3. भूसंसाधन तथा कृषि

मनुष्यों द्वारा भूमि का उपयोग विभिन्न कार्यों जैसे कृषिवानिकीखननसड़के,उद्धोग की स्थापना आदि हेतु किया जाता है इसे भू-उपयोग कहते है
भू-उपयोग वर्गीकरण
भारत में भू-उपयोग संबंधी अभिलेख भूराजस्व विभाग रखता है। भूराजस्व विभाग के अनुसार भू-उपयोग संवर्गों का योग कुल प्रतिवेदन (रिपोर्टिंग) क्षेत्र के बराबर होता है भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग पर है। भूराजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग में मूल्भूत अंतर यह है कि भूराजस्व द्वारा प्रस्तुत अनुसार भू-उपयोग संवर्गों का कुल क्षेत्रफल रिपोर्टिंग क्षेत्र पर आधारित है जो कि कम या अधिक हो सकता है। जबकि भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रस्तुत कुल भौगोलिक क्षेत्र सर्वेक्षण पर आधारित है जो स्थायी है।
भूराजस्व अभिलेख द्वारा अपनाया गया भू-उपयोग वर्गीकरण निम्न प्रकार है

1. वनों के अधीन क्षेत्र : सरकार द्वारा सीमांकित ऐसे क्षेत्र  जहाँ वन विकसित हो सकते हैं वनों के अधीन क्षेत्र कहलाते है   

2. बंजर व व्यर्थ-भूमि: वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती है  जैसे बंजर पहाड़ी भूभाग, मरुस्थल आदि 

3. गैर कृषि-कार्यों में प्रयुक्त भूमि : इस प्रकार की भूमि का उपयोग  बस्तियाँ, अवसंरचना, (सड़के, नहरें आदि) उद्योग, दुकाने आदि बनाने में किया जाता है  

4. स्थायी चरागाह क्षेत्र: इसमें सभी प्रकार की चराई भूमि सम्मलित है इस प्रकार की अधिकतर भूमि पर ग्राम पंचायत या सरकार का स्वामित्व होता है। 

5. विविध तरु-फसलों व उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र: इस संवर्ग में वह भूमि सम्मिलित है जिस पर उद्यान व फलदार वृक्ष हैं। यह भूमि  बोए गए निवल क्षेत्र में सम्मिलित नहीं है  इस प्रकार की अधिकतर भूमि व्यक्तियों के निजी स्वामित्व में है।

6. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि: वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषि रहित है इस संवर्ग में सम्मिलित की जाती है। 

7. वर्तमान परती भूमि: वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय तक कृषिरहित रहती है, वर्तमान परती भूमि कहलाती है। भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु भूमि का परती रखना एक सांस्कृतिक चलन है। इस विधि से भूमि की क्षीण उर्वरकता या पौष्टिकता प्राकृतिक रूप से वापस आ जाती है।

8. पुरातन परती भूमि:  वह भूमि जो एक वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्षों से कम समय तक कृषिरहित रहती है। 

9. निवल बोया क्षेत्र : वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं वह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।

भारत में भू-उपयोग परिवर्तन

किसी क्षेत्र में भू-उपयोग अधिकतर वहाँ की आर्थिक क्रियाओं की प्रवृत्ति पर निर्भर है। भारत में भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के तीन परिवर्तन हैं

1. अर्थव्यवस्था का आकार- उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को अर्थव्यवस्था का आकार कहा जाता है बढ़ती जनसंख्या, बदलते आय-स्तर, उपलब्ध प्रौद्योगिकी के कारण अर्थव्यवस्था का आकार समय के साथ बढ़ता है परिणामस्वरूप समय के साथ भूमि पर दबाव बढ़ता है तथा सीमांत भूमि को भी प्रयोग में लाया जाता है।

2. अर्थव्यवस्था की संरचना - समय के साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में भी बदलाव होता है। अर्थात द्वितीयक व तृतीयक सेक्टरों में प्राथमिक सेक्टर की अपेक्षा अधिक तीव्रता से वृद्धि होती है। इस प्रकिया में धीरे-धीरे कृषि भूमि गैर-कृषि संबंधित कार्यों में प्रयुक्त होती है। 

3. भूमि पर कृषि पर दबाव- यद्यपि समय के साथ, कृषि क्रियाकलापों का अर्थव्यवस्था में योगदान कम होता जाता है परन्तु  भूमि पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव कम नहीं होता है क्योंकि प्रायः विकासशील देशों में कृषि पर निर्भर व्यक्तियों की संख्या धीरे-धीरे घटती है जबकि कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तीव्रता से घटता है साथ ही कृषि पर निर्भर जनसंख्या भी प्रतिदिन बढती जाती है अतः कृषि भूमि पर दबाव बढ़ता है 


वर्ष 1950-51 तथा 2014-15 के आंकड़ो को देखने से पता चलता है कि इस अवधि में  चार संवर्गों में वृद्धि  व चार संवर्गों के अनुपात में कमी दर्ज की गई है। 

वृद्धि वाले संवर्ग 

1.वन क्षेत्र- वन क्षेत्र में वृद्धि सीमांकन के कारण हुई है 

2.गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि- इस संवर्ग में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई इस संवर्ग में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास निर्माण में प्रयुक्त भूमि के कारण हुई है  

3. वर्तमान परती भूमि - वर्षा की अनियमितता तथा फसल-चक्र के कारण वर्तमान परती भूमि में वृद्धि हुई है 

4.निवल बोया क्षेत्र -कृषि हेतु कृषि योग्य व्यर्थ भूमि के उपयोग के कारण निवल बोए गए क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है 

गिरावट वाले संवर्ग 

1. बंजर व्यर्थ भूमि व कृषि योग्य व्यर्थ भूमि- कृषि तथा गैर कृषि कार्यों हेतु भूमि पर दबाव बढ़ने से बंजर व्यर्थ भूमि एवं कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में कमी आई है 

2. चरागाहों - कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव एवं साझी चरागाहों पर गैर-कानूनी तरीकों से कृषि का विस्तार चरागाह भूमि में कमी दर्ज की गई है 

3. तरु फसलों के अंतर्गत क्षेत्र – जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण तरु फसलों के अंतर्गत क्षेत्र में कमी दर्ज की गई है 

4. परती भूमि - कृषि भूमि पर दबाव बढ़ने के कारण परती भूमि में कमी दर्ज की गई है 

भू-उपयोग संवर्ग में वास्तविक वृद्धि – समय के दो बिन्दुओं के बीच भू-उपयोग संवर्गों के आंकड़ो में अंतर भू-उपयोग संवर्ग में वास्तविक वृद्धि कहलाता है 

भू-उपयोग संवर्ग में वृद्धि दर- समय के दो बिन्दुओं के बीच भू-उपयोग संवर्गों के आंकड़ो का अंतर तथा आधार वर्ष के आँकड़ों का अनुपात भू-उपयोग संवर्ग में वृद्धि दर कहलाती है इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है 

साझा संपत्ति संसाधन 

भूमि को  स्वामित्व के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है 

A. निजी भूसंपत्ति - निजी व्यक्तियों के स्वामित्व वाली भूमि निजी भूसंपत्ति कहलाती है 

B. साझा संपत्ति संसाधन – ग्राम पंचायत व सरकार के स्वामित्व वाली भूमि जिसका उपयोग  सामुदाय करता है साझा संपत्ति संसाधनों को सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन भी कहा जा सकता है, जहाँ समाज के सभी सदस्यों को इसके उपयोग का अधिकार होता है सामुदायिक वन, चरागाहों, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान साझा संपत्ति संसाधन के उदाहरण हैं

साझा संपत्ति संसाधन का महत्व 

1. साझा संपत्ति संसाधन पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग हेतु ईंधन, लकड़ी तथा साथ ही अन्य वन उत्पाद जैसे फल, रेशे, गिरी, औषधीय पौधे आदि उपलब्ध कराती हैं। 

2. ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन छोटे कृषकों तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन-यापन में इन भूमियों का विशेष महत्व है क्योंकि इनमें से अधिकतर भूमिहीन होने के कारण पशुपालन से प्राप्त आजीविका पर निर्भर हैं। 

3. ग्रामीण इलाकों में चारा व ईंधन लकड़ी के एकत्रीकरण की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है अतः महिलाओं के लिए इन भूमियों का विशेष महत्व है 

भारत भू-संसाधनों का महत्व 

1. कृषि उत्पादन में भूमि का महत्वपूर्ण योगदान है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनता प्रत्यक्ष रूप से वहाँ की गरीबी से संबंधित है।

2. भूमि की गुणवत्ता कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है 

3. ग्रामीण क्षेत्रों में भू-स्वामित्व का आर्थिक मूल्य के अतिरिक्त सामाजिक मूल्य भी हैं तथा प्राकृतिक आपदाओं या निजी विपत्ति में एक सुरक्षा की भाँति है एवं समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाता है।

भूमि बचत प्रौद्योगिकी-

पिछले वर्षों में समस्त रिपोर्टिंग क्षेत्र से कृषि भूमि का प्रतिशत कम हुआ है। अतः भारत में निवल बोए गए क्षेत्र में बढ़ोतरी की संभावनाएँ सीमित हैं। अतः भूमि बचत प्रौद्योगिकी विकसित करना अत्यंत आवश्यक है। यह प्रौद्योगिकी दो भागों में बाँटी जा सकती हैं पहली, वह जो प्रति इकाई भूमि में फसल विशेष की उत्पादकता बढ़ाएँ तथा दूसरी, वह प्रौद्योगिकी जो एक कृषि वर्ष में गहन भू-उपयोग से सभी फसलों का उत्पादन बढ़ाएँ। 

भारत में फसल ऋतुएँ

भारत उत्तरी एवं आन्तरिक भागो में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ पाई जाती है 

1. खरीफ – खरीफ की फसल ऋतु जून से सितम्बर तक होती है। खरीफ की फसल दक्षिण-पश्चिमी मानसून के समय बोई जाती हैं सामान्यता उष्ण कटिबंधीय फसलों को खरीफ की फसल के रूप में बोया जाता है जैसे चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा व रहर आदि। 

2. रबी- रबी की फसल ऋतु अक्टूबर से मार्च तक  होती है। रबी की फसल शरद ऋतु में बोई जाती है इस समय तापमान कम होने के कारण  शीतोष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय फसले बोई जाती है  जैसे गेहूँ, चना, तथा सरसों आदि 

3. जायद- जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल-ऋतु है, जो रबी की कटाई के बाद प्रारंभ होता है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्जियाँ व चारे की फसलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है 

कृषि के प्रकार

आर्द्रता के उपलब्ध स्रोत के आधार पर कृषि को दो भागों में विभाजित किया जाता है  

1. सिंचित कृषि 

सिंचित कृषि सिंचाई के उदेश्य के आधार पर दो प्रकार की होती  है

(i) रक्षित सिंचाई कृषि – इस प्रकार की कृषि में आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाने के लिए सिंचाई की जाती है इस प्रकार की सिंचाई का उद्देश्य अधिकतम क्षेत्र को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है। 

(ii) उत्पादक सिंचाई कृषि- इस प्रकार की कृषि में फसलों की उत्पादकता बढाने के लिए सिंचाई की जाती है उत्पादक सिंचाई में रक्षित सिंचाई की अपेक्षा जल की ज्यादा आवश्यकता होती है। इस प्रकार की सिंचाई का उद्देश्य अधिकतम उत्पादन प्राप्त कराना है। 

2. वर्षा निर्भर कृषि - वर्षा निर्भर कृषि उपलब्ध आर्द्रता की  मात्रा के आधार पर दो प्रकार की होती है  

(i) शुष्क भूमि कृषि- शुष्क भूमि कृषि उन प्रदेशों में की जाती है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 सेंटीमीटर से कम है।इन क्षेत्रों में शुष्कता सहन करने वाली फसलें जैसे रागी, बाजरा, मूँग, चना तथा ग्वार चारा आदि उगाई जाती हैं तथा इन क्षेत्रों में आर्द्रता संरक्षण तथा वर्षा जल के प्रयोग के अनेक विधियाँ अपनाई जाती हैं। 

(ii) आर्द्र भूमि कृषि- आर्द्र भूमि कृषि  मुख्यतः उन क्षेत्रों में की जाती है जिनमे वर्षा अधिक (100 से 200 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र) होती है। भारत में इन क्षेत्रों में वे फसलें उगाई जाती हैं जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है, जैसे चावल, जूट, गन्ना आदि 

खाद्यान्न फसल

भारतीय समस्त बोये क्षेत्र के दो-तिहाई भाग पर खाद्यान्न फसलें उगाई जाती हैं। अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को अनाज तथा दालों में वर्गीकृत किया जाता है।

अनाज

भारत में कुल बोये क्षेत्र के लगभग 54 प्रतिशत भाग पर अनाज बोये जाते हैं। भारत विश्व का लगभग 11 प्रतिशत अनाज  उत्पन्न करके अमेरिका व चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत में बोये जाने वाले  अनाजों को दो भागो में बनता जाता है  (i) उत्तम अनाज – चावल व गेहूँ  (ii) मोटे अनाज- ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी 

A. चावल

1. भारत की अधिकतर जनसंख्या का प्रमुख भोजन चावल है। 

2. यह एक उष्ण आर्द्र कटिबंधीय फसल है

3. दक्षिणी राज्यों तथा पश्चिम बंगाल में एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें बोई जाती हैं। परंतु हिमालय तथा देश के उत्तर-पश्चिम भागों में यह दक्षिण-पश्चिम मानसनू ऋतु में खरीफ फसल के रूप में उगाई जाती है।

4. पश्चिम बंगाल में चावल की तीन फसलें लेते हैं जिन्हें औस, अमन तथा बोरो कहा जाता है। 

5. विश्व में 21.9 प्रतिशत चावल उत्पादन के साथ चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है 

6. देश के कुल बोए क्षेत्र के एक-चौथाई भाग पर चावल बोया जाता है। 

7देश के प्रमुख चावल उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश,तमिलनाडु  हैं । 

B. गेहूँ

1.भारत में चावल के पश्चात् गेहूँ दूसरा प्रमुख अनाज है। 

2.यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है।अतः इसे शरद् अर्थात् रबी ऋतु में बोया जाता है।

3.भारत विश्व का 12.8 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन करता है 

4.देश के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। 

5.गेहूँ के प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान हैं। 

C. ज्वार

1. ज्वार कुल बोए क्षेत्र के 5.3  प्रतिशत भाग पर बोया जाता है। 

2. यह दक्षिण व मध्य भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की प्रमुख खाद्य फसल है। 

3. दक्षिण राज्यों में यह खरीफ व रबी दोनों ऋतुओं में बोया जाता है। परंतु उत्तर भारत में यह खरीफ की फसल है 

4. यह मुख्यतः चारा फसल के रूप में उगायी जाती है। 

5. महाराष्ट्र  ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन करता है। अन्य प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना हैं। 

D.बाजरा

1. भारत के पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम भागों में गर्म तथा शुष्क जलवायु में बाजरा बोया जाता है। 

2. यह फसल शुष्क दौर तथा सूखा सहन करने में समर्थ है। 

3. यह एकल तथा मिश्रित फसल के रूप में बोया जाता है। 

4. बाजार देश के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 5.2 प्रतिशत भाग पर बोई जाती है।

5. बाजरा उत्पादक प्रमुख राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा है। 

E. मक्का

1. मक्का एक खाद्य तथा चारा फसल है 

2. यह निम्न कोटि की  मिट्टी व अर्ध शुष्क जलवायवी परिस्थितियों में उगाई जाती है। 

3. यह फसल कुल बाये क्षत्रे के केवल 3.6 % भाग में र्बाइे  जाती है। 

4. यह पूर्वी तथा उत्तर पूर्वी भारत को छोड़कर देश के लगभग सभी हिस्सों में बोई जाती है। 

5. मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान व उत्तर प्रदेश हैं

दालें

प्रचुर मात्र में प्रोटीन के स्रोत होने के कारण दालें शाकाहारी भोजन के प्रमुख संघटक है। ये फलीदार फसलें है जो नाइट्रोजन योगीकरण के द्वारा मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरकता बढ़ाती है देश के कुल बोये क्षेत्र का लगभग 11 प्रतिशत भाग दालों के अधीन है। 

A. चना

1. चना उपोष्ण कटिबंधीय  फसल है। 

2. चना  मुख्यतः वर्षा आधारित फसल है जो देश के मध्य, पश्चिमी तथा उत्तर-पश्चिमी भागों में रबी की ऋतु में बोई जाती है। 

3.देश के कुल बोये क्षेत्र के केवल 2.8 प्रतिशत भाग पर  चने की खेती की जाती है। 

 4.चने के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा राजस्थान है। 

B. अरहर 

1.अरहर को लाल चना तथा पिजन पी. के नाम से भी जाना जाता है। 

2. यह देश के मध्य तथा दक्षिणी राज्यों के शुष्क भागों में वर्षा-आधारित परिस्थितियों तथा सीमांत भूक्षेत्रों पर बोई जाती है। 

3.भारत के कुल बोए गए क्षेत्र के लगभग 2 प्रतिशत भाग पर इसकी खेती की जाती है। 

4.देश में अरहर उत्पादन में  महाराष्ट्र का प्रथम स्थान  है। अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात तथा मध्य प्रदेश हैं। 

तिलहन

खाद्य तेल निकालने के लिए तिलहन की खेती की जाती है।  देश के कुल शस्य क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर तिलहन फसलें बोई जाती है। भारत की प्रमुख तिलहन फसलों में मूंगपफली, तोरिया, सरसों, सोयाबीन तथा सूरजमुखी सम्मिलित है।

मूँगपफली

1. भारत विश्व में 19.5 प्रतिशत मूँगपफली का उत्पादन करता है 

2.यह मुख्यतः शुष्क प्रदेशों की वर्षा-आधारित खरीफ फसल है। परंतु दक्षिण भारत में यह रबी ऋतु में बोई जाती है। 

3.यह देश के कुल शस्य क्षेत्र के 3.6 प्रतिशत क्षेत्र पर फैली है। 

4.गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, इसके अग्रणी उत्पादक राज्य हैं।  

अन्य तिलहन

सोयाबीन तथा सूरजमुखी भारत के अन्य महत्वपूर्ण तिलहन हैं। सोयाबीन अधिकतर मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में बोया जाता है।  सूरजमुखी की फसल का सांद्रण राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा इससे जुड़े हुए महाराष्ट्र के भागों में  है

रेशेदार फसलें

कपास

1. कपास एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जो देश के अर्ध-शुष्क भागों में खरीफ ऋतु में बोई जाती है।

2. भारत, छोटे रेशे वाली व लंबे रेशे वाली (अमेरिकन) दोनों प्रकार की कपास का उत्पादन करता है। 3.अमेरिकन कपास को देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में ‘नरमा’ कहा जाता है। 

4.कपास पर फूल आने के समय आकाश बादलरहित होना चाहिए।

5.भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में चीन के पश्चात दूसरा स्थान है। 

6.देश के समस्त बोए क्षेत्र के लगभग 4.7 प्रतिशत क्षेत्र पर कपास बोया जाता है। 

7. कपास के तीन मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। इसमें उत्तर-पश्चिम भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान, पश्चिम में गुजरात तथा महाराष्ट्र तथा दक्षिण में तेलंगाना, कर्नाटक व तमिलनाडु के पठारी भाग सम्मिलित हैं। 

8. कपास के अग्रणी उत्पादक राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा हैं।

जूट

1. जूट का प्रयोग मोटे वस्त्र, थैला, बोरे व अन्य सजावटी सामान बनाने में किया जाता है।

2. गन्ना  एक व्यापारिक फसल है।

3 .भारत विश्व का लगभग 60 प्रतिशत जूट उत्पादन करता है। 

4 .पश्चिम बंगाल देश में सर्वाधिक जूट उत्पादन करता है। बिहार व आसाम अन्य जूट उत्पादक क्षेत्र हैं।

5 .यह देश के कुल शस्य क्षेत्र के 0.5 प्रतिशत भाग पर ही बोया जाता है।

गन्ना

1.गन्ना एक उष्ण कटिबंधीय फसल है। 

2.ब्राजील के बाद भारत दूसरा बड़ा गन्ना उत्पादक देश था यहाँ विश्व के 19 प्रतिशत गन्ने का उत्पादन होता है। 

3.देश के कुल शस्य क्षेत्र के 2.4 प्रतिशत भाग पर ही इसकी कृषि की जाती है। 

4.उत्तर प्रदेश देश का 40 प्रतिशत गन्ना उत्पादन करता है। इसके अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु आंध्र प्रदेश हैं 

चाय

1.चाय एक रोपण कृषि है जो पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग की जाती है। 

2.काली चाय की पत्तियाँ किण्वित होती हैं जबकि चाय की हरी पत्तियाँ अकिण्वित होती हैं। 

3.चाय की पत्तियों में कैफीन तथा टैनिन की प्रचुरता पाई जाती है। 

4.यह उत्तरी चीन के पहाड़ी क्षेत्रों की देशज फसल है। 

5.यह उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबंधीय जलवायु वाले तरंगित भागों पर अच्छे अपवाह वाली मिट्टी  में बोई जाती है। 

6.भारत में चाय की खेती 1840 में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में प्रारंभ हुई 

7.भारत विश्व का लगभग 21.7 प्रतिशत चाय का उत्पादन करता है। चाय-निर्यातक देशों में भारत का चीन के पश्चात् विश्व में दूसरा स्थान है  

8.देश में असम चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य  है चाय के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु हैं।

कॉफी

1.कॉफी एक उष्ण कटिबंधीय रोपण कृषि है। 

2.इसके बीजों को भूनकर पीसा जाता है तथा एक पेय के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

3. कॉफी की तीन किस्में हैं अरेबिका, रोबस्ता व लिबेरिका हैं। भारत उत्तम किस्म की ‘अरेबिका’ कॉफी का उत्पादन करता है

4.भारत का विश्व में  3.4 प्रतिशत कॉफी उत्पादन के साथ आठवाँ स्थान है 

 5. कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु में पश्चिम घाट की उच्च भूमि पर इसकी कृषि की जाती है।

भारत में कृषि विकास

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का तात्कालिक उद्देश्य खाद्यानों का उत्पादन बढ़ाना था, जिसमें निम्न उपाय अपनाए गए 

1. व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्नों का उगाया जाना। 

2.कृषि गहनता को बढ़ाना,

3. कृषि योग्य बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना। 

प्रारंभ में इस नीति से खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ा, लेकिन बाद में कृषि उत्पादन स्थिर हो गया।

1950 के दशक के अंत तक कृषि उत्पादन स्थिर हो गया। इस समस्या से निजत पाने लिए गहन कृषि जिला कार्यक्रम(IADP) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारंभ किए गए। परंतु 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो अकालों से देश में अन्न संकट उत्पन्न हो गया।  

1960 के दशक के मध्य में मैक्सिको से गेहूँ तथा फलिपींस से चावल के उतम बीज की किस्में कृषि के लिए उपलब्ध हुई। भारत ने सिंचाई  सुविधा वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद के साथ इन उच्च उत्पादकता की किस्मों को अपनाया।  कृषि विकास की इस नीति से खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई जिसे ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी जाती है। कृषि विकास की इस नीति से देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्म-निर्भर हुआ।  प्रारंभ में ‘हरित क्रांति’ देश के सिंचित भागों तक ही सीमित थी फलस्वरूप कृषि विकास में प्रादेशिक असमानता बढ़ी। 

1980 के दशक में भारतीय योजना आयोग ने वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि समस्याओं पर ध्यान दिया। योजना आयोग ने 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन को प्रोत्साहित करने हेतु कृषि जलवायु नियोजन प्रारंभ किया। इसने कृषि, पशुपालन तथा जलकृषि को विकास हेतु संसाधनों के विकास पर भी बल दिया। 1990 के दशक की उदारीकरण नीति तथा उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने भारतीय कृषि विकास को भी प्रभावित किया है।

भारत का किसान पोर्टल

1.किसान पोर्टल किसानों को कृषि से संबंधित सभी प्रकार की  जानकारी प्एराप्कत करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। 

2.किसान पोर्टल पर  किसानों के बीमा, कृषि भंडारण, फसलोंबीजों, कीटनाशकों, कृषि मशीनरी आदि पर विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती है। 

3.किसान पोर्टल पर उर्वरकों, बाज़ार मूल्य, पैकेज और प्रथाओं, कार्यक्रमों, कल्याणकारी योजनाओं के विवरण भी दिए गए हैं। 

4.किसान पोर्टल पर  मिट्टी की उर्वरता, भंडारण, बीमा से संबंध्ति ब्लॉक स्तर का विवरण, प्रशिक्षण आदि एक इंटरेक्टिव मानचित्र में उपलब्ध् हैं। 

5.किसान पोर्टल पर  उपयोगकर्ता फार्म फ्रैंडली  हैंडबुक, योजना दिशा-निर्देश आदि भी डाउनलोड कर सकते हैं।

भारतीय कृषि की समस्याएँ

1.कृषि की मानसून पर निर्भरता

भारतीय कृषि आज भी आवश्यक जल की आपूर्ति हेतु प्रमुख रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है जो मात्रा, समय व स्थान तीनों ही दृष्टि से अपर्याप्त, अनिश्चित एवं अनियमित होती है। भारत में कृषि क्षेत्र का केवल एक-तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष कृषि क्षेत्र में फसलों का उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से वर्षा पर निर्भर है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा एक सामान्य परिघटना है लेकिन यहाँ यदा-कदा बाढ़ भी आ जाती है। अतः सूखा तथा बाढ़ भारतीय कृषि के जुड़वाँ संकट हैं।

2.निम्न उत्पादकता

अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अपेक्षा भारत में फसलो की उत्पादकता कम है। देश के विस्तृत वर्षा निर्भर विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर मोटे अनाज, दालें तथा तिलहन की खेती की जाती है तथा यहाँ इनकी उत्पादकता बहुत कम है। 

3.वित्तीय संसाधनों की बाध्यताएँ तथा ऋणग्रस्तता

आधुनिक कृषि में लागत बहुत आती है। सीमांत और छोटे किसानों की कृषि बचत बहुत कम या न के बराबर है। अतः वे सघन संसाधन दृष्टिकोण से की जाने वाली कृषि में निवेश करने में असमर्थ हैं। इन समस्याओं से उबरने के लिए, बहुत से किसान विविध संस्थाओं तथा महाजनों से ऋण लेते हैं। कृषि से कम होती आय तथा फसलों के खराब होने से वे कर्ज के जाल में फँसते जा रहे हैं।

4.भूमि सुधारों की कमी

भारत में भूमि के असमान वितरण है अंग्रेजी शासन के दौरान, तीन भूराजस्व प्रणालियों महालवाड़ी, रैयतवाड़ी तथा जमींदारी में से जमींदारी प्रथा किसानों के लिए सबसे अधिक शोषणकारी रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, भूमि सुधारों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन ये सुधार कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण पूर्णतः फलीभूत नहीं हुए। अधिकतर राज्य सरकारों ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली जमींदारों के खिलाफ कठोर राजनीतिक निर्णय लेने में टालमटोल किया। भूमि सुधारों के लागू न होने के परिणामस्वरूप कृषि योग्य भूमि का असमान वितरण जारी रहा जिससे कृषि विकास में बाधा रही है। 

5.छोटे खेत तथा विखंडित जोत 

भारत में सीमांत तथा छोटे किसानों की संख्या अधिक है। बढ़ती जनसंख्या के कारण इन जोतों का औसत आकार और भी सिकुड़ रहा है। इसके अतिरिक्त भारत में अधिकतर भूजोत बिखरे हुए हैं। कुछ राज्यों में तो एक बार भी चकबंदी नहीं हुई है। वे राज्य जहाँ एक बार चकबंदी हो चुकी है, वहाँ पुनःचकबंदी की आवश्यकता है क्योंकि अगली पीढ़ी में भूमि बँटवारे की प्रक्रिया से भूजोतों का दोबारा विखंडन हो गया है। विखंडित व छोटे भूजोत आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं।

6.वाणिज्यीकरण का अभाव

भारतीय किसान अधिकतर अपनी जरूरत या स्वयं उपभोग हेतु फसलें उगाते हैं। इन किसानों के पास अपनी जरूरत से अधिक उत्पादन के लिए पर्याप्त भू-संसाधन नहीं हैं। अधिकतर उपांत तथा छोटे किसान खाद्यान्नों की कृषि करते हैं, जो उनकी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करती है। अतः भारत में कृषि का वाणिज्यीकरण नहीं हुआ है 

7.व्यापक अल्प रोजगारी

भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अल्प रोजगारी पाई जाती है। इन क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी है जो 4 से 8 महीने तक रहती है। फसल ऋतु में भी वर्ष-भर रोजगार उपलब्ध नहीं होता, क्योंकि कृषि कार्य लगातार गहन श्रम वाले नहीं है। अतः कृषि में कार्यरत लोगों को वर्ष-भर कार्य करने के अवसर प्राप्त नहीं होते।

          5.भूसंसाधन तथा कृषि                 pdf 
  1. निम्नलिखित में से कौनसी  रबी की फसल है?
    [अ] गेहूँ
    [ब] कपास
    [स] बाजरा
    [द] मक्का                      [अ]
  2. भारत में गेहूँ उत्पादन में अग्रणी राज्य कौन है ?
    [अ] मध्य प्रदेश
    [ब] पंजाब
    [स] हरियाणा
    [द] उत्तर प्रदेश                   [द]
  3. भारत विश्व का कितना प्रतिशत चावल उत्पादन करता है ?
    [अ] 21.9
    [ब]43%
    [स] 33%
    [द] 50%                          [अ]
  4. कृषि गहनता का सूत्र क्या  है ?
    [अ]निवल बोया गया क्षेत्र/सकल बोया गया क्षेत्र×100
    [ब]सकल बोया गया क्षेत्र/निवल बोया गया क्षेत्र
    [स] सकल बोया गया क्षेत्र/ निवल बोया गया क्षेत्र×100
    [द] कोई नहीं                      [स]
  5. 1960 के दशक के मध्य में भारत को कृषि के लिए गेहूँ व चावल के उतम बीज की किस्में किन देशों से उपलब्ध हुई।
    [अ] जापान तथा आस्ट्रेलिया
    [ब] संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान
    [स] मैक्सिको तथा फलिपींस 
    [द] मैक्सिको तथा सिंगापुर     [स]
  6. निम्नलिखित में से कौन सा उपयोग भू-उपयोग संवर्ग नहीं है -
    [अ] परती भूमि 
    (ब) सीमांत भूमि
    (स) निबल बोया क्षेत्र 
    (द) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि        [ब]
  7. निम्न में से कौन-सा सिंचित क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण का मुख्य प्रकार है?
    [क] अवनालिका अपरदन
    [ख] वायु अपरदन
    [ग] मृदा लवणता
    [घ] भूमि पर सिल्ट का जमाव [स]
  8. शुष्क कृषि में निम्न में से कौन-सी फसल नहीं बोई जाती?
    [अ] रागी
    [ब] ज्वार
    [स] मुंगफली
    [द] गन्ना                            [द]
  9. निम्न में से कौन सबसे महत्त्वपूर्ण जूट उत्पादक क्षेत्र है ?
    [अ] कृष्णा डेल्टा
    [ब] गंगा डेल्टा
    [स] नर्मदा डेल्टा
    [द] कावेरी डेल्टा                  [ब]
  10. भारत में सबसे बड़ा चावल त्पादक राज्य  है ?
    [अ] पश्चिम बंगाल
    [ब] उत्तरप्रदेश
    [स] गुजरात
    [द] उत्तराखंड                      [अ]
  11. निम्नलिखित में से कौन बागानी फसल नहीं है -
    [अ] रबड़ 
    [ब] चाय
    [स] काफी 
    [द] मक्का                          [द]
  12. हरित-क्रांति किससे संबंधित है
    [अ] खाद्यान्न उत्पादन से
    [ब] चाय उत्पादन से
    [स] दूध उत्पादन से
    [द] इनमें से कोई नहीं            [अ]
  13. निम्नलिखित में कौन भारतीय कृषि की समस्या है?
    [अ] निम्न उत्पादकता
    [ब] विखंडित जोत
    [स] अनियमित मानसून
    [द] इनमें से सभी                  [द]
  14. निम्नलिखित में से कौन पेय फसल है ?
    [अ] चाय
    [ब] कॉफी
    [स] दोनों [ अ ] और [ ब ]
    [द] इनमें कोई नहीं               [स]
  15. खरीफ फसल की कृषि ऋतु क्या है ?
    [अ] अक्टूबर से मार्च
    [ब ] अप्रैल से जून
    [स] सितंबर से जनवरी
    [द] जून से सितंबर                 [द]
  16. निम्नलिखित में कौन रेशेदार फसल है?
    [अ] कॉफी
    [ब] चाय
    [स] गेहूँ
    [द] कपास                           [द]
  17. भारत में कपास का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य है?
    [अ] गुजरात 
    [ब] महाराष्ट्र
    [स] उत्तर प्रदेश
    [द] कर्नाटक                        [अ]
  18. भारत में भू-उपयोग संबंधी अभिलेख कौन रखता है। 
    [अ] भू-राजस्व विभाग
    [ब] भारतीय सर्वेक्षण विभाग 
    [स] अ और ब दोनों
    [द] इनमें से कोई नहीं           [अ]
  19. रबी की फसल किस ऋतू पैदा होती है
    [अ] शीत ऋतु में
    [ब] वर्षा ऋतु में
    [स] ग्रीष्म ऋतु में
    [द] सभी ऋतु में                   [अ]
  20. भारत विश्व का कितना % अनाज उत्पादन करता है ?
    [अ]18%
    [ब]33%
    [स] 11% 
    [द]54%                            [स]
  21. कपास किस प्रकार की  फसल है ?
    [अ] शीतोष्ण कटिबद्ध
    [ब] उपोष्ण शीतोष्ण
    [स] उष्ण कटिबंधीय 
    [द] इनमे से कोई नहीं              [स]
  22. निम्नलिखित में से भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व किस पर है?
    [अ] भू-राजस्व विभाग
    [ब] भारतीय सर्वेक्षण विभाग 
    [स] अ और ब दोनों
    [द] इनमें से कोई नहीं           [ब]
  23. पिछले 40 वर्षों में वनों का अनुपात बढ़ने का निम्न में से कौन-सा कारण है?
    [अ] वनीकरण के विस्तृत व सक्षम प्रयास
    [ब] सामुदायिक वनों के अधीन क्षेत्र में वृद्धि
    [स] वन बढ़ोतरी हेतु निर्धारित अधिसूचित क्षेत्र में वृद्धि
    [द] वन क्षेत्र प्रबंधन में लोगों की बेहतर भागीदारी     [ग]
  24. निम्नलिखित में से चावल की प्रति हेक्टेयर सबसे ज़्यादा पैदावार करने वाले राज्यों का सही अवरोही क्रम है-
    [अ] पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश
    [ब] पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल
    [स] बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरल
    [द] महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड     [ब]
  25. विश्व में गन्ना उत्पादन में भारत का कौनसा स्थान है 
    [अ] पहला
    [ब] दूसरा
    [स] तीसरा
    [द] चौथा                              [ब]


  1. भारत में सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य कोनसा है ?
    पश्चिम बंगाल 
  2. भारत में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?
    उत्तर प्रदेश
  3. भू-उपयोग सम्बन्धी अभिलेख कौनसा विभाग रखता है ?
    भूराजस्व विभाग
  4. भारत के किस राज्य में गेंहू का सर्वाधिक उत्पादन होता है ?
    उत्तर प्रदेश 
  5. भारत में ज्वार का उत्पादन किस राज्य में सर्वाधिक होता है ?
    महाराष्ट्र 
  6. अर्थव्यवस्था का आकार से क्या अभिप्राय है ?
     उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को अर्थव्यवस्था का आकार कहा जाता है 
  7. भारतीय कृषि के जुड़वां संकट क्या है ?
    सुखा व बाढ़
  8. भारत में कॉफ़ी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?
    कर्नाटक
  9. किस दाल  को लाल चना तथा पिजन पी. के नाम से भी जाना जाता है ?
    अरहर को 
  10. भारत में चाय की खेती सबसे पहले कब और कहां शुरू की गई?
    भारत में चाय की खेती 1840 ई में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में शुरू की गई।
  11. निवाल बोया गया क्षेत्र क्या है ?
    वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं वह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।
  12. भारत में कितनी फसल ऋतुएं पाई जाती है नाम लिखिए 
    भारत में तीन  फसल ऋतुएं पाई जाती है 1. खरीफ 2. रबी 3. जायद 
  13. अंग्रेजी शासन के दौरान भारत कौन सी भूराजस्व प्रणालियां थी 
    महालवाड़ी, रैयतवाड़ी तथा जमींदारी , जमींदारी प्रथा 
  14. अमन, ओस व बोरो क्या है ?
    पश्चिम बंगाल में एक ही वर्ष में चावल की तीन फसलें बोई जाती है जिन्हें अमन, ओस व बोरो कहते है
  15. नरमा क्या है ?
    लम्बे रेशे वाली  अमेरिकन कपास को भारत  के उत्तर-पश्चिमी भाग में ‘नरमा’ कहा जाता है।
  16. भारत विश्व में अनाज के उत्पादन में कौन से दो देशों के बाद तीसरे स्थान पर है?
    भारत विश्व का लगभग 11 प्रतिशत अनाज उत्पन्न करके संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।
  17. कौन से देश में गेहूं व चावल की अधिक उत्पादकता की किस्में विकसित की गई थीं?
    गेहूँ [मैक्सिको]
    चावल [फिलीपींस]
  18. वर्षा निर्भर कृषि को कितने भागों में बनता गया है ?
    वर्षा  निर्भर कृषि को दो भागों में बांटा गया है 
    1. शुष्क भूमि कृषि 2. आर्द्र भूमि कृषि
  19. कॉफी की तीन किस्मो के नाम लिखिए भारत में कोफ़ी की कौनसी किस्म का उत्पादन होता है 
     कॉफी की तीन किस्में है अरेबिकारोबस्ता व लिबेरिका हैं। भारत उत्तम किस्म की ‘अरेबिका’ कॉफी का उत्पादन करता है
  20. भारत जैसे देश में गहन कृषि निति अपनाने की आवश्यकता  क्यों है
    भारत में निवल बोए गए क्षेत्र में बढ़ोतरी की संभावनाएँ सीमित हैं।क्योंकि भारत जैसे देश में भूमि की कमी और श्रम की अधिकता है  अत: भारत जैसे देश में गहन कृषि निति अपनाकर सभी फसलों का उत्पादन बढाया जा सकता है
  21. शस्य/कृषि गहनता किसे  कहते है  भारत में कृषि गहनता का सूत्र लिखिए 
    एक ही क्षेत्र में  एक कृषि वर्ष में उगाई गई फसलों की संख्या शस्य गहनता  कहलाती है 
    कृषि गहनता = सकल बोया गया क्षेत्र    X  100
                         निवाल बोया गया क्षेत्र
  22. निवल बोये गए क्षेत्र व सकल बोये गए क्षेत्र में अंतर लिखिए 
    वह भूमि जिस पर एक कृषि वर्ष में  सिर्फ एक बार फसल काटी एवं उगाई जाती है निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है जबकि  एक कृषि वर्ष में विभिन्न फसलों के अन्तर्गत बोया गया कुल क्षेत्र सकल बोया गया क्षेत्र कहलाता है 
  23. चाय के उत्पादन में भारत अग्रणी राज्य कौन-कौन से है चाय के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाएं क्या है 
    देश में असम चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य  है चाय के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु हैं।चाय उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबंधीय जलवायु वाले तरंगित भागों पर अच्छे अपवाह वाली मिट्टी  में बोई जाती है। 
  24. वर्तमान परती भूमि व पुरातन परती भूमि में तुलना कीजिए
    वर्तमान परती भूमि वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय तक कृषिरहित रहती है, जबकि
    पुरातन परती भूमि वह भूमि जो एक वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्षों से कम समय तक कृषिरहित रहती है। 
  25. शुष्क कृषि व आर्द्र कृषि में अंतर लिखिए 
    1. शुष्क भूमि कृषि 50 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में  की जाती  है जबकि आर्द्र भूमि कृषि पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों (100 से 200 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र) में की जाती है
     2.शुष्क भूमि कृषि में शुष्कता सहन करने वाली फसलें बोयी जाती है जबकि आर्द्र भूमि कृषि  में जल की अधिक आवश्यकता वाली फसले बोयी जाती है
  26. बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करें।
    बंजर भूमि को प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती, जैसे-मरुस्थल, बंजर पहाडी भू-भाग, व खड्ड  आदि।जबकि कृषि योग्य व्यर्थ भूमि  को नवीन तकनीक द्वारा इस भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है। यह वह भूमि है जो पिछले पाँच या उससे ज्यादा वर्षों तक कृषिरहित रही हैं।
  27. फसलों के लिए आर्द्रता के प्रमुख स्त्रोत के आधार पर भारतीय कृषि को दो समूहों में वर्गीकृत कीजिए। प्रत्येक की दो-दो विशेषताएं  लिखिए?
    आर्द्रता के उपलब्ध स्रोत के आधार पर कृषि को दो भागों में विभाजित किया जाता है  
    (1) सिंचित कृषि  (2) वर्षा निर्भर कृषि
    (1) सिंचित कृषि - 
    1. वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है।
    2. सिंचाई के उदेश्य के आधार पर दो प्रकार की होती  है, रक्षित सिंचाई कृषि व उत्पादक सिंचाई कृषि 
    (2) वर्षा निर्भर कृषि- 
    1. वर्षा निर्भर कृषि पूर्णतया वर्षा पर निर्भर होती है।
    2. उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार पर इसे शुष्क भूमि कृषि व आर्द्र कृषि में बांटते हैं।
  28. भारत में चावल की फसल की विवेचना कीजिए 
    1.भारत की अधिकतर जनसंख्या का प्रमुख भोजन चावल है। 
    2.यह एक उष्ण आर्द्र कटिबंधीय फसल है
    3. दक्षिणी राज्यों तथा पश्चिम बंगाल में एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें बोई जाती हैं। परंतु हिमालय तथा देश के उत्तर-पश्चिम भागों में यह दक्षिण-पश्चिम मानसनू ऋतु में खरीफ फसल के रूप में उगाई जाती है।
    4. पश्चिम बंगाल में चावल की तीन फसलें लेते हैं जिन्हें औसअमन तथा बोरो कहा जाता है। 
    5.विश्व में 21.9 प्रतिशत चावल उत्पादन के साथ चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है 
    6. देश के कुल बोए क्षेत्र के एक-चौथाई भाग पर चावल बोया जाता है। 
    7. देश के प्रमुख चावल उत्पादक राज्य पश्चिम बंगालउत्तर प्रदेशपंजाबआन्ध्र प्रदेश,तमिलनाडु  हैं ।
  29. साझा संपति संशाधन किसे कहते है इनका महत्व लिखिए 
    ग्राम पंचायत व सरकार के स्वामित्व वाली भूमि जिसका उपयोग  सामुदाय करता है साझा संपत्ति संसाधनों को सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन भी कहा जा सकता है, जहाँ समाज के सभी सदस्यों को इसके उपयोग का अधिकार होता है सामुदायिक वन, चरागाहों, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान साझा संपत्ति संसाधन के उदाहरण हैं
    साझा संपत्ति संसाधन का महत्व 
    1. साझा संपत्ति संसाधन पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग हेतु ईंधन, लकड़ी तथा साथ ही अन्य वन उत्पाद जैसे फल, रेशे, गिरी, औषधीय पौधे आदि उपलब्ध कराती हैं। 
    2. ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन छोटे कृषकों तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन-यापन में इन भूमियों का विशेष महत्व है क्योंकि इनमें से अधिकतर भूमिहीन होने के कारण पशुपालन से प्राप्त आजीविका पर निर्भर हैं। 
    3. ग्रामीण इलाकों में चारा व ईंधन लकड़ी के एकत्रीकरण की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है अतः महिलाओं के लिए इन भूमियों का विशेष महत्व है
  30. भारत में कृषि ऋतुओं का वर्णन कीजिए ?
    भारत उत्तरी एवं आन्तरिक भागो में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ पाई जाती है 
    1. खरीफ – खरीफ की फसल ऋतु जून से सितम्बर तक होती है। खरीफ की फसल दक्षिण-पश्चिमी मानसून के समय बोई जाती हैं सामान्यता उष्ण कटिबंधीय फसलों को खरीफ की फसल के रूप में बोया जाता है जैसे चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा व रहर आदि। 
    2. रबी- रबी की फसल ऋतु अक्टूबर से मार्च तक  होती है। रबी की फसल शरद ऋतु में बोई जाती है इस समय तापमान कम होने के कारण  शीतोष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय फसले बोई जाती है  जैसे गेहूँ, चना, तथा सरसों आदि 
    3. जायद- जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल-ऋतु है, जो रबी की कटाई के बाद प्रारंभ होता है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्शियाँ व चारे की फसलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है 
  31. भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि विकास की महत्वपूर्ण नीतियों का वर्णन कीजिए 
    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का तात्कालिक उद्देश्य खाद्यानों का उत्पादन बढ़ाना था, जिसमें निम्न उपाय अपनाए गए 
    1. व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्नों का उगाया जाना। 
    2.कृषि गहनता को बढ़ाना,
    3. कृषि योग्य बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना। 
    प्रारंभ में इस नीति से खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ा, लेकिन बाद में कृषि उत्पादन स्थिर हो गया।
    1950 के दशक के अंत तक कृषि उत्पादन स्थिर हो गया। इस समस्या से निजत पाने लिए गहन कृषि जिला कार्यक्रम(IADP) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारंभ किए गए। परंतु 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो अकालों से देश में अन्न संकट उत्पन्न हो गया।  
    1960 के दशक के मध्य में मैक्सिको से गेहूँ तथा फलिपींस से चावल के उतम बीज की किस्में कृषि के लिए उपलब्ध हुई। भारत ने सिंचाई  सुविधा वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद के साथ इन उच्च उत्पादकता की किस्मों को अपनाया।  कृषि विकास की इस नीति से खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई जिसे ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी जाती है। प्रारंभ में ‘हरित क्रांति’ देश के सिंचित भागों तक ही सीमित थी फलस्वरूप कृषि विकास में प्रादेशिक असमानता बढ़ी। 
    1980 के दशक में भारतीय योजना आयोग ने वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि समस्याओं पर ध्यान दिया। योजना आयोग ने 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन को प्रोत्साहित करने हेतु कृषि जलवायु नियोजन प्रारंभ किया। इसने कृषि, पशुपालन तथा जलकृषि को विकास हेतु संसाधनों के विकास पर भी बल दिया। 
    1990 के दशक की उदारीकरण नीति तथा उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने भारतीय कृषि विकास को भी प्रभावित किया है।
  32. भारत में भू-उपयोग परिवर्तन पर लेख लिखिए ।
    वर्ष 1950-51 तथा 2014-15 के आंकड़ो को देखने से पता चलता है कि इस अवधि में  चार संवर्गों में वृद्धि  व चार संवर्गों के अनुपात में कमी दर्ज की गई है ।
    वृद्धि वाले संवर्ग 
    1.वन क्षेत्र- वन क्षेत्र में वृद्धि सीमांकन के कारण हुई है 
    2.गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि- इस संवर्ग में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई इस संवर्ग में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास निर्माण में प्रयुक्त भूमि के कारण हुई है  
    3.वर्तमान परती भूमि - वर्षा की अनियमितता तथा फसल-चक्र के कारण वर्तमान परती भूमि में वृद्धि हुई है 
    4.निवल बोया क्षेत्र -कृषि हेतु कृषि योग्य व्यर्थ भूमि के उपयोग के कारण निवल बोए गए क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है 
    गिरावट वाले संवर्ग 
    1.बंजर व्यर्थ भूमि व कृषि योग्य व्यर्थ भूमि- कृषि तथा गैर कृषि कार्यों हेतु भूमि पर दबाव बढ़ने से बंजर व्यर्थ भूमि एवं कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में कमी आई है 
    2.चरागाहों - कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव एवं साझी चरागाहों पर गैर-कानूनी तरीकों से कृषि का विस्तार चरागाह भूमि में कमी दर्ज की गई है 
    3.तरु फसलों के अंतर्गत क्षेत्र – जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण तरु फसलों के अंतर्गत क्षेत्र में कमी दर्ज की गई है 
    4.परती भूमि - कृषि भूमि पर दबाव बढ़ने के कारण परती भूमि में कमी दर्ज की गई है 
  33. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए
    1.कृषि की मानसून पर निर्भरता - भारतीय कृषि आज भी आवश्यक जल की आपूर्ति हेतु प्रमुख रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है जो मात्रासमय व स्थान तीनों ही दृष्टि से अपर्याप्तअनिश्चित एवं अनियमित होती है। भारत में कृषि क्षेत्र का केवल एक-तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष कृषि क्षेत्र में फसलों का उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से वर्षा पर निर्भर है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा एक सामान्य परिघटना है लेकिन यहाँ यदा-कदा बाढ़ भी आ जाती है। अतः सूखा तथा बाढ़ भारतीय कृषि के जुड़वाँ संकट हैं।
    2.निम्न उत्पादकता - अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अपेक्षा भारत में फसलो की उत्पादकता कम है। देश के विस्तृत वर्षा निर्भर विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर मोटे अनाजदालें तथा तिलहन की खेती की जाती है तथा यहाँ इनकी उत्पादकता बहुत कम है। 
    3.वित्तीय संसाधनों की बाध्यताएँ तथा ऋणग्रस्तता -आधुनिक कृषि में लागत बहुत आती है। सीमांत और छोटे किसानों की कृषि बचत बहुत कम या न के बराबर है। अतः वे सघन संसाधन दृष्टिकोण से की जाने वाली कृषि में निवेश करने में असमर्थ हैं। इन समस्याओं से उबरने के लिएबहुत से किसान विविध संस्थाओं तथा महाजनों से ऋण लेते हैं। कृषि से कम होती आय तथा फसलों के खराब होने से वे कर्ज के जाल में फँसते जा रहे हैं।
    4.भूमि सुधारों की कमी - भारत में भूमि के असमान वितरण है अंग्रेजी शासन के दौरानतीन भूराजस्व प्रणालियों महालवाड़ीरैयतवाड़ी तथा जमींदारी में से जमींदारी प्रथा किसानों के लिए सबसे अधिक शोषणकारी रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्भूमि सुधारों को प्राथमिकता दी गईलेकिन ये सुधार कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण पूर्णतः फलीभूत नहीं हुए। अधिकतर राज्य सरकारों ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली जमींदारों के खिलाफ कठोर राजनीतिक निर्णय लेने में टालमटोल किया। भूमि सुधारों के लागू न होने के परिणामस्वरूप कृषि योग्य भूमि का असमान वितरण जारी रहा जिससे कृषि विकास में बाधा रही है। 
    5.छोटे खेत तथा विखंडित जोत - भारत में सीमांत तथा छोटे किसानों की संख्या अधिक है। बढ़ती जनसंख्या के कारण इन जोतों का औसत आकार और भी सिकुड़ रहा है। इसके अतिरिक्त भारत में अधिकतर भूजोत बिखरे हुए हैं। कुछ राज्यों में तो एक बार भी चकबंदी नहीं हुई है। वे राज्य जहाँ एक बार चकबंदी हो चुकी हैवहाँ पुनःचकबंदी की आवश्यकता है क्योंकि अगली पीढ़ी में भूमि बँटवारे की प्रक्रिया से भूजोतों का दोबारा विखंडन हो गया है। विखंडित व छोटे भूजोत आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं।
    6.वाणिज्यीकरण का अभाव - भारतीय किसान अधिकतर अपनी जरूरत या स्वयं उपभोग हेतु फसलें उगाते हैं। इन किसानों के पास अपनी जरूरत से अधिक उत्पादन के लिए पर्याप्त भू-संसाधन नहीं हैं। अधिकतर उपांत तथा छोटे किसान खाद्यान्नों की कृषि करते हैंजो उनकी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करती है। अतः भारत में कृषि का वाणिज्यीकरण नहीं हुआ है 
    7.व्यापक अल्प रोजगारी -भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अल्प रोजगारी पाई जाती है। इन क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी है जो से महीने तक रहती है। फसल ऋतु में भी वर्ष-भर रोजगार उपलब्ध नहीं होताक्योंकि कृषि कार्य लगातार गहन श्रम वाले नहीं है। अतः कृषि में कार्यरत लोगों को वर्ष-भर कार्य करने के अवसर प्राप्त नहीं होते है
 
          5.भूसंसाधन तथा कृषि  प्रश्न उत्तर    pdf 

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