- मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनियाजब छपाई नहीं थी तो हस्तलेख नही प्रचलित था और पांडुलिपियों के माध्यम से विचारों को लिखित में सरक्षित किया जाता था।
मुद्रण तकनीक के आने के बाद से मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया और यह परिवर्तन सामाजिक जीवन, धार्मिक जीवन तथा अन्य क्षेत्रों में स्पष्ट हुआ। - 1 शुरुआती छपी किताबें
मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी। तकरीबन 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख़्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाने लगी थीं।
कागज के दोनों तरफ छपाई संभव नहीं थी, इसलिए पारंपरिक चीनी किताब ‘एकार्डियन’ शैली में बनाई जाती थी
किताबों का सुलेखन या ख़ुशनवीसी करनेवाले लोग दक्ष सुलेखक या ख़ुशख़त होते थे ख़ुशनवीसी का अर्थ होता है - c (Calligraphy)
एक लंबे अरसे तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक चीनी राजतंत्र था।
चीनी राजतंत्र सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए बड़ी तादाद में किताबें छपवाता था।
सत्रहवीं सदी के आते-आते मुद्रित सामग्री के उपभोक्ता सिर्फ विद्वान और अधिकारी नहीं रहे। व्यापारी भी अपने कारोबार की जानकारी लेने के लिए मुद्रित सामग्री का इस्तेमाल करने लगे।
समय के साथ पढ़ना एक शौक बन गया और सामान्य जन भी किताबें लिखने और पढ़ने लगे।
उन्नीसवीं सदी के अंत में मशीनों से मुद्रण होने लगा और शंघाई प्रिंट-संस्कृति का नया केंद्र बन गया - जापान में मुद्रण
जापान में छपाई तकनीक चीनी बौद्ध प्रचारकों के द्वारा 768-770 ई0 के आसपास आई।
जापान की सबसे पुरानी, 868 ई. में छपी, पुस्तक डायमंड सूत्र है
एदो (टोक्यो) में शालीन शहरी संस्कृति की चित्रकारी का पता चलता है जिसमें हाथ से मुद्रित तरह-तरह की सामग्री - महिलाओं, संगीत के साजों, हिसाब-किताब, चाय अनुष्ठान, शिष्टाचार और रसोई पर लिखी किताबों से पुस्तकालय एवं दुकानें अटी पड़ी थीं।
त्रिपीटका कोरियाना वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में कोरियाई बौद्ध धर्म ग्रंथ है।
एदो शहर में जन्में कितागावा उतामारो ने एक नयी चित्रकला शैली विकसित की जिसे उकियो (तैरती दुनिया) के नाम से जाना गया। - 2 यूरोप में मुद्रण का आना
ग्यारहवीं सदी में चीनी कागज रेशम मार्ग से यूरोप पहुंचा।
1295 ई. में इटली निवासी मार्को पोलो चीन में काफी साल तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा।
मार्को पोलो अपने वुडब्लॉक (काठ की तख़्ती) वाली छपाई की तकनीक का ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।जल्द ही यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
कुलीन वर्गों और भिक्षु-संघों के लिए किताबों बेशकीमती वेलम या चर्म-पत्र पर ही छपते थे। लेकिन व्यापारी और विश्वविद्यालय के विद्यार्थी सस्ती मुद्रित किताबें ख़रीदते थे।
पहले सिर्फ अमीर लोग ही सुलेखक या कातिब(सुलेखन करने वाले) रखते थे लेकिन जैस-जैसे पुस्तकों का व्यापार बढ़ा पुस्तक-विक्रेताओं ने भी सुलेखक या कातिब को नौकरी पर रखना शुरू कर दिया।
जब मांग और ज्यादा बढ़ने लगी तो कातिबों द्वारा बनाई जाने वाली पांडुलिपियां मंहगी और श्रमसाध्य हो गई जिससे वुडब्लॉक छपाई ही लोकप्रिय हुई। किन्तु बढ़ती मांग के आगे वुडब्लॉक भी धीमे पड़ते दिखाई देने लगे और छपाई की एक नयी तकनीक के आविष्कार की जरुरत महसूस होने लगी
2.1 गुटेन्बर्ग और प्रिंटिंग प्रेस
1430 के दशक में स्ट्रैसबर्ग के योहान गुटेन्बर्ग ने छपाई मशीन(प्रिंटिंग प्रेस) का आविष्कार किया
1448 में गुटेनबर्ग ने पहली किताब बाइबिल छापी।
1450 से 1550 के बीच यूरोप में अनेक देशों में छापेखाने लग गए। हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रांति संभव हुई।
वेलम : चर्म-पत्र या जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह।
प्लाटेन : लेटरप्रेस में प्रयुक्त एक लकड़ी अथवा इस्पात का बोर्ड जिसे कागज की पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती थी।
- 3 मुद्रण क्रांति और उसका असर
जब किताबों की प्रतिलिपियां बनाना मशीनी छापेखाना से सस्ता और तेज हुआ तो पाठकों की संख्या और किताबों की मांग में भी इजाफा हुआ।
नया पाठक वर्ग
किताबों तक पहुँच आसान होने से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ और पढ़ने की एक नयी संस्कृति विकसित हुई।
छपाई क्रांति के पहले किताबें मँहगी और पर्याप्त थी इसलिए आमलोग मौखिक संसार में जीते थे। वे धार्मिक किताबों का वाचन सुनते थे ज्ञान का मौखिक लेन-देन ही होता था।
अब कि किताबों की पहुंच पाठकों तक आसान होने से अब धार्मिक किताबों का वाचन कर श्रवण की परम्परा अर्थात गाथागीत के स्वर मंद होने लगे।
किताबें सिर्फ साक्षर ही पढ़ सकते थे और यूरोप के अधिकांश देशों में बीसवीं सदी तक साक्षरता की दर सीमित थी। इसलिए मुद्रकों ने लोकगीत और लोककथाएँ छापनी शुरू कर दीं, और इन्हें सामूहिक ग्रामीण सभाओं में या शहरी शराबघरों में गाया-सुनाया जाता था। इस तरह मौखिक संस्कृति मुद्रित संस्कृति में दाख़िल हुई
प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार: सोलहवीं सदी यूरोप में रोमन कैथलिक चर्च में सुधार का आंदोलन। मार्टिन लूथर प्रोटेस्टेंट सुधारकों में से एक थे।
धार्मिक विवाद और प्रिंट का डर
छापेखाने खुलने से अभिव्यक्ति की आजादी को नया स्वरूप मिला जो लोग स्थापित सत्ता के विचारों से असहमत होने वाले लोग भी अब अपने विचारों को छापकर उन्हें फैला सकते थे।
मुद्रित किताब को लेकर सभी ख़ुश नहीं थे उनके अनुसार यदि छपे हुए और पढ़े जा रहे पर कोई नियंत्रण न होगा तो लोगों में अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे।
धर्मगुरुओं और सम्राटों तथा कई लेखकों एवं कलाकारों द्वारा व्यक्त की गई यह चिंता नव-मुद्रित और नव-प्रसारित साहित्य की व्यापक आलोचना का आधार बनी।
धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पिच्चानवे स्थापनाएँ लिखीं। इसमें लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी थी।
लूथर के तर्कों से चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार की शुरूवात हुई।
प्रिंट के प्रति तेहदिल से कृतज्ञ लूथर ने कहा, ‘‘मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।’’ कई इतिहासकारों का यह खयाल है कि छपाई ने नया बौद्धिक माहौल बनाया और इसमें धर्म-सुधार आंदोलन के नए विचारों के प्रसार में मदद मिली।
मुद्रण और प्रतिरोध
मुद्रित साहित्य से कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए।और धर्म की व्याख्या अपनी सोच के अनुरूप करने लगे थे।
इटली के एक किसान मेनोकियो ने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए इससे रोमन कैथेलिक चर्च नाराज हो गया और उसने धर्म विरोधियों को सुधारने के लिए इन्क्वीजीशन (धर्म अदालत) नामक संस्था का गठन किया।
धर्म पर उठाए जा रहे सवालों से परेशान रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक-विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगा दी ।
इन्क्वीजशन (धर्म-अदालत): विधर्मियों की शिनाख़्त करने और सजा देने वाली रोमन कैथलिक संस्था। - 4 पढ़ने का जुनून
17 वीं और 18 वीं में यूरोप के ज़्यादातर हिस्सों में साक्षरता बढ़ती रही। यूरोपीय देशों में साक्षरता और स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जैसे जुनून पैदा हो गया।
नए पाठकों की रुचि का ध्यान रखते हुए पुस्तक विक्रेताओं ने गाँव-गाँव जाकर छोटी-छोटी किताबें (पंचांग, लोक-गाथाएँ व लोकगीत) बेचने वाले फेरीवालों को काम पर लगाया।
इंग्लैंड में पेनी चैपबुक्स या एकपैसिया किताबें (सस्ती किताबें ) बेचने वालों को चैपमेन कहा जाता था।
फ़्रांस में बिब्लियोथीक ब्ल्यू का चलन था, जो सस्ते कागज पर छपी और नीली जिल्द में बँधी छोटी किताबें हुआ करती थीं।
अठारहवीं सदी के आरंभ से पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ अख़बार और पत्रों में युद्ध और व्यापार से जुड़ी जानकारी के अलावा दूर देशों की ख़बरें होती थीं।
दुनिया के जालिमों, अब हिलोगे तुम!
अठारहवीं सदी के मध्य ज्यादातर लोग मानने लगे कि किताबों के जरिए प्रगति और ज्ञानोदय होता है और किताबें दुनिया बदल सकती हैं
उनका मानना था कि किताबे निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लाएँगी जब विवेक और बुद्धि का राज होगा।
अठारहवीं सदी में फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने कहा की ‘‘ छापाखाना प्रगति का सबसे ताकवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा”।
निरंकुशवाद के आधर को नष्ट करने में छापेख़ाने की भूमिका के बारे में मर्सिए ने कहा, ‘‘हे निरंकुशवादी शासकों, अब तुम्हारे काँपने का वक़्त आ गया है! आभासी लेखक की कलम के शोर के आगे तुम हिल उठोगे!’’
4.2 मुद्रण संस्कृति और फ़्रांसिसी क्रांति
मुद्रण संस्कृति ने ही फ्रांसीसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया
छपाई के चलते ज्ञानोदय के चिंतकों (वॉल्तेयर और रूसो) के लेखन ने परंपरा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की आलोचना पेश की। उन्होंने रीति-रिवाजों की जगह विवेक के शासन पर बल दिया, और माँग की कि हर चीज को तर्क और विवेक की कसौटी पर ही कसा जाए। उन्होंने चर्च की धार्मिक और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार करके परंपरा पर आधरित सामाजिक व्यवस्था को दुर्बल कर दिया।
मुद्रण से वाद विवाद और संवाद की नई संस्कृति का जन्म हुआ। सारे पुराने मूल्य, संस्थाओं का आम जनता तर्क -वितर्क से पुर्नमूल्यांकन करने लगी। तर्क की ताकत से परिचित यह नयी ‘दुनिया’ धर्म और आस्था को प्रश्नांकित करने का मोल समझ चुकी थी। इस तरह बनी ‘सार्वजनिक दुनिया’ से सामाजिक क्रांति के नए विचारों का सूत्रपात हुआ।
1780 के दशक तक राजशाही और निरंकुशता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का ढेर लग चुका था। कार्टूनों और कैरिकेचरों (व्यंग्य चित्रों) में राजाओं और कुलीनों की विलासिता तथा सामान्य जन की मुश्किलों को दर्शाया गया जिससे राजतंत्र के खिलाफ क्रांति का वातावरण बना। - 5 उन्नीसवीं सदी
उन्नीसवीं सदी में यूरोप ने जन-साक्षरता में जबरदस्त उछाल आया, जिसके बूते महिलाओं और बच्चों के रूप में बड़ी मात्र में नया पाठकवर्ग तैयार हुआ।
बच्चे, महिलाएँ और मजदूर
उन्नीसवीं सदी के आख़िर से प्राथमिक शिक्षा के अनिवार्य होने के चलते बच्चे, पाठकों की एक अहम श्रेणी बन गए। पाठ्यपुस्तकों का लेखन किया जाने लगा।
फ़्रांस में 1857 में सिर्फ बाल-पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस या मुद्रणालय स्थापित किया गया।
जर्मनी में ग्रिम बंधुओं ने गांव गांव जाकर लोक कथाओं को एकत्र किया और मुद्रित कराया।
बच्चों के लिए अनुपयुक्त व अश्लील सामग्री प्रकाशित संस्करण में शामिल नहीं किया जाता था।
पेनी मैगजींस या एकपैसिया पत्रिकाएँ ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए होती थीं जो सही चाल-चलन और गृहस्थी सिखाने वाली निर्देशिकाएँ होती थी ।
उन्नीसवीं सदी महिलाएँ उपन्यासों की अहम पाठक मानी गईं। मशहूर उपन्यासकारों में लेखिकाएँ (जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें, जॉर्ज इलियट) अग्रणी थीं
17 वीं सदी से ही किराए पर किताब देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ गए थे।
इंग्लैंड में इनका उपयोग सफ़ेद-कॉलर मजदूरों, दस्तकारों और निम्नवर्गीय लोगों को शिक्षित करने के लिए किया गया।
नए तकनीकी परिष्कार
सत्रहवीं सदी का जो मुद्रण लकड़ी के ब्लॉक से होती थी अठारहवीं सदी के दोरान छापेखाने में धातु का प्रयोग होने लगा।
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम.हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस बना लिया था।
सदी के अंत तक ऑफसेट प्रेस आ गया था
उन्नीसवीं सदी की पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धरावाहिक के रूप में छापा इंग्लैंड में 1920 के दशक में लोकप्रिय किताबें एक सस्ती शिलिंग श्रंखला शृंखला के तहत छापी गईं
1930 में जब मंदी आई तब प्रकाशकों ने सस्ते कागजों का इस्तेमाल किया जिससे पाठको की जेब पर असर न पड़े।
मेरा बचपन और मेरे विश्वविद्यालय नमक रचना मैक्सिम गोर्की की हैं। - 6 भारत का मुद्रण संसार
मुद्रण युग से पहले की पांडुलिपियाँ
भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियां लिखे जाने की परम्परा समृद्ध थी।पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं।पांडुलिपियां नाजुक होने के कारण उनका परिवहन भी आसान नहीं था इन कारणों से वे मंहगी भी पड़ती।
छपाई भारत आई
प्रिंटिंग प्रेस भारत में सबसे पहले सोलहवीं सदी में गोवा में पुर्तगाली धर्म-प्रचारकों के साथ आया।
जेसुइट पुजारियों ने कोंकणी सीखी और कई किताबें मुद्रित कीं। कैथोलिक पुजारियों ने 1579 में कोचीन में पहली तमिल किताब छापी।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में बंगाल गजट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन शुरू हुआ।
जिसने खुद को यूँ परिभाषित किया, ‘हर किसी के लिए खुली एक व्यवसायिक पत्रिका, जो किसी के प्रभाव में नहीं है। यानी यह पत्रिका भारत में प्रेस चलाने वाले औपनिवेशिक शासन से आजाद, निजी अंग्रेजी उद्यम था, और इसे अपनी स्वतंत्रता पर अभिमान था।
जेम्स ऑगस्टस अक्सर अंग्रेजी सरकार के वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारियों से जुड़ी गपबाजी व दासों की बिक्री से जुड़े इश्तेहार छापता था। जिससे तत्कालीन गर्वनर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्ज ने उनपर मुकदमा कर दिया।
राजा राममोहन राय के मित्र गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट प्रकाशित किया जो पहला भारतीय अखबार था। - 7 धर्मिक सुधर और सार्वजनिक बहसें
समाज और धर्म-सुधारकों तथा हिंदू रूढ़िवादियों के बीच विधवा-दाह, एकेश्वरवाद, ब्राह्मण पुजारीवर्ग और मूर्ति-पूजा जैसे मुद्दों को लेकर तेज बहस हुई थी। पुस्तिकाओं और अख़बारों के जरिए तरह-तरह के तर्क समाज के बीच आने लगे।
कुछ लोग धर्म की अपनी-अपनी व्याख्या पेश कर रहे थे। कुछ मौजूदा रीति-रिवाजों की आलोचना करते हुए उनमें सुधार चाहते थे, जबकि कुछ अन्य समाज-सुधरकों के तर्कों के ख़िलाफ खड़े थे। ये सारे वाद-विवाद प्रिंट में, सरेआम पब्लिक में हुए। समाज सुधारकों ने मुद्रण संस्कृति के द्वारा समाज में नवीन विचारों का संचार आरंभ किया।
1821 में राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया।
1882 में जाम-ए-जहाँ और शम्सुल अखबार प्रकाशित हुए जिनकी भाषा फारसी थी।
उत्तर भारत में उलमा मुस्लिम राज्य के पतन और ईसाई धर्म प्रचारकों के द्वारा धर्मांतरण करवाने से डरे हुए थे। उन्होंने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का इस्तेमाल करते हुए धर्मग्रंथों के फारसी या उर्दू अनुवाद छापे और धर्मिक अख़बार तथा गुटके निकाले।
हिन्दुओं ने भी अपने धार्मिक ग्रंथ मुद्रित कराने आरंभ किए। सबसे पहली मुद्रित हिन्दु किताब तुलसीदास की रामचरित मानस थी। जो 1810 में कलकत्ता से प्रकाशित हुई थी।
उलमा: इस्लामी कानून और जरिया के विद्वान।
फतवा: अनिश्चय या असमंजस की स्थिति में, इस्लामी कानून जानने वाले विद्वान, सामान्यतः मुफ्ती, के द्वारा की जानेवाली वैधानिक घोषणा। - 8 प्रकाशन के नए रूप
आरंभ में भारतीय यूरोप के साहित्य को पढ़ते थे किन्तु उसकी विषयवस्तु भारतीयों के अनुकूल नहीं होने से भारतीय विषयवस्तु वाले साहित्य की जरूरत हुई और प्रकाशन के नए रूप अस्तित्व में आए।
अब साहित्य के अंतर्गत गीत, कहानियां, बाल साहित्य, सामाजिक और राजनीतिक तथा धार्मिक कथाओं का प्रकाशन होने लगा।
शब्दों के मुद्रण के साथ साथ अब चित्रों का भी मुद्रण होने लगा राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने तसवीरें बनाईं।
1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर और कार्टून छपने लगे थे। कुछ में शिक्षित भारतीयों के पश्चिमी पोशाक और पश्चिमी अभिरुचियों का मजाक उड़ाया गया
महिलाएँ और मुद्रण
मध्यवर्गीय घरों में महिलाओं का पढ़ना भी पहले से बहुत ज्यादा हो गया। उदारवादी पिता और पति अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे। कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी-शिक्षा की जरूरत को बार-बार रेखांकित किया। लेकिन अनेक परंपरावादी हिंदू मानते थे कि पढ़ी-लिखी कन्याएँ विधवा हो जाती हैं और मुसलमानों को लगता था कि उर्दु की रूमानी किताबें पढ़कर महिलाएं बिगड़ जाएंगी।
पूर्वी बंगाल की एक महिला राशसुन्दरी देवी ने ने रसोई में छुप छुप कर पढ़ना आरंभ किया ओर अपने जीवन पर आधारित आमार जीबन नामक आत्मकथा लखी। जो 1876 में प्रकाशित हुई। यह बंगाली भाषा में प्रकाशित पहली संपूर्ण आत्म-कहानी थी।
कैलाशबासिनी देवी ने महिलाओं के अनुभवों को संकलित कर 1860 के दशक में प्रकाशित करना शुरू किया।
ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जातियों की नारियों की दयनीय हालत के बारे लिखा।
उर्दु, तमिल, बंगाली और मराठी में मुद्रण पूर्व से विकसित हो गया था जबकि हिंदी की बात करें तो हिंदी में गंभीर मुद्रण 1870 के दशक से हुआ।
राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी पत्नी बनने के गुर सिखाने वाली पुस्तक स्त्री धर्म विचार लिखी।
प्रिंट और गरीब जनता
उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जाती थीं, जिसके चलते गरीब लोग भी बाजार से उन्हें ख़रीद सकते थे।
बीसवीं सदी के आरंभ मे शहरों व संपन्न गाँवों मे सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे थे, जिससे किताबों की पहुँच निस्संदेह बढ़ी।
‘निम्न-जातीय’ आंदोलनों के मराठी प्रणेता ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
बीसवीं सदी में महाराष्ट्र में भीमराव अंबेडकर और मद्रास में रामास्वामी नायकर (पेरियार) ने जोरदार कलम चलाई और उनके लेखन पूरे भारत में पढ़े गए।
कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवाल पुस्तक लिखकर जातीय और वर्गीय शोषण के रिश्ते को दिखाया।
सच्ची कविताएं नाम का संग्रह सुदर्शन चक्र के उपनाम से ही एक मिल मजदूर ने लिखी। - 9 प्रिंट और प्रतिबंध
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के समय अंग्रेज लेखक कम्पनी के अफसरों के भ्रष्टाचार और कुप्रशासन पर लिखते तो उन अंग्रेज लेखकों पर प्रतिबंध लगाया जाता।
कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने 1820 के दशक तक प्रेस की आजादी को नियंत्रित करने वाले कुछ कानून पास किए और कंपनी ने ब्रितानी शासन का उत्सव मनाने वाले अख़बारों के प्रकाशन को प्रोत्साहन देना चालू कर दिया।
1857 के बाद जब कम्पनी का शासन खत्म हो गया और ब्रिटिश संसद का शासन आया तो प्रेस और मुद्रण के प्रति सरकार का रवैया बदल गया।
आइरिश प्रेस कानून की तर्ज पर 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू कर स्थानीय भाषा के अखबारों पर प्रतिबंध लगाया गया।
दमन की नीति के बावजूद राष्ट्रवादी अख़बार देश के हर कोने में बढ़ते-फैलते गए। उन्होंने औपनिवेशिक कुशासन की रिपोर्टिंग और राष्ट्रवादी ताकतों की हौसला-अफजाई जारी रखी।
पंजाब के क्रांतिकारियों को जब 1907 में कालापानी भेजा गया तो बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी में जमकर आलोचना की।
- यूरोप में पहली प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया ?योहान गुटेन्बर्ग
- पहला ज्ञात प्रिंटिंग प्रेस किसने विकसित किया?जॉन गुटेनबर्ग,
- पहली प्रिंटिंग प्रेस द्वारा छपी पहली किताब कौन सी थी?बाइबिल
- गुटेन्बर्ग द्वारा छापी पहली पुस्तक कौन सी थी ?बाइबिल
- इंग्लैंड में फेरीवालों के द्वारा एक पैसे में बिकने वाली किताबों को क्या कहा जाता था ?पेनी चैपबुक्स या एकपैसिया किताब
- इंग्लैंड में 'चैपमैन' किसे कहा जाता था?'पेनी चैपबुक्स' बेचने वालों को
- ख़ुशनवीसी का अर्थ हैसुलेखन (Calligraphy)
- किसने कहा, “मुद्रण ईश्वर का सबसे बड़ा और सबसे बड़ा उपहार है।”मार्टिन लूथर
- सबसे पहले मुद्रण तकनीक विकसित करने वाले देशों के नाम बताइए?जापान, चीन और कोरिया
- चीनी पारंपरिक पुस्तक का नाम बताइए, जिसे मोड़ा गया था और किनारे से सिल दिया गया था।अकॉर्डियन बुक
- जापान की सबसे पुरानी छपी पुस्तक का नाम क्या था ?डायमंड सूत्र
- भारत में प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत किसने की-16 वीं शताब्दी पुर्तगाली
- 1871 में गुलामगिरी पुस्तक किसने लिखी ?ज्योतिबा फूले
- धर्म के खिलाफ लिखने वालों और उनको सजा देने के लिए गठित संस्था को क्या कहा जाता थाइन्क्वीजीशन
- मुद्रण तकनीक सबसे पहले कहाँ विकसित हुई ?चीन
- सस्ते कागज पर छपी और नीली जिल्द में बँधी छोटी किताबों को फ्रांस में क्या कहा जाता है?बिब्लियोथीक ब्ल्यू
- भारत में पांडुलिपियाँ किस सामग्री पर लिखी जाती थीं?पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हस्तनिर्मित कागज़ पर लिखी जाती थीं।
- पावर से चलने वाले बेलनाकार प्रेस को किसने परिष्कृत किया?न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम हो
- 1878 का वर्नाक्युलर एक्ट किस तर्ज पर बना था ?आईरिश प्रेस कानून
- तुलसीदास के रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कब और कहाँ छुपा ?कलकत्ता में 1810
- वुडब्लॉक प्रिंटिंग की तकनीक यूरोप/ इटली में कौन लाया ?मार्को पोलो
- बेशकीमती वेलम क्या था ?चर्म-पत्र या जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह।
- टोक्यो का प्राचीन नाम क्या था?एदो
- एक लंबे अरसे तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक कौन था ?चीनी राजतंत्र
- ज्योतिबा फुले ने 1871 में 'गुलामगिरी' पुस्तक क्यों लिखी थी?जाति प्रथा के अत्याचारों के खिलाफ लिखी गई थी।
- राजा राम मोहन राय ने कौन सी पुस्तक प्रकाशित की थी?संबाद कौमुदी
- जापान में कब और किसके द्वारा छपाई तकनीक लाई गई ?चीनी बौद्ध धर्मप्रचारकों द्वारा 768-770 ई. में
- ‘पंजाब केसरी’ का प्रकाशन किसने किया?बालगंगाधर तिलक
- धातुई फ्रेम, जिसमें टाइप बिछाकर इबारत (Text) बनाई जाती है उसे क्या कहते है ?गैली
- मिनर्वा और मर्करी क्या हैं ?विद्या की देवी और देवदूत
- किताबों की तुलना भिनभिनाती हुई मक्खियों से करने वाला कौन था?इरैस्मस
- इस्लामिक कानूनों का जानकार और विद्वान क्या कहलाता है ?उलेमा
- गीत गोविंद के रचनाकार कौन हैजयदेव
- एक किसान ने अपने इलाके में उपलब्ध किताबों को पढ़ना शुरू किया और बाइबिल के नए अर्थ गिनाते हुए ईश्वर और सृष्टि के बारे में नए विचार बनाए जिससे कैथोलिक चर्च नाराज हो गया। वह किसान कौन था?मेनोकियो
- उलमा कौन थे?उलमा इस्लामी कानून और शरियत के विद्वान् थे।
- "छापाखाना प्रगति का सबसे शक्तिशाली औजार है, इससे बन रहे जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।" यह कथन किसका था?लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए।
- छपाई के लिए इबारत (Text) को कम्पोज करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है ?कम्पोजीटर
- इन्क्वीजीशन (धर्म-अदालत) क्या थी?विद्यर्मियों की शिनाख्त करने और उन्हें सजा देने वाली रोमन कैथोलिक संस्था 'इन्क्वीजीशन' कहलाती थी । इसे धर्म-अदालत भी कहते हैं।
- त्रिपीटका कोरियाना क्या हैत्रिपीटका कोरियाना 13 वीं शताब्दी के मध्य में वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध धर्म ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है।
- प्रोटेस्टेन्ट धर्म सुधार से क्या अभिप्राय है?सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च की बुराइयों को दूर करने के लिए एक आन्दोलन शुरू हुआ जिसे प्रोटेस्टेन्ट धर्म सुधार कहते हैं। मार्टिन लूथर प्रोटेस्टेंट सुधारकों में से एक थे।
- गुटेन्बर्ग द्वारा मुद्रित बाइबिल की प्रमुख विशेषताएँ लिखिएगुटेन्बर्ग ने कुल 180 प्रतियां छापी थीं।बाइबिल की कोई भी दो प्रति एक जैसी नहीं थीं।हर पन्ने पर अक्षरों के अंदर रंग हाथ से भरे जाते थे
- वर्नाकुलर प्रेस एक्ट क्या था?ब्रिटिश भारत में, आयरिश प्रेस कानूनों के आधार पर वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878) को भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने और ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की अभिव्यक्ति को रोकने के लिए लागू किया गया था
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