मानव विकास एक ऐसे विकास के रूप में होता है जो लोगों के विकल्पो में वृद्धि करता है और उनके जीवन स्तर में सुधार लाता है
“ मानव विकास स्वस्थ्य भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वतत्रंता तक सभी प्रकार के मानव विकल्पों में विस्तार और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया है।”
वर्तमान संदर्भ में कंप्यूटरीकरण, औद्योगीकरण, सक्षम परिवहन और संचार जाल, बृहत् शिक्षा प्रणाली, उन्नत और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं, वैयक्तिक सुरक्षा इत्यादि को विकास का प्रतीक समझा जाता है।
भारत के लिए विकास अवसरों के साथ-साथ उपेक्षाओं एवं वंचनाओं का मिला-जुला थैला है। भारत में एक और महानगरों और अन्य विकसित अंतर्वेशों की जनसंख्या के एक छोटे से खंड को आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी ओर विशाल ग्रामीण जनसंख्या और नगरीय क्षेत्रों की गंदी बस्तियों की जनसंख्या को पेयजल, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है।
हमारे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विकास के अवसरों के वितरण की स्थिति और भी चिंताजनक है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, भूमिहीन कृषि मजदूर, गरीब किसान और गंदी बस्तियों में बड़ी संख्या में रहने वाले लोग आज भी सर्वाधिक अभावग्रस्त दशाओं में जीवनयापन करते है सवतंत्रता के बाद देश में सतत रूप से हो रहे विकास के बावजूद उक्त जनसंख्या के अधिकांस भाग की जीवनयापन की दशाओं में सुधार की अपेक्षा गिरावट हुई है और जनसंख्या का यह भाग आज भी पतित, निर्धनतापूर्ण और अवमानवीय दशाओं में जीने को विवश हैं ।
विकास का एक अन्य पक्ष भी है जिसका निम्नतर मानवीय दशाओं से सीधा संबंध है। इसका संबंध पर्यावरणीय प्रदूषण से है जो पारिस्थितिक संकट का कारक है। पर्यावरण प्रदूषण न केवल ‘हमारे साझा संसाधनों की त्रासदी’ का कारण बना हैं अपितु हमारे समाज के अस्तित्व के लिए भी खतरा बन गया हैं।
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि निर्धन वर्ग की जनसंख्या के सामर्थ्य में गिरावट के लिए तीन अंतर्संबंधित प्रक्रियाएँ उत्तरदायी हैं
1. सामाजिक सामर्थ्य में कमी, विस्थापन और दुर्बल होते सामाजिक बंधनों के कारण
2. पर्यावरणीय सामर्थ्य में कमी, प्रदूषण के कारण,
3. व्यक्तिगत सामर्थ्य में कमी, बढ़ती बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण
1990 ई. में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रथम मानव विकास रिपोर्ट का प्रकाशन किया है। तब से यह संस्था प्रतिवर्ष विश्व मानव विकास रिपोर्ट को प्रकाशित करती आ रही है। ।
भारत में मानव विकास
भारत मानव विकास सूचकांक के संदर्भ में विश्व के 189 देशों में 130 के कोटि क्रम पर है । HDI के संयुक्त मूल्य 0.640 के साथ भारत मध्यम मानव विकास दर्शाने वाले देशों की श्रेणी में आता है। भारत में मानव विकास की प्रकृति के निर्धारण में निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1. ऐतिहासिक कारक- उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नव-साम्राज्यवाद आदि
2. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक - मानवाधिकार उल्लंघन, जाति, धर्म, लिंग के आधार पर सामाजिक भेदभाव आदि
3. राजनीतिक कारक- अपराध, आतंकवाद, युद्ध, राज्य की प्रकृति, सरकार का स्वरूप , सशक्तिकरण का स्तर आदि
UNDP द्वारा चुने गए सूचकों का प्रयोग करते हुए भारत के योजना आयोग द्वारा भी भारत के राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों को विश्लेषण की इकाई मानते हुए भारत के लिए मानव विकास रिपोर्ट तैयार की जाती है। भारत में मानव विकास सूचकांक का परिकलन निम्न सूचकों के आधार पर किया जाता है
1. आर्थिक उपलब्धियों के सूचक
समृद्ध संसाधन आधार और इन संसाधनों तक सभी लोगों की पहुँच मानव विकास की कुंजी है। सकल राष्ट्रीय उत्पादन और इसकी प्रति व्यक्ति उपलब्धता को किसी देश के संसाधन आधार / अक्षयनिधि का माप माना जाता है।
भारत में गरीबी
गरीबी वंचित रहने की अवस्था है। निरपेक्ष रूप से गरीबी व्यक्ति की सतत, स्वस्थ और यथोचित उत्पादक जीवन जीने के लिए आवश्यक जरूरतों को संतुष्ट न कर पाने की अवस्था है। विगत वर्षों में भारत में प्रति-व्यक्ति आय और उपभोग व्यय दोनों में वृद्धि हुई है। जिसके कारण गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या के अनुपात में लगातार गिरावट आई है । भारत में वर्ष 2011-12 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत 21.9 था। बिना रोजगार की आर्थिक वृद्धि और अनियंत्रित बेरोजगारी भारत में गरीबी के अधिक होने के महत्वपूर्ण कारक हैं। भारत में छत्तीसगढ़, दादर एवं नगर हवेली व झारखण्ड में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक है तथा, गोआ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह व लक्षद्वीप में न्यूनतम जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है।
2. स्वस्थ जीवन के सूचक
रोग और पीड़ा मुक्त जीवन और यथोचित दीर्घायु एक स्वस्थ जीवन के सूचक हैं। पूर्व और प्रसवोत्तर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, वृद्धों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ, पर्याप्त पोषण और सुरक्षा एक स्वस्थ और लंबे जीवन के माप हैं ।
पिछले 64 वर्षों में भारत ने स्वास्थ्य सूचकों के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए जो निम्न है
❄ वर्ष 1951 में भारत में मृत्यु दर 25.1 % थी जो 2015 में घटकर 6.5% हो गई वर्ष 1951 में भारत में शिशु मृत्युदर 148 प्रति हजार थी जो 2015 में घटकर 37 प्रति हजार हो गई
❄ वर्ष 1951 में पुरुषों की जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 37.1 वर्ष थी जो 2015 में बढ़कर 66.9 वर्ष हो गई तथा इसी अवधी स्त्रियों की जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 36.2 वर्ष से बढ़कर 70.0 वर्ष हो गई
❄ वर्ष 1951 से 2015 मध्य भारत ने जन्म दर को 40.8 से 20.8 तक नीचे लाकर अच्छा कार्य किया है
स्वच्छ भारत अभियान
भारत सरकार ने देश को प्रदूषण रहित बनाने के लिए 2 अक्टूबर 2014 से “स्वच्छ भारत अभियान” चलाया है जिसके उद्देश्य निम्न हैं
(i) स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्ति और नगर निगम के शत-प्रतिशत ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से उचित प्रबंध्न, घरों में शौचालय, सामुदायिक शौचालय, सार्वजनिक शौचालय का निर्माण है।
(ii) ग्रामीण भारत में घरों से होने वाले प्रदूषण को कम करने केलिए साफ इंधन के तौर पर एल.पी.जी. को सुलभ करना
(iii) जल से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए प्रत्येक घर मे पीने लायक जल की व्यवस्था करना।
(iv) अपंरपरागत ईंधन के स्रोत, जैसे- पवन तथा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना ।
3. सामाजिक सशक्तीकरण के सूचक
भूख, गरीबी, दासता, बँधुआकरण, अज्ञानता,निरक्षरता और किसी की अन्य प्रकार की प्रबलता से मुक्ति मानव विकास की कुंजी है। वास्तविक अर्थों में उक्त सामाजिक प्रबलताओं से मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती है है जब लोग समाज में अपने सामर्थ्यों और विकल्पों के प्रयोग के लिए सशक्त हों अपना सक्रिय योगदान प्रदान करे। इसके लिए सभी लोगों को अपने समाज और पर्यावरण के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है। जो समाज के लोगों की मुक्ति का मूल आधार है ज्ञान और मुक्ति का रास्ता साक्षरता से होकर जाता है अतः साक्षारता सामाजिक सशक्तीकरणका का सूचक है
भारत में साक्षरता
❄ वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल साक्षरता लगभग 74.04 प्रतिशत है जबकि स्त्री साक्षरता 65.46 प्रतिशत है
❄ दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में कुल साक्षरता और महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत से ऊँची है।
❄ भारत के राज्यों में साक्षरता दर में व्यापक प्रादेशिक असमानता पाई जाती है। भारत में बिहार जैसे राज्य भी हैं जहाँ बहुत कम (63.82 %) साक्षरता है और केरल और मिजोरम जैसे राज्य भी हैं जिनमें साक्षरता दर क्रमशः 93.09% और 91.58 % है।
❄ स्थानिक भिन्नताओं के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों और स्त्रियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, कृषि मजदूरों आदि सीमांत वर्गों में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है
भारत में मानव विकास सूचकांक
भारत में योजना आयोग ने राज्यों और केंद्र-शासित प्रदशों को विश्लेषण की इकाई मानते हुए उपर्युक्त सूचकों के आधार पर मानव विकास सूचकांक का परिकलन किया है।
❄ भारत के विभिन्न राज्यों में 0.790 सूचकांक मूल्य के साथ केरल कोटिक्रम में सर्वोच्च है। केरल के मानव विकास सूचकांक का उच्चतम मूल्य केरल की सर्वाधिक साक्षरता प्रतिशत के कारण है जबकि बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न साक्षरता के
कारण मानव विकास सूचकांक निम्न है ।
❄ आर्थिक विकास भी मानव विकास सूचकांक पर सार्थक प्रभाव डालता है। आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों के मानव विकास सूचकांक का मूल्य आर्थिक रूप से कम विकसित असम, बिहार, मध्य प्रदेश इत्यादि राज्यों की तुलना में ऊँचा है।
❄ भारत के सर्वाधिक मानव विकास सूचकांक केरल, दिल्ली व हिमाचल प्रदेश का हैं। और निम्नतम मानव विकास सूचकांक बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों का हैं।
जनसंख्या, पर्यावरण और विकास
मानव विकास एक जटिल प्रक्रिया है। क्योंकि युगों से यह माना जा रहा है कि यदि एक बार विकास प्राप्त कर लिया गया तो समाज की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय समस्याओं का निदान हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विकास ने मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है परन्तु विअस के साथ-साथ प्रादेशिक विषमताएँ, सामाजिक असमानताएँ, भेदभाव, वंचना, लोगों का विस्थापन, मानवाधिकारों का हनन और मानवीय मूल्यों का विनाश तथा पर्यावरणीय निम्नीकरण भी बढ़ा है।
1993 ई. की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, प्रगामी लोकतंत्राीकरण और बढ़ता लोक सशक्तीकरण मानव विकास की न्यूनतम दशाएँ हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने उक्त मानवीय समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए 1993 की मानव विकास रिपोर्ट में विकास की अवधारणा में लोगों की सहभागिता और उनकी सुरक्षा को प्रमुख स्थान दिया गया इसमें मानव विकास की न्यूनतम दशाओं के रूप में उत्तरोत्तर लोकतंत्राीकरण और लोगों के बढ़ते सशक्तीकरण पर बल दिया गया था। इस रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि वर्तमान नाभिकीय विश्व में शांति और कल्याण दो प्रमुख वैश्विक चिंताएँ हैं।
दूसरी और नव-माल्थस वादियों, पर्यावरणविदों और आमूलवादी पारिस्थितिकविदों द्वारा का मानना है कि एक खुशहाल एवं शांत सामाजिक जीवन के लिए जनसंख्या और संसाधनों के बीच उचित संतुलन बना रहना आवश्यक है। पिछले वर्षों में विश्व के संसाधनों में जहाँ बहुत कम वृद्धि हुई है वहां
मानव जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई है। विकास ने विश्व के सीमित संसाधनों के अतिदोहन को बढ़ाने में योगदान दिया है जिससे ससधानो की उपलब्धता में कमी आ रही है साथ ही अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो गई है
सर राबर्ट माल्थस पहले विद्वान थे। जिन्होंने तेजी से बढती जनसंख्या तथा सिमित संसाधनों के प्रति चिंता व्यक्त की उनके अनुसार जनसंख्या ज्यामितीय अनुपात में बढती है जबकि संसाधन गणितीय अनुपात में बढ़ाते है परन्तु इस विचारधारा में कुछ दोष है जैसे कि कि संसाधन एक तटस्थ नहीं है। संसाधनों की उपलब्धता उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितनी कि उनका सामाज में सामान वितरण। वर्तमान में विश्व के संपन्न राष्ट्र अधिकाधिक संसाधनों पर अपना अधिकार करते जा रहे है जबकि निर्धन राष्ट्रों में संसाधनों की उपलब्धता घटती जा रही है इसके अलावा शक्तिशाली लोगों द्वारा अधिक से अधिक संसाधनों पर नियंत्राण करने के लिए न केवल प्रयास किए जा रहे है वरन इसके लिए वे शक्ति और असाधारण विशेषता का प्रदर्शन कर रहे है यही तथ्य वर्तमान में जनसंख्या, संसाधनों और विकास के बीच संघर्ष और अंतर्विरोधों का प्रमुख कारण हैं।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में प्राचीन कल से ही जनसंख्या, संसाधनों और विकास के प्रति संवेदनशील रही हैं। निसंदेह रूप से भारतीय संस्कृति जुड़े प्राचीन ग्रंथों में प्रकृति के तत्त्वों के बीच संतुलन और समरसता रखने पर बल दिया गया है
महात्मा गांधी का मानना था कि प्रकृति के सभी तत्वों के मध्य संतुलन और समरसता कायम रखना अतिआवश्यक है आशंकित थे थे किजिस तरह से विकास हो रहा है उसके चलते नैतिकता, आध्यात्मिकता, स्वावलंबन, अहिंसा, पारस्परिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण के उचित स्टारों को कायम नहीं रखा जा सकता है उनके विचार में किसी व्यक्ति तथा राष्ट्र के जीवन में उच्चरत लक्ष्य प्राप्त करने के लिय व्यक्तिगत मितव्ययता, सामाजिक संपदा की न्यासधारिता और अहिंसा जैसे कारक अतिमहत्वपूर्ण है उनके विचार क्लब ऑफ रोम की रिपोर्ट ‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ शूमाकर की पुस्तक ‘स्माल इज ब्यूटीपुफल’ ब्रुडलैंड कमीशन की रिपोर्ट ‘ऑवर कामन फ्रयूचर’ और अंत में रियो कॉफ्रेंस की रिपोर्ट ‘एजेंडा-21 में भी प्रतिध्वनित हुए