11. विधुत

विधुत धारा : किसी चालक में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है विद्युत धारा का मात्रक एम्पीयर होता है

यदि किसी चालक में t समय में Q आवेश प्रवाहित होता है और उस चालक से प्रवाहित विद्युत धारा I हो तो 

विद्युत आवेश का मात्रक  कूलाम है 

विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर (A)  होता है 

कम मात्रा की विद्युत धारा को मिलिऐम्पियर mA (1mA =10⁻³ A) अथवा माइक्रोऐम्पियर  μA (1μA=10 ⁻⁶A )  में व्यक्त करते हैं।

1 एंपियर - किसी विद्युत परिपथ में प्रति सेकंड एक कूलाम आवेश प्रवाह से उत्पन्न धारा 1 एंपियर कहलाती है 

किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों (ऋणावेश) के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।

विद्युत परिपथ में विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे ऐमीटर कहते हैं। इसे सदैव जिस परिपथ में विद्युत धारा मापनी होती है, उसके श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं। 

विद्युत विभव और विभवांतर

किसी बिंदु पर विद्युत विभव एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किए गए कार्य के बराबर होता है 

किसी विद्युत परिपथ में एकांक धनावेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया गया कार्य उन दोनों बिंदुओं के बीच विभवांतर होता है इसका मात्रक वोल्ट होता है 

विद्युत विभवांतर का मात्रक वोल्ट (V) होता  है 

यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिंदुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है तो उन दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता है। 

विभवांतर का मापन वोल्टमीटर के द्वारा किया जाता है वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ में समांतर (पार्श्वक्रम) क्रम में जोड़ा जाता है । 

ओम का नियम

स्थिर ताप पर किसी चालक के दो सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर उस चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के समानुपाती होता है

V ∝ I 

V = IR    ............(1)

R= V/I    ...........(2)

I = V/R   ...........(3)

R = एक नियतांक है जिसे तार का प्रतिरोध कहते हैं। 

प्रतिरोध 

किसी चालक का वह गुण जो उसमें आवेश प्रवाह का विरोध करता है प्रतिरोध कहलाता है प्रतिरोध का मात्रक ओम ( Ω) होता है

ओम के नियम से 

R= V/I

किसी चालक तार में एक एंपियर विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके सिरों के मध्य एक वोल्ट विभवांतर उत्पन्न होता है तो उस चालक का प्रतिरोध एक ओम कहलाता है

समीकरण  R= V/I से स्पष्ट है कि किसी प्रतिरोधक से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है। यदि प्रतिरोध दोगुना हो जाए तो विद्युत धारा आधी रह जाती है। कई बार किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा को घटाना अथवा बढ़ाना आवश्यक हो जाता है।अतः स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं। किसी विद्युत परिपथ में परिपथ के प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए प्रायः एक युक्ति का उपयोग करते हैं जिसे धारा नियंत्राक कहते हैं । 

वह कारक जिन पर किसी चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है

1.चालक की लंबाई- किसी चालक तार का प्रतिरोध उसकी लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है

R ∝ L    ...................(i)

2. चालक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल- किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है

R∝ 1/A  .................(ii)

सामीo (i) व (ii) से 

R ∝ L/A

R =𝞺 L/A

जहाँ 𝞺 (रो) नियतांक है जिसे चालक पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता कहते हैं प्रतिरोधकता का मात्रक Ωm होता है 

मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता अपनी अवयवी धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। | इसीलिए मिश्रधातुओं का उच्च ताप पर उपचयन (दहन) नहीं होता। अतः इनका उपयोग विद्युत टोस्टरों, इस्तरियों आदि के तापन अवयव के अवयव बनाने हेतु किया जाता है।

3.पदार्थ की प्रकृति -विद्युत के अच्छे चालक का प्रतिरोध कम तथा चालकता घटने पर प्रतिरोधत का मान बढ़ता है

प्रतिरोधों का संयोजन 

प्रतिरोधकों को परस्पर संयोजित करने की दो विधियाँ हैं। 

1.श्रेणी क्रम संयोजन : जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधो को क्रमशः छोर से छोर मिलाते हुए संयोजित किया जाता है तो इस प्रकार के संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं

श्रेणी क्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध

प्रतिरोधों के श्रेणीक्रम संयोजन में परिपथ के प्रत्येक प्रतिरोध से प्रवाहित विद्युत धारा का मान समान  होता है  माना श्रेणी क्रम में संयोजित प्रतिरोध R₁, R₂ व R₃  में I धारा प्रवाहित हो रही है तथा इन प्रतिरोधो के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवांतर क्रमशः V₁,V₂ व V₃ है  यदि परिपथ का कुल विभावांतर V हो तो यह तीनों  विभवांतरों  V₁,V₂ व V₃  के योग के बराबर है। अतः

V = V₁ + V₂ + V₃    . . . . . . . . (i)

यदि परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R हो तो सम्पूर्ण परिपथ के लिए ओम के नियमानुसार-

V = IR           

प्रत्येक प्रतिरोध के लिए ओम के नियमानुसार विभावान्तर का मान निम्न होगा    

V₁ = IR₁

V₂ = IR₂

V₃ = IR₃

सामी० (i) में V, V₁, V₂, व  V₃ का मान रखने पर 

IR = IR₁ + IR₂ + IR₃

R = R₁ + R₂ + R₃   . . . . . . . . (ii)    

अतः श्रेणी क्रम संयोजन में परिपथ का कुल तुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधो के योग के बराबर होता है

2. पार्श्वक्रम संयोजन : जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधो को दो सिरों के मध्य संयोजित किया जाता है तो इसे समांतर क्रम संयोजन कहते हैं

पार्श्वक्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध

प्रतिरोधों के पार्श्वक्रम संयोजन में परिपथ के प्रत्येक प्रतिरोध के दोनों शिरों के मध्य विभावांतर  का मान समान  होता है माना तीन प्रतिरोध R₁, R₂ व R₃ समांतर क्रम में संयोजित है इनमें क्रमशः I₁, I₂ व I₃ धारा प्रवाहित होती है यदि परिपथ में प्रवाहित कुल धारा I हो तो यह प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित धारा के योग के बराबर होती है। अतः

I= I₁+ I₂+ I₃ . . . . . . . . (i)

यदि परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R व विभावांतर V हो तो सम्पूर्ण परिपथ के लिए ओम के नियमानुसार-

I = V/R

प्रतिरोधो के सिरों पर उत्पन्न विभवांतर V हो तो ओम के नियमानुसार प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित धारा का मान  निम्न होगा

I₁ = V/R₁

I₂ = V/R₂

I₃ = V/R₃

सामी० (i) में I,I₁, I₂ व  I₃ का मान रखने पर 

V/R =   V/R₁  +  V/R₂  +  V/R₃

V/R =   V( 1/R₁  +  1/R₂  +  1/R₃)

1/R =   1/R₁  +  1/R₂  +  1/R₃   . . . . . . . . (ii)    

विद्युत धारा के तापीय प्रभाव

जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह गर्म हो जाता है इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं इस प्रभाव का उपयोग विद्युत हीटर, विधुत केतली, विद्युत इस्तरी जैसी युक्तियों में किया जाता है।

यदि किसी  चालक में I विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इसके सिरों के बीच विभवांतर V है यदि इस चालक में t समय में Q आवेश प्रवाहित होता है। तो किया गया कार्य 

W = VQ     { V = W/Q }

W = VIt     {  I = Q/t  }

यह निवेशित उर्जा (VIt) उष्मा उर्जा में परिणित होगी अतः 

H = VIt

H = IRIt      { V= IR ओम के नियम से }

H =I²Rt

जूल का तापन नियम 

जब किसी प्रतिरोध में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उस में उत्पन ऊष्मा का मान (H = I²Rt) -

1. प्रतिरोध में प्रवाहित विद्युत धारा के वर्ग के समानुपाती होता है 

H  ∝  I²

2. प्रतिरोध के समानुपाती होता है 

H ∝ R

3. प्रतिरोध में धारा प्रवाह के समय के समानुपाती होता है

H ∝ t

इसे ही जूल का तापन नियम कहते है विद्युत इस्तरी, विद्युत टोस्टर, विद्युत तंदूर, विद्युत केतली तथा विद्युत हीटर जूल के तापन पर आधारित युक्तियाँ हैं।

विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के व्यावहारिक अनुप्रयोग

1. विद्युत धारा के तापीय प्रभाव का उपयोग विद्युत बल्ब से प्रकाश उत्पन्न करने किया जाता है विद्युत बल्ब का तंतु उत्पन्न उष्मा को जितना रोक कर रखता है वह उतना ही अत्यंत तप्त होकर प्रकाश उत्पन्न करेगा अतः विद्युत बल्ब का तंतुओं को बनाने में टंगस्टन का उपयोग किया जाता है जो उच्च गलनांक की एक प्रबल धातु है। ताकि विद्युत बल्ब के तंतु को उच्च ताप पर पिघले नहीं। विद्युत बल्ब में विद्युतरोधी टेक का उपयोग करके तंतु को यथासंभव ताप विलगित बनाया जाता है  प्रायः बल्बों में रासायनिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा आर्गन गैस भरी जाती है जिससे उसके तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है। तंतु द्वारा उपभुक्त ऊर्जा का अधिकांश भाग ऊष्मा के रूप में प्रकट होता है, परंतु इसका एक अल्प भाग विकरित प्रकाश के रूप में भी दृष्टिगोचर होता है।

2. विद्युत धारा के तापीय प्रभाव का उपयोग विद्युत परिपथ में उपयोग होने वाले फ्यूज में होता है। फ्यूज उचित गलनांक वाली धातु अथवा मिश्रातु के तार का टुकड़ा होता है इसे युक्ति के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं। जब परिपथ में किसी निर्दिष्ट मान से अधिक मान की विद्युत धारा प्रवाहित होती है तब हमारे घरों में लगे विद्युत उपकरण जैसे बल्ब, पंखे, फ्रिज, टेलीविजन आदि को जलने से बचाने के लिए विद्युत परिपथ में फ्यूज तार लगाए जाते हैं यदि परिपथ में अचानक विद्युत धारा का मान बढ़ जाता है तो फ्यूज तार के ताप में वृद्धि होती है। इससे फ्यूज तार पिघल जाता है और परिपथ टूट जाता है घरेलू परिपथों में उपयोग होने वाली फ्यूज की अनुमत विद्युत धारा 1 A, 2 A,  3 A,  5 A,  10 A, आदि होती है। 

विद्युत शक्ति

किसी विद्युत परिपथ में धारा प्रवाहित करने पर प्रति सेकंड किया गया कार्य विद्युत शक्ति कहलाती  है इसका मात्रक वाट होता है 

‘वाट’ शक्ति का छोटा मात्रक है। अतः वास्तविक व्यवहार में किलोवाट शक्ति का बड़ा मात्रक हैं। एक किलोवाट में  1000 वाट होते है। चूँकि विद्युत ऊर्जा शक्ति तथा समय का गुणनफल होती है इसलिए विद्युत ऊर्जा का मात्रक वाट घंटा है। जब एक वाट शक्ति का उपयोग एक घंटे तक होता है तो उपभुक्त ऊर्जा एक वाट घंटा होती है। 

विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक किलोवाट घंटा है जिसे सामान्य बोलचाल में ‘यूनिट’ कहते हैं।

1 kWh = 1000 वाट × 3600 सेकंड

1 kWh = 3.6 X 10⁶ वाट सेकंड

1 kWh = 3.6 X 10⁶ जूल 



  1. घरों में विद्युत संयोजन किस प्रकार किया जाता है
    समांतर (पार्श्वक्रम) क्रम में
  2. विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है?
    किसी विद्युत धारा के सतत् तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं।
  3. विद्युत आवेश का मात्रक लिखिए
    कूलाम
  4. विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक क्या होता है 
    किलोवाट-घंटा (KWh) जिसे यूनिट कहते है 
  5. विद्युत धारा का मापन किसके द्वारा किया जाता है
    अमीटर के द्वारा, अमीटर को विद्युत परिपथ में श्रेेेेणी क्रम में  जोङा जाता है
  6. विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण कैसे किया जाता है ।
    विद्युत शक्ति के द्वारा
  7. एक इलेक्ट्रॉन पर कितना  आवेश होता है ? 
    1.6 x 10⁻¹⁹ कूलॉम
  8. 1 एंपियर से क्या अभिप्राय है
    किसी विद्युत परिपथ में प्रति सेकंड एक कूलाम आवेश प्रवाह से उत्पन्न धारा 1 एंपियर कहलाती है
  9. उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।
    बैटरी या विद्युत सेल
  10. विद्युत विभव से क्या अभिप्राय है
    किसी बिंदु पर विद्युत विभव एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किए गए कार्य के बराबर होता है 
  11. विभवांतर का मापन किसके द्वारा किया जाता है
    विभवांतर का मापन वोल्टमीटर के द्वारा किया जाता है वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ में पार्श्वक्रम क्रम में जोड़ा जाता है
  12. प्रतिरोध किसे कहते हैं इसका मात्रक क्या होता है
    किसी चालक का वह गुण जो उसमें आवेश प्रवाह का विरोध करता है प्रतिरोध कहलाता है प्रतिरोध का मात्रक ओम ( Ω))होता है
  13. प्रतिरोधकता किसे कहते हैं
    इकाई लंबाई व इकाई अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले तार का प्रतिरोध विशिष्ट प्रतिरोध  प्रतिरोधकता कहलाता है
  14. विद्युत बल्बों में कौनसी  गैस भरी जाती है और क्यों?
    विद्युत बल्बों में रासायनिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा आर्गन गैस भरी जाती है जिससे उसके तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है।
  15. एक ओम से क्या अभिप्राय है
    किसी चालक तार में 1 एंपियर विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके सिरों के मध्य 1 वोल्ट विभवांतर उत्पन्न होता है तो उस चालक का प्रतिरोध एक ओम कहलाता है
  16. समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है । क्यों ।
     किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है
    R ∝ 1/A
    चूँकि मोटे तार का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल अधिक है अतः इसका प्रतिरोध कम होगा इसलिए मोटे तार से धारा आसानी से प्रवाहित हो जाएगी ।
  17. विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बना कर किसी मिश्रधातु के क्यों बनाए जाते हैं? 
    मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता अपनी अवयवी धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। इसीलिए मिश्रधातुओं का उच्च ताप पर उपचयन (दहन) नहीं होता। अतः इनका उपयोग विद्युत टोस्टरों, इस्तरियों आदि के तापन अवयव के अवयव बनाने हेतु किया जाता है।
  18. एक किलोवाट-घंटा या 1KWh  में कितने जूल के बराबर होता है 
    1 kWh = 1000 वाट × 3600 सेकंड
    1 kWh = 3.6 X 10⁶ वाट सेकंड
    1 kWh = 3.6 X 10⁶ जूल
  19.  विद्युत धारा के तापीय प्रभाव से क्या अभिप्राय है
    जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह गर्म हो जाता है इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं इस प्रभाव का उपयोग विद्युत हीटर, विद्युत केतली, विद्युत इस्तरी जैसी युक्तियों में किया जाता है
  20. विद्युत-परिपथ में फ्यूज तार क्यों लगाए जाते हैं?
    जब परिपथ में किसी निर्दिष्ट मान से अधिक मान की विद्युत धारा प्रवाहित होती है तब हमारे घरों में लगे विद्युत उपकरण जैसे बल्ब, पंखे, फ्रिज, टेलीविजन आदि जले नहीं इसके लिए विद्युत परिपथ में फ्यूज तार लगाए जाते हैं यदि परिपथ में अचानक विद्युत धारा का मान बढ़ जाता है तो फ्यूज तार के ताप में वृद्धि होती है। इससे फ्यूज तार पिघल जाता है और परिपथ टूट जाता है। 
  21. ओम का नियम क्या है
    स्थिर ताप पर किसी चालक के दो सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर उस चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के समानुपाती होता है
           V ∝ I
           V = IR
  22. एक कूलॉम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या परिकलित कीजिए।
    हमें ज्ञात है कि 1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश का मान e = 1.6 x 10⁻¹⁹ C होता है।
    अतः 1C आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या (n) =
    1.                                                                                  = 6.25×10⁻¹⁸ इलेक्ट्रॉन
    2. विद्युत शक्ति किसे कहते हैं इसका मात्रक लिखिए 
      किसी विद्युत परिपथ में धारा प्रवाहित करने पर प्रति सेकंड किया गया कार्य विद्युत शक्ति का लाता  है इसका मात्रक वाट होता है    
    3. विभवांतर किसे कहते हैं इसका मात्रक लिखिए
      किसी विद्युत परिपथ में एकांक धनावेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया गया कार्य उन दोनों बिंदुओं के बीच विभवांतर होता है इसका मात्रक वोल्ट होता है 
    4. विधुत धारा किसे कहते है
      किसी चालक में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है विद्युत धारा का मात्रक एम्पीयर होता है
    5. विद्युत बल्बों  के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है?
      विद्युत बल्बों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है; क्योंकि इसका गलनांक तथा प्रतिरोध बहुत उच्च होता है। उच्च प्रतिरोध होने के कारण यह बहुत अधिक ऊष्मा उत्पन्न करता है जिसके कारण यह चमकता है और प्रकाश देता है तथा उच्च गलनांक होने के कारण यह उच्च ताप पर भी पिघलता नहीं है।
    6. श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं?
      1. पार्श्वक्रम संयोजन में यदि किसी कारणवश कोई एक युक्ति खराब भी हो जाए तो अन्य युक्तियाँ प्रभावित नहीं होती। हैं। वे सुचारू रूप से कार्य करती रहेंगी।
      2. पार्श्वक्रम संयोजन में प्रत्येक उपकरण अपनी आवश्यकता के अनुसार धारा ग्रहण कर सकती हैं।
      3. पार्श्वक्रम संयोजन में प्रत्येक युक्ति के लिए अलग-अलग ऑन/ऑफ स्विच लगा सकते हैं।
      4. पार्श्वक्रम में कुल प्रतिरोध का मान कम हो जाता है, जिसके कारण धारा का मान बढ़ जाता है।
    7. घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है?
      घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग निम्नलिखित कारणों से नहीं किया जाता है
      1. श्रेणीक्रम संयोजन में परिपथ का कुल प्रतिरोध (R = R₁  + R₂  +  R₃….) अधिक होने के कारण धारा का मान अत्यंत कम हो जाता है।
      2. श्रेणीक्रम संयोजन में जब परिपथ का एक अवयव कार्य करना बंद कर देता है तो परिपथ टूट जाता है और परिपथ का अन्य कोई अवयव कार्य नहीं कर पाता।
      3. किसी श्रेणीबद्ध विद्युत परिपथ में शुरू से अंत तक विद्युत धारा नियत रहती है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से यह व्यावहारिक नहीं है क्योंकि अलग -अलग युक्तियों को अलग-अलग विद्युत धारा की आवश्यकता होती है 
    8. प्रतिरोध किन-किन कारको पर निर्भर करता है
      वह कारक जिन पर किसी चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है
      1.चालक की लंबाई- किसी चालक तार का प्रतिरोध उसकी लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है
                      R ∝ L    ...................(i)
      2. अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल- किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है
                      R∝ 1/A  .................(ii)
      3.पदार्थ की प्रकृति -विद्युत के अच्छे चालक का प्रतिरोध कम तथा चालकता घटने पर प्रतिरोधत का मान बढ़ता है
    9. जूल का तापन नियम क्या है 
      जब किसी प्रतिरोध में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उस में उत्पन ऊष्मा का मान (H = I2Rt) -
      1.प्रतिरोध में प्रवाहित विद्युत धारा के वर्ग के समानुपाती होता है 
         H  ∝  I²
      2.प्रतिरोध के समानुपाती होता है 
        H ∝ R
      3.प्रतिरोध में धाराप्रवाह के समय के समानुपाती होता है
        H ∝ t
       इसे ही जूल का तापन नियम कहते है 
    10. श्रेणी क्रम संयोजन से क्या अभिप्राय है श्रेणी क्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध की गणना कीजिए
      जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधो को क्रमशः छोर से छोर मिलाते हुए संयोजित किया जाता है तो इस प्रकार के संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं
      श्रेणी क्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध

      प्रतिरोधों के श्रेणीक्रम संयोजन में परिपथ के प्रत्येक प्रतिरोध से प्रवाहित विद्युत धारा का मान समान  होता है  माना श्रेणी क्रम में संयोजित प्रतिरोध R₁, R₂ व R₃  में I धारा प्रवाहित हो रही है तथा इन प्रतिरोधो के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवांतर क्रमशः V₁,V₂ व V₃ है  यदि परिपथ का कुल विभावांतर V हो तो यह तीनों  विभवांतरों  V₁,V₂ व V₃  के योग के बराबर है। अतः
                  V = V₁ + V₂ + V₃    . . . . . . . . (i)
      यदि परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R हो तो सम्पूर्ण परिपथ के लिए ओम के नियमानुसार-
                         V = IR           
      प्रत्येक प्रतिरोध के लिए ओम के नियमानुसार विभावान्तर का मान निम्न होगा    
                         V₁ = IR₁
                         V₂ = IR₂
                         V₃ = IR₃
      सामी० (i) में V, V₁, V₂, व  V₃ का मान रखने पर 
                         IR = IR₁ + IR₂ + IR₃
                          R = R₁ + R₂ + R₃   . . . . . . . . (ii)    
      अतः श्रेणी क्रम संयोजन में परिपथ का कुल तुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधो के योग के बराबर होता है
    11. पार्श्व क्रम संयोजन से क्या अभिप्राय है समांतर क्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध की गणना कीजिए
      जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधो को दो सिरों के मध्य संयोजित किया जाता है तो इसे पार्श्वक्रम क्रम संयोजन कहते हैं

      पार्श्वक्रम संयोजन के लिए तुल्य प्रतिरोध
      प्रतिरोधों के पार्श्वक्रम संयोजन में परिपथ के प्रत्येक प्रतिरोध के दोनों शिरों के मध्य विभावांतर  का मान समान  होता है माना तीन प्रतिरोध R₁, R₂ व R₃ समांतर क्रम में संयोजित है इनमें क्रमशः I₁, I₂ व I₃ धारा प्रवाहित होती है यदि परिपथ में प्रवाहित कुल धारा I हो तो यह प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित धारा के योग के बराबर होती है। अतः
      I= I₁+ I₂+ I₃ . . . . . . . . (i)
      यदि परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R व विभावांतर V हो तो सम्पूर्ण परिपथ के लिए ओम के नियमानुसार-
      I = V/R
      प्रतिरोधो के सिरों पर उत्पन्न विभवांतर V हो तो ओम के नियमानुसार प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित धारा का मान  निम्न होगा
      I₁ = V/R₁
      I₂ = V/R₂
      I₃ = V/R₃
      सामी० (i) में I,I₁, I₂ व  I₃ का मान रखने पर 
      V/R =   V/R₁  +  V/R₂  +  V/R₃
      V/R =   V( 1/R₁  +  1/R₂  +  1/R₃)
      V/R =   1/R₁  +  1/R₂  +  1/R₃   . . . . . . . . (ii)   
    12. 20 ओम प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5A विद्युत धारा लेती है । 30 सेकण्ड में उष्मा परिकलित कीजिए ।
      दिया हुआ - R = 20 ओम
                      I = 5A
                      t = 30 s
      विद्युत इस्तरी में उत्पन्न उष्मा की मात्रा 
      H =I²Rt
      H = (5)²×20 × 30
      H = 25 ×20 × 30
      H = 15000 जूल
      H = 1.5×104 J 
    13.  कोई विद्युत मोटर 220 V के विद्युत स्रोत से 5.0 A विद्युत धारा लेता है । मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घण्टे में मोटर द्वारा उपयुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए ।
      दिया हुआ - V = 220V
                       I = 5A
      मोटर की शक्ति 
      P = VI
      P = 220 × 5
      P = 1100 वाट 
      अतः 2 घण्टे में मोटर द्वारा व्यय ऊर्जा –
      चूँकि P = W/t
            W = Pt
            W = 1100 वाट ×2 घण्टा
            W = 2200 वाट घण्टा
            W = 1100 वाट × 2×60×60 Sec
            W = 7920000 J
            W = 7.92× 10⁶ J
            W = 7.92 ×10³ KJ 
    14. 176 Ω प्रतिरोध के कितने प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित करें कि 220 V के विद्युत श्रोत से संयोजन से 5 A विद्युत धारा प्रवाहित हो?

      दिया हुआ I=5 A 

                       V=200 V

      मान आवश्यक प्रतिरोधकों की संख्या X है  इन प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम  संयोजन के बाद परिपथ का तुल्य प्रतिरोध  R हो तो

      1R1=x176 Ω

      R1=176 Ωxओम=x=176 Ω×5 A220 V=4

      ओम के नियमानुसार

        ⇒1R2=26=1

      . . . . . . (ii)
      समी० (i) व (ii) से

      R1=220 V5A

      R1=220 V5A

      176 Ωx=220 V5 A  x

      x×220 V=176 Ω×5A

      x=176 Ω×5 A220 V=4

                    x   = 4 

      अत: 176 Ω के 4 प्रतिरोधकों की आवश्यक्ता होगी।

    Post a Comment

    Thanks

    Previous Post Next Post