निर्माण उद्योग - प्राथमिक व्यवसाय से प्राप्त कच्चे माल से किसी वस्तु का उत्पादन करना विनिर्माण कहलाता है इस प्रकार की वस्तुओं का निर्माण विभिन्न प्रकार के उद्योगों में किया जाता है जिन्हें निर्माण उद्योग कहते है
उद्योगों के प्रकार
उद्योगों को विभिन्न आधारों पर
वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें से निम्नलिखित आधार प्रमुख हैं-
1.
आकार के
आधार पर
(1) वृहत उद्योग (बडे़ पैमाने के उद्योग)
(2)मध्यम उद्योग
(3) लघु व
कुटीर उद्योग
2.
स्वामित्व
के आधार
(1) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग
(2) निजी क्षेत्र
के उद्योग
(3) संयुक्त
(मिश्रित) क्षेत्र
के उद्योग
3.
उत्पादों
के उपयोग के आधार पर
(1) मूल पदार्थ उद्योग
(2) पूँजीगत पदार्थ उद्योग
(3) मध्यवर्ती पदार्थ उद्योग
(4) उपभोक्ता पदार्थ उद्योग
4.
कच्चे माल
के आधार पर
(1) कृषि आधारित उद्योग
(2) खनिज आधारित उद्योग
(3) वन आधारित उद्योग
(4) पशु
आधारित उद्योग
(5)
रसायन
आधारित उद्योग
5.
निर्मित
पदार्थों की प्रकृत्ति के आधार पर
(1) धातुकर्म उद्योग
(2) यान्त्रिक इंजनियरिंग उद्योग,
(3) रासायनिक और सम्बद्ध उद्योग
(4) वस्त्र उद्योग
(5) खाद्य संसाधन उद्योग
(6) विद्युत
उत्पादन उद्योग,
(7) इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
(8) संचार
उद्योग
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने
वाले कारक
आर्थिक दृष्टि से, निर्माण उद्योग को उस स्थान पर स्थापित
करना चाहिए जहाँ उत्पादन मूल्य और निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक वितरण करने का
मूल्य न्यूनतम हो। उद्योग
अपनी लागत घटाकर लाभ को बढ़ाते हैं
उद्योगों
की अवस्थिति निम्नलिखित कारक प्रभावित करते है
1. कच्चा
माल- कच्चा माल उन उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करता है जिनमें भारी या ह्रास
वाला कच्चा माल प्रयुक्त होता है इन उद्योगों को परिवहन व्यय घटाने के लिए कच्चे
माल के स्रोत के समीप स्थापित किए जाते हैं जैसे लोहा उद्योग में भारी कच्चा माल
प्रयुक्त होता है इसलिए ये उद्योग लोहे अयस्क व कोयला खदानों के समीप अवस्थित है
चीनी उद्योग में भार ह्रास वाला कच्चा माल प्रयुक्त होता है इसलिए यह उद्योग गन्ना
उत्पादक क्षेत्रों के समीप अवस्थित होते हैं
2. शक्ति के
साधन- जिन उद्योगों में शक्ति की अधिक आवश्यकता होती है उन उद्योगों को ऊर्जा
स्रोतों के समीप स्थापित किया जाता है जैसे लोहा इस्पात उद्योग कोयला खानों के पास
व एल्युमीनियम उद्योग तथा कृत्रिम नाइट्रोजन उद्योग जलविद्युत स्रोतों के पास
स्थित होते हैं
3. परिवहन व
संचार के साधन- कच्चे माल को कारखाने तक लाने व तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने के
लिए तीव्र व सक्षम परिवहन की आवश्यकता होती है साथ ही उद्योग संबंधी सूचनाओं का
आदान-प्रदान करने के लिए सुदृढ़ संचार के साधनो की आवश्यकता होती है अतः जिन
क्षेत्रों में सुदृढ़ परिवहन जाल व मजबूत सूचना तंत्र उपलब्ध होता है वहां
औद्योगिक विकास अधिक होता है जैसे पश्चिमी यूरोप व उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों
में विकसित परिवहन के जाल के कारण उद्योगों का जमाव अधिक है
4. बाजार -
उद्योगों में तैयार माल को बेचने के लिए बाजार एक प्रथम आवश्यकता है जिन उद्योगों
में प्रयुक्त कच्चा माल हल्का व भार ह्रास वाला नहीं होता है उनकी स्थापना बाजार
के समीप की जाती है जैसे सूती वस्त्र उद्योग। पेट्रोलियम परिशोधनशालाओं की स्थापना
भी बाजारों के निकट की जाती है क्योंकि अपरिष्कृत तेल का परिवहन आसान होता है और
उनसे प्राप्त कई उत्पादों का उपयोग दूसरे उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया
जाता है।
5. कुशल
श्रमिक- जिन उद्योगों में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है वे उद्योग वहां
स्थापित किए जाते हैं जहां आसानी से कुशल श्रमिक उपलब्ध हो सके
6.
औद्योगिक
नीति- एक प्रजातांत्रिक देश का उद्देश्य संतुलित प्रादेशिक विकास के साथ आर्थिक
समृद्धि लाना है। इसलिए भारत में
भिलाई और
राउरकेला में लौह-स्पात उद्योग की स्थापना देश के पिछड़े जनजातीय क्षेत्रों के
विकास के निर्णय पर आधारित थी।
भारत के मुख्य उद्योग
1. लौह-इस्पात उद्योग
किसी भी देश के औद्योगिक विकास के लिए
लौह-इस्पात उद्योग एक मूल आधार होता है। लौह इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क और
कोककारी कोयला, चूनापत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका आदि कच्चे
माल की आवश्यकता होती है। ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं।
इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग की सबसे अच्छी स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के निकट होती
है।
भारत में छत्तीसगढ़, उत्तरी उड़ीसा, झारखंड और पश्चिमी पश्चिम बंगाल के
भागों को समाविष्ट करते हुए एक अर्धचंद्राकार प्रदेश है जो कि उच्च कोटि के लौह
अयस्क, अच्छे गुणवत्ता वाले कोककारी कोयला और
अन्य संपूरकों से समृद्ध है। जिसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश में लौह-इस्पात उद्योग
प्रारंभ में ही स्थापित है भारतीय लौह-इस्पात उद्योग के अंतर्गत बड़े एकीकृत इस्पात
कारखानों और छोटी इस्पात मिलें भी सम्मिलित हैं। इसके अंतर्गत द्वितीयक उत्पादक, ढलाई मिलें और आनुषंगिक उद्योग भी आते
हैं।
एकीकृत इस्पात कारखाने
(i) टाटा आइरन
एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) - इसकी
स्थापना 1907 में जमशेदपुर (झारखण्ड ) में की गई। यह कारखाना मुंबई-कोलकाता रेल मार्ग के
समीप स्थित है जो भारत का सबसे बड़ा लौहा इस्पात कारखाना है इस संयंत्र को जल
सुवर्ण रेखा,खार व कोई
नदी से, लोहा नौआमंडी व बादाम पहाङी तथा कोयला
झरिया, रानीगंज व बोकारो से प्राप्त होता है
इस कारखाने में इस्पात के अलावाा लोहे के गर्डर,
रेल का
सामान व कांटेदार तार बनाए जाते हैं
(ii) भारतीय
लौहा और इस्पात कम्पनी (IISCO)- इसकी
स्थापना 1874 में हुई इस कंपनी में तीन इकाइयां है
कुल्टी, बर्नपुर व हीरापुर (पश्चिम बंगाल) इन
तीनों संयंत्रों को कोयला दामोदर घाटी क्षेत्र (रानीगंज, झुरिया,
रामगढ़)
से प्राप्त होता है लोहा अयस्क सिंह भूमि (झारखंड) तथा जल बराकर नदी से प्राप्त
होता है तीनों संयंत्र कोलकाता-आसनसोल रेल मार्ग पर स्थित है हीरापुर में कच्चा
लोहा (पिग आईरन) बनता है जिसे कुल्टी में इस्पात में बदला जाता है इसे यहां से
बर्नपुर भेज कर चद्दरे, एंगल, पाती,
रेलवे
स्लीपर व पाइप बनाए जाते हैं इसका प्रबंधन सार्वजनिक क्षेत्र के प्रक्रम SAIL के पास है
(iii)
विश्वेश्वरैया
आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (WISCO) - इसकी
स्थापना 1923 में भद्रावती (कर्नाटक) में की गई इस
संयंत्र को बाबाबूदन की पहाड़ियों के केमानगुंडी (कर्नाटक) से लोहा अयस्क प्राप्त
होता है शिवसमुद्रम प्रताप से जल विद्युत शक्ति प्राप्त होती है एवं जल भद्रावती
नदी से मिलता है इसका
नियंत्रण SAIL के पास है पहले इसका नाम मैसूर आयरन एंड स्टील
कंपनी (MISCO) था यह सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इकाई
है यह संयंत्र विशिष्ट इस्पात एवं एलॉए का उत्पादन करता है।
(iv) राउरकेला इस्पात संयंत्र - यह कारखाना जर्मनी के सहयोग से संख व कोयल नदियों के संगम पर राउकेला (उड़ीसा) में स्थापित किया गया जो वर्तमान में हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड के अधीन है इस संयंत्र की स्थापना कच्चे माल की निकटता के आधार पर की गई है इस संयंत्र को लोहा अयस्क क्योंझर व सुन्दरगढ तथा कोयला झरिया से प्राप्त होता है जलविद्युत हीराकुंड परियोजना से व जल कोयल एवं शंख नदी से मिलता है राउरकेला में चपटे आकार की वस्तुएं जैसे प्लेटें, पत्तियां,टीन चादरें आदि बनाई जाती है जिनका उपयोग रेल के डिब्बे व जलयान बनाने मे कियाा जाता है
(v)
भिलाई
इस्पात संयंत्र (छत्तीसगढ़)- यह संयंत्र रूस की सहायता सेेेे भिलाई (छत्तीसगढ़)
में स्थापित किया गया इस संयंत्र को लोहा
अयस्क डल्ली राजहरा की खानों से,
कोयला
कोरबा (छत्तीसगढ़) व करमाली(झारखंड) सेे व जल तंदुला बांध से प्राप्त होता है यह
संयंत्र मुंबई-कोलकाता रेल मार्ग पर स्थित है यहां उत्पादित इस्पात विशाखापट्टनम
हिंदुस्तान शिपयार्ड में भेजा जाता है भिलाई इस्पात संयंत्रा
(vi)
दुर्गापुर
इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र ब्रिटिश सरकार के सहयोग से दामोदर नदी के किनारे
दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में
स्थापित
किया गया है वर्तमान में यह संयंत्र सेल द्वारा संचालित है इस संयंत्र को लोहा
अयस्क नौआमंडी से, कोयला
रानीगंज, झरिया व बोकारो से तथा जल विद्युत
दामोदर घाटी कार्पोरेशन से प्राप्त होती है यहां रेल के पहिए, पट्टरिया, धुरियां व छड़े बनती है
(vii)
बोकारो
इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र रूस की सहायता से बोकारो व दामोदर नदियों के संगम पर
बोकारो (झारखंड) में स्थापित किया गया है इस संयंत्र को लौहा अयस्क क्योंझर (उड़ीसा) से, कोयला झरिया से, जल विद्युत दामोदर घाटी कारपोरेशन से, तथा जल दामोदर व बोकारो नदियों से
प्राप्त होता है
(viii)
विशाखापट्टनम
इस्पात संयंत्र (विजाग इस्पात संयंत्र) - यह संयंत्र विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित
है जो बंदरगाह पर स्थित (पत्तन आधारित) देश का पहला इस्पात संयंत्र है एवं अत्याधुनिक
तकनीक से बनाया गया है इसे लोहा अयस्क
बैलाडीला
से व कोयला दामोदर घाटी से प्राप्त होता है (ix)विजयनगर
इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र विजयनगर (कर्नाटक) में स्थित है जो पूर्णतः स्वदेशी
तकनीकी पर आधारित है यहाँ उच्च कोटि का नर्म इस्पात बनता है
(x)सेलम
इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र सेलम (तमिलनाडु) में स्थापित है इसे कोयला नवेली से, लोहा अयस्क व अन्य सामग्री समीपवर्ती
क्षेत्रों से प्राप्त होती है यहां जंग नहीं लगने वाला इस्पात बनाया जाता है
सूती वस्त्र उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत
उद्योगों में से एक है। भारत में सूती वस्त्र निर्माण की परम्परा अति प्राचीन है
भारत संसार में उत्कृष्ट कोटि का मलमल,
कैलिको, छींट और अन्य प्रकार के अच्छी गुणवत्ता
वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास
निम्न कारण से हुआ ।
1.
भारत एक
उष्णकटिबंधीय देश है एवं सूती कपड़ा गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए एक आरामदायक
वस्त्र है।
2.
भारत में
कपास का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था।
3.
देश में
इस उद्योग के लिए आवश्यक कुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे।
भारत में 1854 में मुंबई में कावस जी डाबर द्वारा
प्रथम सूती वस्त्र मिल की स्थापना की गई मुंबई को
भारत की सूती वस्त्र की राजधानी कहा जाता है इस शहर को
सूती वस्त्र निर्माण केंद्र के रूप में कई लाभ थे।
1. यह गुजरात और महाराष्ट्र के कपास
उत्पादक क्षेत्रों के बहुत निकट था।
2. कच्ची कपास इंग्लैंड को निर्यात करने
के लिए मुंबई पत्तन तक लाई जाती थी। इसलिए कपास स्वयं मुंबई नगर में उपलब्ध थी।
3. मुंबई उस समय वित्तीय केंद्र था एवं
उद्योग प्रारंभ करने के लिए आवश्यक पूँजी उपलब्ध थी।
4. रोजगार अवसर प्रदान करने वाला बड़ा नगर
होने के कारण यह श्रमिकों के लिए एक आकर्षक केंद्र था।
5. सूती वस्त्र मिलों के लिए आवश्यक
मशीनों का आयात इंग्लैंड से किया जा सकता था।
इसके बाद अहमदाबाद में 1861 और 1863
में
क्रमशः शाहपुर मिल (Shahpur mill) और केलिको
मिल (Calico mill) की शुरूआत हुई । 1947
तक भारत
में मिलों की संख्या 423 तक पहुँच
गई लेकिन देश विभाजन के बाद अच्छी गुणवत्ता वाले कपास उत्पादक क्षेत्रों में से
अधिकांश पश्चिमी पाकिस्तान में चले गए जिसका इस उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा ।
अहमदाबाद एवं मुंबई में सूती वस्त्र मीलों की स्थापना के बाद भारत में सूती वस्त्र
उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ। स्वदेशी आंदोलन के कारण ब्रिटेन के बने सामानों का
बहिष्कार कर बदले में भारतीय सामानों को उपयोग
ने सूती
वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित किया
उद्योग की अवस्थिति
कपास एक शुद्ध कच्चा माल है जिसका वजन
निर्माण प्रक्रिया में नहीं घटता है। अतः अन्य दूसरे कारक, जैसे शक्ति, श्रमिक,
पूँजी
अथवा बाजार आदि उद्योग की स्थिति को निर्धारित करते हैं। वर्तमान में सूती वस्त्र
उद्योग को बाजार के निकट स्थापित करने की प्रवृत्ति पाई जाती है
कानपुर में स्थानिक निवेश के कारण और कोलकाता में पत्तन की सुविधा के कारण
सूती वस्त्र मिलें स्थापित की गईं। तमिलनाडु में जलविद्युत शक्ति के विकास के कारण
कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई उज्जैन,
भरूच, आगरा,
हाथरस, कोयंबटूर और तिरुनेलवेली में कम श्रम
लागत के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की
गई।प्रकार सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना में कच्चे माल के स्थान पर बाजार, सस्ते क श्रमिक, पूँजी तथा विद्युत शक्ति की उपलब्धता
आदि करक अधिक महत्त्वपूर्ण होते है
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वितरण
वर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी,
शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर,
इंदौर और
उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं। ये सभी केंद्र परंपरागत केंद्र
हैं और कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित हैं।
1.महाराष्ट्र-
सूती वस्त्र उत्पादन में महाराष्ट्र देश में प्रथम स्थान पर है महाराष्ट्र में
मुंबई सर्वाधिक महत्वपूर्ण केंद्र है जहां देश की प्रथम सूती वस्त्र मिल स्थापित
की गई मुंबई को वस्त्र की राजधानी कहा जाता है इसके अलावा सोलापुर, सांगली,
जलगाँव, औरंगाबाद व कोल्हापुर, वर्धा,
नागपुर आदि
सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र है महाराष्ट्र में समुद्री नम जलवायु, कपास उत्पादन, जल विद्युत शक्ति, स्थानीय बाजार, परिवहन की सुविधा आदि कारक वस्त्र
उद्योग के विकास में सहायक है
2.
गुजरात
-भारत का दूसरा बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य गुजरात है यहां अहमदाबाद प्रमुख
सूती वस्त्र उत्पादक केंद्र है जिसे पूर्व का बोस्टन कहते हैं इसके अलावा सूरत, बड़ौदा,
राजकोट
आदि प्रमुख केंद्र है
3.तमिलनाडू-
तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलें हैं उनमें से अधिकांश कपड़ा न बनाकर सूत का
उत्पादन करती हैं। कोयम्बटूर तमिलनाडू का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है इसके अलावा
मदुरै, चेन्नई,
सेलम, तूतीकोरेन, तिरुनेलवैली प्रमुख केन्द्र है यहाँ सूती वस्त्र उद्योग का विकास
बंदरगाह की सुविधा, सस्ती व
पर्याप्त जल विद्युत, श्रमिकों
की उपलब्धता व नम जलवायु के कारण हुआ है
4.
पश्चिम
बंगाल - पश्चिम बंगाल में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कोलकाता के आस-पास हुआ है
पश्चिम बंगाल में सूती मिलें हुगली प्रदेश में स्थित हैं।यहाँ हावड़ा, मुर्शिदाबाद, कोलकाता और हुगली महत्वपूर्ण केंद्र
हैं।
5.
उत्तर
प्रदेश- कानपुर राज्य का प्रमुख सूती वस्त्र उद्योग केंद्र है कानपुर को उत्तरी
भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है इसके अलावा मुरादाबाद, सहारनपुर, अलीगढ़,
आगरा आदि
प्रमुख केंद्र है
6.
कर्नाटक-
सूती वस्त्र उद्योग का विकास राज्य के उत्तरी पूर्वी भागों के यहां कपास उत्पादक
क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ
देवनगरी, हुब्बलि,
बल्लारि, मैसूरु और बेंगलुरु महत्वपूर्ण केंद्र
हैं।
चीनी उद्योग
चीनी उद्योग देश का दूसरा सबसे अधिक
महत्वपूर्ण कृषि-आधारित उद्योग है। भारत विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत उत्पादन करता है। चीनी के
अतिरिक्त गन्ने से खांडसारी और गुड़ भी तैयार किए जाते हैं। कच्चे माल के मौसमी
होने के कारण, चीनी
उद्योग एक मौसमी उद्योग है। आधुनिक
आधार पर उद्योग का विकास 1903 में
प्रारंभ हुआ जब मढोर (बिहार) में एक चीनी मिल की स्थापना की गई।
गन्ना एक भार-ह्रास वाली फसल है। 100 किलोग्राम गन्ने से 9 से 12
किलोग्राम
चीनी प्राप्त होती है साथ ही खेतों में काटकर एकत्रित करने से लेकर ढुलाई की अवधि
तक इसमें सुक्रोज की मात्रा सूखती रहती है। गन्ने को खेत से काटने के 24 घंटे के अदंर ही इसकी पिराई हो जानी
चाहिए पिराई में देरी होने पर गन्ने में सुक्रोज की मात्रा घटती जाती है अतः चीनी
मीलों की स्थापना गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट की जाती है
भारत में चीनी उद्योग का वितरण
1. महाराष्ट्र - महाराष्ट्र देश में
अग्रणी चीनी उत्पादक राज्य है देश में कुल चीनी उत्पादन के एक-तिहाई से अधिक भाग
का उत्पादन करता है। राज्य में 119
चीनी
मिलें हैं जो एक सँकरी पटी के रूप में उत्तर में मनमाड से लेकर दक्षिण में
कोल्हापुर तक विस्तृत हैं।
2. उत्तर प्रदेश -चीनी उत्पादन में उत्तर
प्रदेश का द्वितीय स्थान है। चीनी उद्योग दो पेटियों गंगा-यमुना दोआब और तराई
प्रदेश में केन्द्रित है। गंगा-यमुना दोआब में सहारनपुर, मुजफ्रपफरनगर, मेरठ,
गाजियाबाद, और बुलंदशहर मुख्य चीनी उत्पादक जिले
हैं, जबकि तराई प्रदेश के मुख्य चीनी
उत्पादक जिले लखीमपुर खीरी, बस्ती, गोंडा,
गोरखपुर, हैं।
3. तमिलनाडु - कोयंबटूर, वेलौर,
तिरुवनमलाई,विल्लुपुरम और तिरुचिरापल्ली प्रमुख
उत्पादक जिले हैं।
4. कर्नाटक - बेलगावि, बेल्लारि, माण्डया,
शिवमोगा, विजयपुर और चित्रादुर्ग प्रमुख उत्पादक
जिले हैं।
5. बिहार - सारन, चंपारन,
मुजफरपुर, दरभंगा और गया मुख्य उत्पादक जिले हैं।
6. पंजाब- गुरदासपुर, जलंधर,
संगरूर, पटियाला एवं अमृतसर प्रमुख चीनी
उत्पादक जिले हैं।
7. हरियाणा- चीनी मिलें यमुनानगर, रोहतक,
हिसार और
पफरीदाबाद जिलों में स्थित हैं।
पेट्रो-रसायन उद्योग
जिन उद्योगों में अपरिष्कृत पेट्रोल से
प्राप्त कच्चे माल का उपयोग किया जाता है इन्हें सामूहिक रूप से पेट्रो-रसायन
उद्योग के नाम से जाना जाता है। भारत में इस उद्योग का प्रमुख केंद्र मुंबई है।
पेट्रो रसायन उद्योग को चार वर्गों में
बांटा गया है -
(i)पॉलीमर (ii)कृत्रिम रेशे (iii) इलोस्टोमर्स (iv) पृष्ठ संक्रियक
यह उद्योग देश के आर्थिक विकास और
विनिर्माण क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस उद्योग का
प्रमुख उत्पाद कृत्रिम रेशे,
कृत्रिम
रबर, रंग,
प्लास्टिक
की वस्तुएं, कीटनाशक, दवाएं आदि हैं ।
पटाखा उद्योग औरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर,
गांधीनगर
और हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरि (महाराष्ट्र) हल्दिया
(पश्चिम बंगाल) और विशाखापट्नम (आंध्र प्रदेश) में स्थित हैं।
प्लास्टिक उद्योग मुंबई, बरौनी,
मैटूर, पिम्परी और रिशरा में हैं।
नेशनल ऑर्गेनिक कैमिकल इण्डस्ट्रीज
लिमिटेड (NOCIL) द्वारा
मुम्बई में पहला नैफ्था आधारित रसायन उद्योग स्थापित
किया गया।
कृत्रिम रेशे (नायलान तथा पॉलिस्टर
धागा) बनाने के संयंत्र कोटा,
पिंपरी,मुंबई,
मोदी नगर, पुणे,
उज्जैन, नागपुर में स्थित हैं।
ऐक्रीलिक कपड़े कोटा और वडोदरा में बनाए
जाते है
पेट्रो-रसायन सेक्टर के प्रमुख संगठन -
रासायनिक और पेट्रो-रासायनिक विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में पेट्रो-रसायन सेक्टर
के अंतर्गत तीन संस्थाएँ कार्य कर रही हैं।
(1)
भारतीय
पेट्रो-रासायनिक कॉर्पोरेशन लिमिटेड -यह सार्वजनिक क्षेत्र का प्रतिष्ठान है। यह
पॉलीमर, रसायन,
रेशे और
रेशों के मध्यवर्ती जैसे विभिन्न पेट्रो-रसायनों का विनिर्माण एवं बिक्री कर रही
थी
(2)
पेट्रो-फिल्स
कोऑपरेटिव लिमिटेड -यह भारत सरकार एवं बुनकरों की सहकारी संस्थाओं का संयुक्त
उद्यम है। जो पॉलिस्टर तंतु,
धागा और
नाइलोन चिप्स का उत्पादन गुजरात स्थित वडोदरा एवं नलधारी संयंत्रों में करताहै।
(3)
सेंट्रल
इंस्टिट्यूट ऑफ प्लास्टिक इन्जीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी -यह पेट्रोकेमिकल उद्योग
में प्रशिक्षण प्रदान करता है।
ज्ञान-आधारित उद्योग
सूचना औद्योगिकी से सम्बंधित उद्योग
ज्ञान-आधारित उद्योग कहलाते है सॉफ्रटवेयर उद्योग एक ज्ञान-आधारित उद्योग है भारत
सरकार ने देश में अनेक सॉफ्रटवेयर पार्क्स बनाए हैं। भारत के सॉफ्रटवेयर उद्योग को
उत्तम उत्पाद उपलब्ध कराने में असाधारण प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है। अनेक भारतीय सॉफ्रटवेयर कंपनियों ने
अतंर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त कर लिया है।
भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण एवं औद्योगिक
विकास
भारत में 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इस निति के निम्नलिखित उद्देश्य थे
1.उद्योगों
से अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना
2.
उद्योगों
की कमियां व विकृतियां सुधारना
3.
उत्पादकता
में वृद्धि बनाए रखना
4.
रोजगार के
अधिक अवसरों विकसित करना
5.
उत्पादों
को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सम्मलित करने योग्य बनाना
नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत निम्न
उपाय किए गए
(1)
औद्योगिक
लाइसेंस व्यवस्था का समापन
(2)
विदेशी
तकनीकी का देश में निःशुल्क प्रवेश
(3)
प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश को अपनाना
(4)
पूँजी
बाजर में अभिगम्यता
(5)
खुला
व्यापार
(6)
चरणबद्ध
निर्माण कार्यक्रम की समाप्ति
(7)
औद्योगिक
अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण
नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं -
उदारीकरण,निजीकरण और वैश्वीकरण।
उदारीकरण
आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए किसी देश द्वारा अर्थव्यवस्था में विभिन्न सेक्टरों पर नियंत्रण समाप्त करना व आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप को कम करना उदारीकरण कहलाता है
नई औद्योगिक नीति में सुरक्षा, सामरिक व पर्यावरणीय से संबंधित छः
उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों के लिए औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था समाप्त कर
दी गई।
नई औद्योगिक नीति में, आर्थिक विकास का ऊँचा स्तर प्राप्त
करने के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI)
को बढ़ावा
दिया गया FDI प्रोद्यौगिकी, वैश्विक प्रबंधन, कुशलता तथा प्राकृतिक और मानवीय
संसाधनों का सर्वात्तम उपयोग लाभ प्रदान करता है। इसलिए सरकार ने विदेशी प्रत्यक्ष
निवेश को अनुमति दी है।
निजीकरण
निजीकरण का आशय सार्वजनिक क्षेत्र को संचालित एवं नियन्त्रित करने के लिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित करना है अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र से नजी क्षेत्र की ओर स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया निजीकरण कहलाती है निजीकरण की अवधारण का प्रादुर्भाव
सार्वजनिक क्षेत्रों की असफलता के कारण हुआ है नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक
सेक्टर के लिए सुरक्षित उद्योगों में केवल परमाणु उर्जा उत्पादन व रेल परिवहन ही
बचे है विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को अनुमति देना निजीकरण की पहल ही है
वैश्वीकरण
वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था
को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत सामान
और पूँजी सहित सेवाएँ, श्रम और
संसाधन एक देश से दूसरे देश को स्वतंत्रातापूर्वक पहुँचाए जा सकते हैं। भारतीय
संदर्भ में वैश्वीकरण का अर्थ है
(1)
विदेशी
कंपनियों को पूँजी निवेश की सुविधा उपलब्ध कराकर
विदेशी
प्रत्यक्ष निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को खोलना
(2)
भारत में
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंधों और बाधाओं को ख़त्म करना
(3)
भारतीय
कंपनियों को देश में विदेशी कंपनियों के सहयोग से उद्योग खोलने की अनुमति प्रदान
करना और उनके सहयोग से विदेशों में साझा उद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित
करना
(4)
निर्यात
को बढ़ाने के लिए विनिमय व्यवस्था को चुनना।
भारत के औद्योगिक प्रदेश
औद्योगिक प्रदेश का विकास तब होता है
जब कई तरह के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं और वे अपनी निकटता के लाभ
आपस में बाँटते हैं। भारत में उद्योगों का वितरण समान नहीं है। भारत में अधिकतर
उद्योग कुछ निश्चित स्थानों पर केंद्रित हैं। उद्योगों के समूहन को पहचानने के लिए
निम्न सूचकांकों का उपयोग किया जाता है
1.
औद्योगिक
इकाइयों की संख्या
2.
औद्योगिक
कर्मियों की संख्या
3.
औद्योगिक
उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली प्रयुक्त शक्ति की मात्रा
4.कुल
औद्योगिक उत्पादन
5.
उत्पादन
प्रक्रिया जन्य मूल्य
1. मुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश
यह मुंबई-थाने से पुणे तथा नासिक और
शोलापुर जिलों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का विकास मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग की
स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ। मुंबई में कपास के पृष्ठ प्रदेश में स्थिति होने और
नम जलवायु के कारण मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ। इस औद्योगिक प्रदेश
को मुंबई पत्तन की सुविधा प्राप्त है इस पत्तन के द्वारा मशीनों का आयात किया जाता
था। स्वेज नहर के खुलने के कारण मुंबई पत्तन के विकास को प्रोत्साहन मिला। मुंबई
हाई पेट्रोलियम क्षेत्र और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के कारण
पेट्रो-रासायनिक उद्योग भी विकसित हुए इसके अतिरिक्त अभियांत्रिकी वस्तुएँ, पेट्रोलियम परिशोधन, , चमड़ा,
संश्लिष्ट
और प्लास्टिक वस्तुएँ, दवाएँ, उर्वरक,
विद्युत
वस्तुएँ, जलयान निर्माण, लेक्ट्रॉनिक्स,सॉफ्रटवेयर, परिवहन उपकरण और खाद्य उद्योगों का भी
विकास हुआ। मुंबई, थाणे, ट्राम्बे, पुणे,
पिंपरी, नासिक,
मनमाड, शोलापुर,
कोल्हापुर, अहमदनगर,
सतारा और
सांगली महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं।
2.हुगली औद्योगिक प्रदेश
यह भारत का सर्वाधिक पुराना औद्योगिक प्रदेश है। हुगली नदी के किनारे बसा हुआ, इस औद्योगिक प्रदेश का विकास हुगली नदी पर कोलकाता पत्तन के बनने के बाद प्रारंभ से हुआ। यह प्रदेश उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिडलानगर तक फैला है। स्थानीय रूप से उपलब्ध जूट संसाधनों, दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों और छोटा नागपुर पठार के लौह अयस्क निक्षेपों तथा बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और ओडिशा से उपलब्ध सस्ते श्रम ने इस प्रदेश के औद्योगिक विकास में सहयोग प्रदान किया। कोलकाता ने ब्रिटिश भारत की राजधानी होने के कारण ब्रिटिश पूँजी को भी आकर्षित किया। 1855 में रिशरा में पहली जूट मिल की स्थापना ने इस प्रदेश के आधुनिक औद्योगिक समूहन के युग का प्रारंभ किया। जूट उद्योग इस प्रदेश का सर्वप्रमुख उद्योग है जूट उद्योग के साथ ही सूती वस्त्र उद्योग भी पनपा। कागज, इंजीनियरिंग , टेक्सटाइल मशीनों, विद्युत, रासायनिक, औषधीय, उर्वरक और पेट्रो-रासायनिक उद्योगों का भी विस्तार हुआ। कोननगर में हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड का कारखाना और चितरंजन में डीजल इंजन का कारखाना इस प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं। इस प्रदेश के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र कोलकाता, हावड़ा, हल्दिया, रिशरा, , बिडलानगर, बाँसबेरिया, त्रिवेणी, हुगली, बेलूर आदि हैं। जूट उद्योग की अवनति के कारण इस प्रदेश के औद्योगिक विकास में दूसरे प्रदेशों की तुलना में कमी आई है।
3. बेंगलूरफ-चेन्नई औद्योगिक प्रदेश
यह औद्योगिक प्रदेश तमिलनाडू व कर्नाटक
राज्यों में फैला है इस औद्योगिक प्रदेश का विकास में कपास की उपलब्धता तथा
पायकारा जलविद्युत संयंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है कपास उत्पादक क्षेत्र होने के
कारण सूती वस्त्र उद्योगा ने सबसे पहले पैर जमाए थे। वायुयान, मशीन उपकरण, टेलीफोन और भारत इलेक्ट्रानिक्स इस
प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं। टेक्सटाइल,
रेल के
डिब्बे, डीजल इंजन, रेडियो,
हल्की
अभियांत्रिकी वस्तुएँ, रबर का
सामान, दवाएँ,
एल्युमीनियम, शक्कर,
सीमेंट, ग्लास,
कागज,रसायन,
सिगरेट, माचिस,
चमड़े का
सामान आदि महत्वपूर्ण उद्योग हैं। चेन्नई में पेट्रोलियम परिशोधनशाला, सेलम में लोहा-इस्पात संयंत्र और
उर्वरक संयंत्र महत्वपूर्ण उद्योग हैं।
4.
गुजरात
औद्योगिक प्रदेश
यह औद्योगिक प्रदेश अहमदाबाद और वडोदरा
के बीच है दक्षिण में वलसाद और सूरत तक और पश्चिम में जामनगर तक फैला है। कांडला
पत्तन ने इस प्रदेश के तीव्र विकास में सहयोग दिया। इस प्रदेश का विकास 1860 में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के
साथ शुरू हुआ है। कपास उत्पादक क्षेत्र में स्थित होने के कारण इस प्रदेश को कच्चे
माल और बाजार दोनों का ही लाभ मिला। कोयली में पेट्रोलियम परिशोधनशाला ने अनेक
पेट्रो-रासायनिक उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया। रासायनिक, मोटर,
टै्रक्टर, डीजल इंजन, टेक्सटाइल मशीनें, इंजीनिय¯रग, औषधि,
रंग रोगन, कीटनाशक,
चीनी, दुग्ध उत्पाद और खाद्य प्रव्रफमण हैं।
अभी हाल ही में सबसे बड़ी पेट्रोलियम परिशोधनशाला जामनगर में स्थापित की गई है। इस
प्रदेश के महत्वपूर्णऔद्योगिक केंद्र अहमदाबाद,
वडोदरा, भरूच,
कोयली, आनंद,खेरा, सुरेंद्रनगर, राजकोट,
सूरत, वलसाद और जामनगर हैं।
5. छोटानागपुर प्रदेश
यह प्रदेश झारखंड, उत्तरी ओडिशा और पश्चिमी पश्चिम बंगाल
में फैला है और भारी धातु उद्योगों के लिए जाना जाता है। यह प्रदेश अपने विकास के
लिए दामोदर घाटी में कोयला और झारखंड तथा उत्तरी उड़ीसा में धात्विक और अधात्विक
खनिजों पर निर्भर है। इस प्रदेश में छः बड़े एकीकृत लौह-इस्पात संयंत्र जमशेदपुर, बर्नपुर,
कुल्टी, दुर्गापुर, बोकारो और राउरकेला में स्थापित है।
ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऊष्मीय और जलविद्युत शक्ति संयंत्रों का
निर्माण दामोदर घाटी में किया गया है। प्रदेश के चारों ओर घने बसे प्रदेशों से
सस्ता श्रम प्राप्त होता है और हुगली प्रदेश अपने उद्योगों के लिए बड़ा बाजार
उपलब्ध कराता है। भारी इंजीनियरिंग,
मशीन-औजार, उर्वरक,सीमेंट, कागश,
रेल इंजन
और भारी विद्युत उद्योग इस प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण उद्यागे हैं। रांची , धनबाद,
हजारीबाग, जमशेदपुर, बोकारो,
राउरकेला, दुर्गापुर आसनसोल और डालमियानगर
महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
6. विशाखापट्नम-गुंटूर प्रदेश
यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापत्तनम् जिले
से लेकर दक्षिण में कुरूनूल और प्रकासम जिलों तक फैला है। इस प्रदेश का औद्योगिक
विकास विशाखापट्नम और मछलीपटनम पत्तनों,
इसके
भीतरी भागों में विकसित कृषि तथा खनिजों के बड़े संचित भंडार के कारण हुआ है।
गोदावरी बेसिन के कोयला क्षेत्र इसे ऊर्जा प्रदान करते हैं। जलयान निर्माण उद्योग
का प्रारंभ 1941 में
विशाखापट्नम में हुआ था। शक्कर,
वस्त्र, जूट,
कागश, उर्वरक,
सीमेंट, एल्युमीनियम और हल्की इंजीनिय¯रग इस प्रदेश के मुख्य उद्योग हैं।
गुंटूर शिले में एक शीशा-¯जक
प्रगालक कार्य कर रहा है। विशाखापट्नम,
विजयवाड़ा, विजयनगर,
राजमुंदरी, गुंटूर,
और कुरनूल
महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं।
7. गुरूग्राम-दिल्ली-मेरठ औद्योगिक प्रदेश
है। खनिजों और विद्युतशक्ति संसाधनों से बहुत दूर स्थित होने के कारण यहाँ उद्योग छोटे और बाजार अभिमुखी हैं। इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग और विद्युत उपकरण इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ सूती, ऊनी और कृत्रिम रेशा वस्त्र, होजरी, शक्कर, सीमेंट, मशीन उपकरण, ट्रैक्टर, साईकिल, कृषि उपकरण, रासायनिक पदार्थ और वनस्पति घी उद्योग हैं सॉफ्रटवेयर उद्योग एक नई वृति है। दक्षिण में आगरा-मथुरा उद्योग क्षेत्र हैं जहाँ मुख्य रूप से शीशे और चमड़े का सामान बनता है। मथुरा तेल परिशोधन कारखाना पेट्रो-रासायनिक पदार्थों का संकुल है। प्रमुख औद्योगिक केन्द्र गुरूग्राम, दिल्ली, मेरठ, मोदीनगर, गाजियाबाद, अंबाला, आगरा और मथुरा है।
8.निर्माण उद्योग pdf
- सूती वस्त्र की राजधानी किसे कहते हैंमुंबई
- राउरकेला इस्पात संयन्त्र किस देश की सहायता से बना ?जर्मनी
- बोकारो इस्पात संयन्त्र कब और किस के सहयोग से बना ?1964 में रूस के सहयोग से
- किस इस्पात संयन्त्र की स्थापना परिवहन लागत न्यूनीकरण सिद्धान्त के आधार पर की गई ?बोकारो इस्पात संयंन्त्र
- भारत में पहली आधुनिक सूती वस्त्र मिल कब और कहाँ लगी ?1854 में मुम्बई में
- टाटा लोहा और इस्पात कम्पनी को जल प्रदान करने वाली दोनों नदियों के नाम बताइएस्वर्णरेखा और खारकोई
- विजयनगर इस्पात संयंन्त्र कहाँ स्थित है ?हॉस्पेट (कर्नाटक) में
- भारत में किस राज्य में सूती मिलों की संख्या सबसे अधिक है ?तमिलनाडु
- भारत में सबसे पहले किस लौह-इस्पात कंपनी की स्थापना की गईटाटा लोहा और इस्पात कम्पनी (TISCO)
- भारत का वृहत्तम औद्योगिक प्रदेश कौनसा हैमुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश
- भारत में पहली जूट मिल की स्थापना कब और कहाँ हुई ?1855 में रिशरा (पश्चिम बंगाल) में
- सेन्ट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी का मुख्य कार्य क्या है ?पैट्रोकेमिकल उद्योग में प्रशिक्षण प्रदान करना
- भारत में लौह - इस्पात सयंत्र कच्चे माल के स्रोत के निकट क्यों स्थित है स्पष्ट कीजिएलौह इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोककारी कोयला, चूनापत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका आदि कच्चे माल की आवश्यकता होती है। ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं। इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग की सबसे अच्छी स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के निकट होती है। ताकि कच्चे माल की परिवहन लागत न्यूनतम रहे। इसी कारण भारत में लौह - इस्पात सयंत्र कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थित है
- मुंबई पुणे औद्योगिक प्रदेश के विकास में सहायक कारकों का उलेख कीजिए1. इस औद्योगिक प्रदेश को मुंबई बंदरगाह की सुविधा प्राप्त है इस बंदरगाह द्वारा मशीनों का आयात किया जाता था।2. इस औद्योगिक प्रदेश को मुंबई के पृष्ठ प्रदेशों में कपास उत्पादन क्षेत्र की उपलब्धता का लाभ प्राप्त है3. . इस औद्योगिक प्रदेश को मुंबई में नम जलवायु के कारण सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
- लोहा इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है, ऐसा क्यों?लौह इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। इस उद्योग से विनिर्मित उत्पादों का प्रयोग दूसरे अन्य उद्योग करते हैं। जिनमे मशीने, कलपुर्जे, व उपकरण बनाये जाते है सभी उद्योग को अपनी मूल आधारिक संरचना के लिए मुख्या रूप से लोहा इस्पात उद्योग पर निर्भर रहना पड़ता है इअलिये लोहा इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है
- चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है ?चीनी उद्योग में गन्ना कच्चे मॉल के रूप में प्रयुक्त होता है गन्ना वर्ष के एक निश्चित मौसम में ही पैदा होता है अतः कच्चे माल के मौसमी होने के कारण, चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है गन्ने को खेत से काटने के 24 घंटे के अदंर ही इसकी पिराई करनी पड़ती है क्योंकि पिराई में देरी होने पर गन्ने में सुक्रोज की मात्रा घटती जाती है अतः चीनी मीलों को शीघ्र ही चीनी का उत्पादन करना पड़ता है
- पेट्रो-रसायन उद्योग किसे कहते है पेट्रो रसायन उद्योग को चार वर्गों के नाम लिखिएजिन उद्योगों में अपरिष्कृत पेट्रोल से प्राप्त कच्चे माल का उपयोग किया जाता है इन्हें सामूहिक रूप से पेट्रो-रसायन उद्योग के नाम से जाना जाता है। भारत में इस उद्योग का प्रमुख केंद्र मुंबई है।पेट्रो रसायन उद्योग को चार वर्गों में बांटा गया है -(i) पॉलीमर (ii) कृत्रिम रेशे (iii) इलोस्टोमर्स (iv) पृष्ठ संक्रियकयह उद्योग देश के आर्थिक विकास और विनिर्माण क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस उद्योग का प्रमुख उत्पाद कृत्रिम रेशे, कृत्रिम रबर, रंग, प्लास्टिक की वस्तुएं, कीटनाशक, दवाएं आदि हैं ।
- सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइए। वे किस प्रकार भिन्न हैं?सूती वस्त्र उद्योग के निम्नलिखित दो सेक्टर हैं :1.संगठित सेक्टर 2.असंगठित सेक्टरसंगठित सेक्टर में वृहद स्तर पर सूती वस्त्र मिलों में सूती धागा एवं सूती वस्त्र का निर्माण आधुनिक मशीनों से किया जाता है जबकि असंगठित सेक्टर में लघु स्तर पर हथकरघों व विद्युत करघों में सूती धागा एवं सूती वस्त्र का निर्माण आधुनिक मशीनों से किया जाता है
- मुम्बई में सूती वस्त्र मिलों की स्थापना के लिए उतरदायी कारकों को स्पष्ट कीजिए1. यह गुजरात और महाराष्ट्र के कपास उत्पादक क्षेत्रों के बहुत निकट था।2. कच्ची कपास इंग्लैंड को निर्यात करने के लिए मुंबई पत्तन तक लाई जाती थी। इसलिए कपास स्वयं मुंबई नगर में उपलब्ध थी।3. मुंबई उस समय वित्तीय केंद्र था एवं उद्योग प्रारंभ करने के लिए आवश्यक पूँजी उपलब्ध थी।4. रोजगार अवसर प्रदान करने वाला बड़ा नगर होने के कारण यह श्रमिकों के लिए एक आकर्षक केंद्र था।5. सूती वस्त्र मिलों के लिए आवश्यक मशीनों का आयात इंग्लैंड से किया जा सकता था।
- उदारीकरण, निजीकरण, व वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ?उदारीकरण - आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए किसी देश द्वारा अर्थव्यवस्था में विभिन्न सेक्टरों पर नियंत्रण समाप्त करना व आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप को कम करना उदारीकरण कहलाता हैनिजीकरण - निजीकरण का आशय सार्वजनिक क्षेत्र को संचालित एवं नियन्त्रित करने के लिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित करना है अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र से नजी क्षेत्र की ओर स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया निजीकरण कहलाती हैवैश्वीकरण -वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत सामान और पूँजी सहित सेवाएँ, श्रम और संसाधन एक देश से दूसरे देश को स्वतंत्रातापूर्वक पहुँचाए जा सकते हैं।
- हुगली औद्योगिक प्रदेश के विकास में सहायक कारकों का उलेख कीजिए1. इस औद्योगिक प्रदेश को हुगली नदी पर कोलकाता बंदरगाह से आयत निर्यात की सुविधाएँ प्राप्त है2. स्थानीय रूप से कच्चे माल (चाय, नील, जूट) की उपलब्धता, दामोदर घाटी से कोयला व छोटा नागपुर पठार से लौह अयस्क की उपलब्धता ने इस औद्योगिक प्रदेश के विकास में महत्वपूण भूमिका निभाई है3. इस औद्योगिक प्रदेश को निकटवर्ती राज्य (बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा) से सस्ते श्रमिक उपलब्ध हो जाते है4. कोलकाता ने ब्रिटिश भारत की राजधानी होने के कारण ब्रिटिश पूँजी को भी आकर्षित किया।
- नई औद्योगिक नीति की घोषणा कब की गई ? इस नीति के मुख्य उद्देश्य लिखिएभारत में 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इस निति के निम्नलिखित उद्देश्य थे1.उद्योगों से अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना2. उद्योगों की कमियां व विकृतियां सुधारना3. उत्पादकता में वृद्धि बनाए रखना4. रोजगार के अधिक अवसरों विकसित करना5. उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सम्मलित करने योग्य बनाना
- मुम्बई - पुणे औद्योगिक प्रदेश की प्रमुख पाँच विशेषताएं लिखे ?1 इसका विस्तार महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी भाग पर मुंबई-थाने से पुणे तथा नासिक और शोलापुर जिलों तक है। इस औद्योगिक प्रदेश को मुंबई पत्तन की सुविधा प्राप्त है2 इस प्रदेश का विकास मुम्बई में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के साथ प्रारम्भ हुआ। मुंबई में कपास के पृष्ठ प्रदेश में स्थिति होने और नम जलवायु के कारण मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ।3 मुंबई हाई पेट्रोलियम क्षेत्र और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के कारण पेट्रो-रासायनिक उद्योग भी विकसित हुए4 यहाँ अभियान्त्रिकी वस्तुएँ, पैट्रोलियम परिशोधन, पैट्रो - रसायन, चमड़ा, प्लास्टिक वस्तुएँ, दवाएं, उर्वरक, विद्युत वस्तुएँ, जलयान, निर्माण साफ्टवेयर इत्यादि उद्योगो का विकास हुआ है ।5 इस प्रदेश में मुम्बई, थाणे, ट्राम्बे, पुणे, नासिक, मनमाड़, शोलापुर, कोल्हापुर, सतारा तथा सांगली महत्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है ।
- भारत के लौह इस्पात उद्योगों का वर्णन कीजिए(i)टाटा आइरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) - इसकी स्थापना 1907 में जमशेदपुर (झारखण्ड ) मेंं की गई। यह कारखाना मुंबई-कोलकाता रेल मार्ग के समीप स्थित हैजो भारत का सबसे बड़ा लौहा इस्पात कारखाना है इस संंयंत्र को जल सुवर्ण रेखा,खार व कोई नदी से, लोहा नौआमंडी व बादाम पहाङी तथा कोयला झरिया, रानीगंज व बोकारो से प्राप्त होता है इस कारखाने में इस्पात के अलावाा लोहे के गर्डर, रेल का सामान व कांटेदार तार बनाए जाते हैं(ii) भारतीय लौहा और इस्पात कम्पनी (IISCO)- इसकी स्थापना 1874 में हुई इस कंपनी में तीन इकाइयां है कुल्टी, बर्नपुर व हीरापुर (पश्चिम बंगाल) इन तीनों संयंत्रों को कोयला दामोदर घाटी क्षेत्र (रानीगंज, झुरिया, रामगढ़) से प्राप्त होता है लोहा अयस्क सिंह भूमि (झारखंड) तथा जल बराकर नदी से प्राप्त होता है तीनों संयंत्र कोलकाता-आसनसोल रेल मार्ग पर स्थित है हीरापुर में कच्चा लोहा (पिग आईरन) बनता है जिसे कुल्टी में इस्पात में बदला जाता है इसे यहां से बर्नपुर भेज कर चद्दरे, एंगल, पाती, रेलवे स्लीपर व पाइप बनाए जाते हैं इसका प्रबंधन सार्वजनिक क्षेत्र के प्रक्रम SAIL के पास है(iii) विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (WISCO) - इसकी स्थापना 1923 में भद्रावती कर्नाटक में हुई इस संयंत्र को बाबाबूदन की पहाड़ियों के केेमानगुुंडी(कर्नाटक) से लोहा अयस्क प्राप्त होता हैशिवसमुद्रम प्रताप से जल विद्युत शक्ति प्राप्त होती है एवं जल भद्रावती नदी से मिलता है इसका नियंत्रण SAIL के पास है पहले इसका नाम मैसूर आयरन एंड स्टील कंपनी (MISCO) था यह सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इकाई है(iv) राउरकेला इस्पात संयंत्र - यह कारखाना जर्मनी की क्रूरिप्स व डिमाग कम्पनियों के सहयोग से संख व कोयल नदियों के संगम पर राउकेला (उड़ीसा) में स्थापित किया गया जो वर्तमान में हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड के अधीन हैै इस संयंत्र की स्थापना कच्चे माल की निकटता के आधार पर की गई है इस संयंत्र को लोहाअयस्क क्योंझर व सुन्दरगढ तथा कोयला झरिया से प्राप्त होता है जलविद्युत हीराकुंड परियोजना से व जल कोयल एवं शंख नदी से मिलता है राउरकेला में चपटे आकार की वस्तुएं जैसे प्लेटें, पत्तियां,टीन चादरें आदि बनाई जाती है जिनका उपयोग रेल के डिब्बे व जलयान बनानेे मे कियाा जाता हैै(v) भिलाई इस्पात संयंत्र (छत्तीसगढ़)- यह संयंत्र रूस की सहायता सेेेे भिलाई (छत्तीसगढ़) में स्थापित किया गया इस संयंत्र को लोहा अयस्क डल्ली राजहरा की खानों से, कोयला कोरबा (छत्तीसगढ़) व करमाली(झारखंड) सेे व जल तंदुला बांध सेे प्राप्त होता है यह संयंत्र मुंबई-कोलकाता रेल मार्ग पर स्थित है यहां उत्पादित इस्पात विशाखापट्टनम हिंदुस्तान शिपयार्ड में भेजा जाता है(vi) दुर्गापुर इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र ब्रिटिश सरकार के सहयोग से दामोदर नदी के किनारे दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में स्थापित किया गया है वर्तमान में यह संयंत्र सेल द्वारा संचालित है इस संयंत्र को लोहा अयस्क नौआमंडी से, कोयला रानीगंज, झरिया व बोकारो से तथा जल विद्युत दामोदर घाटी कार्पोरेशन से प्राप्त होती है यहां रेल के पहिए, पट्टरिया, धुरियां व छड़े बनती है(vii) बोकारो इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र रूस की सहायता से बोकारो व दामोदर नदियों के संगम पर बोकारो (झारखंड) में स्थापित किया गया है इस संयंत्र को लौहा अयस्क क्योंझर (उड़ीसा) से, कोयला झरिया से, जल विद्युत दामोदर घाटी कारपोरेशन से, तथा जल दामोदर व बोकारो नदियों से प्राप्त होता है(viii) विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित है जो बंदरगाह पर स्थित देश का पहला इस्पात संयंत्र है एवं अत्याधुनिक तकनीक से बनाया गया है इसे लोहा अयस्क बैलाडीला से व कोयला दामोदर घाटी से प्राप्त होता है(ix)विजयनगर इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र विजयनगर (कर्नाटक) में स्थित है जो पूर्णतः स्वदेशी तकनीकी पर आधारित है यहाँ उच्च कोटि का नर्म इस्पात बनता है(x)सेलम इस्पात संयंत्र- यह संयंत्र सेलम (तमिलनाडु) में स्थापित है इसे कोयला नवेली से, लोहा अयस्क व अन्य सामग्री समीपवर्ती क्षेत्रों से प्राप्त होती है यहां जंग नहीं लगने वाला इस्पात बनाया जाता है
- भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन कीजिएसूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है। भारत में सूती वस्त्र निर्माण की परम्परा अति प्राचीन है भारत संसार में उत्कृष्ट कोटि का मलमल, कैलिको, छींट और अन्य प्रकार के अच्छी गुणवत्ता वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास निम्न कारण से हुआ ।1. भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है एवं सूती कपड़ा गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए एक आरामदायक वस्त्र है।2. भारत में कपास का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था।3. देश में इस उद्योग के लिए आवश्यक कुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे।भारत में 1854 में मुंबई में कावस जी डाबर द्वारा प्रथम सूती वस्त्र मिल की स्थापना की गई मुंबई को भारत की सूती वस्त्र की राजधानी कहा जाता है इसके बाद अहमदाबाद में 1861 और 1863 में क्रमशः शाहपुर मिल (Shahpur mill) और केलिको मिल (Calico mill) की शुरूआत हुई ।उद्योग की अवस्थितिकपास एक शुद्ध कच्चा माल है जिसका वजन निर्माण प्रक्रिया में नहीं घटता है। अतः अन्य दूसरे कारक, जैसे शक्ति, श्रमिक, पूँजी अथवा बाजार आदि उद्योग की स्थिति को निर्धारित करते हैं। वर्तमान में सूती वस्त्र उद्योग को बाजार के निकट स्थापित करने की प्रवृत्ति पाई जाती हैकानपुर में स्थानिक निवेश के कारण और कोलकाता में पत्तन की सुविधा के कारण सूती वस्त्र मिलें स्थापित की गईं। तमिलनाडु में जलविद्युत शक्ति के विकास के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई उज्जैन, भरूच, आगरा, हाथरस, कोयंबटूर और तिरुनेलवेली में कम श्रम लागत के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई।प्रकार सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना में कच्चे माल के स्थान पर बाजार, सस्ते क श्रमिक, पूँजी तथा विद्युत शक्ति की उपलब्धता आदि करक अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैभारत में सूती वस्त्र उद्योग का वितरणवर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं। ये सभी केंद्र परंपरागत केंद्र हैं और कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित हैं।1.महाराष्ट्र- सूती वस्त्र उत्पादन में महाराष्ट्र देश में प्रथम स्थान पर है महाराष्ट्र में मुंबई सर्वाधिक महत्वपूर्ण केंद्र है जहां देश की प्रथम सूती वस्त्र मिल स्थापित की गई मुंबई को वस्त्र की राजधानी कहा जाता है इसके अलावा सोलापुर, सांगली, जलगाँव, औरंगाबाद व कोल्हापुर, वर्धा, नागपुर आदि सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र है2. गुजरात -भारत का दूसरा बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य गुजरात है यहां अहमदाबाद प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केंद्र है जिसे पूर्व का बोस्टन कहते हैं इसके अलावा सूरत, बड़ौदा, राजकोट आदि प्रमुख केंद्र है3.तमिलनाडू- तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलें हैं उनमें से अधिकांस कपड़ा न बनाकर सूत का उत्पादन करती हैं। कोयम्बटूर तमिलनाडू का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है इसके अलावा मदुरै, चेन्नई, सेलम, तूतीकोरेन, तिरुनेलवैली प्रमुख केन्द्र है यहाँ सूती वस्त्र उद्योग का विकास बंदरगाह की सुविधा, सस्ती व पर्याप्त जल विद्युत, श्रमिकों की उपलब्धता व नम जलवायु के कारण हुआ है4. पश्चिम बंगाल - पश्चिम बंगाल में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कोलकाता के आस-पास हुआ है पश्चिम बंगाल में सूती मिलें हुगली प्रदेश में स्थित हैं।यहाँ हावड़ा, मुर्शिदाबाद, कोलकाता और हुगली महत्वपूर्ण केंद्र हैं।5. उत्तर प्रदेश- कानपुर राज्य का प्रमुख सूती वस्त्र उद्योग केंद्र है कानपुर को उत्तरी भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है इसके अलावा मुरादाबाद, सहारनपुर, अलीगढ़, आगरा आदि प्रमुख केंद्र है6. कर्नाटक- सूती वस्त्र उद्योग का विकास राज्य के उत्तरी पूर्वी भागों के यहां कपास उत्पादक क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ देवनगरी, हुब्बलि, बल्लारि, मैसूरु और बेंगलुरु महत्वपूर्ण केंद्र हैं।