पृथ्वी की आयु लगभग 46 करोड़ वर्ष है। इस दौरान पृथवी के भूपृष्ट पर अनेक अंतर्जात व बहिर्जात बलों से अनेक परिवर्तन हएु हैं करोड़ों वर्ष पहले ‘इंडियन प्लेट’ भूमध्य रेखा से दक्षिण में स्थित थी। करोड़ों वर्षों के दौरान, यह प्लेट कई हिस्सों में टूट गई आस्ट्रेलियन प्लेट दक्षिण-पूर्व तथा इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी। इंडियन प्लेट का खिसकना अब भी जारी है और इसका भारतीय उपमहाद्वीप के भौतिक पर्यावरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है। भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान भूवैज्ञानिक संरचना व इसके क्रियाशील भूआकृतिक प्रक्रम मुख्यतः अंतर्जनित व बहिर्जनिक बलों व प्लेट के क्षैतिज संचरण की अंतः क्रिया के परिणामस्वरुप अस्तित्व में आए हैं।
भूवैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत को तीन भूवैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधरित हैं
(क) प्रायद्वीपीय खंड
(ख) हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
(ग) सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान
(क) प्रायद्वीपीय खंड
प्रायद्वीपीय भारत प्राचीन गोण्डवानालैंड का विखण्डित पठारी भाग है जिसका अधिकांश भाग की चटूटानें प्राचीन होने के साथ-साथ कठोर भी हैं प्रायद्वीपीय पठार के अन्तर्गत दक्षिणी भारत के पठारी भाग के अतिरिक्त उत्तर-पूर्व में मेघालय का पठार व कर्बी एंगलॉग पठार तथा पश्चिम में राजस्थान व कच्छ-काठियावाड़ क्षेत्र भी सम्मिलित हैं। प्रायद्वीप खंड की उत्तरी सीमा कटी-फटी है, जो कच्छ से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है। इसके अतिरिक्त उत्तर-पूर्व में कर्बी एंगलॉग व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इसी खंड के विस्तार हैं। प्रायद्वीपीय पठार प्रमुख रूप से नाइस ग्रेनाइट नामक चट्टानों से निर्मित है। कैम्ब्रियन युग से यह प्रायद्वीपीय पठार एक कठोर भूखण्ड के रूप में अस्तित्व में है। यह इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट का एक हिस्सा है तथा यह भूगर्भ की उर्ध्वाधर हलचलों व खण्ड भ्रंश से प्रभावित मिलता है। नर्मदा, तापी और महानदी की रिफ्ट(दरार) घाटियाँ और सतपुड़ा पर्वत इसके उदाहरण हैं। इस प्रायद्वीपीय भाग में अरावली, नल्लामाला, जावादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा तथा महेन्द्रगिरी नामक अवशिष्ट पहाड़ियाँ भी विस्तृत मिलती हैं।
(ख) हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
हिमालय एक नवीन वलित पर्वतमाला है जिनकी उत्पत्ति आज से लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व मिसोजोइक कल्प में प्रारम्भ हुई। इससे पूर्व इस स्थान पर टेथिस सागर नाम की एक विशाल भूसन्मति का स्तित्त्व था। टिथीज सागर के उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोण्डवानालैण्ड नामक विशाल भूखण्ड स्थित थे। मिसोजोइक कल्प के अन्तिम चरण में कुछ भूगर्भिक हलचलों के कारण गोण्डवानालैण्ड तथा अंगारालैण्ड के एक-दूसरे के निकट आने लगे जिससे टेथिस सागर में निक्षेपित अवसादों में दबाव पड़ने लगा। इस दबाव से उत्पन्न अन्तर्जनित व बहिर्जनिक बलों के परिणामस्वरूप टेथिस के अवसादों में वलन, भ्रंश, तथा क्षेपों का निर्माण होने लगा। वर्तमान में इस नवीन उत्पत्ति की वलित हिमालय पर्वतमाला पर तीव्र प्रवाह वाली नदियाँ प्रवाहित मिलती हैं जिन्होंने अनेक स्थानों पर गॉर्ज, वी आकार की घाटियाँ क्षिप्रिकाएँ तथा जल प्रपातों का निर्माण किया है।
(ग) सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान
मूलत: सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान (जिसे भारत का उत्तरी मैदान भी कहा जाता है।) एक भू-अभिनति गर्त है जिसे लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पूर्व से हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाये अवसादों से सतत रूप से भर रही हैं। इस मैदान में जलोढ़ 1000 से 2000 मीटर गहराई के साथ मिलते हैं। इस मैदानी भाग का निर्माण हिमालय पर्वत निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में प्रारम्भ हुआ। इस मैदान के अधिकांश भाग पर तलछटी चट्टानें बिछी मिलती हैं।
भूआकृति
किसी स्थान की भूआकृति, उसकी संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम है। भारत में धरातलीय विभिन्नताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत शृंखलाएँ हैं, और दक्षिण भारत एक स्थिर परंतु कटा-फटा पठार है इन दोनों के बीच उत्तर भारत का विशाल मैदान है।
मोटे तौर पर भारत को निम्नलिखित भूआकृतिक खंडों में बाँटा जा सकता है।
(1) उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला
(2) उत्तरी भारत का मैदान
(3) प्रायद्वीपीय पठार
(4) भारतीय मरुस्थल
(5) तटीय मैदान
(6) द्वीप समूह
(1) उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला
इस भू-आकृतिक खंड में हिमालय पर्वत और उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियाँ शामिल हैं। हिमालय का पर्वतीय भाग में कई समानांतर पर्वत श्रृंखलाओं से बना हैं। जिन्हें चार भागों में बांटा जा सकता है (i) वृहत हिमालय, (ii) पार हिमालय (iii) मध्य हिमालय (iv) शिवालिक
हिमालय, भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों के बीच एक मजबूत लंबी दीवार के रूप में खड़ा है। हिमालय एक प्राकृतिक रोधक ही नहीं अपितु जलवायु, अपवाह और सांस्कृतिक विभाजक भी है। हिमालय पर्वतमाला में भी अनेक क्षेत्राीय विभिन्नताएँ हैं। उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के संरेखण और दूसरी भूआकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित उपखंडों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय
(ii) हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय
(iii) दाखजलिंग और सिक्किम हिमालय
(iv) अरुणाचल हिमालय
(v) पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत
(i) कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय - सिंधु और सतलुज नदियों के बीच का हिमालय क्षेत्र कश्मीर हिमालय के नाम से जाना जाता है कश्मीर हिमालय में वृहत् हिमालय के अलावा चार प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ मिलती हैं जिन्हें काराकोरम, लद्दाख, जास्कर तथा पीरपंजाल के नाम से जाना जाता है। वृहत् हिमालय तथा काराकोरम श्रेणियों के मध्य में लद्दाख का ठण्डा मरुस्थलीय भाग है जबकि वृहत् हिमालय तथा पीरपंजाल श्रेणियों के मध्य कश्मीर की घाटी और डल झील है। काराकोरम श्रेणी में भारत की सबसे ऊँची चोटी K-2 या गॉडविन ऑस्टिन स्थित है। वृहत् हिमालय में जोजीला, पीरपंजाल में बानिहाल , जास्कर में फोटुला तथा लद्दाख श्रेणी में खार्दुंगला नामक पर्वतीय दर्रे मिलते हैं। दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण ग्लेशियर जैसे बलटोरो व सियाचिन ग्लेशियर इसी हिमालय में पाए जाते हैं। कश्मीर हिमालय के दक्षिणी भागों में कुछ अनुदैर्ध्य घाटियाँ (दून घाटियाँ) भी मिलती हैं। जिनमें जम्मू-दून तथा पठानकोट दून प्रमुख हैं। काश्मीर हिमालय करेवा के लिए प्रसिद्ध है। हिमोढ़ पर मोटी परत के रूप में हिमनद चिकनी मिट्टी तथा दूसरे पदार्थों का जमाव करेवा कहलाता है। जिस पर प्रमुख रूप से देशी केसर (जाफरान) की खेती की जाती है। प्रसिद्ध अलवणीय झीलें डल झील व वुलर झील और पाँगॉगसो व सोमुरीरी लवणीय झीलें कश्मीर हिमालय में स्थित है डल झील व वुलर झील अलवणीय झीलें हैं जबकि पाँगॉगसो तथा सोमुरीरी (Tsomuriri) लवणीय झीलें हैं। वैष्णोदेवी का मंदिर व अमरनाथ गुफा कश्मीर हिमालय के अन्तर्गत महत्वपूर्ण तीर्थ हैं सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ, झेलम और चेनाब, इस क्षेत्र को अपवाहित करती है जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर झेलम नदी के किनारे स्थित है। श्रीनगर में डल झील एक रोचक प्राकृतिक स्थल है।
(ii) हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय - हिमालय का यह हिस्सा पश्चिम में रावी नदी और पूर्व में काली (घाघरा की सहायक नदी) के बीच स्थित है। इस प्रदेश में सिंधु की सहायक नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज) और गंगा की सहायक नदियाँ (यमुना और घाघरा) बहती हैं। हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत शृंखलाएँ, वृहत हिमालय, लघु हिमालय (जिन्हें हिमाचल में धौलाधर और उत्तराखण्ड में नागटिबा कहा जाता है) और शिवालिक श्रेणी इस हिमालय खंड में स्थित हैं। वृहत् हिमालय की घाटियों में ग्रीष्म-ऋतु में घास के मैदान मिलते हैं जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। वृहत हिमालय की घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते है जो ग्रीष्म ऋतु में बुगयाल में चले जाते हैं और शरद ऋतु में घाटियों में लौट आते हैं। गंगोत्री , यमुनोत्री , बद्रीनाथ तथा हेमकुण्ड साहिब के अतिरिक्त फूलों की घाटी भी इसी पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र में पाँच प्रसिद्ध प्रयाग (नदी संगम) हैं, शिवालिक श्रेणियों में अनेक दून घाटियाँ मिलती हैं। इनमें चण्डीगढ़-कालका दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरीके दून तथा कोटा दून सामिल हैं। इनमें देहरादून सबसे बड़ी घाटी है
(iii) दार्जिलिंग तथा सिक्किम हिमालय - पश्चिम में नेपाल हिमालय तथा पूर्व में भूटान हिमालय के मध्य में हिमालय का यह भाग स्थित है। भारत का दूसरा सर्वोच्च शिखर कंचनजंगा व तीव्रगामिनी तिस्ता नदी इसी पर्वतीय भाग में स्थित है।यहाँ दुआर नामक स्थलाकृतियाँ मिलती हैं जिनका उपयोग चाय बागान लगाने के लिए किया जाता है। इन पर्वतों के ऊँचे शिखरों पर लेपचा जनजाति पाई जाती है।
(iv) अरुणाचल हिमालय - यह पर्वत क्षेत्र भूटान हिमालय से लेकर पूर्व में डिफू दर्रे तक फैला है।काँगतु तथा नामचा बरवा इस पर्वत श्रेणी के प्रमुख पर्वतीय शिखर हैं। अरुणाचल हिमालय पर्वत श्रेणियों को उत्तर से दक्षिण दिशा से प्रवाहित नदियों ने अनेक स्थानों पर कटा-फटा बना दिया है। नामचा बरूआ को पार करने के बाद ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी दिहांग एक गहरा गॉर्ज निर्मित करती है। अरुणाचल हिमालय में बहुत-सी जनजातियाँ जैसे मोनपा, अबोर, मिशमी, निशी और नागा निवास करती हैं। ज्यादातर जनजातियाँ झूम खेती करती हैं, जिसे स्थानांतरी कृषि या स्लैश और बर्न कृषि भी कहा जाता है।
(v) पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत- ये भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हैं। ये पहाड़ियाँ विभिन्न स्थानीय नामों से जानी जाती है। उत्तर में ये पटकाई बूम, नागा पहाड़ियाँ, मणिपुर पहाड़ियाँ और दक्षिण में मिशो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती हैं। मणिपुर घाटी के मध्य एक झील स्थित है जिसे ‘लोकताक’ झील कहा जाता है
(2) उत्तरी भारत का मैदान
उत्तरी भारत का मैदान सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इस मैदान की पूर्व से पश्चिम लंबाई लगभग 3200 किलो मीटर है। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है। जलोढ़ निक्षेप की अधिकतम गहराई 1000 से 2000 मीटर है। उत्तर से दक्षिण दिशा में इन मैदानों को तीन भागों में बाँट सकते हैं भाभर, तराई और जलोढ़ मैदान।
(i) भाभर -भाभर 8 से 10 किलोमीटर चौड़ाई की पतली पट्टी है जो शिवालिक गिरिपाद के समानांतर फैली हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणियों से बाहर निकलती नदियाँ यहाँ बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े तथा गोलाश्म जमा कर देती हैं। और कभी-कभी स्वयं इसी में लुप्त हो जाती हैं।
(ii) तराई - भाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र है जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भाभर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं इन नदियों का कोई निश्चित प्रवाह क्षेत्र न होने के कारण यह एक अनूप या दलदली क्षेत्र बन जाता है, इसी कारण इसे तराई क्षेत्र कहा जाता है।
(iii) जलोढ़ मैदान - तराई से दक्षिण में जलोढ़ मैदान मैदान है जो आगे दो भागों में बाँटा जाता है- खादर और बाँगर।
खादर - नए जलोढ़ मैदान जहाँ बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुँचकर नयी मिट्टी की परत जमा कर देता है, खादर कहलाता हैं।
बाँगर - पुराने जलोढ़ मैदान जहाँ सामान्य रूप से नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है, बाँगर कहलाते हैं।
डेल्टा : डेल्टा नदी के मुहाने पर उसके द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से बनी त्रिभुजाकार आकृति होती है| उत्तर भारत के मैदान में बहने वाली विशाल नदियाँ अपने मुहाने पर विश्व बड़े-बड़े डेल्टाओँ का निर्माण करती हैं, जैसे- सुंदर वन डेल्टा
(3) प्रायद्वीपीय पठार
भारत का प्रायद्वीपीय पठार सतलज और गंगा के मैदान के दक्षिण में फैले हुए उस भू-भाग का नाम है जो तीन ओर समुद्र से घिरा है। उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ, पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ और दक्षिण में इलायची (कार्डामम) पहाड़ियाँ प्रायद्वीप पठार की सीमाएँ निर्धारित करती हैं। इस प्रायद्वीप की औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। यह भारत का सबसे बड़ा पठार है प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा-फटा भूखंड है प्रायद्वीपीय पठार भारत का एक प्राचीनतम एवं स्थिर भू-भाग है जिसकी ऊँचाई सामान्यतया पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश: कम होती जाती है। इसी कारण इस प्रायद्वीपीय भाग पर प्रवाहित अधिकांश नदियाँ पश्चिम से पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। टॉर, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, पर्वत स्कंध, नग्न चट्टान संरचना, टेकरी पहाड़ी शृंखलाएँ और क्वार्ट्जाइट भित्तियाँ प्रायट्वीपीय पठार की मुख्य प्राकृतिक स्थलाकृतियों हैं जो प्राकृतिक जल संग्रह के स्थल हैं।
मुख्य उच्चावच लक्षणों के अनुसार प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
(i) दक्कन का पठार
(ii) मध्य उच्च भूभाग
(iii) उत्तरी-पूर्वी पठार
(i) दक्कन का पठार - इसे दक्कन ट्रैप या लावा का पठार कहते हैं। दक्कन पठार प्राचीन काल में धरातल पर लम्बे दरार या भ्रंश पड़ने और ज्वालामुखी क्रिया से वहाँ से तरल या गाढ़े लावा की परतों के रूप में जमाव से बने हैं। दक्कन पठार में पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, तथा सतपुड़ा, मैकाल तथा महादेव श्रेणियाँ सम्मिलित हैं। पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के सहारे विस्तृत हैं जिन्हें महाराष्ट्र में सहयाद्रि, कर्नाटक व तमिलनाडु में नीलगिरि तथा केरल में अन्नामलाई और इलायची (कार्डामम) पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की तुलना में ऊँचे और सतत हैं। पश्चिमी घाट की औसत ऊँचाई 1500 मीटर है जो उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर क्रमश: अधिक होती जाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सबसे उँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) है, जो पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। दूसरी सबसे उँची चोटी डोडाबेटा है और यह नीलगिरी पहाड़ियों में है। पश्चिमी घाट अरब सागर की ओर तीव्र ढाल वाले तथा पूर्व की ओर मन्द ढाल वाले हैं पश्चिमी घाट में थालघाट, भोरघाट, पालघाट, शेनकोटा गैप चार दर्रे हैं
पूर्वी घाट पश्चिमी घाट की भाँति न तो अधिक ऊँचे ही हैं और न श्रृंखलाबद्ध हैं पूर्वी घाट महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा अपरदित हैं। पूर्वी घाटकी प्रमुख श्रेणियाँ जावादी पहाड़ियाँ, पालकोण्डा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियाँ और महेंद्रगिरि पहाड़ियाँ हैं। ओडिशा के गंजाम जिले में स्थित महेन्द्रगिरि (50 मीटर) पूर्वी घाट की सर्वोच्च चोटी है। पूर्वी तथा पश्चिमी घाट नीलगिरी पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं।
(ii) मध्य उच्च भूभाग - भारत के लगभग मध्यवर्ती भाग में विस्तृत उच्च भूमि को मध्य उच्च भूमि कहा जाता है। समुद्र तल से मध्य उच्च भू-भाग की औसत ऊँचाई 700 से 1000 मीटर के मध्य है। उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर यह ऊँचाई क्रमश: कम होती जाती है। मध्य उच्च भू-भाग का पश्चिमी भाग अरावली पर्वत के रूप में विस्तृत मिलता है जिसके दक्षिण में सतपुड़ा (600 से 900 मीटर) के अवशिष्ट पर्वत मिलते हैं। मध्य उच्च भूभाग का पूर्वी विस्तार राजमहल की पहाड़ियों तक है
(iii) उत्तर-पूर्व पठार - उत्तर-पूर्व पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही एक विस्तारित भाग है। जो इंडियन प्लेट के उत्तर-पूर्व दिशा में खिसकने के कारण, राजमहल की पहाड़ियों और मेघालय के पठार के बीच भ्रंश घाटी बनने से अलग हो गया था। बाद में यह नदी द्वारा जमा किए जलोढ़ द्वारा पाट दिया गया। आज मेघालय और कार्बी ऐंगलोंग पठार इसी कारण से मुख्य प्रायद्वीपीय पठार से अलग-थलग हैं। इसमें आवास करने वाली जनजातियों के नाम के आधार पर मेघालय के पठार को तीन भागों में बाँटा गया है (i) गारो पहाड़ियाँ (ii) खासी पहाड़ियाँ (iii) जयंतिया पहाड़ियाँ। असम की कार्बी ऐंगलोंग पहाड़ियाँ भी इसी का विस्तार है। छोटा नागपुर के पठार की तरह मेघालय के पठार भी कोयला, लोहा, सिलीमेनाइट, चूने के पत्थर और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थों का भंडार है। इस क्षेत्र में अधिकतर वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होती है। परिणामस्वरूप, मेघालय का पठार एक अति अपरदित भतूल है चेरापूंज नग्न चट्टानों से ढका स्थल है आरै यहाँ वनस्पति लगभग नहीं के बराबर है।
(4) भारतीय मरुस्थल
अरावली पहाड़िओं के उत्तरी-पूर्वी भाग में रेतीले टीलों का एक शुष्क व वनस्पति रहित क्षेत्र विस्तृत है जिसे भारतीय मरुस्थल या थार का रेगिस्तान कहा जाता है। पश्चिमी राजस्थान में विस्तृत इस मरुस्थलीय भाग में 15 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा होती है। स्थानान्तरी रेतीले टीले, छत्रक चट्टानें तथा मरुद्यान यहाँ के प्रमुख भूदृश्य हैं। मरुस्थल को दो भागों में विभक्त किया जाता है-
(i) सिन्धु नदी की ओर ढाल वाला उत्तरी भाग, (ii) कच्छ के रन की ओर ढाल वाला दक्षिणी भाग
मरुस्थलीय भाग में प्रवाहित सभी नदियाँ मौसमी हैं। मरुस्थल के दक्षिणी भाग में प्रवाहित लूनी नदी महत्त्वपूर्ण है। यहाँ का अपवाह अन्त:स्थलीय है, जहाँ नदियाँ मरुस्थल में ही स्थित किसी झील या प्लाया में मिल जाती हैं। इन प्लाया झीलों में खारा जल भरा होता है जिनसे नमक बनाया जाता है।
(5) तटीय मैदान
दक्षिण के पठार के पूर्वी और पश्चिमी घाटों और तटीय समुद्र के बीच में जो मैदान विस्तृत हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहा जाता है। ये मैदान या तो सागरीय लहरों की अपरदन क्रिया द्वारा बने हैं या नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी मिट्टी से निर्मित हैं। इन मैदानों को क्रमश: 'पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान' और “पूर्वी समुद्रतटीय मैदान' कहा जाता है।
(i) पश्चिमी तटीय मैदान- पश्चिमी तटीय मैदान जलमग्न तटीय मैदानों के उदाहरण हैं। प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिम तट के सहारे-सहारे पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी में उत्तर से दक्षिण दिशा में विस्तृत मिलता है। यह तटीय मैदान पत्तनों तथा बन्दरगाहों के विकास के लिए उपयुक्त प्राकृतिक दशाएँ प्रदान करता है। उत्तर में गुजरात तट से दक्षिण में केरल तट तक विस्तृत इस पश्चिमी तटीय मैदान को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जाता है-
➤गुजरात में कच्छ व काठियावाड़ तट
➤महाराष्ट्र में कोंकण तट
➤कर्नाटक व केरल में मालाबार तट
मालाबार तट पर विशेष स्थलाकृति कयाल मिलती है। इसका उपयोग मछली पकड़ने तथा अन्तःस्थलीय नौकायन के लिए किया जाता है। और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। केरल में हर वर्ष प्रसिद्ध ‘नेहरू ट्राफी वलामकाली’ (नौका दौड़) का आयोजन ‘पुन्नामदा कयाल’ में किया जाता है।
पूर्वी तटीय मैदान- भारत का पूर्वी तटीय मैदान स्वर्ण रेखा नदी के मुहाने से कन्याकुमारी तक विस्तृत है। और उभरे हुए तट का उदाहरण है। यह पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में अधिक चौड़ा है बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ यहाँ लम्बे-चौड़े डेल्टा बनाती हैं। इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का डेल्टा शामिल है।
(6) द्वीप समूह
भारत में दो प्रमुख द्वीप समूह हैं- एक बंगाल की खाड़ी में और दूसरा अरब सागर में। बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीपों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- उत्तर में अंडमान और दक्षिण में निकोबार। ये द्वीप, समुद्र में जलमग्न पवर्तों का हिस्सा है। उक्त दोनों द्वीप समूहों को 10° चैनल अलग करती है। निकोबार द्वीप समूह में स्थित बैरन आइलैंड नामक द्वीप भारत एक एकमात्र जीवित ज्वालामुखी है। इस द्वीप समूह की मुख्य पर्वत चोटियों में सैडल चोटी (उत्तरी अंडमान - 738 मीटर), माउंट डियोवोली (मध्य अंडमान - 515 मीटर), माउंट कोयोब (दक्षिणी अंडमान - 460 मीटर) और माउंट थुईल्लर (ग्रेट निकोबार - 642 मीटर) शामिल हैं।अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप तथा मिनिकॉय द्वीप समूह के 36 द्वीप सम्मिलित हैं ये केरल तट से 280 किलोमीटर से 480 किलोमीटर दूर स्थित है। पूरा द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना है। और इनमें से 11 पर मानव आवास है। मिनिकॉय सबसे बड़ा द्वीप है
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न
- करेवा भूआकृति कहाँ पाई जाती है?(क) उत्तरी-पूर्वी हिमालय(ख) पूर्वी हिमालय(ग) हिमाचल-उत्तराखंड हिमालय(घ) कश्मीर हिमालय (घ)
- निम्नलिखित में से किस राज्य में ’लोकताल’ झील स्थित है?(क) केरल(ख) मणिपुर(ग) उत्तराखंड(घ) राजस्थान (ख)
- अंडमान और निकोबार को कौन-सा जल क्षेत्र अलग करता है?(क) 11° चैनल(ख) 10° चैनल(ग) मन्नार की खाड़ी(घ) अंडमान सागर (ख)
- डोडाबेटा चोटी निम्नलिखित में से कौन-सी पहाड़ी श्रृंखला में स्थित है?(क) नीलगिरी(ख) कार्डामम(ग) अनामलाई(घ) नल्लामाला (क)
- यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों ?वह केरल के तटीय मैदान होकर जाएगा क्योंकि लक्षद्वीप केरल तट से 280 किमी.से 480 किमी. दूर अरब सागर में स्थित है।
- भारत में ठंडा मरूस्थल कहाँ स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताएँ|वृहत् हिमालय तथा काराकोरम श्रेणियों के मध्य में लद्दाख का ठण्डा मरुस्थलीय भाग है इनमें मुख्य श्रेणियाँ कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल हैं।
- पश्चिमी तटीय मैदान पर डेल्टा क्यों नहीं है ?पश्चिमी तटीय मैदान संकीर्ण तथा उनमें सीधी ढाल हैं| इस तटीय मैदान की अधिकांश नदियाँ समीपवर्ती उच्च पश्चिमी घाट से उद्गमित होने के कारण तीव्र वेग से बहती हैं तथा इनकी लम्बाई कम है इसलिए ये डेल्टा का निर्माण नहीं करती हैं
- अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें|1. अरब सागर में स्थित द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना है। जबकि बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह समुद्र में जलमग्न पवर्तों का हिस्सा है।2. अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप तथा मिनिकॉय द्वीप समूह के 36 द्वीप सम्मिलित हैं जबकि बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं।3. अरब सागर में स्थित द्वीप समूह 8° उत्तर से 12° उत्तर और 71° पूर्व से 74° पूर्व के बीच स्थित हैं| जबकि बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह 6° उत्तर से 14° उत्तर और 92° पूर्व से 94° पूर्व के बीच स्थित हैं|
- नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं? इनका विवरण दें|उत्तरी भारत का मैदान नदी घाटी मैदान भी कहलाता है नदी घाटी मैदान में निम्नलिखित महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं1. भाभर - भाभर 8 से 10 किलोमीटर चौड़ाई की पतली पट्टी है जो शिवालिक गिरिपाद के समानांतर फैली हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणियों से बाहर निकलती नदियाँ यहाँ बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े तथा गोलाश्म जमा कर देती हैं। और कभी-कभी स्वयं इसी में लुप्त हो जाती हैं।2. तराई - भाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र है जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भाभर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं इन नदियों का कोई निश्चित प्रवाह क्षेत्र न होने के कारण यह एक अनूप या दलदली क्षेत्र बन जाता है, इसी कारण इसे तराई क्षेत्र कहा जाता है।3. जलोढ़ मैदान - तराई से दक्षिण में जलोढ़ मैदान मैदान है जो आगे दो भागों में बाँटा जाता है- खादर और बाँगर।(i) खादर - नए जलोढ़ मैदान जहाँ बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुँचकर नयी मिट्टी की परत जमा कर देता है, खादर कहलाता हैं।(ii) बाँगर - पुराने जलोढ़ मैदान जहाँ सामान्य रूप से नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है, बाँगर कहलाते हैं।
- प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी कौन सी है?अनाईमुडी (2695 मीटर
- नीलगिरी पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है?डोडाबेटा (2637 मी.)
- पूर्वी तथा पश्चिमी घाट कहां आपस में मिलते है?नीलगिरी पहाड़ियों में
- दक्कन का पठार कौन सी चट्टानो से बना है?प्राचीन नाइस और ग्रेनाइट से
- दुआर स्थलाकृतियों का उपयोग किस के लिए किया जाता है?चाय बागान लगाने के लिए
- लोकताक झील कहा/किस राज्य में स्थित है?मणिपुर में
- ‘मालेसिस बेसिन’ किस राज्य को कहा जाता है?मिजोरम में।
- मणिपुर और मिजोरम की एक मुख्य नदी कौन सी है?बराक नदी
- नेहरू ट्राफी वलामकाली (नौका दौड़) का आयोजन कहाँ किया जाता है?‘पुन्नामदा कयाल’ में जो केरल मे स्थित है।
- जम्मू व कश्मीर की दो अलवणीय झीलें तथा दो लवणीय झीलें कौन सी हैं?डल झील व वुलर झील अलवणीय झीलें हैं जबकि पाँगॉगसो तथा सोमुरीरी लवणीय झीलें हैं।
- जम्मू काश्मीर की राजधानी (श्रीनगर) कौन सी नदी के किनारे स्थित है?झेलम नदी के किनारे
- पृथ्वी की आयु कितनी करोड़ वर्ष है ?46 करोड़ों वर्ष
- भारत में प्रवाल द्वीपों का एक समूह कौन सा द्वीप है?लक्षद्वीप समूह।
- भारत का एक मात्र जीवंत ज्वालामुखी कहाँ स्थिति है?बैरन द्वीप एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी है जो निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है।
- अंडमान -निकोबार द्वीप समूह की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है?उत्तर- सैडल चोटी (738 मीटर) जो उतरी अंडमान में स्थित है।
- लक्षद्वीप द्वीपसमूह का सबसे बड़ा द्वीप कौन सा है?मिनिकॉय सबसे बड़ा द्वीप है
- भारत की सबसे ऊँची चोटी कौन सी है तथा यह किस पर्वत शृंखला में स्थित हैकाराकोरम श्रेणी में भारत की सबसे ऊँची चोटी K-2 या गॉडविन ऑस्टिन स्थित है।
- करेवा किसे कहते है?हिमोढ़ पर मोटी परत के रूप में हिमनद चिकनी मिट्टी तथा दूसरे पदार्थों का जमाव करेवा कहलाता है। जिस पर प्रमुख रूप से देशी केसर (जाफरान) की खेती की जाती है
- भाभर क्षेत्र से क्या अभिप्राय हैभाभर 8 से 10 किलोमीटर चौड़ाई की पतली पट्टी है जो शिवालिक गिरिपाद के समानांतर फैली हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणियों से बाहर निकलती नदियाँ यहाँ बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े तथा गोलाश्म जमा कर देती हैं। और कभी-कभी स्वयं इसी में लुप्त हो जाती हैं।
- तराई क्षेत्र से क्या अभिप्राय हैभाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र है जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भाभर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं इन नदियों का कोई निश्चित प्रवाह क्षेत्र न होने के कारण यह एक अनूप या दलदली क्षेत्र बन जाता है, इसी कारण इसे तराई क्षेत्र कहा जाता है।
- डेल्टा किसे कहते हैडेल्टा नदी के मुहाने पर उसके द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से बनी त्रिभुजाकार आकृति होती है| उत्तर भारत के मैदान में बहने वाली विशाल नदियाँ अपने मुहाने पर विश्व बड़े-बड़े डेल्टाओँ का निर्माण करती हैं, जैसे- सुंदर वन डेल्टा
- खादर व बाँगर को परिभाषित कीजिएखादर - नए जलोढ़ मैदान जहाँ बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुँचकर नयी मिट्टी की परत जमा कर देता है, खादर कहलाता हैं।बाँगर - पुराने जलोढ़ मैदान जहाँ सामान्य रूप से नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है, बाँगर कहलाते हैं।
- भारत को कितने भूआकृतिक खंडों में बाँटा गया है। नाम लिखिएभारत को छः भूआकृतिक खंडों में बाँटा जा सकता है।(1) उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला(2) उत्तरी भारत का मैदान(3) प्रायद्वीपीय पठार(4) भारतीय मरुस्थल(5) तटीय मैदान(6) द्वीप समूह
- दक्कन का पठार का संक्षिप्त वर्णन कीजिएइसे दक्कन ट्रैप या लावा का पठार कहते हैं। दक्कन पठार प्राचीन काल में धरातल पर लम्बे दरार या भ्रंश पड़ने और ज्वालामुखी क्रिया से वहाँ से तरल या गाढ़े लावा की परतों के रूप में जमाव से बने हैं। दक्कन पठार में पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, तथा सतपुड़ा, मैकाल तथा महादेव श्रेणियाँ सम्मिलित हैं। पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के सहारे विस्तृत हैं जिन्हें महाराष्ट्र में सहयाद्रि, कर्नाटक व तमिलनाडु में नीलगिरि तथा केरल में अन्नामलाई और इलायची (कार्डामम) पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की तुलना में ऊँचे और सतत हैं। पश्चिमी घाट की औसत ऊँचाई 1500 मीटर है जो उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर क्रमश: अधिक होती जाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सबसे उँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) है, जो पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। दूसरी सबसे उँची चोटी डोडाबेटा है और यह नीलगिरी पहाड़ियों में है। पश्चिमी घाट अरब सागर की ओर तीव्र ढाल वाले तथा पूर्व की ओर मन्द ढाल वाले हैं पश्चिमी घाट में थालघाट, भोरघाट, पालघाट, शेनकोटा गैप चार दर्रे हैंपूर्वी घाट पश्चिमी घाट की भाँति न तो अधिक ऊँचे ही हैं और न श्रृंखलाबद्ध हैं पूर्वी घाट महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा अपरदित हैं। पूर्वी घाटकी प्रमुख श्रेणियाँ जावादी पहाड़ियाँ, पालकोण्डा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियाँ और महेंद्रगिरि पहाड़ियाँ हैं। ओडिशा के गंजाम जिले में स्थित महेन्द्रगिरि (50 मीटर) पूर्वी घाट की सर्वोच्च चोटी है। पूर्वी तथा पश्चिमी घाट नीलगिरी पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं।
- भारत के प्रायद्वीपीय पठार का विस्तृत वर्णन कीजिएभारत का प्रायद्वीपीय पठार सतलज और गंगा के मैदान के दक्षिण में फैले हुए उस भू-भाग का नाम है जो तीन ओर समुद्र से घिरा है। उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ, पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ और दक्षिण में इलायची (कार्डामम) पहाड़ियाँ प्रायद्वीप पठार की सीमाएँ निर्धारित करती हैं। इस प्रायद्वीप की औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। यह भारत का सबसे बड़ा पठार है प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा-फटा भूखंड है प्रायद्वीपीय पठार भारत का एक प्राचीनतम एवं स्थिर भू-भाग है जिसकी ऊँचाई सामान्यतया पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश: कम होती जाती है। इसी कारण इस प्रायद्वीपीय भाग पर प्रवाहित अधिकांश नदियाँ पश्चिम से पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।मुख्य उच्चावच लक्षणों के अनुसार प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।(i) दक्कन का पठार(ii) मध्य उच्च भूभाग(iii) उत्तरी-पूर्वी पठार(i) दक्कन का पठार - इसे दक्कन ट्रैप या लावा का पठार कहते हैं। दक्कन पठार प्राचीन काल में धरातल पर लम्बे दरार या भ्रंश पड़ने और ज्वालामुखी क्रिया से वहाँ से तरल या गाढ़े लावा की परतों के रूप में जमाव से बने हैं। दक्कन पठार में पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट तथा सतपुड़ा, मैकाल तथा महादेव श्रेणियाँ सम्मिलित हैं।प(ii) मध्य उच्च भूभाग - भारत के लगभग मध्यवर्ती भाग में विस्तृत उच्च भूमि को मध्य उच्च भूमि कहा जाता है। समुद्र तल से मध्य उच्च भू-भाग की औसत ऊँचाई 700 से 1000 मीटर के मध्य है।(iii) उत्तर-पूर्व पठार - उत्तर-पूर्व पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही एक विस्तारित भाग है। जो इंडियन प्लेट के उत्तर-पूर्व दिशा में खिसकने के कारण, राजमहल की पहाड़ियों और मेघालय के पठार के बीच भ्रंश घाटी बनने से अलग हो गया था। बाद में यह नदी द्वारा जमा किए जलोढ़ द्वारा पाट दिया गया। आज मेघालय और कार्बी ऐंगलोंग पठार इसी कारण से मुख्य प्रायद्वीपीय पठार से अलग-थलग हैं।