विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव - जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है इसे विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं
चुम्बकीय क्षेत्र - चुंबक के चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें चुंबकीय प्रभाव महसूस किया जाता है चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है चुम्बकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है क्योंकि चुम्बकीय क्षेत्र में दिशा तथा परिमाण दोनों होता है। चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्राक ऑर्स्टेड है।
चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं - किसी चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करने वाली काल्पनिक रेखाएं चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं कहलाती है
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण
1.चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ चुम्बक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं।
2.चुम्बक के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है अत: चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद बक्र होती हैं।
3. दो क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं। यदि वे ऐसा करें तो इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिंदु पर दिकसूची को रखने पर उसकी सुई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी जो संभव नहीं हो सकता है
4. जहाँ पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक नजदीक होती हैं वहाँ पर चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है। चूँकि चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाएँ ध्रुवों के पास अधिक सघन होती हैं अत: एक चुम्बक ध्रुव के पास अधिक शक्तिशाली होता है।
किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
विद्युत धारावाही चालक दो तरह के हो सकते हैं: एक सीधा चालक तथा दूसरा वृताकार पाश वाला चालक।
सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
जब किसी सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। एक सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित करने पर चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ संकेन्द्री वृत्त बनाती है।
सीधे चालक से प्रावहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि से चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं कों निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत अधिक घने हो जाते हैं। अर्थात जैसे जैसे तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिये गये बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
चालक के निकट चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता अधिक होती है, तथा चालक से दूरी घटने के साथ चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता उत्तरोत्तर कम होती जाती है।
मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम
किसी विद्युत धरावाही चालक से संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिए मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम का उपयोग करते है इसे मैक्सवेल का कॉर्क स्क्रू नियम भी कहते हैं।दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम के अनुसार जब किसी धारावाही चालक को दाहिने हाथ से इस प्रकार पकड़े कि अंगूठा धारा की दिशा की ओर रहे तो मुड़ी हुई अंगुलियों की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है
विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
जब विद्युत धारा को एक वृत्ताकार पाश से प्रवाहित किया जाता है, तो इस विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर संकेन्द्री वृत्ताकार पैटर्न में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। अतः विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश का प्रत्येक बिन्दु एक विद्युत धारावाही सीधे चालक की तरह व्यवहार करता है।
विद्युत धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम होता है। अत: किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत्तों का आकार तार से दूर जाने पर निरंतर बड़ा होता जाता है। तथा वृत्ताकार पाश के केन्द्र में पहुँचने पर वृत्तों के चाप सरल रेखा जैसे प्रतीत होने लगते हैं।
चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल
जब किसी चालक को किसी चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच मुक्त रूप से लटकाकर चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो चालक एक दिशा में विस्थापित हो जाता है। यह दर्शाता है जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र चालक के निकट रखे चुम्बक पर एक बल आरोपित करता है।चुम्बक भी विद्युत धारावाही चालक पर परिणाम में समान परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करता है।
चुम्बक द्वारा चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा तथा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करती है। विद्युत धारावाही चालक में विस्थापन उस समय अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बबत होती है इस स्थिति में चालक पर आरोपित बल की दिशा का पता फ्लेमिंग का वामहस्त नियम द्वारा लगाया जा सकता है फ्लेंमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार आरोपित बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र तथा विद्युत धारा दोनों की दिशाओं के लंबवत होती है।
फ्लेमिंग का वाम (बायाँ) हस्त नियम
फ्लेंमिंग के वाम हस्त नियम के अनुसार जब बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाया जाता है कि तीनों एक दूसरे के लम्बबत हों तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा। यह फ्लेमिंग का वामहस्त नियम कहलाता है।
फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम
फ्लेंमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार जब दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाया जाता है कि तीनों एक दूसरे के लम्बवत हों तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और अंगुठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को बताती है
परिनालिका
पास पास लिपटे विद्युतरोधी ताँम्बे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।
जब किसी परिनालिका से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह परिनालिका एक चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगता है।
परिनालिका एक सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है। परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।
परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ, जैसे नर्म लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जा सकता है इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं।
विद्युत मोटर
विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत मोटर कहते हैं।
विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजेरेटरों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, MP3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।
संरचना— विधुत मोटर में विधुतरोधी तार की एक आयता कार कुण्डली ABCD होती है ।
यह कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत रहें। कुंडली के दोनों सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों P तथा Q से जुड़े होते हैं| इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। R तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमश: दो स्थिर चालक ब्रुशों X और Y से स्पर्श करते हैं।
कार्य-प्रणाली — बैटरी से चलकर ब्रुश X से होते हुए Z से विधुत-धारा कुण्डली ABCD में प्रवेश करती है तथा चालक ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस भी आ जाती है । कुण्डली में विधुत-धारा इसकी भुजा AB में A से B की ओर तथा भुजा CD में C से D की ओर प्रवाहित होती है। अतः AB तथा CD में विधुत-धारा की दिशाएँ परस्पर विपरीत होती है। फ्लेंमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी धकेलता है, जबकि भुजा CD पर आरोपित बल इसे उपरिमुखी धकेलता है
चुंबकीय क्षेत्र में रखे विधुत-धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग का वामहस्त नियम अनुप्रयुक्त करने पर पाते हैं कि भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी धकेलता है, जबकि भुजा CD पर आरोपित तल इसे उपरिमुखी धकेलता है। इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुण्डली तथा धुरी वामावर्त्त घूर्णन करते हैं। आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है । अतः, कुण्डली में विधुत-धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है।
दिकपरिवर्तक- वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिकपरिवर्तक कहते हैं। विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिकपरिवर्तक का कार्य करता है।
(ii) व्यावसायिक मोटरों मेंविद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अत्यधिक होती है
(iii) व्यावसायिक मोटरों में कुंडली को नर्म लौह क्रोड पर लपेटा जाता है। इस नर्म लौह कोड तथा उसपर लगे कुंडली को सम्मिलित रूप से आर्मेचर कहते हैं।
गैल्वेनोमीटर
विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बताने वाला उपकरण गैल्वेनोमीटर कहलाता है
विद्युत जनित्र
यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत जनित्र कहते हैं।
सिद्धांत- एक विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है
विद्युत जनित्र में एक आयताकार कुंडली ABCD होती है जिसे किसी स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है इस कुंडली के दोनों सिरे दो वलय R₁ तथा R₂ से जुड़े होते हैंदो स्थिर चालक ब्रुश B₁ तथा B₂ वलय R₁ तथा R₂ पर लगे होते है। तथा दोनों वलय R₁ तथा R₂ भीतर से धुरी से जुड़े होते हैं। दोनों ब्रुशों के बाहरी सिरे, बाहरी परिपथ में गैल्वेनोमीटर से जुड़े होते हैं।
कार्य-विधि— जब कुंडली ABCD को चुंबकीय क्षेत्र में इस प्रकार घुमाया जाता है कि कुंडली की भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर गति करती है चुंबकीय क्षेत्र में जब कुंडली गति करती है तो कुंडली प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है फ्लेंमिंग के दक्षिण-हस्त नियम के अनुसार विधुत-धारा भुजा AB में A से B और भुजा CD में C से D की ओर बहती है। अतः कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा ABCD दिशा में प्रवाहित होती है। बाह्य परिपथ में यह प्रेरित विद्युत धारा ब्रुश B₂ से B₁ की दिशा में प्रवाहित होती है। आधे घूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर गति करने लगती है। अतः विधुत-धारा भुजा AB में B से A और भुजा CD में D से C की ओर बहने लगती है। फलस्वरूप कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा DCBA दिशा में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार, अब बाह्य परिपथ में ब्रुश B₁ से B₂ की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। अतः, प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात क्रमिक रूप से इन भुजाओं में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित होती रहती है।
प्रत्यावर्ती धारा (AC)- ऐसी विद्युत धारा जो समान समय-अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा (AC) कहते हैं। तथा प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र हैं।
अधिकांश विद्युत शक्ति संयंत्रों में प्रत्यावर्ती विद्युत धारा का उत्पादन होता है। भारत में उत्पादित प्रत्यावर्ती विद्युत धारा हर 1/100 Sec के पश्चात अपनी दिशा उत्क्रमित (उल्टी) कर लेती है अर्थात इस प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 Hz है।
दिष्ट धारा - (DC) - ऐसी विद्युत धारा जिसमे समय के साथ दिशा में परिवर्तन नहीं होता है, उसे दिष्ट धारा (DC) कहते हैं। तथा दिष्ट धारा उत्पन्न करने की इस युक्ति को दिष्ट धारा जनित्र हैं।
दिष्ट धारा तथा प्रत्यावर्ती धारा के बीच यह अंतर है कि दिष्ट धारा सदैव एक ही दिशा में प्रवाहित होती है, जबकि प्रत्यावर्ती धारा एक निश्चित समय-अंतराल के पश्चात अपनी दिशा उत्क्रमित करती रहती है।
दिष्ट धारा की तुलना मेंं प्रत्यावर्ती धारा का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।
घरेलू विद्युत परिपथ
हम अपने घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों (जिसे मेंस भी कहते हैं) से प्राप्त करते हैं। ये मुख्य तार या तो धरती पर लगे विद्युत खंभों के सहारे अथवा भूमिगत केबलों से हमारे घरों तक आते हैं। इस आपूर्ति के तारों में से एक तार को जिस पर प्रायः लाल विद्युतरोधी आवरण होता है, विद्युन्मय तार [धनात्मक तार] कहते
हैं। अन्य तार को जिस पर काला आवरण होता है, उदासीन तार [ऋणात्मक तार] कहते हैं। हमारे देश में इन दोनों तारों के बीच 220 V का विभवांतर होता है। घर में लगे मीटर बोर्ड में ये तार मुख्य फ्यूज से होते हुए विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं। इन्हें मुख्य स्विच से होते हुए घर के लाइन तारों से संयोजित किया जाता है।
ये तार घर के पृथक-पृथक परिपथों में विद्युत आपूर्ति करते हैं। प्रायः घरों में दो पृथक परिपथ होते हैं, एक 15 A विद्युत धारा अनुमतांक के लिए जिसका उपयोग उच्च शक्ति वाले विद्युत साधित्रों जैसे गीजर, वायु शीतित्र/कूलर आदि के लिए किया जाता है। दूसरा विद्युत परिपथ 5 A विद्युत धारा अनुमतांक के लिए होता है जिससे बल्ब, पंखे आदि चलाए जाते हैं।
भूसंपर्क तार
भूसंपर्क तार पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है यह घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज का पंखा, रेफ्रिजरेटर, आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रो में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है। धातु के आवरणों से संयोजित भूसंपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धत्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाता है फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।
फ्यूज तार
जब तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाता है अथवा साधित्र में कोई दोष होता है तब विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आ जाते हैं ऐसी परिस्थितियों में किसी परिपथ में विद्युत धारा अकस्मात बहुत अधिक (अतिभारण) हो जाती है। इसे लघुपथन कहते हैं।
विद्युत परिपथ तथा साधित्र को अतिभारण के कारण होने वाली क्षति से बचाने के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है फ्यूज विद्युत परिपथ तथा विद्युत साधित्र को अवांछनीय उच्च विद्युत धारा के प्रवाह को समाप्त करके, संभावित क्षति से बचाता है। परिपथ में विद्युत धारा अकस्मात बहुत अधिक (अतिभारण) हो जाने पर फ्यूज तार पिघला जाता है जिससे विद्युत परिपथ टूट जाता है।
अतिभारण निम्न कारणों से हो सकता है
1. आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि के कारण
2. एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करने पर
- घरेलू परिपथ में अतिभारण तथा लघुपथन से बचने के लिए क्या उपाय किया जाता है?फ्यूज तार का
- घरेलु परिपथ में कौन-सी धारा प्रवाहित होती है ?प्रत्यावर्ती धारा
- विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति क्या कहालाती है?विद्युत जनित्र
- विद्युत चुम्बक बनाने के लिए किस पदार्थ का उपयोग होता है?नरम लोहा
- "विद्युत-धारा का चुंबकीय प्रभाव" किसने खोज निकाला था?ओर्स्टेड ने
- विद्युत परपिथों एवं साधित्रों में सामान्यतया उपयोग होने वाले दो सूरक्षा उपायों के नाम लिखिए।1. विद्युत फ्यूज2. भू-सम्पर्क तार
- MRI का पुरा नाम लिखिए ।चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिंबन
- घरों में प्रयोग होने वाले उपकरण, मेन्स से किस क्रम में जोड़े जाते हैं ?समान्तर क्रम में
- गैल्वेनोमीटर किसे कहते है ?विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बताने वाला उपकरण गैल्वेनोमीटर कहलाता है
- चुंबकीय क्षेत्र किसे कहते है ?चुंबक के चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें चुंबकीय प्रभाव महसूस किया जाता है चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है
- चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक क्या है ?ऑर्स्टेड
- मानव शरीर के किन भागों में चुंबकीय क्षेत्र का उत्पन्न होता है ?मानव शरीर के दो मुख्य भाग हृदय तथा मस्तिष्क में चुंबकीय क्षेत्र का उत्पन्न होता है
- विद्युत जनित्र किसे कहते है ?यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत जनित्र कहते हैं।
- विद्युत जनित्र किस सिद्धांत पर कार्य करता है ?विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर
- विद्युन्मय तार एवं उदासीन तार के बीच का विभवांतर का मान कितना होता है ?220V
- एक सीधे धारावाही चालक के चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाएँ कैसी होती हैंसंकेन्द्री वृत्तों के रूप में
- विद्युत मोटर क्या है ?विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत मोटर कहते हैं।
- वृत्ताकार धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का मान सबसे अधिक कहाँ होता है ?वृत्ताकार धारावाही चालक के केन्द्र पर चुंबकीय क्षेत्र का मान सबसे अधिक होता है
- किसी चुंबकीय क्षेत्र में विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है ?जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होती है।
- भारत में प्रत्यावर्ती धारा [AC] की आवृत्ति क्या है ?50Hz
- चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ अधिक संख्या में कहाँ होती है ? .चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ ध्रुवों पर ज्यादा सघन होती हैं।
- कौन सी युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है ?विद्युत मोटर
- ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णी गति कर रही है इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात परिवर्तन होता है ?आधे घूर्णन के बाद
- व्यावसायिक मोटरों में कौन-से चुंबक प्रयुक्त किए जाते हैं ?विद्युत चुंबक
- सभी आधुनिक विद्युत शक्ति संयंत्र कैसी विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं ?प्रत्यावर्ती विद्युत धारा
- घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति किन तारों के द्वारा की जाती है ?मुख्य तारों द्वारा जिसे मेंस भी कहते हैं
- बैटरी के चार्जर में कौनसी धारा प्रयुक्त की जाती है ?दिष्ट धारा
- विद्युत चुंबकीय प्रेरण की खोज किसने की ?माईकल फैराडे
- विद्युत धारावाही.सीधी लम्बी परिनालिका के भीतर सभी जगह चुम्बकीय क्षेत्र की प्रकृति कैसी होती हैचुम्बकीय क्षेत्र सभी बिन्दुओं पर समान होता है।
- प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करनेवाले स्रोतों के नाम लिखिए।नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के जनित्र, थर्मल पॉवर प्लांट, जलीय पावर स्टेशन आदि।
- दिष्ट धारा उत्पन्न करने वाले मुख्य स्रोतों के नाम लिखिए।शुष्क सेल, बटन सेल, लेड बैटरियों, डी सी जनित्र।
- विद्युत मोटर का उपयोग किन युक्तियों में किया जाता है ?विद्युत पंखां, रेफ्रिजरेटर, कूलर, वाशिंग मशीनो आदि
- चिकित्सा क्षेत्र में विद्युत चुंबकीय प्रभाव कहाँ प्रयुक्त किया गया है ?चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंबन / MRI [मैगनेटिक रेजोनेंस इमेजिंग] में।
- विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है ?विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिकपरिवर्तक का कार्य करता है विभक्त वलय परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है| जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी में निरंतर घूर्णन होता रहता है
- चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा क्या होती है ?चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिण ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर बंद वक्र के समान होती है।
- चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा क्या होती है ?चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा चुंबक के उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव की ओर बंद वक्र के समान होती है।
- दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा का एक लाभ लिखें।दिष्ट धारा की तुलना मेंं प्रत्यावर्ती धारा का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।
- परिनालिका किसे कहते हैं ?पास पास लिपटे विद्युतरोधी ताँम्बे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।
- प्रत्यावर्ती धारा किसे कहते हैं ?वह धारा जो निश्चित समय अंतराल के बाद अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है
- विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव क्या है ?जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है इस में विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं
- विद्युत चुंबकीय प्रेरण किसे कहते हैं ?किसी कुंडली एवं चुम्बक के बीच सापेक्ष गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होने की परिघटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहते हैं
- प्रत्यावर्ती धारा एवं दिष्ट धारा में एक मुख्य अंतर क्या है ?दिष्टधारा सदैव एक ही दिशा में प्रवाहित होती है तथा प्रत्यदर्शी धारा एक निश्चित समयान्तराल के पश्चात अपनी दिशा बदलती रहती है।
- दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं ?दो क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं। यदि वे ऐसा करें तो इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिंदु पर दिकसूची को रखने पर उसकी सुई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी जो संभव नहीं हो सकता है
- विधुत मोटर किस सिद्धान्त पर कार्य करती है ?विधुत मोटर विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करती है जब किसी कुण्डली को चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कण्डली पर एक बल युग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है।
- विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए।विद्युत जनित्र का सिद्धांत विद्युत चुंबकीय प्रेरण पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार जब किसी कुंडली को तीव्र चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुण्डली से संबंधित चुंबकीय बल रेखा में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप कुण्डली में प्रेरित धारा प्रवाहित होने लगती है।
- घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?एक ही सॉकेट से एक से अधिक साधित्रों को नहीं जोड़ना चाहिएएक ही समय में बहुत अधिक साधित्रों का एक साथ प्रयोग नहीं करना चाहिएदोषपूर्ण साधित्रों को परिपथ में नहीं जोड़ना चाहिएविद्युत परिपथ में उपयुक्त स्थान पर फ्यूज लगा होना चाहिए
- फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम लिखिए।
फ्लेंमिंग का वाम हस्त नियम के अनुसार जब बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाया जाता है कि तीनों एक दूसरे के लम्बबत हों तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा। यह फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम कहलाता है। - फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम लिखिए।फ्लेंमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार जब दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाया जाता है कि तीनों एक दूसरे के लम्बवत हों तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और अंगुठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को बताती है
- चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण लिखिए।1.चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं उत्तरी ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिणी ध्रुव में विलीन हो जाती है2.चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की होती है3.चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक बंद वक्र होती है4.चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक दूसरे को काटती नहीं है
- निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए।[i] किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा[ii] किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल[iii] किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा|[i] मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम[ii] फ्लेंमिंग का वामहस्त नियम[iii] फ्लेंमिंग का दक्षिण-हस्त नियम
- विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए ।विद्युत फ्यूज: विद्युत परिपथ में लगा फ्यूज परिपथ तथा साधित्र को अतिभारण के कारण होने वाली क्षति से बचाता हैभूसंपर्क तार- भूसंपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। साधित्र के धत्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाता है फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है
- भूसंपर्क तार का क्या कार्य है ? .भूसंपर्क तार पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है यह घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज का पंखा, रेफ्रिजरेटर, आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रो में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है। यह तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धत्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाता है फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।
- विधुत जनित्र क्या है ? नामांकित आरेख खींचकर किसी विधुत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए।यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत जनित्र कहते हैं।सिद्धांत- एक विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता हैसंरचना- विद्युत जनित्र में एक आयताकार कुंडली ABCD होती है जिसे किसी स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है इस कुंडली के दोनों सिरे दो वलय R1 तथा R2 से जुड़े होते हैंदो स्थिर चालक ब्रुश B1 तथा B2 वलय R1 तथा R2 पर लगे होते है। तथा दोनों वलय R1 तथा R2 भीतर से धुरी से जुड़े होते हैं। दोनों ब्रुशों के बाहरी सिरे, बाहरी परिपथ में गैल्वेनोमीटर से जुड़े होते हैं।कार्य-विधि— जब कुंडली ABCD को चुंबकीय क्षेत्र में इस प्रकार घुमाया जाता है कि कुंडली की भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर गति करती है चुंबकीय क्षेत्र में जब कुंडली गति करती है तो कुंडली प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है फ्लेंमिंग के दक्षिण-हस्त नियम के अनुसार विधुत-धारा भुजा AB में A से B और भुजा CD में C से D की ओर बहती है। अतः कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा ABCD दिशा में प्रवाहित होती है। बाह्य परिपथ में यह प्रेरित विद्युत धारा ब्रुश B₂ से B₁ की दिशा में प्रवाहित होती है। आधे घूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर गति करने लगती है। अतः विधुत-धारा भुजा AB में B से A और भुजा CD में D से C की ओर बहने लगती है। फलस्वरूप कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा DCBA दिशा में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार, अब बाह्य परिपथ में ब्रुश B₁ से B₂ की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। अतः, प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात क्रमिक रूप से इन भुजाओं में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित होती रहती है।
- विधुत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विधुत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है ?विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने वाली युक्ति को विद्युत मोटर कहते हैं। विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजेरेटरों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, MP3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।संरचना— विधुत मोटर में विधुतरोधी तार की एक आयता कार कुण्डली ABCD होती है ।यह कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत रहें। कुंडली के दोनों सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों P तथा Q से जुड़े होते हैं| इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। R तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमश: दो स्थिर चालक ब्रुशों X और Y से स्पर्श करते हैं।कार्य-प्रणाली — बैटरी से चलकर ब्रुश X से होते हुए Z से विधुत-धारा कुण्डली ABCD में प्रवेश करती है तथा चालक ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस भी आ जाती है । कुण्डली में विधुत-धारा इसकी भुजा AB में A से B की ओर तथा भुजा CD में C से D की ओर प्रवाहित होती है। अतः AB तथा CD में विधुत-धारा की दिशाएँ परस्पर विपरीत होती है। फ्लेंमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी धकेलता है, जबकि भुजा CD पर आरोपित बल इसे उपरिमुखी धकेलता हैचुंबकीय क्षेत्र में रखे विधुत-धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग का वामहस्त नियम अनुप्रयुक्त करने पर पाते हैं कि भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी धकेलता है, जबकि भुजा CD पर आरोपित तल इसे उपरिमुखी धकेलता है। इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुण्डली तथा धुरी वामावर्त्त घूर्णन करते हैं। आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है । अतः, कुण्डली में विधुत-धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है।दिकपरिवर्तक- वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिकपरिवर्तक कहते हैं। विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिकपरिवर्तक का कार्य करता है।