जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन
अलैंगिक जनन के अंतर्गत मुख्यतः एकल जीव जनन करता है। जब एक जीव जनन करता है, तो पहले दो और फिर पुनः विभाजन के उपरांत चार जीव उत्पन्न होते है जिसमें समानताएँ अधिक होती हैं, परंतु विभिन्नताएँ कम होती हैं, जो DNA प्रतिकृति में उत्पन्न थोड़ी त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं। इसके विपरीत, लैंगिक जनन में विभिन्नताएँ अधिक पाई जाती हैं, जो वंशागत होती रहती हैं
आनुवंशिकता - जीवधारियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी विभिन्न लक्षणों के संचरण को आनुवंशिकता अथवा वंशागति कहते हैं।
वंशागत लक्षण - वे लक्षण जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होते हैं अनुवांशिक लक्षण/ वंशागत लक्षण कहलाते हैं
लक्षणों की वंशागति के नियम: मेंडल का योगदान
ग्रेगर जॉन मेंडल ने वंशागत नियमों के प्रतिपादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा इन्होंने मटर के पौधे पर अपने प्रयोग किए। मेंडल पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने प्रत्येक पीढ़ी के एक-एक पौधे द्वारा प्रदर्शित लक्षणों का रिकॉर्ड रखा। ग्रेगर जॉन मेण्डल को अनुवांशिकी का जनक कहा जाता है मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता एवं पिता दोनों ही समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को संतति (शिशु) में स्थानांतरित करते हैं। मेंडल ने मटर के पौधे के अनेक विपर्यासी लक्षणों अध्ययन किया और वंशागत नियमों के प्रतिपादन किया
1. प्रभाविता का नियम -
यह नियम एक संकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणो वाले समयुग्मजी पादपों में संकरण कराया जाता है तो वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त होता है प्रभावी लक्षण कहलाता है तथा वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं होता है अप्रभावी लक्षण कहलाता है
जब सयुग्मजी लम्बे “TT” तथा सयुग्मजी बौने “tt” के बीच संकरण करवाया जाता है तो F₁ पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे प्राप्त होते है इसका अर्थ था कि F₁ पिढी में दो लक्षणों में से केवल लंबाई वाला लक्षण ही दिखाई देता है अतः लंबाई वाला लक्षण ‘प्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं जबकि बौनेपन का लक्षण F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं हुआ है तथा ‘अप्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं।
यह नियम एक संकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणो वाले समयुग्मजी पादपों में संकरण कराया जाता है तो वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त होता है प्रभावी लक्षण कहलाता है तथा वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं होता है अप्रभावी लक्षण कहलाता है
जब सयुग्मजी लम्बे “TT” तथा सयुग्मजी बौने “tt” के बीच संकरण करवाया जाता है तो F₁ पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे प्राप्त होते है इसका अर्थ था कि F₁ पिढी में दो लक्षणों में से केवल लंबाई वाला लक्षण ही दिखाई देता है अतः लंबाई वाला लक्षण ‘प्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं जबकि बौनेपन का लक्षण F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं हुआ है तथा ‘अप्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं।
2. मेंडल का पृथक्करण का नियम /युग्मकों की शुद्धता का नियम
3. स्वतंत्र अपव्यूहन नियम -
यह नियम द्विसंकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब दो या दो से अधिक विपर्यासी लक्षणो वाले पौधों में संकरण कराया जाता है तो एक लक्षण की वंशागति का दूसरे लक्षण की वंशागति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात प्रत्येक लक्षण के युग्मविकल्पी केवल पृथक ही नहीं होता अपितु विभिन्न लक्षणों के युग्मविकल्पी एक दूसरे के प्रति स्वतंत्र रूप से व्यवहार करते हैं
जब गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधों के साथ संकरण करवाया जाता है तो F₁ पीढ़ी के सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले प्राप्त होते है परंतु जब F₁ पीढ़ी के पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो F₂ पीढ़ी कुछ पौधे नए संयोजन प्रदर्शित करते है और कुछ पौधे लंबे व झुर्रीदार बीज वाले तथा कुछ पौधे बौने व गोल बीज वाले प्राप्त होते है अतः लंबे/बौने लक्षण तथा गोल/झुर्रीदार लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे ही स्वतंत्र अपव्यूहन नियम का नियम कहते है
जीन - डी.एन.ए. का वह भाग जिसमें किसी प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है उस प्रोटीन को जीन कहलाता है। जीन लक्षणों को नियंत्रित करते हैं।
लिंग निर्धारण
कुछ प्राणि जैसे सरीसृप में लिंग निर्धारण निषेचित अंडे (युग्मक) के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है कि संतति नर होगी या मादा। घोंघे जैसे कुछ प्राणी अपना लिंग बदल सकते हैं, जो इस बात का संकेत है कि इनमें लिंग निर्धारण आनुवंशिक नहीं है। लेकिन, मानव में लिंग निर्धारण आनुवंशिक आधार पर होता है। मनुष्य में लिंग-निर्धारण गुणसूत्रों द्वारा होता है। मानव में कोशिकाओं के केन्द्रक में 46 अर्थात 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं जिनमें से 44 अर्थात 22 जोड़ी गुणसूत्र ओटोसोम्स तथा 2 अर्थात एक जोड़ी गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। ओटोसोम्स गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े के दोनों गुणसूत्र एक सामान होते है परन्तु लिंग गुणसूत्र मादा (स्त्री) में XX तथा पुरुष में XY होता है ये लिंग गुणसूत्र ही मनुष्य में लिंग-निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं। युग्मक निर्माण के समय नर में दो प्रकार के (22+X तथा 22+Y गुणसूत्र वाले) युग्मक (शुक्राणु) बनते है परन्तु मादा में केवल एक ही प्रकार के 22+X गुणसूत्र वाले युग्मक (अण्डाणु) बनते है निषेचन के समय यदि अण्डाणु नर के 22+Y गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो इससे बनाने वाली संतान पुत्र होगा और यदि निषेचन के समय अण्डाणु नर के 22+X गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो इससे बनाने वाली संतान पुत्री होगी अतः मानव में पुत्र व पुत्री उत्पन्न होने की संभावना 50%- 50% प्रतिशत होती है
- जीवों की आनुवंशिक इकाई क्या है ?जीन
- वह कौन-सा कारक है जो वंशागत लक्षणों को नियंत्रण करता है ?जीन
- जीन कहाँ पाये जाते हैं ?गुणसूत्रों पर
- अनुवांशिकी का जनक किसे कहा जाता है?ग्रेगर जॉन मेण्डल को
- वंशागत लक्षण किसे कहते हैवे लक्षण जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होते हैं अनुवांशिक लक्षण/ वंशागत लक्षण कहलाते हैं
- आनुवंशिकता किसे कहते हैजीवधारियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी विभिन्न लक्षणों के संचरण को आनुवंशिकता अथवा वंशागति कहते हैं।
- एक संकर संकरण का लक्षणप्रारूप व जीनप्रारूप अनुपात लिखिएलक्षणप्रारूप अनुपात - 3:1 व जीनप्रारूप अनुपात - 1:2:1
- द्विसंकर संकरण का लक्षण प्रारूप व जीन प्रारूप अनुपात लिखिएलक्षण प्रारूप 9:3:3:1 व जीन प्रारूप 1:2:2:4:1:2:1:2:1
- आनुवंशिक लक्षण किसे कहते हैंवे लक्षण जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होते हैं अनुवांशिक लक्षण कहलाते हैं
- जीन क्या हैडी.एन.ए. का वह भाग जिसमें किसी प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है उस प्रोटीन को जीन कहलाता है। जीन लक्षणों को नियंत्रित करते हैं।
- एक संकर संकरण किसे कहते हैंवह संकरण जिसमें एक लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया जाता है एक संकर संकरण कहलाता है
- द्वि संकर संकरण किसे कहते हैंवह संकरण जिसमें दो लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया जाता है द्विसंकर संकरण कहलाता है
- उपार्जित लक्षण किसे कहते है ?वातावरण में परिवर्तन के कारण या अंगों के कम या अधिक उपयोग के कारण जीवों में उत्पन्न नए लक्षण उपार्जित लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वाशानुगत होते रहते है
- लिंग- क्रोमोसोम (गुणसूत्र) किसे कहते हैं ?
- मनुष्य में 46 अर्थात 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं जिनमें से 44 अर्थात 22 जोड़ी गुणसूत्र ओटोसोम्स तथा 2 अर्थात एक जोड़ी गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। ओटोसोम्स गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े के दोनों गुणसूत्र एक सामान होते है परन्तु लिंग गुणसूत्र मादा (स्त्री) में XX तथा पुरुष में XY होता है ये लिंग गुणसूत्र ही मनुष्य में लिंग-निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं।
- प्रभावी व अप्रभावी लक्षण किसे कहते हैंलैंगिक जनन वाले जीवों में एक अभिलक्षण के जीन के दो प्रतिरूप होते हैं । इन प्रतिरूपों के एकसमान न होने की स्थिति में जो अभिलक्षण व्यक्त होता है उसे प्रभावी लक्षण तथा जो अभिलक्षण व्यक्त नहीं होता है उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं।जैसे Tt इसमें [T] लम्बेपन का लक्षण प्रभावी तथा [t] बौनेपन का लक्षण अप्रभावी है
- वे कौन-से कारक हैं, जो नयी स्पीशीज़ के उद्भव में सहायक हैं ?1.जीन प्रवाह का स्तर कम होना।2. प्राकृतिक चयन3.विभिन्नताएँ।4.भौगोलिक पृथक्करण के कारण जनन पृथक्करण5. आनुवंशिक विचलन
- मटर में पाए जाने वाले विपर्यासी लक्षणो की सूची बनाइएक्र.सं. लक्षण प्रभावी अप्रभावी1 पदप की लम्बाई लम्बा बौना2 पुष्प की स्थिति कक्षीय अग्रस्थ3 फली की आकृति फूली हुई संकिर्णित4 फली का रंग हरा पीला5 पुष्प का रंग बैंगनी सफेदी6 बीज की आकृति गोल झुर्रीदार7 बीज का रंग पीला हरा
- प्रभाविता का नियम क्या है समझाइएयह नियम एक संकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणो वाले समयुग्मजी पादपों में संकरण कराया जाता है तो वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त होता है प्रभावी लक्षण कहलाता है तथा वह लक्षण जो F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं होता है अप्रभावी लक्षण कहलाता हैजब सयुग्मजी लम्बे “TT” तथा सयुग्मजी बौने “tt” के बीच संकरण करवाया जाता है तो F₁ पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे प्राप्त होते है इसका अर्थ था कि F₁ पिढी में दो लक्षणों में से केवल लंबाई वाला लक्षण ही दिखाई देता है अतः लंबाई वाला लक्षण ‘प्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं जबकि बौनेपन का लक्षण F₁ पिढी में अभिव्यक्त नहीं हुआ है तथा ‘अप्रभावी’ लक्षण कहलाता हैं।
- मेंडल का पृथक्करण का नियम /युग्मकों की शुद्धता का नियम क्या हैयह नियम मेंडल के एक संकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार F₁ पिढी में प्राप्त विषमयुग्मजी पौधों में युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी एक दूसरे से पृथक होकर अलग-अलग युग्मकों में चले जाते हैं तथा प्रत्येक युग्मक में एक लक्षण के लिए एक युग्मविकल्पी पाया जाता है
- मनुष्य में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? आरेख बनाकर समझाइएमानव में लिंग निर्धारण आनुवंशिक आधार पर होता है। मनुष्य में लिंग-निर्धारण गुणसूत्रों द्वारा होता है। मानव में कोशिकाओं के केन्द्रक में 46 अर्थात 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं जिनमें से 44 अर्थात 22 जोड़ी गुणसूत्र ओटोसोम्स तथा 2 अर्थात एक जोड़ी गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। ओटोसोम्स गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े के दोनों गुणसूत्र एक सामान होते है परन्तु लिंग गुणसूत्र मादा (स्त्री) में XX तथा पुरुष में XY होता है ये लिंग गुणसूत्र ही मनुष्य में लिंग-निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं। युग्मक निर्माण के समय नर में दो प्रकार के (22+X तथा 22+Y गुणसूत्र वाले) युग्मक (शुक्राणु) बनते है परन्तु मादा में केवल एक ही प्रकार के 22+X गुणसूत्र वाले युग्मक (अण्डाणु) बनते है निषेचन के समय यदि अण्डाणु नर के 22+Y गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो इससे बनाने वाली संतान पुत्र होगा और यदि निषेचन के समय अण्डाणु नर के 22+X गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो इससे बनाने वाली संतान पुत्री होगी अतः मानव में पुत्र व पुत्री उत्पन्न होने की संभावना 50%- 50% प्रतिशत होती है
- मेंडल के स्वतंत्र अपव्यूहन नियम क्या हैयह नियम द्विसंकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब दो या दो से अधिक विपर्यासी लक्षणो वाले पौधों में संकरण कराया जाता है तो एक लक्षण की वंशागति का दूसरे लक्षण की वंशागति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात प्रत्येक लक्षण के युग्मविकल्पी केवल पृथक ही नहीं होता अपितु विभिन्न लक्षणों के युग्मविकल्पी एक दूसरे के प्रति स्वतंत्र रूप से व्यवहार करते हैंजब गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधों के साथ संकरण करवाया जाता है तो F₁ पीढ़ी के सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले प्राप्त होते है परंतु जब F₁ पीढ़ी के पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो F₂ पीढ़ी कुछ पौधे नए संयोजन प्रदर्शित करते है और कुछ पौधे लंबे व झुर्रीदार बीज वाले तथा कुछ पौधे बौने व गोल बीज वाले प्राप्त होते है अतः लंबे/बौने लक्षण तथा गोल/झुर्रीदार लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे ही स्वतंत्र अपव्यूहन नियम का नियम कहते है
- वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?निम्नलिखित तरीकों द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है ।1.प्राकृतिक चयन -प्रकृति द्वारा लाभप्रद विविधताओं वाली समष्टि को सतत् बनाए रखना प्राकृतिक चयन कहलाता है। वे लक्षण जो किसी व्यष्टि जीव के उत्तरजीविता तथा प्रजनन में लाभदायक होती हैं, अगली पीढ़ी (संतति) में हस्तान्तरित हो जाती हैं । परंतु जिनसे कोई लाभ नहीं होता वे लक्षण संतति में नहीं जाते है ।उदाहरण-जितने अधिक कौए होंगे उतने अधिक लाल शृंग उनके शिकार बनेंगे तथा समष्टि में हरे भृगों की संख्या बढ़ती जाएगी, क्योंकि हरी पत्तियों की झाड़ियों में हरे भुंग को कौए नहीं देख पाते हैं ।2.आनुवंशिक विचलन - कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी समष्टि के ज्यादातर जीव मर जाते हैं ऐसी स्थिति में जीन सीमित रह जाते हैं इसके कारण उस समष्टि का रूप बदल जाता है तथा उनकी संतति में केवल जीवित सदस्यों के लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसे आनुवंशिक विचलन कहा जाता है ।3.विभिन्नताएँ एवं अनुकूलन - विभिन्नताएँ एवं अनुकूलता पर्यावरण में जीवों की उत्तरजीविता कायम रखने में सहायक होते हैं ।