आर्द्रता -वायुमण्डल में विद्यमान अदृश्य जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। वायुमंडल के एक इकाई आयतन में जलवाष्प का अनुपात शून्य से चार प्रतिशत तक होता है।वायु में विद्यमान आर्द्रता को निम्न दो प्रकार से व्यक्त किया जाता हैः
निरपेक्ष आर्द्रता -वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की वास्तविक मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रतिघन मीटर में व्यक्त किया जाता है। अर्थात यदि किसी वायु की निरपेक्ष आर्द्रता 10 ग्राम है तो इसका तात्पर्य है कि उस वायु में एक घन मीटर आयतन में 10 ग्राम आर्द्रता जलवाष्प के रूप में विद्यमान है। किसी वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता पूर्णतः उसके तापमान पर निर्भर करती है। तापमान के बढ़ने के साथ वायु में जलवाष्प धारण करने की क्षमताबढ़ जाती है।
सापेक्ष आर्द्रता -दिए गए तापमान पर वायु की जल धारण करने की क्षमता की तुलना में उस वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा के प्रतिशत को सापेक्ष आर्द्रता कहा जाता है।
सापेक्ष आर्द्रता दिए गए तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जल धारण करने की क्षमता का अनुपात होता हैं इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं
सापेक्ष आर्द्रता = वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा X 100
वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता
सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प की मात्रा एवं वायु के तापमान पर निर्भर करता है वायु में जलवाष्प की मात्रा अधिक होने परसापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है वायु का तापमान कम होने पर सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है एवं तापमान बढ़ जाने पर सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है यह महासागरों के उपर सबसे अधिक तथा महाद्वीपों के उपर सबसे कम होती है।
संतृप्त वायु-जब किसी वायु में उसके जल धारण करने की क्षमता के बराबर जलवाष्प् उपस्थित हो तो उसवायु को संतृप्त वायु कहा जाता है।
ओसांक- वह तापमान जिस पर वायु संतृप्त हो जाती है उसे ओसांक कहते हैं। किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रता ओसांक पर शत-प्रतिशत होती है। वाष्पीकरण का मुख्य कारण ताप है
वाष्पीकरण- वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जल द्रव से गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता है, वाष्पीकरण कहलाती
है।
वाष्पीकरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक
तापमान: वायु मेंजल को अवशोषित करनेएवं धारण रखने की क्षमता तापमान में वृद्विके साथबढ़ती है। कयोंकि गर्म वायु ठंडी वायु की तुलना में अधिक नमी धारणकर सकती है। अतः जब किसी वायु का तापमान अधिक होता है, वह अपने अन्दर अधिक नमी धारण करती है।
आर्द्रता- हवा में उपस्थित आर्द्रता का वाष्पीकरण से विपरित सम्बन्ध पाया जाता हैयदि हवामें जलवाष्प की मात्रा अधिक है तो उसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता कम होगी जिससे वाष्पीकरण कम होता है इसके विपरीत यदि हवा में जलवाष्प की मात्रा कम है तो हवा की जलवाष्प धारण करने की क्षमता अधिक होगी और वाष्पीकरण तेज गति से होता है
पवन: हवा भी वाष्पीकरण की दर को प्रभावित करती है। यदि वायु शांत है, तोजलीय धरातल से लगी वायु वाष्पीकरण होते ही संतृप्त हो जाएगी। वायु के संतृप्तहोने पर वाष्पीकरण रूक जाएगा। यदि वायु गतिशील है तो वह संतृप्त वायु कोउस स्थान से हटा देती है उसके स्थान पर कम आर्द्रता वाली असंतृप्त वायु आ जाती है।इससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया फिर प्रारम्भ हो जाती है
संघनन- संघनन वह प्रक्रिया है जिसमें वायुमंडलीय जलवाष्प जल में बदलती है। यह वाष्पीकरण के ठीक विपरीत प्रक्रिया है। जब किसी संतृप्त वायु का तापमान ओसांक से नीचे गिरता है तो वह वायु अपने अन्दर उतनी आर्द्रता धारण नहीं कर सकती है जितनी वह पहले धारण किये हुये थी। अतः आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा जल की सूक्ष्म बूँदों में बदल जातीहै। संघनन तब होता है जब किसी वायु का तापमान ओसांक से कम होता है संघनन धुँआ, नमक तथा धूलकणों के चारों ओर होता है; क्योंकि ये कण जलवाष्प को अपने चारों ओर संघनित होने के लिए आकर्षित करते हैं। इन कणों को आर्द्रता ग्राही केन्द्रक कहते हैं।
उर्ध्वपातन- जब वायुमंडलीय जलवाष्प सीधेठोस रूप(बर्फ ) में परिवर्तित होती हैं तो इसे उर्ध्वपातन कहते है
संघनन के रूप
संघनन दो परिस्थितियों में होता है
1. जब ओसांक हिमांक बिन्दु या 0 से. से कमहोता है इस स्थिति में पाला, हिम तथा कुछ प्रकार के बादल बनते हैै
2. जब ओसांक हिमांक बिन्दु से अधिक होता है।इस स्थिति में ओस, धुन्ध, कोहरा, कुहासा तथा कुछ प्रकार के बादल बनते है
ओस: जब वायुमण्डलीय नमी संघनित होकर जल बिन्दुओं के रूप में ठोसपदार्थों के ठण्डे धरातल जैसे घास, पेड़-पौधों की पत्तियों तथा पत्थरों पर जमाहो जाती है तो उसे ओस कहते हैं। ओस के रूप में संघनन तब होता है जब आकाश साफ हो, हवा न चल रही हो तथा ठण्डी रातों में वायु की सापेक्ष आर्द्रता अधिक हो। इन दशाओं में पार्थिव विकिरण अधिक तीव्रता से होता है तथा ठोस पदार्थ इतने ठण्डे हो जाते हैं कि उनके संपर्क में आने वाली वायु का तापमान ओसांक से नीचे गिर जाता है। फलस्वरूप, वायु की अतिरिक्त आर्द्रता इन पदार्थों पर जल बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाती है। ओस के बनने के लिए यह आवश्यक है कि ओसांक जमाव बिंदु से उपर हो।
पाला या तुषार : जब ओसांक हिमांक बिन्दु के नीचे होताहै तो अतिरिक्त नमी बर्फ के अति सूक्ष्म कणों में बदल जाती है। इसे पाला कहते हैं। इस प्रक्रिया में वायु की नमी प्रत्यक्ष रूप में बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदलजाती है। संघनन का यह रूप खेतों में खड़ी फसलो के लिये हानिकारक होता है।
धुंध और कोहरा: जब संघनन पृथ्वी-तल के निकट की वायु में छोटे-छोटेजल बिन्दुओं के रूप में होता है और ये जल बिन्दु वायु में तैरते रहते हैं, तो इसे धुंध कहते हैं। धुंध में दृश्यता एक किलोमीटर से अधिक और दो किलोमीटर से कम होती है। लेकिन जब दृश्यता एक किलोमीटर से कम होती है तो संघनन का यह रूप कोहरा कहलाता है।
धूम्र-कोहरा: नगरीय एवं औद्योगिक केद्रों में धुएँ की अधिकता के कारण केन्द्रकों की मात्रा की भी अधिक होती है जो कोहरे और कुहासे के बनने में मदद करते हैं। ऐसी स्थितिको, जिसमें कोहरा तथा धुआँ सम्मिलित रूप से बनते हैं, ‘धूम्र कोहरा’ कहते हैं।
बादलः वायुमण्डल में तैरते हुए जल बिन्दुओं, बर्फ के कणों के झुंड को बादल कहते है बादलों को सामान्यतया उनके रूप या आकृति तथा ऊँचाई के आधार परनिम्नवर्गों में बाँटा जा सकता हैः
1. पक्षाभ मेघ- पक्षाभ मेघों का निर्माण 8,000-12,000 मी॰ की उँचाईपर होता है। ये पतले तथा बिखरे हुए बादल होते हैं, जो पंखके समान प्रतीत होते हैं। ये हमेशा सपेफद रंग के होते हैं।
2. कपासी मेघ- कपासी मेघ रूई के समान दिखते हैं। ये प्रायः 4,000 से 7,000 मीटर की उँचाई पर बनते हैं। ये छितरे तथाइधर-उधर बिखरे देखे जा सकते हैं
3. स्तरी मेघ- ये परतदार बादल होतेहैं जो कि आकाश के बहुत बड़े भाग पर फैले रहते हैं।ये बादल सामान्यतः या तो उष्मा के ह्रास या अलग-अलगतापमानों पर हवा के आपस में मिश्रित होने से बनते हैं। ये 2440 मीटर की उंचाई पर बनते है
4. वर्षा मेघ- वर्षा मेघ काले या गहरे स्लेटी रंग के होते हैं। ये मध्यस्तरों या पृथ्वी के सतह के काफी नजदीक बनते हैं। ये सूर्य की किरणों के लिए बहुत ही अपारदर्शी होते हैं।कभी-कभी बादल इतनी कम उँचाई पर होते हैं कि येसतह को छूते हुए प्रतीत होते हैं। वर्षा मेघ मोटे जलवाष्प की आकृति विहीन संहति होते हैं।
वर्षण- जब जल तरल (जल बिन्दुओं) या ठोस (हिमकणों) रूप में धरातल पर गिरता है तोउसे वर्षण कहते हैं।वायु में संघनन की सतत प्रक्रिया के परिणामस्वरूप जल बिन्दुओंया हिम कणों का भार अधिक व आकार बड़ा हो जाता है तथा वे वायु में तैरते हुयेरूक नहीं पाते तो पृथ्वी के धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गिरने लगते हैं।
वर्षण जब पानी के रूप में होता है उसे वर्षा कहा जाता है, जब तापमान0°से0 से कम होता है तब वर्षण हिम कणों के रूप में होताहै जिसे हिमपात कहते हैं।
सहिम वर्षा: जब वायु की ठंडी परत से गुजरती हुई पानी की बूदें जमकर ठोस होकर धरातल पर गिरती हैं। तो इसे सहिम वर्षा कहते है
ओला पात - कभी वर्षा की बूँदें बादल से मुक्त होने के बाद बर्फ के छोटे गोलाकार ठोस टुकड़ों में परिवर्तित हो जाती हैं तथा पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं जिसे ओला पात कहा जाता है।
उत्पत्तिके आधार पर वर्षा को तीन प्रमुख प्रकारों में बाँटाजा सकता है
संवहनीय वर्षा- उष्णकटिबन्ध क्षेत्र में पृथ्वी के अत्याधिक गर्म होने से हवा गर्म होकर संवहन धाराओं के रूप में ऊपर की ओर उठती हैवायुमंडल की उपरी परत में पहुँचने के बाद तापमान के कम होने के कारण यह वायु ठंडी होने लगती है। परिणामस्वरूप संघनन की क्रिया होती है तथा कपासी मेघों का निर्माण होता है। और गरज तथा बिजली कड़कने के साथ मूसलाधार वर्षा होती है, इस प्रकार की वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं। इस प्रकारकी वर्षा विषुवतीय प्रदेशों में प्रायः प्रतिदिन दोपहर के बाद होती है।
पर्वतीय वर्षा: जब संतृप्त वायु के मार्ग में कोई पर्वत श्रेणी अवरोधउत्पन्न करती है तो यह वायुऊपरउठने के लिए बाध्य हो जाती है ऊपर उठती हुई वायु का तापमान गिरने के काण संघनन होने लगता है और बादल बनते हैं। इन बादलों से पवनाभिमुख ढाल परअत्याधिकें वर्षाहोती है। इस प्रकार की वर्षा को पर्वतीय वर्षा (स्थलवृफत वर्षा ) कहते हैं। यद्यपि जब ये पवनेंपर्वतीय श्रेणी को पार कर दूसरी ओर पवनविमुख ढालों पर नीचे उतरती हैं तो तापमान बढ़ने के कारण गर्म हो जाती हैं और बहुत कम वर्षा करती हैं। पवनविमुख ढाल की ओर के क्षेत्र जिनमें कम वर्षा होती है उसको वृष्टि छाया क्षेत्रा कहते हैं।
चक्रवातीय वर्षा या फ्रंटल वर्षा- जब विपरीत विशेषताओंवाली वायु राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य वाताग्र बनने से चक्रवात उत्पन्न होते है वाताग्र के साहरे गर्म हवा ऊपर उठती है और ठण्डी होने लगती है यह हवा संघनित होकर बादल बनाती हैंजो बिजलीकी चमक और गरज के साथविस्तृत रूप में वर्षा करते हैं। इस प्रकार की वर्षा को चक्रवातीय वर्षा या वाताग्री वर्षा कहते हैं।
संसार में वर्षा वितरण
विषुवतीय प्रदेशों में सबसे अधिक वर्षा होती है जब हम विषुवत् वृत्त से ध्रुव की तरफ जाते हैं, वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे घटती जाती है।
समुद्र तटीय प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है तथा महाद्वीपों के आन्तरिक भागोंकी ओर क्रमशः कम होता जाता है।
विश्वके स्थलीय भागों कीअपेक्षा महासागरों के ऊपर वर्षा अधिक होती है, क्योंकिवहां पानी के स्रोत की अधिकता के कारण वाष्पीकरणकी क्रिया लगातार होती रहती है।
विषुवतीय प्रदेश, उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी तटीय क्षेत्र तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी तटीय प्रदेशों में अधिक वर्षाहोती है।
उच्च भूमियों के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षाहोती हैः जबकि पवनविमुखढालों पर बहुत कमवर्षा होती है
- मानव के लिए वायुमंडल का सबसे महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन सा है-
(क) जलवाष्प (ख) धूलकण
(ग) नाइट्रोजन (घ) ऑक्सीजन (क) - निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन सी है जिसके द्वारा जल, द्रव से गैस में बदल जाता है-
(क) संघनन (ख) वाष्पीकरण
(ग) वाष्पोत्सर्जन (घ) अवक्षेपण (ख) - निम्नलिखित में से कौन सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है-
(क) सापेक्ष आर्द्रता (ख) निरपेक्ष आर्द्रता
(ग) विशिष्ट आर्द्रता (घ) संतृप्त हवा (घ) - निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊँचा बादल कौन सा है?
(क) पक्षाभ (ख) वर्षा मेघ
(ग) स्तरी (घ) कपासी (क) - वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखें|
वर्षण के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. संवहनीय वर्ष
2. पर्तीय वर्ष
3. चकवाती वर्ष - सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए|
दिए गए तापमान पर वायु की जल धारण करने की क्षमता की तुलना में उस वायु में उपसिथत जलवाष्प की मात्रा के प्रतिशत को सापेक्ष आर्द्रता कहा जाता है।
सापेक्ष आर्द्रता दिए गए तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जल धारण करने की क्षमता का अनुपात होता हैं इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं
सापेक्ष आर्द्रता = वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा X 100
वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता
सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प की मात्रा एवं वायु के तापमान पर निर्भर करता है वायु में जलवाष्प की मात्रा अधिक होने पर सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है वायु का तापमान कम होने पर सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है एवं तापमान बढ़ जाने पर सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है यह महासागरों के उपर सबसे अधिक तथा महाद्वीपों के उपर सबसे कम होती है। - ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
ऊँचाई के साथ-साथ तापमान घटने के कारण आर्द्र हवा ठंडी होती है और उसमे जलवाष्प को धारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। जिसके कारण वाष्पीकरण की दर घटती जाती है अतः ऊँचाई पर जाने पर हवा ठण्डी होने के कारण उसमे जलवाष की मात्रा तेजी से घटने लगती है - बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण कीजिए|
बादल पानी की छोटी बूँदों या बर्फ के छोटे रवों की संहति होता है जो कि पर्याप्त ऊँचाई पर स्वतंत्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण बनते हैं|
इनकी ऊँचाई, विस्तार, घनत्व तथा पारदर्शिता या अपारदर्शिता के आधार पर बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता है-
पक्षाभ मेघ
कपासी मेघ
स्तरी मेघ
वर्षा मेघ - विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए|
एक साल में पृथ्वी की सतह पर अलग-अलग भागों में होने वाली वर्षा की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है तथा यह अलग-अलग मौसमों में भी होती है|
जब हम विषुवत् वृत्त से ध्रुव की तरफ जाते हैं, वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे घटती जाती है|
विश्व के तटीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के भीतरी भागों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है|
विश्व के स्थलीय भागों की अपेक्षा महासागरों के ऊपर वर्षा अधिक होती है, क्योंकि वहाँ पानी के स्रोत की अधिकता के कारण वाष्पीकरण की क्रिया लगातार होती रहती है|
विषुवतीय प्रदेश, उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी तटीय क्षेत्र तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी तटीय प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है।
उच्च भूमियों के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा होती हैः जबकि पवनविमुख ढालों पर बहुत कम वर्षा होती है - संघनन के कौन-कौन से प्रकार हैं? ओस एवं तुषार के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए|
जलवाष्प का जल के रूप में बदलना संघनन कहलाता है| ऊष्मा का ह्रास ही संघनन का कारण बनता है|
ओस, कोहरा, तुषार एवं बादल संघनन के प्रकार हैं|
ओस का निर्माण : जब आर्दता धरातल के उपर हवा म संघनन केद्रकों पर संघनित न होकर ठोस वस्तु जैसे पत्थर, घास, तथा पौधों की पत्तियों को ठंडी सतहों पर पानी की बूँदों के रूप में जमा होती है तब इसे ओस के नाम से जाना जाता है| इसके बनने के लिए सबसे उपयुक्त अवस्थाएँ साफ आकाश, शांत हवा, उच्च सापेक्ष आर्दता तथा ठंडी एवं लंबी रातें है| ओस के बनने के लिए यह आवश्यक है कि ओसांक जमाव बिदु से उपर हो|
तुषार का निर्माण : तुषार ठंडी सतहों पर बनता है जब संघनन तापमान के जमाव बिदु से नीचे (0° से.) चले जाने पर होता है, अर्थात् ओसांक जमाव बिंदु पर या उसके नीचे होता है| अतिरिक्त नमी पानी की बूँदों की बजाय छोटे-छोटे बर्फ के रवों के रूप में जमा होती है| उजले तुषार के बनने की सबसे उपयुक्त अवस्थाएँ, ओस के बनने की अवस्थाओं के समान हैं, केवल हवा का तापमान जमाव बिंदु पर या उससे नीचे होना चाहिए|
sir ba second year of geography ka bhai note aplod kijye sir ji please 🥺🥺🥺🥺
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