पृथ्वी की गोलाभ आकृति के कारण सूर्य की किरणें धरातल पर सर्वत्र समान कोण पर नहीं पड़ती हैं। सूर्य की किरणें धरातल पर तिरछी पड़ने के कारण पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही प्राप्त कर पाती है। पृथ्वी औसत रूप से वायुमंडल की ऊपरी सतह पर 1.94 केलोरी/प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है।
अपसौर - पृथ्वी की कक्षा में वह स्थिति जब पृथ्वी और सूर्य के बीच सर्वाधिक दूरी होती है उसे अपसौर की स्थिति कहते है। यह स्थिति 4 जुलाई को बनती है और इस स्थिति में पृथ्वी व सूर्य के मध्य की दूरी 15.2 करोड़ किलोमीटर होती है
उपसौर -पृथ्वी की कक्षा में वह स्थान जहाँ सूर्य तथा पृथ्वी के बीच सबसे कम दूरी होती है उसे उपसौर की स्थिति कहते है। उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को बनती है। उपसैेर के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच 14.7 करोड़ किलोमीटर की दूरी होती है।
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक
1.सूर्य की किरणों का आपतन कोण- पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें इसके तल के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग कोण बनाती है। पृथ्वी के किसी बिन्दु पर सूर्य की किरण और पृथ्वी के वृत्त की स्पर्श रेखा के बीच बनने वाले कोण को आपतन-कोण कहते हैं। सौर विकिरण का आपतन कोण किसी स्थान के अक्षांश पर निर्भर करता है। अक्षांश जितना उच्च होगा किरणों का आपतन कोण उतना ही कम होगा। आपतन कोण सूर्याताप को दो प्रकार से प्रभावित करता है। प्रथम जब सूर्य की स्थिति ठीक सिर के ऊपर होती है, उस समय सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। और आपतन कोण बड़ा होने के कारण सूर्य की किरणें छोटे से क्षेत्र पर पङती हैं, जिससे वहाँ अधिक ऊष्मा (सूर्यातप) प्राप्त होती है। इसके विपरीत यदि सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं तो आपतन कोण छोटा होता है। इससे सूर्य की किरणें बड़े क्षेत्रा पर फैल जाती हैं और उनसे वहाँ कम ऊष्मा (सूर्यातप) प्राप्त होती है। दूसरा दूसरे, तिरछी किरणों को सीधी किरणों (लम्बवत्-किरणों) की अपेक्षा वायुमंडल में अधिक दूरी पार करके धरातल पर आना पड़ता है। सूर्य की किरणें जितना अधिक लम्बा मार्ग पार करेंगी उतनी ही अधिक उनकी ऊष्मा वायुमंडल द्वारा सोख ली जाएगी या परावर्तित कर दी जायेगी। इसी कारण एक स्थान पर तिरछी किरणों से लम्बवत् किरणों की अपेक्षा कम सूर्यातप प्राप्त होता है। आपतन कोण उच्च अक्षांशों अर्थात् ध्रुवों पर कम होता है तथा निम्न अक्षांशों अर्थात् भूमध्य रेखा पर अधिक होता है। यही कारण है कि भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों पर तापमान कम होता जाता है। ध्रुवों पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने से वह अधिक क्षेत्र पर फैलती हैं अतः इन किरणों से कम ताप की प्राप्ति होती है जबकि भूमध्यरेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। अतः ये किरणें अधिक तापमान प्रदान करती है।
2.दिन की अवधि: दिन की अवधि स्थान-स्थान और ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। पृथ्वी की सतह पर मिलने वाली सूर्यातप की मात्रा का दिन की अवधि से सीधा संबंध है। दिन की अवधि जितनी लम्बी होगी सूर्यातप की मात्रा उतनी ही अधिक मिलेगी। इसके विपरीत दिन की अवधि छोटी होने पर सूर्यातप कम मिलेगा।
3. वायुमंडल की पारदर्शकता: पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणें वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। वायुमंडल की पारदर्शिता मेघों की उपस्थिति एवं उनकी मोटाई, जल-वाष्प, धूल-कणों आदि पर निर्भर करती है। इनके द्वारा सौर विकिरणों का परावर्तन, अवशोषण अथवा प्रकीर्णन होता है। 4. घने बादल
सूर्यातप को धरातल पर पहुँचने में बाधा डालते हैं; जबकि बादलों रहित साफ आकाश धरातल पर सूर्यातप पहुँचने में बाधा नहीं डालता। इस कारण साफ आकाश की अपेक्षा बादलों से घिरे आकाश के समय सूर्यातप कम मिलता है। जलवाष्प सौर विकिरण को अवशोषित कर लेते हैं, परिणामस्वरूप धरातल तक सौर विकिरण की थोड़ी मात्रा ही पहुँच पाती है।
5. धरातलीय विषमता- सामान्य रूप से किसी स्थान के तापमान पर धरातल के ढाल तथा उसकी प्रकृति का प्रभाव पड़ता है। हिमाच्छादित प्रदेशों में सूर्यातप के परावर्तन के कारण तापमान कम हो जाता है। मरुस्थलीय भागों में बलुई मिट्टी के द्वारा ताप का अधिक अवशोषण करने के फलस्वरूप तापमान में एकाएक वृद्धि हो जाती है। पर्वतीय भागों के जो ढाल सूर्य की किरणों के सामने पड़ते हैं, वे अधिक सूर्यातप ग्रहण कर लेते हैं।
सूर्यातप का पृथ्वी की सतह पर स्थानिक वितरण-
सामान्य रूप से तापक्रम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर कम होता जाता है । प्रायः भूमध्य रेखा के निकट के भाग बादलों से आच्छादित रहते है। बादलों से घिरे रहने से यहाँ पर सौर विकिरण की उष्मा का बहुत सा भाग बादलो तथा जलवाष्प द्वारा अवशोषित हो जाता है।जिस कारण भूमध्य रेखा पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। जबकि कर्क तथा मकर रेखाओं पर प्रायः आकाश बादलों से आच्छादन कम होता है, इसलिए कर्क तथामकर रेखाओं पर उच्च तापमान क्रमशः जून तथा दिसम्बर माह रहता है । इनके बाद के अक्षांशों पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती जाती है और तापमान में कमी आती जाती है । सामान्यतः एक ही अक्षांश पर स्थित महाद्वीपीय भाग पर अधिक और महासागरीय भाग में अपेक्षतया कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है।
वायुमंडल का तापन एवं शीतलन
वायुमंडल के गर्म और ठंडा होने के अनेक तरीके हैं।सामान्यता निम्नांकित तरीकों वायुमण्डल गर्म व ठण्डी होती है
विकिरण : जब किसी ताप-स्रोत से ताप, तरंगों द्वारा किसी वस्तु तक सीधे पहुँचता है तो इस प्रक्रिया को विकिरण कहते हैं। पृथ्वी को मिलने वाली और इससे छोड़ी जाने वाली अधिकांश ताप ऊर्जा विकिरण द्वारा ही स्थानांतरित होती हैं। कोई भी वस्तु चाहे गर्म हो या ठंडी नियमित रूप से विकिरण का उत्सर्जन करती है। एक वस्तु जितनी गर्म होगी वह उतनी ही अधिक ऊर्जा का विकिरण करेगी और उसका तरंगदैर्घ्य उतना ही लघु होगा। अतः सूर्यातप पृथ्वी की सतह पर लघु तरंगों के रूप में पहुँचता है दूसरी तरफ, पृथ्वी की अपेक्षाकृत ठंडी सतह होने के कारण वायुमंडल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा विकिरित करती है, जिसे पार्थिव विकिरण कहा जाता है। वायुमंडल लघु तरंगों के लिये पारगम्य है और दीर्घ तरंगों के लिये अपारगम्य। इस कारण वायुमंडल सूर्यातप की अपेक्षा पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा या पार्थिव विकिरण से अधिक गर्म होता है
चालन
जब असमान तापमान की दो वस्तुएं एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो अधिक गर्म वस्तु से कम गर्म वस्तु की ओर ऊर्जा प्रवाह होता है इस प्रक्रिया को चालन कहते हैं। ऊर्जा का स्थानांतरण तब तक होता रहता है जब तक दोनों पिंडों का तापमान एक समान नहीं हो जाता अथवा उनमें संपर्क टूट नहीं जाता। वायुमंडल में चालन प्रक्रिया उस क्षेत्रा में काम करती है, जहाँ वायुमंडल पृथ्वी की सतह के संपर्क में आता है। पृथ्वी के संपर्क में आने वाली वायु धीरे-धीरे गर्म होती है। निचली परतों के संपर्क में आने वाली वायुमंडल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती है वायुमंडल की निचली परतों को गर्म करने में चालन महत्त्वपूर्ण है।
संवहन: पृथ्वी के संपर्क में आने वाली वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत् ऊपर उठती है और वायुमंडल में ताप का संचरण करती है। वायुमंडल के लंबवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा को स्वयं अणुओं की गति द्वारा स्थानांतरित किया जाता है। वायुमडल की निचली परतें चालन द्वारा गर्म हो जाती है। और सतह की वायु गर्म होकर फैलना प्रारंभ करती है, जिससे इसका घनत्व कम हो जाता है घनत्व कम होने से वायु हल्की हो जाती है और ऊपर की ओर उठने लगती है। गर्म वायु के लगातार ऊपर उठने के कारण वायुमंडल की निचली परतों में खाली जगह हो जाती है। इस खाली जगह को भरने के लिए ऊपर से ठंडी वायु नीचे उतरती है और इस प्रकार संवहनीय धारायें बन जाती है। संवहन धाराओं में ताप का स्थानांतरण नीचे से ऊपर की ओर होता है ऊर्जा स्थानांतरण की यह प्रक्रिया केवल क्षोभमंडल तक ही सीमित है।
अभिवहन- वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला तापीय स्थानांतरण अभिवहन कहलाता है। वायु अपने उत्पत्ति स्थल की विशेषताओं को अपने साथ लेकर चलती है। गर्म स्थानों से उत्पन्न होकर चलने वाली वायु के मार्ग में आने वाले स्थानों के तापमान में वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत यदि वायु ठंडे स्थानों से उत्पन्न होकर चलती है तो इसके मार्ग में आने वाले स्थानों के तापमान में गिरावट हो जाती है।
उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में, विशेषतः उत्तरी भारत में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन ‘लू’ अभिवहन का ही परिणाम है
पृथ्वी का ऊष्मा बजट
सूर्यताप और पार्थिव विकिरण के मध्य बने संतुलन के कारण पृथ्वी की सतह का औसत तापमान हमेशा स्थिर रहता है।इस संतुलन को ऊष्मा बजट कहते हैं।
माना वायुमंडल की ऊपरी सतह पर सूर्यास्त की 100 इकाईयाँ प्राप्त होती है। इनमें से लगभग 35 इकाईयाँ पृथ्वी तल पर आने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इन 35 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ वायुमंडल की ऊपरी परत से अंतरिक्ष को परावर्तित हो जाती हैं। 27 इकाइयाँ बादलों द्वारा और 2 इकाइयाँ धरातल के बर्फ से ढके क्षेत्रों द्वारा परावर्तित हो जाती हैं। सौर विकिरण की 35 इकाईयाँ पृथ्वी तल पर आने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं।
प्रथम 35 इकाइयों को छोड़कर शेष 65 इकाइयाँ में से 51 इकाइयाँ सीधे पृथ्वीतल को प्राप्त होती हैं पृथ्वी द्वारा अवशोषित 51 इकाईयां पुनः पार्थिव विकिरण के रूप में लौटा देती है। इन 51 इकाइयों में से 17 इकाइयाँ सीधे अंतरिक्ष में चली जाती हैं और 34 इकाइयाँ वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है इन 34 इकाइयों मे 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमंडल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन के जरिए और 19 इकाइयाँ संघनन की गुप्त ऊष्मा के रूप में अवशोषित कर ली जाती है वायुमंडल द्वारा अवशोषित की गई 48 इकाइयों (14 सूर्यातप की और 34 पार्थिक विकिरण की) धीरे-धीरे अंतरिक्ष में वापस लौटा दी जाती है। इस प्रकार सूर्यताप की 65 इकाइयाँ जिन्होंने वायुमंडल में प्रवेश किया था पुनः 17 और 48 इकाइया के रूप में अंतरिक्ष में वापिस कर दी जाती हैं।इससे सूर्यताप और पार्थिव विकिरण के मध्य एक संतुलन बना रहता है।
तापमान
वायुमंडल एवं भू-पृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्यक्रिया द्वारा जनित ऊष्मा को तापमान के रूप में मापा जाता है। ऊष्मा वह ऊर्जा है जो किसी वस्तु को गर्म करती है जबकि तापमान किसी वस्तु में ऊष्मा की तीव्रता की माप है।
तापमान के वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक
किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता हैः
1. अक्षांश रेखा - विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणों का आपतन-कोण छोटा होता जाता है। आपतन कोण जितना छोट होगा तापमान उतना ही कम होगा। इसलिए विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर जाने पर तापमान घटता है अतः ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ऊँचे तापमान पाये जाते हैं और ध्रुवों पर वर्ष के अधिकतर भाग में तापमान हिमांक बिंदु से नीचे रहते हैं।
2.उत्तुंगता - समुद्र तल से जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं तापमान धीरे-धीरे घटता जाता है तापमान औसतन प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 सें. की दर से गिरता है। इसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। कम ऊँचाई की वायु तप्त धरातल के निकट होने और घनी होने के कारण अधिक ऊँचाई की वायु से ज्यादा गर्म होती है। यही कारण है कि ग्रीष्म ऋतु में मैदानों की अपेक्षा पर्वतीय भाग ठंडे होते हैं
3.समुद्र से दूरी: स्थल की अपेक्षा समुद्र धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठंडा होता है। स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा होता है। इसलिए समुद्र के निकट तापमान सम रहता है। तथा समुद्र से दूरी बढने के साथ तापान्तर बढता जाता है
4. महासागर धाराएं: महासागर धारायें गर्म और ठंडी दो प्रकार की होती हैं। गर्म धाराएं जिन तटों के साथ बहती हैं, उन्हें अपेक्षाकृत गर्म कर देती हैं और ठंडी धारायें निकटवर्ती तटों को ठंडा बना देती हैं। उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट (गर्म धारा) के कारण उत्तरी-पश्चिमी यूरोप का तट सर्दियों में जमता नहीं है जबकि कनाडा का क्यूबेक तट लेब्राडोर ठण्डी धारा के कारण सर्दियों में जम जाता है।
समताप रेखा -समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली मानचित्र पर खींची गई रेखाओं को समताप रेखा कहते हैं। मानचित्रों पर तापमान वितरण समान्यतः समताप रेखाओं की मदद से दर्शाया जाता है।
तापमान का वितरण-
जनवरी और जुलाई के तापमान के वितरण का अध्ययन करके हम पूरे विश्व के तापमान वितरण के बारे में जान सकते हैं। समताप रेखायें प्रायः अक्षांश के समानांतर होती हैं।
1. जनवरी में तापमान का क्षैतिज वितरण
जनवरी में सूर्य की किरणें मकर वृत्त पर लम्बवत् पड़ती हैं। अतः जनवरी में दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है और उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु। उत्तरी गोलार्ध में इस समय महासागरों की अपेक्षा महाद्वीप अधिक ठंडे होते हैं। तथा महाद्वीपों की अपेक्षा महासागरों के ऊपर की वायु गर्म होती है। इसलिए यहाँ समताप रेखायें महाद्वीपों को पार करते समय विषुवत वृत्त की ओर एवं महासागरों को पार करते समय धु्रवों की ओर मुड़ जाती है। दक्षिणी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति उत्तरी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति के ठीक विपरीत होती है। वे महाद्वीपों को पार करते समय धु्रवों की ओर मुड़ जाती है और महासागरों को पार करते समय विषुवत रेखा की ओर मुड़ जाती है। दक्षिणी गोलार्ध में महाद्वीपों की अपेक्षा महासागरों का विस्तार अधिक है। इसलिए यहाँ समताप रेखायें नियमित तथा दूर-दूर हैं। इसके विपरीत उत्तरी गोलार्ध में समताप रेखायें, महाद्वीपों का अधिक विस्तार होने के कारण, अनियमित तथा पास-पास है।
2. जुलाई में तापमान का क्षैतिज वितरण- जुलाई में सूर्य की किरणें कर्क वृत्त पर लम्बवत पड़ती हैं। इस कारण सम्पूर्ण उत्तरी गोलार्ध में ऊच्च तापमान पाया जाता हैं। उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु की अवधि में समताप रेखायें महासागरों को पार करते समय विषुवत वृत्त की ओर मुड़ जाती है और महाद्वीपों को पार करते समय वे ध्रुवों की ओर मुड़ती है। दक्षिणी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति उत्तरी गोलार्ध की स्थिति से बिल्कुल विपरीत होती है। महासागरों पर समताप रेखायें दूर-दूर और महाद्वीपों पर वे पास-पास होती हैं।
तापमान का व्युत्क्रमण
सामान्यतः तापमान ऊँचाई के साथ घटता जाता है ।परन्तु कुछ परिस्थितियों में ऊँचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ता है। ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने को तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं। इसके लिए लम्बी रातें, स्वच्छ आकाश, शान्त वायु, शुष्क वायु एवं हिमाच्छादन इत्यादि आदर्श दशाएँ हैं। ऐसी परिस्थितियों में धरातल और वायु की निचली परतों से ऊष्मा का विकिरण तेज गति से होता है। परिणामस्वरूप निचली परत की हवा ठण्डी होने के कारण घनी व भारी हो जाती है। ऊपर की हवा जिसमें ऊष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है, अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ऐसी परिस्थति में तापमान ऊँचाई के साथ घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है। अन्तरापर्वतीय घाटियों में शीत ऋतु की रातों में ऐसा प्रायः होता है। पर्वतीय घाटियों में रात में ठंडी हुई हवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भारी और घनी होने के कारण ऊपर से नीचे उतरती है। यह घाटी की तली में गर्म हवा के नीचे एकत्र हो जाती है। और ऊँचाई के साथ बढता है।
प्लैंक का नियम इस नियम के अनुसार कोई वस्तु जितनी अधिक गर्म होगी वह उतनी ही अधिक ऊर्जा का विकिरण करेगी और उसकी तरंग दैर्ध्य उतनी लघु होगी।
- निम्न में से किस अक्षांश पर 21 जून की दोपहर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं?(क) विषुवत् वृत्त पर (ख) 23.5° उ०(ग) 66.5° द० (घ)66.5° उ० (ख)
- निम्न में से किस शहर में दिन ज्यादा लम्बा होता है?(क) तिरुवनन्तपुरम (ख) हैदराबाद(ग) चण्डीगढ़ (घ) नागपुर (ग)
- निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल मुख्यतः गर्म होता है?(क) लघु तरंगदैर्घ्य वाले सौर विकिरण से (ख) लम्बी तरंगदैर्घ्य वाले स्थलीय विकिरण से(ग) परावर्तित सौर विकिरण से (घ) प्रकीर्णित सौर विकिरण से (ख)
- निम्न पदों को उसके उचित विवरण के साथ मिलाएँ1. सूर्यातप (अ) सबसे कोष्ण और सबसे शीत महीनों के मध्य तापमान का अन्तर2. एल्बिडो (ब) समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा।3. समताप रेखा (स) आने वाला सौर विकिरण ।4. वार्षिक तापान्तर (द) किसी वस्तु के द्वारा परावर्तित दृश्य प्रकाश का प्रतिशत।(1) (स), 2. (द) 3. (ब), 4. (अ)।।
- पृथ्वी के विषुवत वृत्तीय क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों का तापमान अधिकतम होता है, इसका मुख्य कारण है(क) विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में कम बादल होते हैं।(ख) उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लम्बाई विषुवत्तीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।(ग) उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में ग्रीनहाउस प्रभाव’ विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा होता है।(घ) उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा महासागरीय क्षेत्रों के ज्यादा करीब है। (क)
- पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण किस प्रकार जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है?जहाँ तापमान अधिक पाया जाता है वहाँ उष्ण जलवायु मिलती है किन्तु जहाँ तापमान निम्न रहता है वहाँ शीत जलवायु रहती है। वस्तुत: तापमान जलवायु व मौसम का निर्धारक तत्त्व है, अतः तापमान के असमान वितरण से मौसम और जलवायु प्रभावित होती है तापमान का असमान वितरण वायु की उत्पत्ति का मुख्य कारण है। शीतऋतु में हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं इसलिए ये हवाएँ प्रायः शुष्क होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं इसलिए ये पवनें आर्द्र होती हैं। चक्रवात की उत्पत्ति भी तापमान के असमान वितरण का कारण होती है। इस तरह तापमान के असमान वितरण से मौसम और जलवायु प्रभावित होती है।
- वे कौन-से कारक हैं जो पृथ्वी पर तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं?उत्तर-पृथ्वी पर तापमान वितरण में पर्याप्त असमानताएँ मिलती हैं। इस असमानता के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं।1. अक्षांश2. समुद्रतल से ऊँचाई3. समुद्रतल से दूरी4. पवनों की दिशा5. स्थानीय कारक
- भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है, लेकिन उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता। क्यों?भारत में मई में तापमान अधिकतम होने का मुख्य कारण सूर्य का उत्तरायन होना है। सूर्य उस वक्त कर्क रेखा पर लंबवत रूप से चमकता है और कर्क रेखा भारत के बीचों बीच से होकर गुजरती है। इसलिए भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है लेकिन उत्तर अयनांत के बाद सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है और दिन की अवधि भी में परिवर्तन आ जाता है। इस कारण उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता है
- साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है। क्यों?साइबेरिया के मैदानी भाग समुद्र से काफी दूर हैं और यहाँ महाद्वीपीय जलवायु पाई जाती। है। इस भाग में कोष्ण महासागरीय धारा गल्फस्ट्रीम तथा उत्तरी अटलांटिक महासागरीय ड्रिफ्ट की उपस्थिति से उत्तरी अन्ध महासागर अधिक गर्म हो जाता है महाद्वीप के आंतरिक भाग में इन धाराओं का प्रभाव नहीं पड़ता है अतः यहाँ तापमान कम बना रहता है इस कारण साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है।
- अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव किस प्रकार पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं?पृथ्वी पर सूर्यातप की प्राप्ति अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष के झुकाव द्वारा निर्धारित होती है। पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण की समतल कक्षा से 66.5° का कोण बनाता है इसके कारण विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त होने वाला सूर्यताप प्रभावित होता है पृथ्वी की भू-आभ आकृति के कारण अक्ष के झुकाव के कारण सूर्य की किरण पृथ्वी पर सब जगह सामान नहीं पड़ती है भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणे वर्ष भर लम्बवत पड़ती है परन्तु भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों की और जाने पर किरणों का तिरछापन बढता जाता है सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने से वह अधिक क्षेत्र परे फैलती हैं; अतः इन किरणों को पृथ्वी का अधिक स्थान घेरना पड़ता है, तथा तिरछी किरणों को वायुमंडल में अधिक दूरी तय करनी पड़ती है इसलिए इन किरणों से कम ताप की प्राप्ति होती है जबकि भूमध्यरेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं।जो कम स्थान पर पड़ती है अतः इन किरणों से कम क्षेत्र को अधिक तापमान प्राप्त होता है।
- पृथ्वी और वायुमण्डल किस प्रकार ताप को सन्तुलित करते हैं? इसकी व्याख्या करें।वास्तव में पृथ्वी तापमान (ऊष्मा) का न तो संचय करती है न ही ह्रास, बल्कि यह अपने तापमान को स्थिर रखती है। ऐसा तभी सम्भव है, जब सूर्य विकिरण द्वारा सूर्यातप के रूप में प्राप्त उष्मा एवं पार्थिव विकिरण द्वारा अन्तरिक्ष में संचलित ताप बराबर हो। यदि यह मान लें कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर सूर्यातप की 100 प्रइकाइयाँ प्राप्त होती है तो 100 इकाइयों में से 35 इकाइयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अन्तरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इन 35 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ वायुमंडल की ऊपरी परत से अंतरिक्ष को परावर्तित हो जाती हैं। 27 इकाइयाँ बादलों द्वारा और 2 इकाइयाँ धरातल के बर्फ से ढके क्षेत्रों द्वारा परावर्तित हो जाती प्रथम 35 इकाइयों को छोड़कर शेष 65 इकाइयाँ में से 51 इकाइयाँ सीधे पृथ्वीतल को प्राप्त होती हैं पृथ्वी द्वारा अवशोषित 51 इकाईयां पुनः पार्थिव विकिरण के रूप में लौटा देती है। इन 51 इकाइयों में से 17 इकाइयाँ सीधे अंतरिक्ष में चली जाती हैं और 34 इकाइयाँ वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है इन 34 इकाइयों मे 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमंडल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन के जरिए और 19 इकाइयाँ संघनन की गुप्त ऊष्मा के रूप में अवशोषित कर ली जाती है वायुमंडल द्वारा अवशोषित की गई 48 इकाइयों (14 सूर्यातप की और 34 पार्थिक विकिरण की) धीरे-धीरे अंतरिक्ष में वापस लौटा दी जाती है। इस प्रकार सूर्यताप की 65 इकाइयाँ जिन्होंने वायुमंडल में प्रवेश किया था पुनः 17 और 48 इकाइया के रूप में अंतरिक्ष में वापिस कर दी जाती हैं। इससे सूर्यताप और पार्थिव विकिरण के मध्य एक संतुलन बना रहता है।यही कारण है कि पृथ्वी पर ऊष्मा के इतने बड़े स्थानान्तरण के होते हुए भी उष्मा सन्तुलन बना रहता है। इसीलिए पृथ्वी न तो बहुत गर्म होती है न ही अधिक ठण्डी, बल्कि मानव एवं जीव-जंतुओं के अनुकूल तापमान रखती है।
- जनवरी में पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के बीच तापमान के विश्वव्यापी वितरण की तुलना करें।(1) जनवरी में तापमान का क्षैतिज वितरण- जनवरी में सूर्य की किरणें मकर वृत्त पर लम्बवत् पड़ती हैं। अतः जनवरी में दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है और उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु। उत्तरी गोलार्ध में इस समय महासागरों की अपेक्षा महाद्वीप अधिक ठंडे होते हैं। तथा महाद्वीपों की अपेक्षा महासागरों के ऊपर की वायु गर्म होती है। इसलिए यहाँ समताप रेखायें महाद्वीपों को पार करते समय विषुवत वृत्त की ओर एवं महासागरों को पार करते समय धु्रवों की ओर मुड़ जाती है। दक्षिणी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति उत्तरी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति के ठीक विपरीत होती है। वे महाद्वीपों को पार करते समय धु्रवों की ओर मुड़ जाती है और महासागरों को पार करते समय विषुवत रेखा की ओर मुड़ जाती है। दक्षिणी गोलार्ध में महाद्वीपों की अपेक्षा महासागरों का विस्तार अधिक है। इसलिए यहाँ समताप रेखायें नियमित तथा दूर-दूर हैं। इसके विपरीत उत्तरी गोलार्ध में समताप रेखायें, महाद्वीपों का अधिक विस्तार होने के कारण, अनियमित तथा पास-पास है।(2) जुलाई में तापमान का क्षैतिज वितरण- जुलाई में सूर्य की किरणें कर्क वृत्त पर लम्बवत पड़ती हैं। इस कारण सम्पूर्ण उत्तरी गोलार्ध में ऊच्च तापमान पाया जाता हैं। उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु की अवधि में समताप रेखायें महासागरों को पार करते समय विषुवत वृत्त की ओर मुड़ जाती है और महाद्वीपों को पार करते समय वे धु्रवों की ओर मुड़ती है। दक्षिणी गोलार्ध में समताप रेखाओं की स्थिति उत्तरी गोलार्ध की स्थिति से बिल्कुल विपरीत होती है। महासागरों पर समताप रेखायें दूर-दूर और महाद्वीपों पर ये पास-पास होती है
- पृथ्वी वायुमंडल का ऊपरी सतह पर कितना ऊर्जा प्राप्त करता है ?1.94 कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर
- वायुमंडल की निचली परते किस प्रक्रिया से गर्म होती हैचालन प्रक्रिया द्वारा
- संवहन प्रक्रिया कौन सी मंडल तक सीमित होती हैक्षोभमंडल तक
- अभिवहन प्रक्रिया किसे कहते हैंवायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला तापीय स्थानांतरण अभिवहन कहलाता है।
- विशिष्ट ऊष्मा किसे कहते हैं ?एक ग्राम पदार्थ का तापमान एक अंश सेल्सियस बढ़ाने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है उसे विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं।
- संवहन किसे कहते हैंपृथ्वी के संपर्क में आने वाली वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत् ऊपर उठती है और वायुमंडल में ताप का संचरण करती है। वायुमंडल के लंबवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है।
- सूर्याताप या सूर्यातप से क्या तात्पर्य है?सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। यह ऊर्जा लघु तरंगों के रुप में सूर्य से पृथ्वी पर है
- तापमान व्युत्क्रमण के लिए आवश्यक दशाएं लिखिएलम्बी रातें, स्वच्छ आकाश, शान्त वायु, शुष्क वायु एवं हिमाच्छादन इत्यादि तापमान व्युत्क्रमण के लिए आदर्श दशाएँ हैं।
- वायु अपवाह किसे कहते हैं?घाटी की तली में गर्म हवा के नीचे एकत्र हो जाती है। इसे वायु अपवाह कहते हैं। यह पाले से पौधों की रक्षा करती है।
- पृथ्वी का एल्बिडो किसे कहते हैं?सौर विकिरण की 35 इकाईयाँ पृथ्वी तल पर आने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं।
- प्लैंक का नियम लिखिएइस नियम के अनुसार कोई वस्तु जितनी अधिक गर्म होगी वह उतनी ही अधिक ऊर्जा का विकिरण करेगी और उसकी तरंग दैर्ध्य उतनी लघु होगी।
- चालन प्रक्रिया किसे कहते हैंजब असमान तापमान की दो वस्तुएं एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो अधिक गर्म वस्तु से कम गर्म वस्तु की ओर ऊर्जा प्रवाह होता है इस प्रक्रिया को चालन कहते हैं।
- समताप रेखाओं से क्या अभिप्राय है?समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली मानचित्र पर खींची गई रेखाओं को समताप रेखा कहते हैं। मानचित्रों पर तापमान वितरण समान्यतः समताप रेखाओं की मदद से दर्शाया जाता है।
- तापमान का व्युत्क्रमण से क्या अभिप्राय हैसामान्यतः तापमान ऊँचाई के साथ घटता जाता है ।परन्तु कुछ परिस्थितियों में ऊँचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ता है। ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने को तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं।
- तापमान की सामान्य ह्रास दर से आप क्या समझते हैं?समुद्र तल से जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं तापमान में धीरे-धीरे घटता जाता है तापमान औसतन प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 सें. की दर से गिरता है। इसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं।
- अपसौर व उपसौर से क्या अभिप्राय हैपृथ्वी की कक्षा में वह स्थिति जब पृथ्वी और सूर्य के बीच सर्वाधिक दूरी होती है उसे अपसौर की स्थिति कहते है। यह स्थिति 4 जुलाई को बनती है और इस स्थिति में पृथ्वी व सूर्य के मध्य की दूरी 15.2 करोड़ किलोमीटर होती हैपृथ्वी की कक्षा में वह स्थान जहाँ सूर्य तथा पृथ्वी के बीच सबसे कम दूरी होती है उसे उपसौर की स्थिति कहते है। उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को बनती है। उपसैेर के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच 14.7 करोड़ किलोमीटर की दूरी होती है।