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13.महासागरीय जल संचलन



महासागरीय जल अपनी भौतिक विशेषताओं जैसे- तापमान, खारापन, घनत्व तथा बाह्य बल जैसे- सूर्य चंद्रमा तथा वायु के प्रभाव के कारण सदैव गतिशील रहता हैं। महासागरीय जल में मुख्यतः तीन प्रकार की गतियाँ होती हैं - तरंगे, ज्वार भाटा तथा धाराएं।

तरंगें

जल की सतह पर पवनों के चलने से उसमें दोलन होने लगता है अर्थात्‌ इसमें पानी अस्थिर होकर हिलने-डुलने लगता है, इसी से जल ऊपर उठता एवं नीचे गिरता प्रतीत होता है। इस प्रभाव से पानी लहरदार आकृति की भाँति दिखाई देता है। इसे ही लहर या तरंग कहते हैं। अर्थात  सागरीय जल के क्रमिक रूप से उठाव व गिराव को लहर या तरंग कहा जाता है।  तरंगे महासागरीय जल में क्षैतिज गति से संबंधित हैं। 

तरंगों की विशेषताएँ

तरंग-श्रृंग व तरंग-गर्त -तरंग के ऊपरी उठे भाग को तरंग-श्रृंग कहते हैं। दो तरंग-श्रृंगों के बीच के निचले भाग को तरंग-गर्त कहते हैं।

तरंग की उंचाई- तरंग-श्रृंग तथा तरंग-गर्त के मध्य की ऊर्ध्वाधर दूरी को तरंग की ऊँचाई कहते हैं।

तरंग आयाम ;यह तरंग की उफँचाई का आधा होता है।

आवर्त-काल -किसी भी निश्चित स्थान पर दो लगातार श्रृंगों के गुजरने के बीच की अवधि को तरंग का आवर्त-काल कहते हैं।

तरंगदैर्ध्य - दो तरंग-श्रृंगों अथवा दो तरंग-गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी को तरंग-दैर्ध्य या तरंग की लम्बाई कहते हैं।

तरंग आवृत्ति- यह एक सेकेंड के समयान्तराल में दिए गए बिंदु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या तरंग आवृत्ति कहलाती है।

ज्वार-भाटा

चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण किसी निश्चित स्थान पर महासागरीय जल के ऊपर उठने और नीचे उतरने को क्रमशः ज्वार-भाटा कहते है ज्वारभाटा महासागरीय जल की उर्ध्वाधर गति से संबंधित है। वास्तव में ज्वार-भाटा सबसे बड़ी तरंगे हैं जो महासागरीय जल को गतिशील रखती हैं। नियमित रूप से प्रतिदिन एक निश्चित अन्तराल पर दो बार समुद्री जल ऊपर उठता है और दो बार नीचे बैठता है। चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वारभाटाओं की उत्पत्ति होती है। विश्व का सबसे उँचा ज्वारभाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फण्डी की खाड़ी में आता है।

ज्वार भाटा के प्रकार

आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा

अर्ध -दैनिक ज्वार: यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक दिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार लगभग समान उफँचाई की होती हैं।

दैनिक ज्वार: इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। उच्च एवं निम्न ज्वारों की उँचाई समान होती है।

मिश्रित ज्वार: ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी उँचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहा जाता है।

सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वारभाटा

1. वृहत् ज्वार

अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन, जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों एक सीध में होते हैं , तो दोनों ही सूर्य और चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति के कारण  जल का उतार-चढ़ाव साधारण उतार-चढ़ाव की अपेक्षा अधिक होता है। इसे वृहत् ज्वार-भाटा कहते हैं। 

2. निम्न ज्वार: शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की अष्ठमी के दिन जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं तो सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं. परिणामस्वरूप जल का उतार-चढ़ाव साधारण उतार-चढ़ाव की अपेक्षा कम होता है। इसे लघु ज्वार-भाटा कहते हैं।

ज्वार-भाटा का महत्व

1. वे पत्तन जो समुद्र तट से दूर नदियों के मुहानें पर स्थित हैं। ज्वार-भाटा इन पत्तनों को समुद्र से जोड़ते हैं। ज्वारीय जल इन नदियों में आकर इनमें निक्षेपित तलछट को साफ कर देता है और डेल्टा के विकास को धीमा कर देता है। जिससे समुद्री जहाज सुरक्षित पत्तन तक पहुँच जाते हैं।

2. ज्वारीय बल का प्रयोग विद्युत उत्पादन के स्रोत के रूप में किया गया है।

3. ज्वार-भाटा नदियों को नौसंचालन के योग्य बनाता है, अवसाद को बहा ले जाता है, डेल्टा निर्माण की प्रक्रिया को धीमा करता है

महासागरीय धारा

महासागरीय धारा एक सुस्पष्ट और निश्चित दिशा में काफी लंबी दूरी तक क्षैतिज रूप से बहने वाली महासागरीय जल की एक राशि हैं। ये नियमित रूप से समुद्र में बहती हैं। महासागरीय धारा महासागरों में नदी प्रवाह के समान है। अधिक गति वाली महासागरीय धाराओं को स्ट्रीम कहते हैं तथा कम गति वाली धाराओं को ड्रिफ्ट कहते हैं। महासागरीय धाराएँ तापमान,प्रचलित पवनों, गंरूत्वाकर्षण बल और कोरियालिस बल से प्रभावित होती हैं।

महासागरीय धाराओं के प्रकार

महासागरीय धाराओं को उनकी गहराई के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

उपरी जलधारा - महासागरीय जल का 10 प्रतिशत भाग सतही या उपरी जलधारा है। यह धाराएँ महासागरों में 400 मी॰ की गहराई तक उपस्थित हैं।

गहरी जलधारा- महासागरीय जल का 90 प्रतिशत भाग गहरी जलधारा के रूप में है। उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में, जहाँ तापमान कम होने के कारण घनत्व अधिक होता है, वहाँ गहरी जलधाराएँ बहती हैं, क्योंकि यहाँ अधिक घनत्व के कारण पानी नीचे की तरफ बैठता है।

महासागरीय धाराओं को तापमान के आधार पर पर भी दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1.  गर्म जल धारा -वे जल धाराएँ जो विषुवतीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर बहती हैं तथा जिनका सतही तापमान अधिक होता है, गर्म जल धाराएं कहलाती हैं। गर्म जलधाराएँ गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुँचाती हैं

2. ठंडी जल धारा- वे जल धाराएँ जो ध्रुवीय क्षेत्र से विषुवतीय क्षेत्रों की ओर बहती हैं तथा जिनका सतही तापमान कम होता है, ठंडी जल धाराएं कहलाती हैं। ठंडी जलधाराएँ, ठंडा जल, गर्म जल क्षेत्रों में लाती है जब जल का तापमान अधिक होता है तो उसका घनत्व कम होता है। इसलिए विषुवतीय क्षेत्र का कम घनत्व वाला जल ध्रुवों की ओर बहता है और धु्रवीय प्रदेशों का अधिक घनत्व वाला ठंडा जल विषुवतीय क्षेत्रों की ओर बहता है। इस प्रकार से ठंडी जल धाराएँ हमेशा ध्रुवीय क्षेत्रों से विषुवतीय क्षेत्रों की ओर तथा गर्म जल धाराएँ विषुवतीय क्षेत्रों से ध्रुवीय प्रदेशों की ओर बहती है।

महासागरीय धाराओं के प्रभाव

(क) जलवायु पर प्रभाव-महासागरीय धाराएँ तापमान, दाब, वायु एवं वर्षण के वितरण को नज़दीकी से प्रभावित करती हैं, जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती हैं तो ये उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशों वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती है। जब ठंडी और गर्म जलधाराएँ आपस में मिलती है तो ये कोहरा उत्पन्न कर देती हैं। ये तूफान आने के लिए भी अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।

(ख) समुद्री जीवन का प्रभाव-जहाँ गर्म और ठंडी जल धाराएँ मिलती हैं, वे विश्व के अत्याधिक महत्वपूर्ण मत्स्य ग्रहण क्षेत्र हैं। धाराओं के रूप में महासागरीय जल के संचरण के कारण समुद्री जीव-जन्तु पूरे महासागर में फैल जाते हैं।

(ग) व्यापार पर प्रभाव-जलधाराओं का व्यापार पर भी प्रभाव पड़ता है। उच्च अक्षांशों में स्थित पत्तनों और बन्दरगाहों में जो गर्म, जल धाराओं के प्रभाव में होते हैं, बर्फ नहीं जमती और वहाँ पूरे वर्ष व्यापारिक गतिविधियाँ चलती रहती हैं।




  1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे संबंधित है?
    (क) ज्वार (ख) तरंग
    (ग) धाराएँ (घ) ऊपर में से कोई नहीं  (क) 
  2. वृहत ज्वार आने का क्या कारण है?
    (क) सूर्य और चन्द्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरूत्वाकर्षण बल
    (ख) सूर्य और चंद्रमा द्वारा एक दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर गुरूत्वाकर्षण बल
    (ग) तटरेखा का दंतुरित होना
    (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं (क) 
  3. पृथ्वी तथा चंद्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
    (क) अपसौर (ख) उपसौर
    (ग) उपभू (घ) अपभू         (ग) 
  4. पृथ्वी उपसौर की स्थिति कब होती है?
    (क) अक्टूबर (ख) जुलाई
    (ग) सितंबर (घ) जनवरी          (घ)
  5. तरंगें क्या हैं?
    तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं,  तरंगों में जल-कण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। 
  6. महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
    वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे तरंगे उत्पन्न होती हैं| वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है
  7. ज्वार-भाटा क्या है?
    चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल का नियतकालिक ऊपर उठने या गिरने को क्रमशः ज्वारभाटा कहा जाता है|
  8. ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
    चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक अपकेंद्रीय बल है जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्त्वपूर्ण ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उतरदायी हैं। 
  9. ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित हैं?
    ज्वार-भाटा नौसंचालन एवं मछुआरों को उनके कार्य में सहयोग प्रदान करता है।
    ज्वार के कारण जलस्तर ऊपर उठ जाने से उथले सागर व नदियों के छिछले मुहाने भी नौकगाम्य हो जाते है नदियों के किनारे वाले पोताश्रय पर एवं ज्वारनदमुख के भीतर, जहाँ प्रवेश द्वार पर छिछले रोधिका होते हैं, जो कि नौकाओं एवं जहाजों को पोताश्रय में प्रवेश करने से रोकते हैं वहाँ पर ज्वार-भाटा से जल की आपूर्ति हो जाने पर नौका संचालन अत्यन्त सरल हो जाता है
  10. जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
    जलधाराएँ किसी प्रदेश की जलवायु एवं विशेषकर तापमान को बहुत प्रभावित करती हैं। गर्म जलधाराएँ जिस क्षेत्र में प्रवाहित  होती हैं उस क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती है और ठण्डी जलधाराएँ उस क्षेत्र के तापमान को कम कर देती हैं। ठंडी जलधाराएँ, ठंडा जल, गर्म जल क्षेत्रों में लाती हैं| ये महाद्वीपों के पशिचमी तट पर बहती हैँ| जिससे वहाँ का तापमान घटा देती है गर्म जलधाराएँ, गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुंचाती है और प्राय: महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती है और  वहाँ का तापमान बढ़ा देती है  उत्तर पश्चिम यूरोप में, गर्म धाराएँ मौजूद हैं, जो उत्तरी पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को बढ़ाती हैं|
  11. जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
    महासागरीय धारा एक सुस्पष्ट और निश्चित दिशा में काफी लंबी दूरी तक क्षैतिज रूप् से बहने वाली महासागरीय जल की एक राशि हैं। ये नियमित रूप से समुद्र में बहती हैं। महासागरीय धारा महासागरों में नदी प्रवाह के समान है। 
    महासागरीय जलधाराओं की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं
    1. तापमान की भिन्नता - सागरीय जल के तापमान में क्षैतिज एवं लम्बवत् भिन्नताएँ पाई जाती हैं। जल निम्न तापमान के कारण ठण्डा होकर नीचे बैठ जाता है, जिस कारण विषुवत रेखीय क्षेत्रों से जल ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने लगता है। उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवत्रेखीय जलधाराएँ इसी प्रकार की हैं।
    2. लवणता की भिन्नता-महासागरीय जल की लवणता में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। लवणता की भिन्नता से सागरीय जल का घनत्व भी परिवर्तित हो जाता है। उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों से जल कम घनत्व या कम लवणता वाले भागों से विषुवत् रेखा की ओर प्रवाहित होने लगता है। इस प्रकार सागरीय जल में लवणता के घनत्व में भिन्नता के कारण जलधाराओं की उत्पत्ति हो जाती है। हिन्द महासागर के जल को लाल सागर की ओर प्रवाह इसका उत्तम उदाहरण है।
    3. प्रचलित पवनों का प्रभाव-प्रचलित पवनें वर्षेभर नियमित रूप से प्रवाहित होती हैं और ये अपने मार्ग में पड़ने वाली जलराशि को पवन की दिशा के अनुकूल धकेलती हुई चलती हैं जिससे जलराशि प्रवाहित होने लगती है। 
    4. वाष्पीकरण व वर्षा-पृथ्वी तल पर वाष्पीकरण व वर्षा में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। जहाँ वाष्पीकरण अधिक होता है वहाँ सागर तल नीचा हो जाता है; अत: उच्च-तल के क्षेत्रों से सागरीय जल निम्न जल-तल की ओर प्रवाहित होने लगता है जिससे जलधाराओं की उत्पत्ति हो जाती है। ठीक इसी प्रकार अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सागरीय जल-तल में वृद्धि हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों से जल निम्न वर्षा तथा निम्न जल-तल वाले भागों की ओर एक धारा के रूप में प्रवाहित होने लगता है।
    5. पृथ्वी की दैनिक गति- पृथ्वी अपने अक्ष पर तीव्र गति से घूमती हुई सूर्य के सम्मुख लगभग 24 घण्टे में एक चक्कर पूरा कर लेती है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण सागरीय जल उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर घूम जाता है। पृथ्वी की घूर्णन गति का प्रभाव जलधाराओं के प्रवाह एवं उनकी गति पर भी पड़ता है।
  1. तरंगदैर्ध्य किसे कहते है ? 
    दो तरंग-श्रृंगों अथवा दो तरंग-गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी को तरंग-दैर्ध्य या तरंग की लम्बाई कहते हैं।
  2. विश्व का सबसे उँचा ज्वारभाटा कहाँ आता है ?
    विश्व का सबसे उँचा ज्वारभाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फण्डी की खाड़ी में आता है।
  3. उपभू किसे कहते है ?
    जब चंद्रमा पृथ्वी सबसे नजदीक होता है तो उस स्थिति को उपभू कहते है 
  4. अपभू किसे कहते है ?
    जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है तो इस स्थिति को अपभू कहते है
  5. स्ट्रीम एवं ड्रिफ्ट किसे कहते है 
    अधिक गति वाली महासागरीय धाराओं को स्ट्रीम कहते हैं तथा कम गति वाली धाराओं को ड्रिफ्ट कहते हैं।
  6. अपसौर किसे कहते है ?
    जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर होती है, तो इस स्थिति को  अपसौर कहते है प्रतिवर्ष 4 जुलाई को अपसौर की स्थिति होती है
  7. उपसौर किसे कहते है ?
    जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम होती है तो इस स्थिति को उपसौर कहते है प्रतिवर्ष 3 जनवरी को उपसौर की स्थिति होती है 
  8. महासागरीय जल की तीन गतियाँ कौन-सी हैं?
    महासागरीय जल की तीन गतियाँ निम्नलिखित हैं
    1. तरंग,
    2. धाराएँ,
    3. ज्वार-भाटा
  9. वृहत् ज्वार किसे कहते है ?
    अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन, जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों एक सीध में होते हैं , तो दोनों ही सूर्य और चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति के कारण  जल का उतार-चढ़ाव साधारण उतार-चढ़ाव की अपेक्षा अधिक होता है। इसे वृहत् ज्वार-भाटा कहते हैं। 
  10. निम्न ज्वार किसे कहते है ?
    शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की अष्ठमी के दिन जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं तो सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं. परिणामस्वरूप जल का उतार-चढ़ाव साधारण उतार-चढ़ाव की अपेक्षा कम होता है। इसे लघु ज्वार-भाटा कहते हैं।
  11. ज्वार-भाटा का महत्व लिखिए 
    1. वे पत्तन जो समुद्र तट से दूर नदियों के मुहानें पर स्थित हैं। ज्वार-भाटा इन पत्तनों को समुद्र से जोड़ते हैं। ज्वारीय जल इन नदियों में आकर इनमें निक्षेपित तलछट को साफ कर देता है और डेल्टा के विकास को धीमा कर देता है। जिससे समुद्री जहाज सुरक्षित पत्तन तक पहुँच जाते हैं।
    2. ज्वारीय बल का प्रयोग विद्युत उत्पादन के स्रोत के रूप में किया गया है।
    3. ज्वार-भाटा नदियों को नौसंचालन के योग्य बनाता है, अवसाद को बहा ले जाता है, डेल्टा निर्माण की प्रक्रिया को धीमा करता है
  12. महासागरीय धाराओं के प्रभाव के प्रभाव लिखिए 
    (क) जलवायु पर प्रभाव- महासागरीय धाराएँ तापमान, दाब, वायु एवं वर्षण के वितरण को नज़दीकी से प्रभावित करती हैं, जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती हैं तो ये उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशों वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती है। जब ठंडी और गर्म जलधाराएँ आपस में मिलती है तो ये कोहरा उत्पन्न कर देती हैं। ये तूफान आने के लिए भी अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।
    (ख) समुद्री जीवन का प्रभाव-जहाँ गर्म और ठंडी जल धाराएँ मिलती हैं, वे विश्व के अत्याधिक महत्वपूर्ण मत्स्य ग्रहण क्षेत्र हैं। धाराओं के रूप में महासागरीय जल के संचरण के कारण समुद्री जीव-जन्तु पूरे महासागर में फैल जाते हैं।
    (ग) व्यापार पर प्रभाव-जलधाराओं का व्यापार पर भी प्रभाव पड़ता है। उच्च अक्षांशों में स्थित पत्तनों और बन्दरगाहों में जो गर्म, जल धाराओं के प्रभाव में होते हैं, बर्फ नहीं जमती और वहाँ पूरे वर्ष व्यापारिक गतिविधियाँ चलती रहती हैं।



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