खनिज: खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है।
खनिज प्रकृति में विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं, जिनमें सबसे कठोर हीरे से लेकर सबसे मुलायम तालक तक शामिल हैं।
चट्टानें खनिजों के सजातीय पदार्थों का संयोजन हैं।
कुछ चट्टानों में एक ही खनिज होता है, जैसे चूना पत्थर, जबकि अधिकांश चट्टानों में कई खनिज होते हैं।
भौतिक और रासायनिक स्थितियों के कारण खनिजों में रंग, कठोरता, क्रिस्टल रूप, चमक और घनत्व की एक विस्तृत श्रृंखला पाई जाती है।
खनिज हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं
लगभग सभी चीजें जो हम उपयोग करते हैं, एक छोटी सी पिन से लेकर एक ऊंची इमारत तक सभी खनिजों से बनी हैं।
हम जो खाना खाते हैं, उसमें भी खनिज होते हैं।
मानव प्रारंभिक युग से ही सजावट, धार्मिक और औपचारिक अनुष्ठानों के लिए खनिजों का उपयोग करता रहा है।
कार, बस, ट्रेन, हवाई जहाज खनिजों से निर्मित होते हैं।
रेलवे लाइन, सड़कों की पक्की सड़क, उपकरण और मशीनरी खनिजों से बनी हैं।
खनिजों की प्राप्ति का तरीका
अयस्क: खनिज आमतौर पर "अयस्क" के रूप में पाए जाते हैं।
प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ जिनसे खनिज को लाभप्रद रूप से निकाला जा सकता है, अयस्क कहलाते हैं।
खनिज विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं।
(i) आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में पाए जाते हैं।
आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज दो रूपों में पाए जाते हैं
छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। इनका निर्माण भी
अधिकतर उस समय होता है
टिन, तांबा, जस्ता और सीसा आदि जैसे प्रमुख धात्विक खनिज शिराओं और परतों से प्राप्त होते हैं।
(ii) अवसादी चट्टानों में कई खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं।
इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचयन व जमाव का परिणाम है।
कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
(iii) खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील
तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।
(iv) पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।
(v) महासागर के पानी में खनिजों की विशाल मात्रा होती है, जैसे, सामान्य नमक, मैग्नीशियम और ब्रोमाइड मुख्य रूप से समुद्री जल से प्राप्त होते हैं। महासागर के तल में मैंगनीज पिंड प्रचुर मात्रा में होते हैं।
रैट होल खनन - जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।
[I] लौह खनिज:
लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। लौह अयस्क और मैंगनीज प्रमुख लौह खनिज हैं।
लौह अयस्क: लौह अयस्क आधारभूत खनिज है और औद्योगिक विकास की रीढ़ है मैग्नेटाइट सबसे बेहतरीन लौह अयस्क है जिसमें 70% तक लौह की बहुत अधिक मात्रा होती है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं।
हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है।
इसमें मैग्नेटाइट (50-60%) की तुलना में थोड़ा कम लौह तत्व होता है ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और झारखंड प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक राज्य हैं। भारत में प्रमुख लौह अयस्क बेल्ट हैं:
ओडिशा-झारखंड बेल्ट: इस बेल्ट में हेमेटाइट अयस्क पाया जाता है
ओडिशा - बादामपहाड़ (जिला: मयूरभंज और केंदुझार)
झारखंड - गुआ और नोवामुंडी (जिला: सिंहभूम)
दुर्ग-बस्तर-चंद्रपुर बेल्ट: (छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र) इस बेल्ट में हेमेटाइट अयस्क पाया जाता है
छत्तीसगढ़ - बैलाडीला पर्वत श्रृंखला (जिला: बस्तर)
इन खदानों से लौह अयस्क विशाखापत्तनम बंदरगाह के माध्यम से जापान और दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
बल्लारी-चित्रदुर्ग-चिक्कमगलुरु-तुमकुरु बेल्ट - (कर्नाटक)
कर्नाटक के पश्चिमी घाट में स्थित कुद्रेमुख खदानें
अयस्क को पाइपलाइन के माध्यम से घोल के रूप में मंगलुरु बंदरगाह तक पहुँचाया जाता है।
महाराष्ट्र-गोवा बेल्ट - इसमें गोवा राज्य और महाराष्ट्र का रत्नागिरी जिला शामिल है।
मैंगनीज - मैंगनीज का उपयोग मुख्य रूप से स्टील और फेरो-मैंगनीज मिश्र धातु के निर्माण में किया जाता है। एक टन स्टील बनाने के लिए लगभग 10 किलोग्राम मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक और पेंट बनाने में भी किया जाता है।
[II] अलौह खनिज: अलौह खनिज वे खनिज हैं जिनमें लोहा नहीं होता है भारत के अलौह खनिजों के भंडार और उत्पादन बहुत संतोषजनक नहीं हैं। ये खनिज धातु विज्ञान, इंजीनियरिंग और विद्युत उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण: बॉक्साइट, सीसा, सोना।
तांबा: तांबा लचीला, तन्य और एक अच्छा सुचालक है, और इसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत केबल, इलेक्ट्रॉनिक्स और रासायनिक उद्योगों में किया जाता है। मध्य प्रदेश में बालाघाट की खदानें, राजस्थान में खेतड़ी की खदानें और झारखंड का सिंहभूम जिला तांबे के प्रमुख उत्पादक हैं।
बॉक्साइट: बॉक्साइट एल्युमिनियम का अयस्क है। बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सीलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है। एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यताभी पाई जाती है।
भारत के बॉक्साइट जमाव मुख्य रूप से अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों और बिलासपुर-कटनी के पठारी क्षेत्र में पाए जाते हैं। ओडिशा भारत में सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है। यहाँ कोरापुट जिले में पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
अ-धात्विक खनिज
अभ्रक: यह प्लेटों या पत्तियों की एक श्रृंखला से बना होता है। ये परतें इतनी पतली होती है कि अगर हज़ार चादरें एक साथ रखी जाएँ, तो यह केवल कुछ सेंटीमीटर मोटी बनती है।
इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, कम विद्युत हानि कारक, इन्सुलेटिंग गुणों और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।
इसके भंडार छोटा नागपुर पठार के उत्तरी किनारे पर पाए जाते हैं। बिहार-झारखंड की कोडरमा- गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं। राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस पास हैं।
आंध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।
चूना पत्थर: चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है। और लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।
खनन के खतरे
खनिकों द्वारा साँस में ली गई धूल और हानिकारक धुएं उन्हें फुफ्फुसीय रोगों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। खनन के कारण क्षेत्र के जल स्रोत दूषित हो जाते हैं। खदानों की छतें गिरने, जलमग्न होने और कोयला खदानों में आग लगने का जोखिम खनिकों के लिए लगातार खतरा बना रहता है।
कचरा और गारा फेंकने से भूमि, मिट्टी का क्षरण होता है और नदी और जलधाराओं का प्रदूषण बढ़ता है।
खनिजों का संरक्षण
खनिज संसाधनों का तेजी से उपभोग किया जा रहा है, जिसके निर्माण और संकेन्द्रण में लाखों वर्ष लगते हैं।
खनिज संसाधन सीमित और गैर-नवीकरणीय हैं।
उद्योग और कृषि खनिजों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
खनिज निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी है।
खनिजों की पुनःपूर्ति की दर खपत की दर की तुलना में बहुत कम है।
संरक्षण के तरीके:-
खनिजों का उपयोग योजनाबद्ध और टिकाऊ तरीके से किया जाना चाहिए।
कम लागत पर निम्न श्रेणी के अयस्कों के उपयोग की अनुमति देने के लिए बेहतर तकनीकों को विकसित करने की आवश्यकता है।
स्क्रैप धातुओं का उपयोग करके धातुओं का पुनर्चक्रण।
ऊर्जा संसाधन
ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया
जाता है।
ऊर्जा संसाधनों को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोतों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
पारंपरिक स्रोत- जलाऊ लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली (जलविद्युत और तापीय दोनों)।
ग्रामीण भारत में जलाऊ लकड़ी और गोबर के उपले सबसे आम हैं। ग्रामीण घरों में 70% से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता इन दोनों से पूरी होती है, लेकिन घटते वन क्षेत्र के कारण इनका उपयोग जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा, गोबर के उपलों के उपयोग को भी हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि यह सबसे मूल्यवान खाद की खपत करता है जिसका उपयोग कृषि में किया जा सकता है।
कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस को फिर से बनने में लाखों साल लगते हैं; इस प्रकार, वे सीमित और गैर-नवीकरणीय हैं।
गैर-पारंपरिक स्रोत- सौर, पवन, ज्वारीय, भूतापीय, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा।
वे स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हैं, इसलिए वे नवीकरणीय हैं।
कोयला: भारत में कोयला सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग बिजली उत्पादन, औद्योगिक और घरेलू जरूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। यह लोहा और इस्पात उद्योग के लिए एक अपरिहार्य कच्चा माल है। कोयले के चार प्रकार:
एन्थ्रेसाइट- यह उच्चतम गुणवत्ता वाला कठोर कोयला है। इसमें कार्बन का प्रतिशत सबसे अधिक होता है।
बिटुमिनस- यह वाणिज्यिक उपयोग में सबसे लोकप्रिय कोयला है। उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले (धातुकर्म कोयला) का उपयोग धातुकर्म में किया जाता है।
बिटुमिनस कोयले का लोहा गलाने के लिए विशेष महत्व है।
लिग्नाइट- यह निम्न श्रेणी का भूरा कोयला है
यह नरम होता है और इसमें नमी की मात्रा अधिक होती है।
मुख्य लिग्नाइट भंडार तमिलनाडु में नेवेली है।
पीट- इसमें कार्बन की मात्रा कम और नमी की मात्रा अधिक होती है।
इसकी ताप क्षमता कम होती है।
कोयले की उपस्थिति:
भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है
एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।
मुख्य रूप से धातुशोधन कोयला निम्न स्थानों पर पाया जाता है
(i) दामोदर घाटी बेल्ट (पश्चिम बंगाल, झारखंड) जिसमें झरिया, रानीगंज और बोकारो की महत्वपूर्ण कोयला खदानें हैं
(ii) गोदावरी घाटी बेल्ट
(iii) महानदी घाटी बेल्ट
(iv) वर्धा घाटी बेल्ट।
टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों मेघालय,असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।
पेट्रोलियम
पेट्रोलियम या खनिज तेल कोयले के बाद भारत में अगला प्रमुख ऊर्जा स्रोत है
इसे पाइपलाइनों द्वारा आसानी से ले जाया जा सकता है और यह कोई अवशेष नहीं छोड़ता है।
यह गर्मी और प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनरी के लिए स्नेहक और कई विनिर्माण उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है
तेल शोधन शालाएँ -संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है। तेल धारक परत संरध्र चूना पत्थर या बालुपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को ऊपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं। पेट्रोलियम संरध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।
भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।
अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्रा है। असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक
राज्य है। डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्राकृतिक गैस
यह एक स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है क्योंकि इसे जलाने पर बहुत कम कार्बन और प्रदूषक निकलते हैं।
प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम जमाव के साथ पाई जाती है और जब कच्चे तेल को सतह पर लाया जाता है तो यह
मुक्त हो जाती है।
इसका उपयोग घरेलू और औद्योगिक ईंधन के रूप में, खाना पकाने के ईंधन (पीएनजी) और परिवहन ईंधन (सीएनजी) के रूप में किया जाता है।
इसका उपयोग बिजली क्षेत्र में बिजली पैदा करने के लिए ईंधन के रूप में, उद्योगों में हीटिंग के उद्देश्य से, रासायनिक, पेट्रोकेमिकल और उर्वरक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में, परिवहन ईंधन के रूप में और खाना पकाने के ईंधन के रूप में किया जाता है।
कृष्णा-गोदावरी बेसिन के अपतटीय क्षेत्र में वर्तमान में भारत में उपलब्ध प्राकृतिक गैस की सबसे बड़ी मात्रा है। यह मुंबई हाई, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी उपलब्ध है।
गेल द्वारा निर्मित पहली 1,700 किलोमीटर लंबी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) क्रोस कंट्री गैस
पाइपलाइन ने मुंबई हाई और बसीन गैस क्षेत्रों को पश्चिमी और उत्तरी भारत में विभिन उर्वरक, बिजली
और औद्योगिक परिसरों से जोड़ा है।
विद्युत
आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने ज्यादा विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है। विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न कीजाती है
(i) गैर-पारंपरिक तरीके से प्रवाही जल से हाइड्रो-टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है
(ii) पारंपरिक तरीके से कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है।
हाइड्रो बिजली तेज़ बहने वाले पानी से उत्पन्न होती है, जो एक नवीकरणीय संसाधन है।
भारत में भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी निगम, कोपिली हाइडल परियोजना आदि जैसी कई बहुउद्देश्यीय परियोजनाएँ हैं जो पनबिजली का उत्पादन करती हैं।
कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस का उपयोग करके थर्मल बिजली उत्पन्न की जाती है। थर्मल पावर स्टेशन बिजली उत्पन्न करने के लिए गैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हैं
ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत
परमाणु या परमाणु ऊर्जा
परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है और इसका उपयोग विद्युत उफर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। यूरेनियम और थोरियम जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल की मोनाजाइट रेत भी थोरियम से भरपूर है
सौर ऊर्जा
भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, इसमें सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं।
फोटोवोल्टिक तकनीक सूर्य के प्रकाश को सीधे बिजली में बदल देती है।
सौर ऊर्जा के उपयोग से ग्रामीण परिवारों की जलाऊ लकड़ी और गोबर के उपलों पर निर्भरता कम हो सकेगी।
इससे जीवाश्म ईंधन के संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
पवन ऊर्जा
भारत में पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं
ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बड़ी पवन चक्कियों को घुमाने के लिए पवन का उपयोग किया जाता है।
सबसे बड़ा पवन फार्म क्लस्टर तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरै तक स्थित है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप में महत्वपूर्ण पवन फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी उपयोग के लिए जाने जाते हैं।
बायोगैस
ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू खपत के लिए बायोगैस का उत्पादन करने के लिए झाड़ियों, खेत के कचरे, पशु और मानव अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है।
यह केरोसिन, गोबर के उपले और चारकोल से अधिक कुशल है।
बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारी और व्यक्तिगत स्तर पर स्थापित किए जा सकते हैं।
ग्रामीण भारत में मवेशियों के गोबर का उपयोग करने वाले संयंत्रों को 'गोबर गैस संयंत्र' के रूप में जाना जाता है।
ये किसान को ऊर्जा और बेहतर गुणवत्ता वाली खाद के रूप में दोहरा लाभ प्रदान करते हैं।
यह ईंधन की लकड़ी और गोबर के उपलों को जलाने से पेड़ों और खाद के नुकसान को रोकता है।
ज्वारीय ऊर्जा
महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर, बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।
भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुंदर
वन क्षेत्रा में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।
भू-तापीय ऊर्जा -
पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
हम जानते हैं कि पृथ्वी के अंदर का भाग बहुत गर्म है। कुछ स्थानों पर यह ऊष्मा दरारों के माध्यम से सतह पर निकलती है। ऐसे क्षेत्रों में भूजल गर्म हो जाता है यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
भारत में दो भू-तापीय ऊर्जा परियोजनाएँ स्थापित की गई हैं जो हिमाचल प्रदेश में मणिकम के पास पार्वती घाटी में और लद्दाख में पुगा घाटी में स्थित है।
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण :
आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर - कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है। स्वतंत्रता के बाद से लागू की गई आर्थिक विकास योजनाओं को चालू को चालू रखने के लिए उफर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता थी। परिणामस्वरूप, पूरे देश में सभी रूपों में ऊर्जा की खपत लगातार बढ़ रही है। ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण ऊर्जा विकास का एक स्थायी मार्ग विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का बढ़ता उपयोग स्थायी ऊर्जा के दो आधार हैं। हमें सीमित ऊर्जा संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सतर्क दृष्टिकोण अपनाना होगा।
व्यक्तिगत वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का अधिक उपयोग करना।
उपयोग में न होने पर बिजली के उपकरणों को बंद करना, बिजली की बचत करने वाले उपकरणों का उपयोग करना।
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि जैसे ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों का उपयोग करना।
बिजली उपकरणों की नियमित रूप से जाँच करवाना ताकि नुकसान और रिसाव का पता लगाया जा सके।
- भारत में किस स्थान पर भूतापीय ऊर्जा के लिए प्रायोगिक परियोजना स्थापित की गई है?
मणिकरण - भारत में पाए जाने वाले दो प्रकार के लौह अयस्क कौन से हैं ?(i) हेमेटाइट (ii) मैग्नेटाइट
- भारत का कौन सा राज्य बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है ?ओडिशा
- भारत में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन कौन सा है ?कोयला
- भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य कौन सा है?असम।
- 'गोबर गैस प्लांट' किसानों के लिए कैसे फायदेमंद हैं'गोबर गैस प्लांट' किसानों के लिए ऊर्जा और बेहतर गुणवत्ता वाली खाद के रूप में फायदेमंद हैं।
- बैलाडीला लौह अयस्क क्षेत्र को इसका नाम कैसे मिला?बैलाडीला पहाड़ियाँ बैल के कूबड़ जैसी दिखती हैं, इसलिए इसका नाम बैलाडीला लौह अयस्क क्षेत्र पड़ा।
- ईंधन के रूप में मवेशी केक के उपयोग को क्यों हतोत्साहित किया जाना चाहिए?(i) यह सबसे मूल्यवान खाद का उपभोग करता है जिसका उपयोग कृषि में किया जा सकता है।(ii) यह प्रदूषण पैदा करता है।
- गुणवत्ता के आधार पर एन्थ्रेसाइट और बिटुमिनस कोयले के बीच अंतर बताइए।एन्थ्रेसाइट(i) एन्थ्रेसाइट उच्चतम गुणवत्ता वाला कठोर कोयला है।(ii) यह ऊष्मा और कीमत में सबसे मूल्यवान है(iii) एन्थ्रेसाइट कोयले में 80% से अधिक कार्बन होता है।बिटुमिनस(i) यह एन्थ्रेसाइट कोयले की तुलना में निम्न श्रेणी का और नरम होता है।(ii) यह वाणिज्यिक उपयोग में सबसे लोकप्रिय कोयला है।(iii) बिटुमिनस कोयले का लोहा गलाने के लिए विशेष महत्व है
- भारत के सभी छह परमाणु ऊर्जा स्टेशनों के नाम बताएँ।(i) नरौरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन(ii) काकरापारा परमाणु ऊर्जा स्टेशन।(iii) तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन।(iv) कैगा परमाणु ऊर्जा स्टेशन।(v) कलपक्कम परमाणु ऊर्जा स्टेशन।(vi) रावत भाटा परमाणु ऊर्जा स्टेशन।
- खनन गतिविधि खनिकों और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए कैसे हानिकारक है?(i) खननकर्ताओं द्वारा साँस में ली गई धूल और हानिकारक धुएँ उन्हें फुफ्फुसीय रोगों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।(ii) खनन के कारण क्षेत्र के जल स्रोत दूषित हो जाते हैं।(iii) खदानों की छतों के ढहने, जलमग्न होने और कोयला खदानों में आग लगने का जोखिम खनिकों के लिए लगातार खतरा है।(iv) अपशिष्ट और घोल को डंप करने से भूमि, मिट्टी का क्षरण होता है और जलधारा और नदी प्रदूषण में वृद्धि होती है।