्तरी गोलार्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं। इस कारण उत्तरी गोलार्ध के महासागरों का तापमान दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा अधिक होता है
3. प्रचलित पवनें -
पवनो की दिशा का महासागरीय सतह के जल के तापमान पर प्रभाव पड़ता है । स्थल से महासागरों की तरफ बहने वाली पवनें अपने साथ तटीय क्षेत्रों के गर्म जल को सागरीय क्षेत्रों की ओर बहाकर ले जाती है। तटीय जल की क्षतिपूर्ति हेतु नीचे का ठंडा जल ऊपर की ओर आ जाता है। जिससे तटीय क्षेत्रों का तापमान कम हो जाता है इसके विपरीत जब पवने सागर से तट की ओर चलती है तो पवनें गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तटीय जल का तापमान बढ़ जाता है
4. महासागरीय धाराएँ - गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्पफ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तरी अमरीका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है, जबकि लेब्रेडोरधरा (ठंडी धारा) उत्तरी अमरीका के उत्तर-पूर्वीतट के नशदीक के तापमान को कम कर देती हैं।
तापमान का उर्ध्वाधर वितरण
महासागरीय जल की सतह पर सर्वाधिक तापमान पाया जाता है सतह से नीचे गहराई में जाने पर तापमान घटता जाता है समुद्र में नीचे जाने पर ताप की तीन परतें पाई जाती है
1. पहली परत गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है जो लगभग 500 मीटर मोटी होती है और इसका तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में, यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, जबकि मध्य अक्षांशों में यह केवल ग्रीष्म ऋतु में विकसित होती है।
2. दूसरी परत जिसे ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) परत कहा जाता है, पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसमें गहराई बढ़ने के साथ ही तापमान में तेज गिरावट आती जाती है। यहाँ ताप प्रवणता की मोटाई 500 से 1000 मीटर तक होती है।
3. तीसरी परत बहुत ज़्यादा ठंडी होती है और गभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है।
महासागरों का उच्चतम तापमान सदैव उनकी ऊपरी सतहों पर होता है, क्योंकि वे सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं और यह ऊष्मा महासागरों के निचले भागों में संवहन की प्रक्रिया द्वारा स्थान्तरित होती है। परिणामस्वरूप गहराई के साथ-साथ तापमान में कमी आने लगती है
तापमान का क्षैतिज वितरण
महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27 डिग्री से॰ होता है, और यह विषवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर क्रमिक ढंग से कम होता जाता है। बढ़ते हुए अक्षांशों के साथ तापमान के घटने की दर सामान्यतः प्रति अक्षांश 0.5 डिग्री से॰ होती है। औसत तापमान 20 डिग्री अक्षांश पर लगभग 22 डिग्री से॰, 40 डिग्री अक्षांश पर 14 डिग्री से॰ तथा ध्रुवों के नजदीक 0 डिग्री से॰ होता है। उत्तरी गोलार्ध के महासागरों का तापमान दक्षिणी गोलार्ध की अपेक्षा अधिक होता है। उच्चतम तापमान विषवत् वृत्त पर नहीं बल्कि, इससे कुछ उत्तर की तरफ दर्ज किया जाता है। उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध का औसत वार्षिक तापमान क्रमशः 19 डिग्री से॰ तथा 16 डिग्री से॰ के आस-पास होता है। यह भिन्नता उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्धों में स्थल एवं जल के असमान वितरण के कारण होती है।
महासागरीय जल की लवणता
समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को लवणता कहा जाता है। इसका परिकलन 1,000 ग्राम॰ (एक किलोग्राम) समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा के द्वारा किया जाता है। इसे प्रायः प्रति 1,000 भाग या PPT (%0) के रूप में व्यक्त किया जाता है। अर्थात 1000 ग्राम (एक किलोग्राम) समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा को लवणता कहते है 24.7 %0 की लवणता को खारे जल को सीमांकित करने का उच्च सीमा माना गया है।
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
1. वाष्पीकरण की दर
2. नदियों व हिमखंडो के द्वारा लाए गए ताजे जल की आपूर्ति
3. पवन द्वारा समुद्री जल का स्थानान्तरण
उच्चतम लवणता वाले क्षेत्र
1. मृत सागर में 238%0
2. टर्की की वॉन झील 330%0
3. ग्रेट साल्ट झील 220%0
लवणता का क्षैतिज वितरण
✜सामान्य खुले महासागर की लवणता 33%0 से 37%0 के बीच होती है। चारों तरफ स्थल से घिरे लाल सागर में यह 41%0 तक होती हैं, जबकि आर्कटिक एवं ज्वार नद मुख में मौसम के अनुसार लवणता 0%0 से 35%0 के बीच पाई जाती है। गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में, जहाँ वाष्पीकरण उच्च होता है कभी-कभी वहाँ की लवणता 70%0 तक पहुँच जाती है।
प्रशांत महासागर के लवणता में भिन्नता मुख्यतः इसके आकार एवं बहुत अधिक क्षेत्रीय विस्तार के कारण है। उत्तरी गोलार्ध के पश्चिमी भागों में लवणता 35%0 से कम होकर 31 हो जाती है, क्योंकि आर्कटिक क्षेत्र का पिघला हुआ जल वहाँ पहुँचता है।
अटलांटिक महासागर की औसत लवणता 36%0 के लगभग है।
उच्च अक्षांश में स्थित होने के बावजूद उत्तरी सागर में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के द्वारा लाए गए अधिक लवणीय जल के कारण अधिक लवणता पाई जाती है।
बाल्टिक समुद्र की लवणता कम होती है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में नदियों का पानी प्रवेश करता है।
भूमध्यसागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण के कारण अधिक होती है।
काले सागर की लवणता नदियों के द्वारा अधिक मात्रा में लाए जाने वाले ताजे जल के कारण कम होती है।
हिंद महासागर की औसत लवणता 35%0 है। बंगाल की खाड़ी में गंगा नदी के जल के मिलने से लवणता की प्रवृत्ति कम पाई जाती है। इसके विपरीत, अरब सागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण एवं ताजे जल की कम प्राप्ति के कारण अधिक
लवणता का उर्ध्वाधर वितरण
गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन आता है, लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। सतह की लवणता जल के बर्फ या वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाने के कारण बढ़ जाती है या ताजे जल के मिल जाने से घटती है, जैसा कि नदियों के द्वारा होता है। गहराई में लवणता लगभग नियत होती है, क्योंकि वहाँ किसी प्रकार से पानी का ‘”ह्रास’ या नमक की मात्रा में ‘वृद्धि’ नहीं होती। महासागरों के सतही क्षेत्रों एवं गहरे क्षेत्रों के बीच लवणता में अंतर स्पष्ट होता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व घनत्व वाले जल के उफपर स्थित होता है। लवणता साधारणतः गहराई के साथ बढ़ती है तथा एक स्पष्ट क्षेत्र, जिसे हैलोक्लाईन कहा जाता है, में यह तीव्रता से बढ़ती है।

  1. उस तत्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं हैं।
    (क) वाष्पीकरण                       (ख) वर्षण
    (ग) जलयोजन                         (घ) संघनन                       (ग)
  2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है।
    (क) 2-20 मीटर                     (ख) 20-200 मीटर
    (ग) 200-2000 मीटर             (घ) 2000-20000 मीटर     (ग) 
  3. निम्नलिखित में से कौन-सी लघु उच्चावच आकृति महासागरों में नहीं पाई जाती है?
    (क) समुद्री टीला                    (ख) महासागरीय गभीर
    (ग) प्रवाल द्वीप                      (घ) निमग्न द्वीप                    (ख) 
  4.  लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्र से व्यक्त किया जाता है-
    (क) 10 ग्राम                        (ख) 100 ग्राम
    (ग) 1,000 ग्राम                   (घ) 10,000 ग्राम                 (ग) 
  5. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
    (क) हिंद महासागर             (ख) अटलांटिक महासागर
    (ग) आर्कटिक महासागर     (घ) प्रशांत महासागर                 (ग)
  6. हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
    पृथ्वी के 71% भाग पर जल पाया जाता है अर्थात पृथ्वी का अधिकांश भाग जल से ढका हुआ है जल की प्रचुर मात्रा के कारण पृथ्वी को ऊपर से देखने पर यह एक नीले रंग के पिंड के समान दिखाई देती है  इसलिए पृथ्वी को 'नीला ग्रह' कहा जाता है।
  7. महाद्वीपीय सीमांत क्या होता है?
    महाद्वीपों के किनारे जो महासागरीय जल में डूबे रहते है महाद्वीपीय निमग्न तट या महाद्वीपीय सीमांत या महाद्वीपीय शेल्फ कहलाता है यह  महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है।
  8. विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइए।
    1. मैरियाना गर्त          प्रशांत महासागर
    2. प्यूर्टोरिका गर्त  अटलांटिक महासागर       
    3. सुण्डा गर्त          हिन्द महासागर
    4. यूरेशियन गर्त          आर्कटिक महासागर
  9. ताप प्रवणता क्या है?
    महासागर में वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) कहा जाता है।
  10. समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे ? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
    समुद्र में नीचे जाने पर ताप की तीन परतों का सामना कारण पड़ता है 
    1. पहली परत गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है जो लगभग 500 मीटर मोटी होती है और इसका तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में, यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, जबकि मध्य अक्षांशों में यह केवल ग्रीष्म ऋतु में विकसित होती है।
    2. दूसरी परत जिसे ताप प्रवणता परत कहा जाता है, पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसमें गहराई बढ़ने के साथ ही तापमान में तेज गिरावट आती जाती है। यहाँ ताप प्रवणता की मोटाई 500 से 1000 मीटर तक होती है।
    3. तीसरी परत बहुत ज़्यादा ठंडी होती है और गभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है। 
    महासागरों का उच्चतम तापमान सदैव उनकी ऊपरी सतहों पर होता है, क्योंकि वे सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं और यह ऊष्मा महासागरों के निचले भागों में संवहन की प्रक्रिया द्वारा स्थान्तरित होती है। परिणामस्वरूप गहराई के साथ-साथ तापमान में कमी आने लगती है
  11. समुद्री जल की लवणता क्या है?
    1000 ग्राम समुद्री जल में घुले हुए लवणों की ग्रामो में मात्रा लवणता कहलाती है। इसे प्रायः प्रति 1000 भाग (%०) या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  12. जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर-संबंधित हैं?
    जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका उपयोग बार बार किया जा सकता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। महासागरों, झीलों, नदियों, स्थल भाग, पौधों आदि से जल से वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा वाष्प में बदलकर बादल के रूप वायुमंडल में पहुंचता है तथा बदलती हुई मौसमी दशाओं में सघनन द्वारा यह जलराशि पुनः वर्षण के रूप में जलमण्डल तथा स्थलमण्डल पर पहुँचती है। है फिर यह वर्षा का पानी नदी तथा नालों के द्वारा समुद्र में चला जाता है और यह पुनः समुद्र का जल जलवाष्प बनकर वर्षा कराता है। इस प्रकार यह क्रियाएँ एक चक्र के रूप में चलती रहती है, इसे जलीय चक्र कहा जाता है।
    'जलीय चक्र के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं-
    1. सर्वप्रधम महासागरय भागों, झीलों तथा नदियों का जल सूर्य को गर्मी से वाष्पीकृत होकर जल-वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। इसके अतिरिक्त पादप समुदाय के वाष्पोत्सर्जन से भारी मात्रा में जलवाष्प वायुमण्डल में निष्कासित कौ जाती है। यही जलवाष्प संघनित होकर वायुमण्डलीय भागों में बादलों का निर्माण करती है
    2.बादलों की जलवाष्प ठण्डी होकर जल कणों के रूप में संघनित हो जाती है तथा अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर वर्षण के विभिन्‍न रूपो-वर्षा, हिम तथा ओले आदि के रूप में जलमण्डल तथा स्थलमण्डल पर प्राप्त होती हैं। 
    3.स्थलीय भागों पर वर्षण के माध्यम से प्राप्त होने वाला जल निम्नलिखित तीन मार्गों में से किसी एक मार्ग का अनुसरण करता है-
    कुछ जल भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
    कुछ जल वाष्पीकरण तथा वाष्पेत्सर्जन क्रिया द्वार पुन; वायुमण्डल में पहुँचा दिया जाता है।
    कुछ जल जलधाराओं के माध्यम से स्थलीय भा से प्रवाहित होता हुआ झीलों, सागरों तथा महासागर में पहुँचा दिया जाता है।
    स्थलीय भागों द्वार अवशोषित जल भूमिगत जल के रूप मे संगृहित हो जाता है, साथ ही मिट्टी की ऊपरी परतों में जमा हो कर विभिनन प्रकार की वनस्पतियों की वृद्धि के लिये आवश्यक जल की आपूर्ति करता है।
  13. महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
    महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
    1.अक्षांश - ध्रुवों की ओर प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।
    2. स्थल एवं जल का असमान वितरण – उत्तरी गोलार्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
    3. सनातन पवनें - स्थल से महासागरों की तरफ बहने वाली पवनें महासागरों के सतही गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नीचे का ठंडा जल ऊपर की ओर आ जाता है। परिणामस्वरूप, तापमान में देशांतरीय अंतर आता है। इसके विपरीत, अभितटीय पवनें गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तापमान बढ़ जाता है,
    4. महासागरीय धाराएँ - गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तर अमरीका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमीतट के तापमान को बढ़ा देती है, जबकि लेब्रेडोरधरा (ठंडी धारा) उत्तरी अमरीका के उत्तर-पूर्वीतट के नजदीक के तापमान को कम कर देती हैं।

  1. विश का सबसे बड़ा महाद्वीपीय शेल्फ कौन-सा है 
    आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ विश्व में सबसे बड़ा महाद्वीपीय शेल्फ है
  2. महासागर का सबसे उथला भाग कौन -सा  होता है 
    महाद्वीपीय शेल्फ / महाद्वीपीय निमग्न तट
  3. विश्व के किस भाग में महाद्वीपीय मग्नतट की अनुपस्थिति मिलती है?
    विश्व में दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित मिलते हैं।
  4. विश्व का सबसे  गहरा गर्त कौन-सा है?
    विश्व का सबसे  गहरा गर्त मैरियाना गर्त (11,035 मीटर) है जो प्रशान्त महासागर में स्थित है। 
  5. विश्व के सर्वाधिक लवणता किस सागर की है 
    मृत सागर 
  6. खुले महासागर की लवणता कितनी  होती है।
     सामान्य खुले महासागर की लवणता 33%0 से 37%0 के बीच होती है।
  7. महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारको के नाम लिखिए 
    1. वाष्पीकरण की दर
    2. नदियों व हिमखंडो के द्वारा लाए गए ताजे जल की आपूर्ति
    3. पवन द्वारा समुद्री जल का स्थानान्तरण
  8.   विश्व के उच्चतम लवणता वाले क्षेत्रों के नाम लिखिए 
    1. मृत सागर में 238%0
    2. टर्की की वॉन झील 330%0
    3. ग्रेट साल्ट झील 220%0
  9. समुद्री टीले क्या होते है 
    यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुँच पाता। समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4,500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। एम्पेरर समुद्री टीला, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप समूहों का विस्तार है इसका एक अच्छा उदाहरण है।
  10. महाद्वीपीय  शेल्फ / मग्नतट का क्या अर्थ है? इनकी मुख्य विशेषताएँ बतलाइए।
    महाद्वीपों के किनारे जो महासागरीय जल में डूबे रहते है महाद्वीपीय निमग्न तट या महाद्वीपीय सीमांत या महाद्वीपीय शेल्फ कहलाता है 
    1. यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है 
    2.इसकी औसत ढाल  1 डिग्री या उससे भी कम होती है। 
    3. महाद्वीपीय शेल्फ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है जिसे शेल्फ अवकाश कहा जाता है। 
    4. महाद्वीपीय शेल्फ की चौड़ाई व गहराई एक महासागर से दूसरे महासागर में भिन्न होती है। दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित मिलते हैं। जबकि आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ विश्व में सबसे बड़ा महाद्वीपीय शेल्फ है 
    5.महाद्वीपीय शेल्फ पर लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछटी अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।

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