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2. पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

  • एक तारक परिकल्पनाएं
    1. कान्ट की वायव्य राशि परिकल्पना
    जर्मन दार्शनिक कांट ने 1755 ई. में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार प्रारंभ में आद्य पदार्थ के कण ब्रह्माण्ड में फैले हुए थे। ये कण गुरुत्वाकर्षणबल के कारण आपस में टकराए जिससे ताप उत्पन्न हुआ और ये कण ठोस से द्रव व द्रव से गैस में बदल गए ये गैसीय पुंज एकत्रित होकर परिभ्रमण करने लगे एवं एक तप्त व गतिशील निहारिका का रूप धारण कर लिया। निहारिका के मध्यवर्ती भाग में उभार पैदा हुआ।  इस उभार के पदार्थ एक-एक छल्ले के रूप में निहारिका से पृथक होते गए और इनसे नौ ग्रहों का निर्माण हुआ । तथा निहारिका के शेष बचे भाग से सूर्य का निर्माण हुआ
    2. लाप्लास की नीहारिका परिकल्पना
    1796 ई॰ में गणितज्ञ लाप्लास ने कान्ट की परिकल्पना का सशोधित रूप प्रस्तुत किया जिसे नीहारिका परिकल्पना के नाम से जाना जाता है। इस परिकल्पना के अनुसार एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक छल्ला बाहर निकला जो कई छल्लों में विभाजित हो गया तथा ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर घूमने लगे। बाद में इन्हीं चालों के शीतलन से ग्रहों का निर्माण हुआ और निहारिका के शेष बचे भाग से सूर्य का निर्माण हुआ
    द्वैतारक परिकल्पनाएं
    1. चैम्बरलिन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
    1900 ई॰ में चेम्बरलेन और मोल्टन ने कहा कि ब्रह्मांड में एक अन्य भ्रमणशील तारा सूर्य के नजदीक से गुजरा। इसके परिणामस्वरूप उस तारे के गुरूत्वाकर्षण से सूर्य के धरातल से सिगार के आकार का कुछ पदार्थ निकलकर अलग हो गया। जिसे चेम्बरलेन ने ग्राहणु कहा यह तारा जब सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य के धरातल से बाहर निकला हुआ यह पदार्थ सूर्य के चारों तरफ घूमने लगा और यही धीरे –धीरे संघनित होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गया।
    2. जेम्स जीन्स की ज्वारीय परिकल्पना 
    इस परिकल्पना के अनुसार सौर मंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारे के संयोग से हुआ है।सूर्य के निकट इस तारे के आने से सूर्य के बाह्य भाग में ज्वार उठने लगा जिसके कारण यह ज्वारीय भाग फिलामेंट के रूप में सूर्य से अलग हो गया तथा बाद में टूट कर सूर्य का चक्कर लगाने लगा। यही फिलामेंट सौर मंडल के विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति का कारण बना।
    3. वाईजास्कर की परिकल्पना  
    इस परिकल्पना के अनुसार सौर मंडल की उत्पत्ति अन्तरिक्ष में फैले हुए गैस एवं धूल के कणों के घनीभूत होने से हुई है जिसे निहारिका नाम दिया गया एक समय सूर्य इस निहारिका में प्रवेश कर गया कालांतर में निहारिका के गैसीय पदार्थ सूर्य के चरों और फैलकr घुमने लगे इन्ही गैसीय पदार्थों से ग्रहों का निर्माण हुआ
    बिग बैंग सिद्धांत/ महाविस्फोटक परिकल्पना 
    ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बंध में यह सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है  इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना भी कहते है  यह सिद्धांत बेल्जियम विद्वान लेमैत्रे ने प्रस्तुत किया बिग बैंग सिद्धांत  के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ हैः
    1. प्रारंभ में जिन पदार्थों से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है वे पदार्थ अति छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्य सूक्ष्म एवं तापमान व घनत्व अनंत था।
    2. इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्पफोट हुआ जिससे सारा पदार्थ अन्तरिक्ष में फ़ैल गया और वृहत विस्तार हुआ यह घटना  आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले हुई और आज भी जारी है 
    3. महा विस्फोट से 3 लाख वर्षों  के दौरान, तापमान 4500 ° केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।


    तारों का निर्माण
    तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ। प्रारंभिक ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता के कारण छोटे-छोटे धुल कण व गैसों का एक विशाल बदल बना जिसे निहारिका कहा गया निहारिका से ही आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हुई इस निहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है 
    प्रकाश वर्ष 
    प्रकाश वर्ष समय का नहीं वरन् दूरी का मात्रक है। एक साल में प्रकाश द्वारा तय गई दूरी प्रकाश वर्ष कहलाती है प्रकाश की गति 3 लाख कि0 मी0 प्रति सैकेंड होती है। एक प्रकाश वर्ष 9.46×1012 कि॰ मी॰ के बराबर होता है। 
    ग्रहों का निर्माण 
    ग्रहों का निर्माण  लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ  ग्रहों का विकास निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ-
    1. प्रथम अवस्था में निहारिका के अन्दर गैस के गुंथित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण गैसीय क्रोड का निर्माण होता है। गैसी क्रोड के चारों ओर गैस तथा धूल के कणों की चक्कर लगाती हुई तश्तरी विकसित हुई।
    2. द्वितीय अवस्था में गैसीय बादल का संघनन प्रारम्भ होता है। क्रोड के इधर-उधर का पदार्थ छोटे गोलाकार पिण्डों के रूप में विकसित हुआ तथा बाद में ग्रहाणुओं का रूप धारण किया। ग्रहाणु संघटन की क्रिया द्वारा बड़े पिण्ड बन गये तथा गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण एक-दूसरे जुड़ गये।
    3. अन्तिम अवस्था में ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने से बड़े पिण्ड ग्रहों का रूप धारण कर गये।
    सौरमंडल 
    सूर्य, इसके चारों और चक्कर लगाने वाले ग्रह,  इनके उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु तथा उल्काओं के परिवार को सौरमण्डल कहते हैं। नीहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है 
    सौरमण्डल में आठ ग्रह हैं जिन्हें दो भागों में बनता गया है 
    1. भीतरी ग्रह
    सूर्य व क्षुद्रग्रहों की पट्टी के बीच स्थित चार ग्रह बुध्, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी ग्रह कहलाते हैं ये ग्रह अपेक्षाकृत छोटे है ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धतुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। इसलिए इन्हें पार्थिव ग्रह भी कहते है 
    2. बाहरी ग्रह 
    बृहस्पति,शनि, अरुण व वरुण बाहरी ग्रह कहलाते हैं। ये ग्रह अपेक्षाकृत बड़े है जो गैसों से बने विशाल ग्रह है इन्हें जोवियन ग्रह भी कहते है  जोवियन का अर्थ है बृहस्पति की तरह । अतः ये ग्रह बृहस्पति की तरह बने है 
    पार्थिव ग्रहों व जोवियन ग्रहों में अंतर 
    1. पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बनें जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं जबकि जोवियन ग्रहों की रचना अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर होने के कारन वहां गैसे संघनित हो गई ।
    2. सौर वायु सूर्य के नज़दीक ज्यादा शक्तिशाली थी। अतः पार्थिव ग्रहों से ज्यादा मात्रा में गैस व धूलकण उड़ा ले गई। जबकि जोवियन ग्रहों पर सौर पवन इतनी शक्तिशाली न होने के कारण इन ग्रहों से गैसों को नहीं हटा पाई।
    3. पार्थिव ग्रहों का आकार छोटे होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसके परिणामस्वरूप इनसे निकली हुई गैसे इन पर रुकी नहीं रह सकी। जबकि जोवियन ग्रहों का आकर बड़ा होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक  रही जिसके कारण गैसे इन ग्रहों पर  रुकी रही ।
    पहले प्लूटो को भी ग्रह मन जाता था परुन्तु बाद में अंतर्राष्ट्रीय खगोलकी संगठन ने प्लूटो को ‘बोने ग्रह’ की संज्ञा दी ।
    चंद्रमा
    चंद्रमा पृथ्वी का अकेला प्राकृतिक उपग्रह है। सर जार्ज डार्विन के अनुसार  प्रारंभ में पृथ्वी व चंद्रमा तेजी से घूमते एक ही पिंड थे। यह पूरा पिंड डंबल की आकृति में परिवर्तित हुआ और अंततोगत्वा टूट गया। उनके अनुसार चंद्रमा का निमार्ण उसी पदार्थ से हुआ है जहाँ आज प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में मौजूद है।
    आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का नतीजा है जिसे ‘द बिग स्प्लैट’ कहा गया है। ऐसा मानना है कि पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही एक बड़े आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया। इस टकराव से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। टकराव से अलग हुआ यह पदार्थ फिर पृथ्वी के कक्ष में घूमने लगा और क्रमशः आज का चंद्रमा बना। यह घटना या चंद्रमा की उत्पत्ति लगभग 4.44 अरब वर्षों पहले हुई।
    पृथवी का उदभव
    प्रारंभ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमंडल विरल था जो हाइड्रोजन) व हीलीयम से बना था। यह आज की पृथ्वी के  वायुमंडल से बहुत अलग था। अतः कुछ ऐसी घटनाएँ एवं क्रियाएँ अवश्य हुई जिनके कारण चट्टानी, वीरान और गर्म पृथ्वी एक ऐसे सुंदर ग्रह में परिवर्तित हुई 
    पृथ्वी की संरचना परतदार है। वायुमंडल के बाहरी छोर से पृथ्वी के क्रोड तक जो पदार्थ हैं वे एक समान नहीं हैं। वायुमंडलीय पदार्थ का घनत्व सबसे कम है। पृथ्वी की सतह से इसके भीतरी भाग तक अनेक मंडल हैं और हर एक भाग के पदार्थ की अलग विशेषताएँ हैं।
    स्थलमंडल का विकास 
    पृथ्वी की रचना बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से हुई है। पदार्थ गुरुत्वबल के कारण इक्कठा होने लगा जिसके कारण अत्यध्कि ऊष्मा उत्पन्न हुई। और उत्पन्न ताप से पदार्थ पिघलने लगा। ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ। अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और हल्के और भारी पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह पर आ गए। समय के साथ यह और ठंडे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए। अंततोगत्वा यह पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप में विकसित हो गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन  कहा जाता है। चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान, भीषण संघट्ट के कारण, पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा या फिर ऊर्जा उत्पन्न हुई और यह विभेदन का दूसरा चरण था। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं। 
    वायुमंडल व जलमंडल का विकास
    प्रारंभिक वायुमंडल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। ऐसा केवल पृथ्वी पर ही नहीं, वरन् सभी पार्थिव ग्रहों पर हुआ। अर्थात् सभी पार्थिव ग्रहों से, सौर पवन के प्रभाव के कारण, आदिकालिक वायुमंडल या तो दूर धकेल दिया गया या समाप्त हो गया। यह वायुमंडल के विकास की पहली अवस्था थी।
    पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमंडल का उद्भव हुआ। आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक् मात्रा में, और स्वतंत्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आई इसे गैस उत्सर्जन कहा जाता है। लगातार ज्वालामुखी विस्पफोट से वायुमंडल में जलवाष्प व गैस बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई। फलस्वरूप अधिक संघनन व अत्यधिक वर्षा हुई। पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तों में इकट्टा होने लगा, जिससे महासागर बने । लगभग 380 करोड़ साल पहले जीवन का विकास आरंभ हुआ। लंबे समय तक जीवन केवल महासागरों तक सीमित रहा। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में बढ़ोतरी महासागरों की देन है। धीरे-धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए 
    जीवन की उत्पत्ति
    पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है। पृथ्वी का आरंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था। आधुनिक वैज्ञानिक, जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था। और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्त्व में परिवर्तित कर सका। हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह अलग-अलग समय की चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्म के रूप में हैं। 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल की संरचना से मिलती जुलती है। यह कल्पना की जा सकती है कि इससे पहले समय में साधारण संरचना वाली शैवाल रही होगी। यह माना जाता है कि जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। 
    पृथ्वी के भू - वैज्ञानिक कालक्रम का विभाजन :-
    भूवैज्ञानिक समय में  इयान सबसे बड़ी और युग सबसे छोटी अवधि है
    पृथ्वी की उत्पत्ति से अब तक पृथ्वी के भू- वैज्ञानिक इतिहास को चार इयान में विभक्त किया गया है । हेडियन , आर्कीअन , प्रोटेरोज़ोइक  और दृश्यजीवी (फ़ैनेरोज़ोइक) इनमें से पहली तीन इओनों को सामूहिक रूप से कैम्ब्रीयनपूर्व महाइओन कहा जाता है। वर्तमान इयान फेनेरोजॉईक इयान कहलाता है |
    इओन को आगे महाकल्प (era) में विभाजित किया  जाता है।
    महाकल्प को कल्प (period) में विभाजित किया  जाता है।
    कल्प को युग (epoch) में विभाजित किया  जाता है।
    युग को काल (age) में विभाजित किया  जाता है।

  • पाठ्य पुस्तक के प्रश्न उत्तर 
  1. निम्नलिखित में से कौन सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
    (अ) 46 लाख वर्ष                (ब) 460 करोड़ वर्ष
    (स) 13.7 अरब वर्ष              (द) 13.7 खरब वर्ष           (ब)
  2. निम्न में कौन सी अवधि  सबसे लंबी है
    (अ) इओन              (ब) महाकल्प
    (स) कल्प              (द) युग                 (अ)
  3. निम्न में कौन सा तत्व वर्तमान वायुमंडल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
    (अ) सौर पवन              (ब) गैस उत्सर्जन
    (स) विभेदन              (द) प्रकाश संश्लेषण                 (अ)
  4. निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन से हैं
    (अ) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह
    (ब) सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह
    (स) वे ग्रह जो गैसीय हैं।
    (द) बिना उपग्रह वाले ग्रह                                                  (ब)
  5. पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरंभ हुआ।
    (अ) 1अरब 37 करोड़ वर्ष पहले      (ब) 460 करोड़ वर्ष पहले
    (स) 38 लाख वर्ष पहले      (द) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले        (द)
  6. पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं ?
    पार्थिव ग्रह  पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धतुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बनें जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं साथ ही  पार्थिव ग्रहों का आकार छोटे होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसके परिणामस्वरूप इनसे निकली हुई गैसे इन पर रुकी नहीं रह सकी। इस कारण पार्थिव ग्रह चट्टानी है 
  7. पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बंधित दिये गए तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अंतर बताएँ:
    (1) कान्ट व लाप्लेस         (2) चैम्बरलेन व मोल्टन
    कान्ट व लाप्लेस के अनुसार पृथ्वी का निर्माण धीमी गति से घुमती हुई निहारिका से हुआ है जिसका अवशिष्ट भाग बाद में सूर्य बना । अतः कान्ट व लाप्लेस का पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बंधित मत एकतारक परिकल्पना पर आधारित था
    चैम्बरलेन व मोल्टन के अनुसार ब्रह्मांड में एक अन्य भ्रमणशील तारा सूर्य के नजदीक से गुजरा। उस तारे के गुरूत्वाकर्षण से सूर्य के धरातल से सिगार के आकार का कुछ पदार्थ निकलकर अलग हो गया। यह तारा जब सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य के धरातल से बाहर निकला हुआ पदार्थ सूर्य के चारों तरफ घूमने लगा और यही धीरे –धीरे संघनित होकर ग्रहों (पृथ्वी) में परिवर्तित हो गया। अतः चैम्बरलेन व मोल्टन का पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बंधित मत द्वैतारक परिकल्पना पर आधारित था
  8. विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समक्षते हैं।
    पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और हल्के और भारी पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह पर आ गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन  कहा जाता है। 
  9. प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था ?
    प्रारंभ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमंडल विरल था जो हाइड्रोजन व हीलीयम से बना था। यह आज की पृथ्वी के  वायुमंडल से बहुत अलग था।
  10. पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसे कौन सी थीं ?
    पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसे हाइड्रोजन व हीलियम थी 
  11. बिग बैंग सिद्धांत का विस्तार से वर्णन करें।
    बिग बैंग सिद्धांत/ महाविस्फोटक परिकल्पना 
    ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बंध में यह सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है  इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना भी कहते है  यह सिद्धांत बेल्जियम विद्वान लेमैत्रे ने प्रस्तुत किया बिग बैंग सिद्धांत  के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ हैः
    1. प्रारंभ में जिन पदार्थों से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है वे पदार्थ अति छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्य सूक्ष्म एवं तापमान व घनत्व अनंत था।
    2. इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्पफोट हुआ जिससे सारा पदार्थ अन्तरिक्ष में फ़ैल गया और वृहत विस्तार हुआ यह घटना  आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले हुई और आज भी जारी है 
    3. महा विस्फोट से 3 लाख वर्षों  के दौरान, तापमान 4500 ° केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।   
  12. पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था/चरण को संक्षेप में वर्णित करें|
    प्रारंभ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमंडल विरल था जो हाइड्रोजन) व हीलीयम से बना था। यह आज की पृथ्वी के  वायुमंडल से बहुत अलग था। अतः कुछ ऐसी घटनाएँ एवं क्रियाएँ अवश्य हुई जिनके कारण चट्टानी, वीरान और गर्म पृथ्वी एक ऐसे सुंदर ग्रह में परिवर्तित हुई 
    1. स्थलमंडल का विकास 
    पृथ्वी की रचना ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से हुई है। पदार्थ गुरुत्वबल के कारण इक्कठा होने लगा जिससे अत्यध्कि ऊष्मा उत्पन्न हुई। और पदार्थ पिघलने लगा। ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ। अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और हल्के और भारी पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह पर आ गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन  कहा जाता है। चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान, भीषण संघट्ट के कारण, पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा या फिर ऊर्जा उत्पन्न हुई और यह विभेदन का दूसरा चरण था। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं। 
    2. वायुमंडल व जलमंडल का विकास
    प्रारंभिक वायुमंडल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमंडल का उद्भव हुआ। आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक् मात्रा में, और स्वतंत्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आई इसे गैस उत्सर्जन कहा जाता है। लगातार ज्वालामुखी विस्पफोट से वायुमंडल में जलवाष्प व गैस बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई। फलस्वरूप अधिक संघनन व अत्यधिक वर्षा हुई। पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तों में इकट्टा होने लगा, जिससे महासागर बने । लंबे समय तक जीवन केवल महासागरों तक सीमित रहा। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में बढ़ोतरी महासागरों की देन है। धीरे-धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए 
    3. जीवन की उत्पत्ति
    पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है। पृथ्वी का आरंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था। आधुनिक वैज्ञानिक, जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था। और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्त्व में परिवर्तित कर सका। 
  • अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न 
  1. पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में निहारिका परिकल्पना सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया ?
    लाप्लास 
  2. सूर्य का निकटतम ग्रह कौनसा है 
    बुध
  3. प्रकाश की गति कितनी होती है 
    3 लाख किमी प्रति सेकण्ड 
  4. सौरमंडल का जनक किसे मन जाता है 
    निहारिका का 
  5. सौरमण्डल का सबसे छोटा ग्रह कौन-सा है ?
    बुध
  6. 24 अगस्त, 2006 में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय खगोल यूनियन में बौना ग्रह किसे माना गया है ?
    प्लूटो
  7. ग्रहों का निर्माण  कब हुआ 
    ग्रहों का निर्माण  लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ 
  8. “द बिग स्प्लैट” की घटना किससे सम्बंधित है 
    “द बिग स्प्लैट की घटना” चंद्रमा की उत्पत्ति से सम्बंधित है 
  9. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत कौनसा है 
    बिग बैंग सिद्धांत 
  10. सौरमंडल के पार्थिव (भीतरी) ग्रहों के नाम लिखिए 
    बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल
  11. स्थिर अवस्था संकल्पना किसने दी
    हॉयल ने 
  12. सौरमंडल के जोवियन (बाहरी) ग्रहों के नाम लिखिए 
    बृहस्पति, शनि, युरेनस, नेपच्यून 
  13. आकाशगंगा क्या है 
    आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है 
  14. भूवैज्ञानिक समय में सबसे बड़ी और  सबसे छोटी अवधि क्या है
    भूवैज्ञानिक समय में  इयान सबसे बड़ी और युग सबसे छोटी अवधि है
  15. क्षुद्रग्रह किसे कहते है?
    सौरमंडल मे बाहरी ग्रहों एव  पार्थिव ग्रहो के बीच में लाखों छोटे पिंडों की एक पट्टी पाई जाती है उसे
    क्षुद्रग्रह कहते है।
  16. पृथ्वी के वायुमण्डल को निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें कौन-सी थीं ?
    पृथ्वी के वायुमण्डल को निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें हाइड्रोजन व हीलियम थीं।
  17. सौरमंडल किसे कहते है 
  18. सूर्य, इसके चारों और चक्कर लगाने वाले ग्रह,  इनके उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु तथा उल्काओं के परिवार को सौरमण्डल कहते हैं।
  19. प्रकाश वर्ष किसे कहते है 
    प्रकाश वर्ष समय का नहीं वरन् दूरी का मात्रक है। एक साल में प्रकाश द्वारा तय गई दूरी  एक प्रकाश वर्ष कहलाती है
  20. चंद्रमा की उत्पत्ति किस प्रकार हुई 
    चंद्रमा की उत्पत्ति  के सम्बंध में दो प्रकार की विचारधाराए प्रचलित है
    1. सर जार्ज डार्विन के अनुसार  प्रारंभ में पृथ्वी व चंद्रमा तेजी से घूमते एक ही पिंड थे। यह पूरा पिंड डंबल की आकृति में परिवर्तित हुआ और अंततोगत्वा टूट गया। उनके अनुसार चंद्रमा का निमार्ण उसी पदार्थ से हुआ है जहाँ आज प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में मौजूद है।
    2. आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का नतीजा है जिसे ‘द बिग स्प्लैट’ कहा गया है। ऐसा मानना है कि पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही एक बड़े आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया। इस टकराव से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। टकराव से अलग हुआ यह पदार्थ फिर पृथ्वी के कक्ष में घूमने लगा और क्रमशः आज का चंद्रमा बना। यह घटना या चंद्रमा की उत्पत्ति लगभग 4.44 अरब वर्षों पहले हुई।
  21. पार्थिव ग्रहों व जोवियन ग्रहों में अंतर लिखिए
    1. पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बनें जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं जबकि जोवियन ग्रहों की रचना अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर होने के कारन वहां गैसे संघनित हो गई ।
    2. सौर वायु सूर्य के नज़दीक ज्यादा शक्तिशाली थी। अतः पार्थिव ग्रहों से ज्यादा मात्रा में गैस व धूलकण उड़ा ले गई। जबकि जोवियन ग्रहों पर सौर पवन इतनी शक्तिशाली न होने के कारण इन ग्रहों से गैसों को नहीं हटा पाई।
    3. पार्थिव ग्रहों का आकार छोटे होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसके परिणामस्वरूप इनसे निकली हुई गैसे इन पर रुकी नहीं रह सकी। जबकि जोवियन ग्रहों का आकर बड़ा होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक  रही जिसके कारण गैसे इन ग्रहों पर  रुकी रही ।
    पहले प्लूटो को भी ग्रह मन जाता था परुन्तु बाद में अंतर्राष्ट्रीय खगोलकी संगठन ने प्लूटो को ‘बोने ग्रह’ की संज्ञा दी ।




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