भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास
भारत में 2015 से पहले केंद्र, राज्य तथा जिला स्तर पर योजनाओं को तैयार करने की ज़िम्मेदारी योजना आयोग की थी। परंतु जनवरी 1, 2015 को योजना आयोग का स्थान नीति आयोग ने ले लिया।केंद्रीय तथा राज्य सरकारों को युक्तिगत तथा तकनीकी सलाह देने के लिए भारत के आर्थिक नीति निर्माण में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीति आयोग स्थापित किया गया है।
नियोजन
देश के आर्थिक संसाधनों का सर्वेक्षण करके देश की आवश्यकताओं के अनुसार उनका सर्वोत्तम उपयोग करना नियोजन कहलाता है
नियोजन के उपागम – नियोजन के दो उपागम (प्रकार) होते है
(1) खण्डीय नियोजन-अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन आदि के लिए योजना बना कर लागू करना ऐसा नियोजन जिसमें सभी निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाते है तथा उनके क्रियान्वयन के लिए निचले स्तरो का सहारा लिया जाता है खण्डीय नियोजन कहलाता है
(2) प्रादेशिक -किसी प्रदेश के लिए उसके समस्त संसाधनों के उचित उपयोग और विकास के लिए कार्यक्रम बनाकर लागू करना प्रादेशिक नियोजन कहलाता है
लक्ष्य क्षेत्र नियोजन
किसी भी क्षेत्र का आर्थिक विकास उसके संसाधनों पर निर्भर करता है परन्तु आर्थिक विकास तथा नियोजन में घनिष्ठ संबंध होता है कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ संसाधनों की अधिकता होने के बावजूद भी नियोजन की कमी के कारण आर्थिक विकास नहीं हो पाता है। इसके विपरीत कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ संसाधनों की कमी है फिर भी उस क्षेत्र में नियोजन के कारण आर्थिक विकास होता है। इस प्रकार आर्थिक विकास में एक क्षेत्रीय असन्तुलन दिखायी देता है। इस क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करने के लिए योजना आयोग ने ‘लक्ष्य क्षेत्र’ तथा ‘लक्ष्य-समूह’ योजना उपागमों को लागू किया है। ‘कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम ‘लक्ष्य क्षेत्र’ कार्यक्रम के उदाहरण हैं। तथा लघु कृषक विकास संस्था , सीमांत किसान विकास संस्था आदि लक्ष्य समूह कार्यक्रम के उदाहरण हैं।
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को पाँचवीं पंचवर्षीय योजना(1974) में प्रारंभ किया गया। इस विकास कार्यक्रम में उत्तराखण्ड, मिकिर पहाड़, असम की उत्तरी कछारी पहाड़ियाँ, दार्जिलिंग तथा दक्षिण पहाड़ियाँ नीलगिरी सम्मिलित हैं। पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने 600 मीटर से अधिक ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र, जिनमें जनजातीय उप-योजना लागू नहीं है को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में सम्मिलित करने की सिफारिश की थी। इस समिति ने पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत किए-
1. सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं
2. पहाड़ी क्षेत्रों के संसाधनों तथा प्रतिभाओं का भरपूर विकास किया जाए।
3. इस क्षेत्र की जीविका-निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना।
4. आन्तरिक प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण नहीं होना चाहिए।
5. बाजार व्यवस्था में सुधार किया जाए ताकि श्रमिकों का लाभ मिले।
6. पर्वतीय क्षेत्रों में पारिस्थितिकी सनन्तुलन बनाए रखने के प्रयास किए जाएँ।
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम में बागवानी, बागाती कृषि, पशुपालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों पर बल दिया जाता है झूमिंग कृषि को स्थाई कृषि में बदलने के प्रयास किए जाते हैं
सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम
यह कार्यक्रम चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया गया इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करना है पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया। प्रारंभ में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। परन्तु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं , भूमि विकास कार्यक्रमों, चरागाह विकास आदि पर भी विशेष जोर दिया गया।
भारत में सूखा सम्भावी क्षेत्र मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि आदि भागों में फैले हैं।
इस कार्यक्रम की समीक्षा के पश्चात् पिछड़े क्षेत्रों की राष्ट्रीय समिति ने यह पाया कि इस कार्यक्रम का प्रभाव कृषि तथा इससे सम्बद्ध क्षेत्रों के विकास तक सीमित है। जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार बढ़ रहा है तथा कृषक सीमांत भूमि का प्रयोग करने के लिए बाध्य है। इससे पारिस्थितिकी सन्तुलन बिगड़ रहा है। अतः सुखा संभावी क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार अवसर पैदा करने की आवश्यकता है। तथा समन्वित जल सम्भर विकास की रणनीतियों को अपनाकर सूखाग्रस्त क्षेत्र में मानव एवं पारिस्थितिकीय सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
भारत के योजना आयोग ने सन् 1967 में देश के ऐसे 67 जिलों की पहचान की जो सूखा सम्भावी थे। भारत के सिंचाई आयोग ने सन् 1972 में 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र के मापदण्ड को आधार मानकर देश के सूखा सम्भावी जिलों को सीमांकित किया।
भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले दो तहसीलें, भरमौर और होली शामिल हैं। यह 21 नवंबर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ‘गद्दी’ जनजातीय समुदाय का आवास है। इस समुदाय की हिमालय क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है क्योंकि गद्दी लोग ऋतु-प्रवास करते हैं ग्रीष्म ऋतु में ये लोग अपनी भेड़, बकरियों के साथ उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं। शीत ऋतु में ये निम्न प्रदेशों में आ जाते हैं। ये लोग गद्दीयाली भाषा में बात करते हैं।
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, शीत ऋतु में कड़ाके की ठण्ड तथा हिमपात होता है जबकि ग्रीष्म ऋतु सुहावनी होती है। आधारभूत संसाधन कम हैं और पर्यावरण भंगुर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भरमौर उपमंडल की जनसंख्या 39,113 थी अर्थात् 21 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। यह हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है। ऐतिहासिक तौर पर, गद्दी जनजाति ने भौगोलिक और आर्थिक अलगाव का अनुभव किया
है और सामाजिक-आर्थिक विकास से वंचित रही है। इनका आर्थिक आधार मुख्य रूप से कृषि और भेड़ - बकरी पालन हैं। भरमौर का अधिकांश भाग ,500 से 3,700 मीटर की ऊँचाई के बीच स्थित है। भरमौर के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वतों का विस्तार है। इसके उत्तर में पीरपंजाल तथा दक्षिण में धौलाधर पर्वत श्रेणियों का विस्तार है। इस क्षेत्र में रावी तथा इसकी दो सहायक नदियाँ बुढील नदी तथा टुंडेन नदी बहती हैं ये नदियाँ भरमौर को चार खंडो होली, खानी, कुगती तथा दुंडाह में विभक्त करती हैं।
भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम 1970 के दशक में शुरू हुआ पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भिक वर्ष 1974 में इस क्षेत्र में जनजातीय विकास परियोजना प्रारम्भ हुई तथा हिमाचल प्रदेश की पाँच समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाओं में भरमौर क्षेत्र को जनजातीय विकास परियोजना में भी सम्मिलित किया गया।
इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. गद्दी जनजाति के जीवन स्तर में सुधार लाना।
2. भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के विकास के अन्तर को कम करना
3. परिवहन, संचार, कृषि व इससे सम्बन्धित क्रियाएँ तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं का विकास करना।
भरमौर क्षेत्र में लागू किए गए समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम की निम्नलिखित उपलब्धियाँ रहीं-
1. भरमौर क्षेत्र में विद्यालयों, जनस्वास्थ्य सुविधाओं , पेयजल, सड़कों, संचार तथा विद्युत के रूप में अवसंरचनात्मक विकास हुआ है।
2. होली तथा खानी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँवों को विकास का सर्वाधिक लाभ मिला है, जबकि तुन्दाह व कुगती क्षेत्र के दूरदराज के ग्राम अभी-भी विकास से अछछूते हैं।
3. भरमौर क्षेत्र की साक्षरता दरों में तीव्र वृद्धि, लिंग असमानता में कमी, लिंगानुपात में सुधार तथा बाल विवाह में कमी अनुभव की गई है।
4. 1970-2000 की अवधि में दालों तथा विभिन्न नकदी फसलों के क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
5. परम्परागत रूप से किए जाने वाले ऋतु प्रवास में संलग्न जनसंख्या में तेजी से कमी आई है। वर्तमान में कुल गद्दी परिवारों का केवल 10 वाँ भाग ही ऋतु प्रवास करता है।
सतत् पोषणीय विकास
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वार स्थापित ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD) की रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्रयूचर’ (जिसे ब्रंटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं) 1987 में सतत पोषणीय विकास की निम्न परिभाषा दी
‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना।’
भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संसाधनों का युक्तियुक्त प्रयोग ही सतत विकास कहलाता है
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र
इंदिरा गांधी नहर को पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था 1948 में कँवर सेन द्वारा संकल्पित यह नहर परियोजना 31 मार्च, 1958 को प्रारंभ हुई। यह नहर पंजाब में हरिके बाँध से निकलती है और राजस्थान के थार मरुस्थल में बहती है। इस नहर तंत्र की कुल नियोजित लंबाई 9060 किमी. है कुल कमान क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र प्रवाह नहर तंत्रों और शेष क्षेत्र लिफ्ट तंत्र द्वारा किया जाएगा। नहर का निर्माण कार्य दो चरणों में पूरा किया गया है। चरण-I का कमान क्षेत्र गंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले के उत्तरी भाग में पड़ता है। चरण-II का कमान क्षेत्र बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर और चुरू जिलों में पड़ता है। इसमें स्थानांतरित बालू टिब्बों वाला मरुस्थल भी सम्मिलित है जहाँ स्थानांतरी बालू टिब्बे पाए जाते हैं लिफ्ट नहर में ढाल के विपरीत प्रवाह के लिए जल को बार-बार मशीनों से उपर उठाया जाता है। इंदिरा गांधी नहर तंत्र में सभी लिफ्ट नहरें मुख्य नहर के बाएँ किनारे से निकलती हैं जबकि मुख्य नहर के दाएँ किनारे पर सभी नहरें प्रवाह प्रणाल हैं। नहर सिंचाई प्रसार ने इस शुष्क क्षेत्र की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समाज को रूपांततरित कर दिया है। इससे इस क्षेत्र को पर्यावरणीय परिस्थितियों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े हैं। लंबी अवधि तक मृदा नमी उपलब्ध् होने और कमान क्षेत्र विकास के तहत शुरू किए गए वनीकरण और चरागाह विकास कार्यक्रमों से यहाँ भूमि हरी- भरी हो गई है। इससे वायु अपरदन और नहरी तंत्र में बालू निक्षेप की प्रक्रियाएँ भी धीमी पड़ गई हैं। परंतु सघन सिंचाई और जल के अत्यधिक प्रयोग से जल भराव और मृदा लवणता की दोहरी पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। नहरी सिंचाई के प्रसार से इस प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष रूप में रूपांतरित हो गई है। इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक फसलें उगाने के लिए मृदा नमी सबसे महत्वपूर्ण सीमाकारी कारक रहा यहाँ की पारंपरिक फसलों, चना, बाजरा और ग्वार का स्थान गेहूँ, कपास, मूँगपफली और चावल ने ले लिया है।
सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले उपाय
कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावित सात उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थतिकीय संतुलन पुनःस्थापित करने पर बल देते हैं।
1. जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना।
इस नहर परियोजना के चरण-1 में कमान क्षेत्र में फसल रक्षण सिंचाई और चरण-2 में फसल उगाने और चरागाह विकास के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान है।
2. इस क्षेत्र के शस्य प्रतिरूप में सामान्यतः जल सघन फसलों को नहीं बोया जाना चाहिए। इसका पालन करते हुए किसानों को बागाती कृषि के अंतर्गत खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए।
3. कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम जैसे नालों को पक्का करना, भूमि विकास तथा समतलन और वारबंदी/ओसरा पद्धति (कमान क्षेत्र में नहर के जल का समान वितरण) प्रभावी रूप से कार्यान्वित की जाए ताकि बहते जल की क्षति मार्ग में कम हो सके।
4. जलाक्रांत एवं लवण से प्रभावित भूमि का पुनरूद्धार किया जाएगा।
5. वनीकरण, वृक्षों का रक्षण मेखला का निर्माण और चरागाह विकास।
6. इस प्रदेश में सामाजिक सतत पोषणता का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब निर्धन आर्थिक स्थिति वाले भूआवंटियों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय और संस्थागत सहायता उपलब्ध करवाई जाए।
7. मात्र कृषि और पशुपालन के विकास से इस क्षेत्रों में आर्थिक सतत पोषणीय विकास की अवधारणा को साकार नहीं किया जा सकता। कृषि और इससे संबंधित क्रियाकलापों को अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों के साथ विकसित करना पड़ेगा।
- निति आयोग की स्थापना कब हुई
[अ] 1 जनवरी 2015[ब] 1 जनवरी 2014
[स] 1 फ़रवरी 2015[द] 1 मार्च 2015 [अ] - भारत में 2015 से पहले केंद्र, राज्य तथा जिला स्तर पर योजनाओं को तैयार करने की ज़िम्मेदारी किसकी की थी ।
[अ] निति आयोग[ब] योजना आयोग
[स] वित्त आयोग[द] कृषि आयोग [ब] - प्रदेशीय नियोजन का संबंध है
[अ] आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास[ब] परिवहन जल तंत्र में क्षेत्रय अंतर
[स] क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम[द] ग्रामीण क्षेत्रों का विकास [स] - आई.टी.डी.पी. निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है ?
[अ] समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम[ब] समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
[स] समन्वित यात्र विकास प्रोग्राम[द] समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम [ब] - इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्वपूर्ण कारक है ?
[अ] कृषि विकास[ब] परिवहन विकास
[स] पारितंत्र-विकास[द] भूमि उपनिवेशन [अ] - इंदिरा गांधी नहर परियोजना कब प्रारंभ हुई।
[अ] 1958[ब] 1948
[स] 1968[द] 1938 [अ] - सामान्यता नियोजन के कितने उपागम (प्रकार) होते है
[अ] पांच[ब] दो
[स] तीन[द] चार [ब] - पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कब प्रारंभ किया गया ?
[अ] दूसरी पंचवर्षीय योजना में[ब] पांचवी पंचवर्षीय योजना में
[स] तीसरी पंचवर्षीय योजना में[द] चौथी पंचवर्षीय योजना में [ब] - सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम की शुरूआत किस पंचवर्षीय योजना में की गई ?
[अ] दूसरी पंचवर्षीय योजना में[ब] पांचवी पंचवर्षीय योजना में
[स] तीसरी पंचवर्षीय योजना में[द] चौथी पंचवर्षीय योजना में [द] - भरमोर जनजातीय क्षेत्र में किस जनजाति के लोग रहते हैं ?
[अ] एस्किमो जनजाति[ब]गद्दी जनजाति
[स] संथाल जनजाति[द] मीना जनजाति [ब] - भारत में नीति आयोग से पूर्व नियोजन का कार्य किस संस्था द्वारा किया जाता था
[अ] योजना आयोग[ब] वन मंत्रालय
[स] वित्त आयोग[द] कृषि आयोग [अ] - इंदिरा गाँधी नहर का पुराना नाम क्या था
[अ] महात्मा गाँधी नहर[ब] भारत नहर
[स] राजस्थान नहर[स] सागरमल गौपा नहर [स] - पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम में कितने जिले सम्मलित है
[अ] 23[ब] 15
[स] 17[द] 18 [ब] - भरमौर जनजातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है
[अ] पंजाब[ब] हिमाचल प्रदेश
[स] राजस्थान[द] उत्तराखंड [ब] - भारत में जनजातीय उपयोजना कब शुरू की गई
[अ] 1957[ब] 1974
[स] 1967[द] 1978 [ब] - . हिमाचल प्रदेश के किस प्रदेश को गद्दियो की आवास भूमि कहा जाता है
[अ] भरमौर[ब] कांगड़ा
[स] किनौर[द] कुल्लू [अ] - इंदिरा गाँधी नहर की कुल नियोजित लम्बाई कितनी है
[अ] 9060 किमी[ब] 9456 किमी
[स] 9650 किमी[द] 8060 किमी [अ] - गद्दी जनजाति के लोग कौनसी भाषा बोलते हैं।[अ] गद्दियाली[ब] तेलगू[स] हिंदी[द] कश्मीरी [अ]
- निति आयोग क्या है ?
निति आयोग एक सलाहाकारी निकाय है - योजना आयोग का गठन कब किया गया इसका अध्यक्ष कौन होता है
15 मार्च 1950 को ! इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है - निति आयोग की स्थापना कब हुई इसका अध्यक्ष कौन होता है
1 जनवरी 2015 को ,इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है - निति आयोग का पूरा नाम लिखिए
National Institution for Transforming India - समन्वित जनजातीय विकास परियोजना[ITDP] कब शुरू की गई
1974 में [पांचवी पंचवर्षीय योजना] - “ द पापुलेशन बम ” नामक पुस्तक कब और किसने लिखी ?
1968 में एहर लिच ने । - “ द लिमिट टू ग्रोथ ” कब और किसने प्रकाशित की ?
1972 में मिडोस ने । - “अवसर कॉमन फ्युचर ” रिपोर्ट किस आयोग ने प्रकाशित की ?
विश्व पर्यावरण और विकास आयोग ने । - इंदिरा गांधी नहर की संकल्पना कब और किसेन की ?
1984 में कँवर सेने ने । - इंदिरा गांधी नहर कहाँ से निकलती है ?
पंजाब से हरिक बाँध से - आर. टी. डी. पी. कार्यक्रम का पूरा नाम क्या है ?
समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम - भारमौर जनजातीय क्षेत्र में चम्बा जिले की कौन-कौन सी तहसीलें शामिल हैं।
भरमौर और होली - पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की चिन्ता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने किस आयोग की स्थापना की ।
विश्व पर्यावरण और विकास आयोग - नियोजन के दो आयामों के नाम लिखो
1. खण्डीय नियोजन 2. प्रादेशिक नियोजन - लक्ष्य समूह योजना उपागम के अधीन चलाये गए दो कार्यक्रमों के नाम लिखो।
लघु कृषक विकास संस्था [SFDA]
सीमांत किसान विकास संस्था [MFDA] - आपकी दृष्टि में इंदिरा गााँधी नहर परियोजना क्षेत्र में पारिस्थतिकीय संतुलन स्थापित किने वाले दो कारको को इंगित कीजिए
कमान क्षेत्र में किए गए वनीकरण और चरागाह विकास कार्यक्रमों से यहाँ भूमि हरी- भरी हो गई है
कमान क्षेत्र में वायु अपरदन और नहरी तंत्र में बालू निक्षेप की प्रक्रियाएँ भी धीमी पड़ गई हैं। - सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के दो उद्देश्य लिखिए
1. सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना
2. सूखे के प्रभाव को कम करना - खण्डीय नियोजन किसे कहते है ?
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन आदि के लिए योजना बना कर लागू करना ऐसा नियोजन जिसमें सभी निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाते है तथा उनके क्रियान्वयन के लिए निचले स्तरो का सहारा लिया जाता है खण्डीय नियोजन कहलाता है - सतत पोषणीय विकास की संकल्पना की परिभाषित करें।
‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD) की रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्रयूचर’ के अनुसार सतत पोषणीय विकास ‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना।’ - भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं ?
1. साक्षरता दर में तीव्रता से वृद्धि
2. लिंग असमानता में कमी व लिंगानुपात में सुधार
3. बाल-विवाह में कमी - इंदिरा गांधी नहर का कमान क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थितियों पर सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव लिखिए
सकारात्मक प्रभाव – 1. कमान क्षेत्र में किए गए वनीकरण और चरागाह विकास कार्यक्रमों से यहाँ भूमि हरी- भरी हो गई है।
2. कमान क्षेत्र में वायु अपरदन और नहरी तंत्र में बालू निक्षेप की प्रक्रियाएँ भी धीमी पड़ गई हैं।
नकारात्मक प्रभाव - 1. सघन सिंचाई और जल के अत्यधिक प्रयोग से जल भराव और मृदा लवणता समस्याएँ उत्पन्न हो गईं । - भरमौर जन जातीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था व समाज को बुरी तरह प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से है ?
1. भारमौर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक हैं -
2. भारमौर जनजातीय क्षेत्र की जलवायु कठोर है ।
3. पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ संसाधन बहुत कम है ।
4. पर्यावरण भगुंर है, कमजोर है । - नियोजन किसे कहते हैं यह कितने प्रकार का होता है
देश के आर्थिक संसाधनों का सर्वेक्षण करके देश की आवश्यकताओं के अनुसार उनका सर्वोत्तम उपयोग करना नियोजन कहलाता है यह दो प्रकार का होता है
1) खण्डीय नियोजन-अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन आदि के लिए योजना बना कर लागू करना ऐसा नियोजन जिसमें सभी निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाते है तथा उनके क्रियान्वयन के लिए निचले स्तरो का सहारा लिया जाता है खण्डीय नियोजन कहलाता है
2) प्रादेशिक नियोजन -किसी प्रदेश के लिए उसके समस्त संसाधनों के उचित उपयोग और विकास के लिए कार्यक्रम बनाकर लागू करना प्रादेशिक नियोजन कहलाता है