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3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना



पृथ्वी बहुत बड़ा ग्रह है जिसकी त्रिज्या 6370 कि०मी० है। यह अन्दर से इतनी गर्म तथा घनी है कि इसके केन्द्र तक पहुँचाना असंभव है अतः पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में हमारा ज्ञान अनुमानों पर ही आधारित है। इससे संबंधित सूचना का कुछ भाग प्रत्यक्ष स्रोतों तथा अधिकांश भाग अप्रत्यक्ष स्रोतों से प्राप्त होता है।
प्रत्यक्ष स्रोत
1.धरातलीय चट्टानें :
खनन से प्राप्त धरातलीय चट्टानें पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में महतवपूर्ण जानकारी देती हैं। खनन से प्राप्त इन चट्टानों के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी मिलाती है दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खाने 4 कि.मी. गहरी है इससे अधिक गहराई में जा पाना असंभव है 
2. प्रवेधन से प्राप्त चट्टाने :
खानन से प्राप्त चट्टानों के अलावा पृथ्वी की आंतरिक संरचना जानने हेतु वैज्ञानिक दो मुख्य अन्य परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। 
(i) गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना (ii) समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना 
आज तक सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोला  क्षेत्र में 12 कि०मी० की गहराई तक किया गया है। गहरी खुदाई से विभिन्‍न गहराइयों से प्राप्त पदार्थों के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में महतवपूर्ण जानकारी मिलाती है।
3. ज्वालामुखी उद्गार :
ज्वालामुखी उद्गार पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी का एक अन्य प्रत्यक्ष स्रोत है ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ से निकलने वाले पदार्थ पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं 
अप्रत्यक्ष स्रोत
1. ताप, दाब व घनत्व 
खनन क्रिया से हमें यह पता चलता है कि पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान, दबाव एवं घनत्व में वृद्धि होती है  सामान्यता 32 मीटर की गहराई पर एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ के सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है गहराई के साथ-साथ तापमान में वृद्धि की दर कम होती जाती है। एक  गणना के अनुसार पृथवी के केंद्र का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए । इतने अधिक तापमान पर पृथ्वी के आन्तरिक भागों में कोई भी पदार्थ ठोस अवस्था में नहीं रहना चाहिए बल्कि वहाँ पर उपस्थित चट्टानों को तरल या गैसीय अवस्था में होना चाहिए। परन्तु पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ दाब भी बढ़ता है  जिससे वस्तुओं का 'गलनांक ऊँचा हो जाता है और पृथ्वी के केन्द्र के निकट अत्यधिक तापमान के होते हुए भी धात्विक क्रोड की तरल चट्टानें अत्यधिक दबाव के कारण ठोस पदार्थ के गुण रखती हैं। 
2. उल्कापिंड
अंतरिक्ष से पृथ्वी तक पहुँचने वाली उल्काएँ पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में सूचना का एक अन्य अप्रत्यक्ष स्रोत है। इसका कारण यह है कि उल्काओं की रचना भी प्रृथ्वी की रचना के समान ही हुई थी और उनसे प्राप्त पदार्थ एवं उनकी संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है
3. गुरुत्वाकर्षण  बल 
पृथ्वी के धरातल पर भी विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक और भूमध्यरेखा पर कम होता है। गुरुत्वाकर्षण बल का मान पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार भी बदलता है। अतः पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण है। गुरुत्वाकर्षण बल में भिन्नता से हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है। 
4. भूकम्पीय तरंगे
भूकम्पीय तरंगे भी पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी  देती है। साधरण भाषा में भूकम्प का अर्थ है पृथ्वी का कम्पन। अतः भूकम्प भूपृष्ट पर होने वाला आकस्मिक कम्पन है भूकम्पीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल के नाम से जानी जाती है। इसकी गहनता 1 से 10 तक होती है।
उद्गम केन्द्र/ अवकेन्द्र- भूगर्भ में जिस स्थान पर भूकम्प की उत्पत्ति होती है अर्थात जहां से ऊर्जा निकलती है उसे भूकम्प का उद्गम केंद्र या अवकेंद्र कहते हैं उद्गम केंद्र से ऊर्जा तंरगें अलग-अलग दिशाओं में चलती हुई पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं। 
अधिकेन्द्र- भूकम्प के उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर (समकोण पर)धरातल पर स्थित वह बिंदु जहां भूकंपीय तरंगे सबसे पहले महसूस की जाती है अधिगम केंद्र कहलाता है
सभी प्राकृतिक भूकम्प स्थलमंडल (पृथ्वी के धरातल से 200 कि0मी0 तक की गहराई वाला भाग) में ही आते है भूकम्प के समय मुख्यतः दो प्रकार की भूकम्पीय तरंगे उत्पन्न होती है जिन्हें भूकम्प मापी यंत्र (सिस्मोग्राफ) द्वारा अभिलेखित किया जाता है 
(i) भूगर्भिक तरंगें 
भूगर्भिक तरंगें उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। ये दो प्रकार की होती है 
(अ) ‘‘p’’तरंगें – इन्हें प्राथमिक तरंगे भी कहते है ‘‘p’’ तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहॅुँचती हैं। ‘‘p’’ तरंगें ध्वनि तरंगों के सामान अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं। ये गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं। जब ये शैलों  में से  संचरित होती हैं तो शैलों में कम्पन पैदा होती है। 
(ब) ‘S’ तरंगें- ‘S’ तरंगें धरातल पर कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं। इन्हें ‘द्वितीयक तरंगें’ कहते हैं। ‘S’ तरंगें केवल ठोस पदार्थों से ही गुजर सकती हैं। 
(ii) धरातलीय तरंगे 
भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा जाता है। ये तरंगें धरातल के साथ-साथ चलती हैं। धरातलीय तरंगे अधिक विनाशकारी होती हैं। इनसे शैल विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।
भूकम्पीय तरंगों का संचरण 
जब भूकम्पीय तरंगें शैलों में संचरित होती है तो शैलों में कम्पन उत्पन्न करती है ‘P’ तरंगे तरंग संचरण की दिशा में कम्पन पैदा करती हैं। और संचरण गति की दिशा में पदार्थ पर दबाव डालती है। इसके फलस्वरूप शैलों में संकुचन व फैलाव पैदा होता है जबकि ‘S’ तरंगें तरंग संचरण की दिशा के समकोण पर कम्पन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती हैं। धरातलीय तरंगे अधिक विनाशकारी होती हैं। इनसे शैल विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।
भूकम्पीय छाया क्षेत्र का उद्भव
भूकम्प के समय मुख्यतः तीन प्रकार की भूकम्पीय तरंगे उत्पन्न होती है जिन्हें भूकम्प मापी यंत्र (सिस्मोग्राफ) द्वारा अभिलेखित किया जाता है 
भूकम्पलेखी यंत्र पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। फिर भी कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहा जाता है। 
भूकम्पलेखी पर भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° के भीतर सभी जगह ‘‘P’’ व ‘S’ दोनों ही तरंगों अभिलेखित होती हैं। और अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘‘P’ तरंगें अभिलेखित होती हैं ‘S’ तरंगें अभिलेखित होती हैं। अतः यह क्षेत्र ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र है  भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती है दोनों प्रकार की तरगों के लिए छाया क्षेत्र  हैं। इसमें प्रमाणित होता है कि भूगर्भ के अन्दर घनत्व में विभिन्‍नता है, परिणाम स्वरूप भूकम्पीय तरंगों का मार्ग वक्राकार हो जाता है, चूंकि आंतरिक भाग की ओर घनत्व बढ़ता है अतः क्रोड में ये तरंगें वक्राकार होकर सतह की ओर अवतल हो जाती हैं  चूंकि ‘S’ तरंगें तरल पदार्थ से होकर नहीं गुजरती है इसलिए 2900 किमी से अधिक गहराई अर्थात भूक्रोड से विलुप्त हो जाती हैं इससे प्रमाणित होता है कि पृथ्वी का 2900 कि.मी. से अधिक गहराई वाला भाग तरल अवस्था में है जो केन्द्र के चारों ओर विस्तृत है।
भूकम्प के प्रकार 
विवर्तनिक भूकम्प – वे भूकम्प जो भ्रंशतल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं। विवर्तनिक भूकम्प कहलाते है 
नियात भूकम्प - खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किए जाते हैं। इन्हें नियात भूकम्प कहा जाता है।
विस्पफोट भूकम्प - परमाणु व रासायनिक विस्पफोट से भूमि में कम्पन द्वारा उत्पन्न भूकम्प विस्पफोट भूकम्प कहलाते हैं।
बाँध जनित भूकम्प -जो भूकम्प बड़े बाँघ वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बाँध जनित भूकम्प कहा जाता है।
भूकम्प के प्रभाव
भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है। जिसके निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते है 
भूकंप से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं :
1. भूकम्प से जन-धन की अपार हानि होती है। नगरों या अधिक घनी बस्तियों के पास भूकंप बहुत हानि पहुँचाते हैं। 
2.कई बार भूकंप से नदियों के मार्ग में रुकावट पड़ जाती है और उनका प्रवाह रुक जाता है। इस प्रकार नदी का जल समीपस्थ
भागों में फैल जाता है और बाढ़ आ जाती है। 
3. जब समुद्री भाग में भूकंप आता है तो बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं, जिससे जलयानों को भारी क्षति पहुँचती है। एवं तटीय भागों में समुद्री जल फैलकर भारी नुकसान करता है। जब भूकम्प का अधिकेन्द्र महासागरीय अधस्तल पर हो और भूकम्प की
तीव्रता बहुत अधिक हो। तो विशाल महासागरीय तरंगें उत्पन्न होती है जिसे सुनामी कहते है 
4. भूकंप से भू-पटल पर बड़े-बड़े गढ़े पड़ जाते हैं, जिससे यातायात में बड़ी बाधा पड़ती है। 
5. भूकप से पर्वतीय प्रदेशों में भू-स्खलन बहुत होते हैं, जिससे भारी क्षति होती है।
6. भूकंप से कई बार भीषण आग लग जाती है, जिससे बहुत नुकसान होता है।
पृथ्वी की संरचना
भूकम्प विज्ञानं एवं अन्य नवीनतम जानकारियों के आधार प् पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है 
1- भूपर्पटी (Crust ) - यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है महासागरों के नीचे भूपर्पटी की औसत मोटाई 5 कि.मी. तथा महाद्वीपों के नीचे इसकी औसत मोटाई 30 कि.मी. तक होती है इस परत की चट्टानों का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति घन सेमी है 
2- मैंटल (Mantle)-भूपर्पटी के नीचे 2900 किमी की गहराई तक मैंटल का विस्तार है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धारातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्त्रेत यही भाग है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल कहलाता हैं इसका घनत्व 4.5 ग्राम प्रति घन सेमी से अधिक होता है
3-क्रोड(Core)- 2900 से 6370 कि0मी0 तक की गहराई वाला यह भाग पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग है जिसका औसत घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी है इसके दो भाग है (i) बाह्य क्रोड (ii) आंतरिक क्रोड  बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है यह 2900 कि.मी. से 5150 की.मी. तक विस्तृत है आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। जो 5150 की.मी. से पृथ्वी के केंद्र तक विस्तृत है  क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे का बना है। इसे ‘निफे’ परत के नाम से भी जाना जाता है।


ज्वालामुखी 
ज्वालामुखी भूपटल के वे छिद्र जिनसे भूगर्भ का (तरल चट्टानी पदार्थ) मेग्मा आदि पदार्थ उद्गार के रूप में बाहर निकालता है यह तरल चट्टानी पदार्थ दुर्बलता मण्डल से निकल कर धरातल पर पहुँचता है। जब तक यह तरल पदार्थ मैंटल के ऊपरी भाग में रहता है, मैग्मा कहलाता है। जब यह भूपटल के ऊपर या धरातल पर पहुँचता है तो लावा कहलाता है। ज्वालामुखी उदगार के रूप में लावा, राख, धूलकण, गैसे आदि पदार्थ बाहर निकलते है 
ज्वालामुखी के प्रकार 
ज्वालामुखी उद्गार के आधार पर
(।) सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी : वे ज्वालामुखी जिनसे हर समय उदगार होते रहते हैं। 
(2) सुषुप्त ज्वालामुखी: ऐसे ज्वालामुखी जो एक बार सक्रिय होने के पश्चात्‌ काफी लम्बे समय तक शांत हो जाते हैं और अचानक फिर सक्रिय हो जाते हैं उन्हें सुषुप्त ज्वालामुखी कहते हैं। 
(3) शांत या मृत ज्वालामुखी : जिन ज्वालामुखियों में लम्बे समय से उदगार नहीं हुए और न आगे होने की संभावना प्रतीत होती है, उन्हें शांत या मृत ज्वालामुखी कहते हैं।
शील्ड ज्वालामुखी 
इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोटक क्रिया कम होती है एवं उद्गार शांत ढंग से होता है | इसका मुख्य कारण लावा का पतला होना और गैस की तीव्रता में कमी होना है। लावा के पतले होने के कारण इन ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं होता है हवाई द्वीप के ज्वालामुखी इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। 
मिश्रित ज्वालामुखी 
इन ज्वालामुखियों से अपेक्षाकृत गाढ़ा या चिपचिपाद्ध लावा बाहर निकालता हैं। प्रायः ये ज्वालामुखी भीषण विस्पफोटक होते हैं। इनसे लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि पदार्थ व राख भी धरातल पर पहुँचती हैं। यह पदार्थ निकास नली के आस-पास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं 
ज्वालामुखी कुंड 
ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्पफोटक ज्वालामुखी हैं। आमतौर पर ये इतने विस्पफोटक होते हैं कि जब इनमें विस्पफोट होता है तब वे उफँचा ढाँचा बनाने के बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं। धँसे हुए विध्वंस गर्त (लावा के गिरने से जो गड्ढे बनते हैं) ही ज्वालामुखी कुंड ज्वालामुखी कहलाते है
बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र 
ये ज्वालामुखी अत्यध्कि तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हजारों वर्ग कि.मी. घने लावा प्रवाह से ढके हैं। इनमें लावा प्रवाह क्रमानुसार होता है  भारत का दक्कन ट्रैप बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है। 
मध्य-महासागरीय कटक ज्वालामुखी
इन ज्वालामुखियों का उद्गार महासागरों में होता है। मध्य महासागरीय कटक एक शृंखला है  जो सभी महासागरीय बेसिनों में फैली है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में लगातार उद्गार होता रहता है।
ज्वालामुखी निर्मित स्थलरूप
ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती हैं। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुँच कर होता है या धरातल तक पहुँचने से पहले ही भूपटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है।  लावा के ठंडा होने के स्थान के आधर पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है 
1. ज्वालामुखी शैल- जब लावा धरातल पर पहुँच कर ठंडा होता है तो उससे ज्वालामुखी शैलों का निर्माण होता है 
2. पातालीय शैल- जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है तो उससे पातालीय शैलों का निर्माण होता है
अंतर्वेधी आकृतियाँ
जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो बनने वाली आकृतियाँ अंतर्वेधी आकृतियाँ कहलाती हैं। ज्वालामुखी उदगार से निम्नलिखित अंतर्वेधी आकृतियाँ बनती है 
1. बैथोलिथ - यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है ये कई हजार वर्ग किलोमीटर में फैले होते हैं। 
2. लैकोलिथ -ये गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। यह बैथोलिथ की तुलना में छोटा होता है 
3. लेपोलिथ, फैकोलिथ व सिल - ऊपर उठते मैग्मा का कुछ भाग क्षितिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जमा हो जाता है। और लेपोलिथ, फैकोलिथ व सिल आकृतियाँ बनता है 
लैपोलिथ- आन्तरिक शैल्रों में मैग्मा के तश्तरीनुमा जमाव को लैपोलिथ कहते हैं।
फैकोलिथ –जब मैग्मा आन्तरिक शैल्रों में मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर व अभिनति के तल में जमा हो जाता है। तो लहरदार चट्रानें बनती है जो एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। यह ही फैकोलिथ कहलाती हैं।        
सिल व शीट - आन्तरिक शैल्रों में मैग्मा के क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होकर ज़मने से निर्मित कम मोटाई वाली आकृति शीट तथा अधिक  मोटाई वाली आकृति सिल कहलाता है।
डाइक -आन्तरिक शैलों में मैग्मा के लगभग लम्बवत जमाव से निर्मित आकृति  डाइक कहलाती है 


  1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है
    (क) भूकंपीय तरंगें           (ख) गुरूत्वाकर्षण बल
    (ग) ज्वालामुखी             (घ) पृथ्वी का चुंबकत्व            (ग)
  2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है:
    (क) शील्ड                  (ख) मिश्र
    (ग) प्रवाह                   (घ) कुंड                        (ग)
  3. निम्नलिखित में से कौन सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
    (क) ऊपरी व निचले मैंटल  (ख) भूपटल व क्रोड
    (ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल  (घ) मैंटल व क्रोड               (ग)
  4. निम्न में भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती है:
    (क) ‘P’ तरंगें            (ख) ‘S’ तरंगें
    (ग) धरातलीय तरंगें      (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं        (क)
  5. भूगर्भीय तरंगें क्या हैं ?
    भूकम्प के उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान जो तरंगे उत्पन्न होती हैं और पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैउन्हें भूगर्भीय तरंगें कहते है  
  6. भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
    भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम निम्नलिखित हैं:
    1. धरातलीय चट्टानें: खनन प्रक्रिया से पृथ्वी से ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें प्राप्त होती है जिनके अध्ययन से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानकारी मिलती है।
    2. प्रवेधन-गहरे समुद्र में प्रवेधन’ व ‘समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना’ तथा अन्य गहरी खुदाई परियोजनाओं से गहराई से प्राप्त पदार्थों के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी मिलती है
    3.ज्वालामुखी उद्गार- ज्वालामुखी उद्गार से पृथ्वी के आंतरिक भाग से तरल मैग्मा  पृथ्वी के धरातल पर लावा के रूप में बहार आता है जिससे यह सिद्ध होता है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में कहीं ना कहीं एक तरल परत अवश्य पाई जाती है साथ ही यह लावा प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है। 
  7. भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं ?
    सामान्यतः भूकंपलेखी यंत्र पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती है परन्तु कुछ क्षेत्र ऐसे होते है। जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती है । ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है। पृृथ्वी के आंतरिक भाग में घनत्व परिवर्तन के कारण  'P' व 'S' तरंगें एक सीधाी दिशा में न चलकर वक्राकार होकर सतह की ओर अवतल हो जाती हैं इस कारण भूकंप अधिकेंद्र से 105° सेे 145° के बीच दोनों ही भूकंपीय तरंगें नहीं पहुंचती है और यह  क्षेत्र दोनों ही प्रकार की भूकंपीय तरंगों के लिए छाया क्षेत्र बन जाता है। ‘S’ तरंगें तरल माध्यम में गति नहीं करती है इस कारण ‘S’ तरंंगे भू-क्रोड से पहले ही विलुप्त हो जाती है तथा भूकंप अधिकेंद्र से 105° के परे पूूूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं है और यह क्षेत्र ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र बन जाताा है।
  8.  भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें
    भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधन निम्नलिखित है:-
    तापमान: सामान्यतः पृथ्वी की सतह से केन्द्र की ओर प्रति 32 मीटर की गहराई पर तापमान 1 °C की वृृद्धि होती है तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ में सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था मे होने चाहिए परन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। अधिाक गहराई के साथ बढ़ते दबाब के कारण चट्टानों के पिघलने का तापमान बिन्दु बढता जाता है एवं धारातल के नीचे तापमान की वृद्धि दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। 
    दबाव : पृथ्वी के केन्द्र की ओर बढ़ते तापमान के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थ तरल रूप में होने चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है क्योंकि गहराई बढ़ने के साथ ऊपरी दबाव बढ़ता जाता है जिससे चट्टानों के पिघलने का तापमान बिन्दु (द्रवणांक) बढ़ जाता है अतः भूगर्भ में उच्च तापमान होते हुए भी अत्यधिक दबाव के कारण चट्टानें  ठोस रूप में पाई जाती है ।
    घनत्व :  पृ्थ्वी का औसत घनत्व 5.5 है जबकि धरातल का घनत्व 2.7 व केन्द्र का घनत्व 11 से अधिक है ।अर्थात पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव बढ़ने व भारी पदार्थों के होने के कारण घनत्व भी बढ़ता जाता है। 
    उल्कापात - उल्कापिंड के अधययन से ज्ञात हुआ है कि उल्काओं की रचना में निकल और लोहा पाया जाता है।   चूंकि उल्कापिंड सौर्य परिवार का सदस्य है और पृथ्वी भी सौर्य परिवार का सदस्य है। अतः पृथ्वी के आन्तरिक भाग में भी निकल और लौहा पाया जाता है।
  9. भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर यह तरंगें गुजरती हैं
    जब भूकंपीय तरंगें संचरित होती हैं तो चट्टानों में कंपन पैदा होती है। ‘ P’ तरंगें तरंग संचरण की गति की दिशा के समानांतर कम्पन पैदा करती है। और तरंग संचरण की दिशा में पदार्थ पर दबाव डालती है। इस दबाव के कारण पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव उत्पन्न होता है। 'S' तरंगें तरंग संचरण
    गति की दिशा के लम्बवत कंपन पैदा करती हैं अतः ये जिस पदार्थ में से गुजरती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। 
  10. अंतर्वेधि आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधि आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें ।
    ज्वालामुखी उद्गार के समय जब मैग्मा भूपटल के भीतर ही दरारों और संधियों में जमकर ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अंतर्वेधी आकृतियाँ कहलाती हैं।
    विभिन्न अंतर्वेधि आकृतियाँ निम्नलिखित हैं:-
    बैथोलिथ: जब मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा होकर एक विशालकाय गुंबद के आकार में जमा हो जाता है तो बैथोलिथ का निर्माण होता है।
    लैकोलिथ: ये गुंबदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है।
    लैपोलिथ: जब मैग्मा आंतरिक शैलौं में तश्तरी के आकार में जम जाए, तो यह लैपोलिथ कहलाता है ।
    फैकोलिथ वलित चट्टानों के वलनशीर्ष अथवा वलनगर्त में मैग्मा के जमने से लेंस की आकृति में बनने वाली संरचना फैकोलिथ कहलाती है ।
    सिल व‌ शीट : जब मैग्मा आंतरिक चट्टानों पमें क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होकर जम जाता है तो सिल या शीट का निर्माण होता है| कम मोटाई वाले जमाव को शीट व अधिक मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं ।
    डाइक: आंतरिक शैलौं में मैग्मा के लम्बवत जमाव से बनी संरचना डाइक कहलाती है ।
     
  1. भूकंप की तीव्रता किस स्केल पर मापी जाती है 
    रिक्टर स्केल पर
  2. भूकंप की तीव्रता किस उपकरण से मापी जाती है
    सिस्मोग्राफ(भूकंप मापी यंत्र)
  3. पृथ्वी की त्रिज्या कितनी है 
    पृथ्वी की त्रिज्या 63 70 किमी हैै
  4. भूकंप किसे कहते हैं
    भूगर्भिक शक्तियों के परिणामस्वरूप धारातल के किसी भाग में उत्पन्न होने वाले आकस्मिक कम्पन को भूकम्प कहते हैं
  5. सुनामी क्या है
    समुद्र में आने वाले भूकंपों द्वारा उत्पन्न ऊंची विनाशकारी सागरीय लहरों को जापानी भाषा में सुनामी कहते है
  6. भूकम्प का उद्गम केंद्र किसे कहते हैं
    भूगर्भ में जिस स्थान पर भूकम्प की उत्पत्ति होती है अर्थात जहां से ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप का उद्गम केंद्र या अवकेंद्र कहते हैं
  7. अधिकेंद्र से क्या अभिप्राय है 
    भूकंप के उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर (समकोण पर)धरातल पर स्थित वह बिंदु जहां भूकंपीय तरंगे सबसे पहले महसूस की जाती है अधिगम केंद्र कहलाता है
  8. पृथ्वी की आंतरिक संरचना का वर्णन कीजिए
    भूकम्प विज्ञानं एवं अन्य नवीनतम जानकारियों के आधार प् पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है 
    1- भूपर्पटी (Crust ) - यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है महासागरों के नीचे भूपर्पटी की औसत मोटाई 5 कि.मी. तथा महाद्वीपों के नीचे इसकी औसत मोटाई 30 कि.मी. तक होती है इस परत की चट्टानों का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति घन सेमी है 
    2- मैंटल (Mantle)-भूपर्पटी के नीचे 2900 किमी की गहराई तक मैंटल का विस्तार है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धारातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्त्रेत यही भाग है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल कहलाता हैं इसका घनत्व 4.5 ग्राम प्रति घन सेमी से अधिक होता है
    3-क्रोड(Core)- 2900 से 6370 कि0मी0 तक की गहराई वाला यह भाग पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग है जिसका औसत घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी है इसके दो भाग है (i) बाह्य क्रोड (ii) आंतरिक क्रोड  बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है यह 2900 कि.मी. से 5150 की.मी. तक विस्तृत है आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। जो 5150 की.मी. से पृथ्वी के केंद्र तक विस्तृत है  क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे का बना है। इसे ‘निफे’ परत के नाम से भी जाना जाता है।




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2 Comments
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  1. Sir महादिपो एवम महासागरो का वितरण

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  2. It was very helpful🙂🙂

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Thanks

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