आर्थिक क्रिया - मानव के वे क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है आर्थिक क्रियाएं कहलाती है आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता है
1.प्राथमिक क्रियाएँ 2.द्वितीयक क्रियाएँ
3.तृतीयक क्रियाएँ 4.चतुर्थक क्रियाएँ व पंचम क्रियाएँ
प्राथमिक क्रियाएँ
वे क्रियाएँ जिनमें मनुष्य प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीधा उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है प्राथमिक क्रियाएँ कहलाती हैं विश्व की प्रमुख प्राथमिक क्रियाएँ निम्न है
1.आखेट 2.संग्रहण 3.खनन 4.पशु चारण 5.कृषि 6.मछली पकड़ना 7.लकड़ी काटना
प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोगों का कार्य क्षेत्र अपने घर से बाहर होने के कारण उन्हें लाल कॉलर श्रमिक कहते हैं ।
आखेट एवं भोजन संग्रह
आखेट तथा भोजन संग्रह मानव द्वारा की जाने वाली ज्ञात प्राचीनतम आर्थिक क्रियाएँ हैं । मानव सभ्यता के आरम्भिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने समीपवर्ती वातावरण पर निर्भर रहता था । उसका जीवन निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था-
(i) पशुओं का आखेट कर (ii) जंगलों से खाने योग्य कंद-मूल एवं जंगली पौधे आदि एकत्रित कर ।
आदिमकालीन मानवीय समाज कठोर जलवायु दशाओं में अपने भरणपोषण के लिए पूर्णतः पशुओं पर निर्भर था । अति शीत तथा अति गर्म प्रदेशों में निवास करने वाले लोग जंगली पशुओं तथा जलीय क्षेत्रों से मछलियों का शिकार कर अपनी उदरपूर्ति करते थे । वर्तमान में तकनीकी विकास के चलते मछली पकड़ने के कार्य का आधुनिकीकरण हो गया है लेकिन आज भी विश्व के अनेक तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग परम्परागत शैली से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं । प्राचीन समय में जंगली जीव-जन्तुओं का शिकार करने के लिए शिकारी पत्थर या लकड़ी से निर्मित औजारों तथा तीरों का उपयोग करते थे जिससे उनके द्वारा मारे जाने वाले जंगली जीवों की संख्या सीमित रहती थी ।
भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है
(i) उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं
(ii) निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, कालाहारी मरुस्थल(अफ्रीका), आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है
भोजन संग्रह व आखेट व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) आखेट एवं भोजन संग्रह आदिमकालीन मानवीय समाज द्वारा कठोर जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों में किया जाता है ।
(ii) आखेट व भोजन संग्रह व्यवसाय में बहुत कम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है लेकिन इसमे किसी आर्थिक क्रिया की अपेक्षा अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है ।
(iii) आखेट व भोजन संग्रह के लिए बहुत कम पूँजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है
(iv) इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है ।
(v) आदिकाल से ही मनुष्य अपने भोजन, वस्त्र एवं आवास की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वस्तुओं का संग्रह और पशुओं का शिकार करते है ।
आधुनिक समय में भोजन संग्रह का कार्य व्यवसाय के रूप में किया जाने लगा है । और ये लोग कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधें को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचते हैं । इन पौधे की छाल का उपयोग कुनैन बनाने, चमड़ा तैयार करने एवं कार्क बनाने के लिए, पत्तियों का उपयोग पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कांतिवद्धर्क वस्तुएँ बनाने के लिए, रेशे को कपड़ा बनाने, दृढ़फल को भोजन एवं तेल के लिए तथा तने का उपयोग रबड़, गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं ।
चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग चिकल कहते हैं ये जेपोटा वृक्ष के दूध् से बनता है ।
पशुचारण
शिकार पर निर्भर मानवीय समूहों ने जनसंख्या के बढ़ने पर यह अनुभव किया कि उनका भरण-पोषण केवल शिकार से प्राप्त भोजन सामग्री से नहीं हो सकता तब मानव द्वारा पशुपालन व्यवसाय अपनाने के बारे में सोचा जाने लगा तथा अपने-अपने भौगोलिक परिवेश में उपलब्ध कुछ उपयोगी पशुओं का चुनाव कर उन्हें पालतू बनाया गया ।
भौगोलिक कारकों तथा तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान में पशुपालन व्यवसाय निर्वहन अथवा व्यापारिक स्तर पर किया जाता है ।
1. चलवासी पशुचारण 2. वाणिज्य पशुधन पालन
1. चलवासी पशुचारण
चलवासी पशुचारण मानव का प्राचीन जीवन- निर्वाहक व्यवसाय है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, आवास एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता है चलवासी पशुचारण में पशुचारक अपने पालतू पशुओं के साथ पानी व उपयुक्त चरागाहों को तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित होते रहते हैं । भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के पशु पाले जाते हैं । उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका में गाय-बैल तथा सहारा व एशिया के मरुस्थलीय भागों में भेड़, बकरी तथा ऊँट पाले जाते हैं । तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेंडियर पाले जाता है
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं ।
(i) उत्तरी अफ्रीका के एटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक
(ii) यूरोप तथा एशिया के टुंड्रा प्रदेश
(iii) दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप
सभी चलवासी पशुचारक नवीन चरागाहों की खोज में ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत ऋतु में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं । इस प्रकार के प्रवास को ऋतुप्रवास कहते है । भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के समूह ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं एवं शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्र में आ जाते हैं ।
चलवासी पशुचारकों की संख्या व इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही है । इसके दो कारण हैं
(i) राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण
(ii) कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना ।
2. वाणिज्य पशुधन पालन
वाणिज्य पशुधन पालन विस्तृत घास भूमि पर आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जाने वाला व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान व्यवसाय है । वाणिज्य पशुधन पालन व्यापार के उद्देश्य से किया जाता है इसमें पशुपालक अपने पशुओं के लिए बड़े-बड़े फार्म बनाते हैं जिन्हें रेंच कहते है चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है । जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है । वाणिज्य पशुधन पालन में केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं । प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं । पशु उत्पदों को को वैज्ञानिक ढंग से संसोधित एवं डिब्बा बंद कर विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है । पशुफार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधर पर किया जाता है । इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार, बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है अलास्का में रेंडियर पालन एस्किमो जनजाति द्वारा किया हैं । विश्व में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटाइना, युरूग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है
कृषि
भू-सतह पर की जाने वाली फसलोत्पादन, पुष्पोत्पादन, फलोत्पादन व पशुपालन की क्रिया कृषि कहलाती है प्राथमिक व्यवसायों में कृषि स्थायी एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यवसाय है । कृषि उत्पादों से मनुष्य को भोजन की आपूर्ति के साथ-साथ उद्योग-धन्धों के लिए कच्चे माल की पूर्ति भी होती है । विश्व के विभिन्न भागों में मिलने वाली भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशाएँ कृषि कार्यों को प्रभावित करती हैं तथा इन्हीं प्रभावों से देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कृषि प्रणालियाँ अपनायी जाती है विश्व में निम्नलिखित प्रमुख कृषि प्रणालियाँ मिलती हैं:
1. निर्वाह कृषि
निर्वाह कृषि में सभी प्रकार के कृषि उत्पादों का सम्पूर्ण उपयोग कृषक परिवार द्वारा किया जाता है ।
इसको दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि (स्थानांतरणशील कृषि)
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आदिम जनजाति द्वारा वनों को काटकर जलाने के पश्चात उस भूमि पर की जाने वाली कृषि स्थानांतरित कृषि कहलाती है स्थानांतरित कृषि में वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसी कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है । इस कृषि की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस क्षेत्र में भूमि की उर्वरता कम होती जाती है जिससे झूम का चक्र (आग लगाकर कृषि क्षेत्र तैयार करना) छोटा होता जाता है ।
स्थानांतरणशील कृषि को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है ।
स्थानांतरणशील कृषि की विशेषताएं
1.यह कृषि का सबसे प्राचीन रूप है जो पुराने औजारों द्वारा की जाती हैं ।
2.खेतों का आकार छोटा होता है तथा यह श्रम प्रधान कृषि है ।
3.इस कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती है ।
4. कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है ।
5.यह कृषि अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया में की जाती है ।
(ii) गहन निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है । इस कृषि पद्धति में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है । भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है । उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है । इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है । गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं ।
(1) चावल प्रधन गहन निर्वाह कृषिः यह कृषि प्रयाप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में में की जाती है इस कृषि में चावल को मुख्य फसल के रूप में बोया जाता है ।
(2) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि : मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों
की भिन्नता के कारण चावल की फसल उगाना संभव नहीं है । उन क्षेत्रों में गेहूँ, सोयाबीन, जौ आदि फसलें बोयी जाती है इसे चावल रहित गहन निर्वाह कृषि कहते है इस कृषि में सिंचाई की जाती है
2. रोपण कृषि
बड़े-बड़े बागानों के रूप में की जाने वाली कृषि जिसमें एक बार वृक्षों के बागान लगा कर उनसे कई वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जाता है बागाती कृषि कहलाती है । जैसे-चाय, कोको, रबड़, कॉफी, गन्ना, केले तथा अनान्नास के बागान ।
रोपण कृषि का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहो द्वारा किया गया फ़्रांसवासियां ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध् लगाई थी । ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं लंका में चाय के बाग, मलयेशिया में रबड़ के बाग एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले के बाग विकसित किए । स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइंस में नारियल व गन्ने के बागान लगाए । ब्राजील में अभी भी कुछ कॉफी के बागान जिन्हें फजेन्डा कहा जाता है यूरोपवासियों के नियंत्रण में है । वर्तमान में अधिकतर बागानों का स्वामित्व देशों की सरकार अथवा नागरिकों के नियंत्रण में है ।
रोपण कृषि की विशेषताएँ
1. इस कृषि में भारी पूंजी निवेश, उच्च प्रबंधन तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।
2. यह एक फसली व्यापारिक कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही ध्यान दिया जाता है ।
3. इसमें कृषि क्षेत्र (बागान) का आकार बहुत विस्तृत होता है ।
4. रोपण कृषि में श्रमिकों की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
5. इस कृषि में बागानों को कारखानों तथा बाजार से जोड़ने के लिये विकसित परिवहन का प्रयोग किया जाता है ।
3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
ऐसी कृषि जिसमें फसल उत्पादन व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है वाणिज्यक कृषि कहलाती है । यह कृषि शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में की जाती है जैसे स्टेपीज- यूरेशिया, वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका, डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया, पम्पाज- अर्जनटाइना, प्रेयरीज - उत्तरी अमेरिका घास के मैदान ।
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की विशेषताएं
1.खेतों का आकार बड़ा होता है ।
2.इस कृषि में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं ।
3.मानवीय श्रम का न्यूनतम उपयोग होता है ।
4.इस कृषि प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
5.इस कृषि की मुख्य फसल गेंहू है परन्तु मक्का, जौ, राई व जई की फसले भी बोयी जाती है ।
4. मिश्रित कृषि
ऐसी कृषि जिसमें फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है मिश्रित कृषि कहलाती है यह कृषि कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है यह कृषि उत्तरी-पूर्वी अमेरिका के पूर्वी भाग,उत्तरी-पश्चिमी यूरोप तथा यूरेशिया के कुछ भागों में की जाती है शस्यावर्तन एवं अंतः फसलीकरण इस कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
मिश्रित कृषि कृषि की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है ।
(ii) फसल उत्पादन व पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता है
(iii) यह कृषि कुशल व योग्य कृषकों द्वारा की जाती है
(iv) इस कृषि में विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय होती है
(v) चारे की फसल मिश्रित कृषि का प्रमुख घटक है
5. डेरी कृषि
दुधारू पशुओं के प्रजनन, पशुचारण तथा नस्ल सुधार का विशेष ध्यान रखते हुए व्यवसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करना दुग्ध कृषि या डेयरी कृषि कहलाता है वाणिज्य डेरी कृषि तीन प्रमुख क्षेत्र हैं
1. उत्तरी पश्चिमी यूरोप 2. कनाडा 3. न्यूजीलैंड, दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है
विश्व में डेरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ-
(1) इस व्यवसाय में सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष तकनीक की सहायता से दुधारू पशुओं का वाणिज्यिक स्तर पर पालन किया जाता है ।
(2) इस व्यवसाय में गहन मानवीय श्रम तथा पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है ।
(3) पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर पर्याप्त ध्यान दिया जाता है ।
(4) डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है, क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध् एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं
(5) इस व्यवसाय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविध के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है ।
6. भूमध्यसागरीय कृषि
भूमध्यसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि को भूमध्यसागरीय कृषि कहा जाता है । यह एक अति विशिष्ट प्रकार की व्यावसायिक कृषि है जिसमें खट्टे रसदार फलों का उत्पादन प्रमुख रूप से किया जाता है । भूमध्यसागरीय कृषि में अंगूर, अंजीर तथा जैतून आदि फलों का उत्पादन किया जाता हैं । अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है । अंगूरों का उपयोग प्रमुख रूप से उत्तम गुणवत्ता वाली मदिरा उत्पादन के लिए किया जाता है । घटिया किस्म के अंगूरों से मुनक्का तथा किशमिश निर्मित की जाती है ।
विश्व में भूमध्यसागरीय कृषि भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों (दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनाशिया से अटलांटिक तट तक), दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्य चिली, दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग तथा ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण व दक्षिणी-पश्चिमी भागों में की जाती है ।
7. बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि
(i) इस कृषि के अन्तर्गत अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करने वाली कृषि फसलों जैसे-सब्जियों, फलों एवं पुष्पों की खेती की जाती है जिनकी माँग समीपवर्ती नगरीय क्षेत्रों में अधिक होती है ।
(ii) इस कृषि में अधिक पूँजी तथा गहन श्रम की आवश्यकता होती है ।
(iii) इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इन खेतों का सीधा सम्पर्क उत्तम यातायात के साधनों द्वारा उनके समीपवर्ती नगरों से होता है ।
(iv) इस कृषि व्यवसाय में पर्याप्त सिंचाई, उर्वरक, उत्तम किस्म के बीज एवं कीटनाशी रसायनों का उपयोग किया जाता है । कम तापमान वाले क्षेत्रों में हरित गृह एवं कृत्रिम ताप का प्रयोग भी किया जाता है ।
(v) इस प्रकार की कृषि उत्तरी पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी भाग एवं भूमध्यसागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से ट्यूलिप (एक प्रकार का फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
ट्रक कृषि - महानगरो से दूर जहाँ साग- सब्जियों के उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएं होती है वहाँ साग-सब्जियों की कृषि करके रातभर में ट्रको द्वारा महानगरों तक पहुँचाई जाती है इस कृषि को ट्रक कृषि कहते है ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी एक ट्रक द्वारा रात भर में तय की गई दूरी के बराबर होती है, उसी आधर पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है ।
कारखाना कृषि- पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में गाय-बैल जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पाला जाता है तथा इन पशुओं को कारखानों में निर्मित पशु आहार खिलाया जाता है । इस प्रकार की कृषि को कारखाना कृषि कहते है
संगठन के आधार पर कृषि के प्रकार
1. सहकारी कृषि
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है उसे सहकारी कृषि कहते हैं । इस कृषि पद्धति में व्यक्तिगत कृषि फार्मों को अक्षुण्ण रखते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है । सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार की सहायता करती है ।
सहकारी कृषि का प्रारम्भ एक आन्दोलन के रूप में पश्चिमी यूरोप में हुआ तथा डेनमार्क, नीदरलैण्ड , बेल्जियम, स्वीडन तथा इटली आदि यूरोपियन देशों में इसे पर्याप्त लोकप्रियता मिली । इन यूरोपियन देशों में सहकारी कृषि को सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में मिली ।
2. सामूहिक कृषि -जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं । सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें सभी कृषक अपने संसाधन जैसे-कृषि भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं । प्रत्येक कृषक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में रखता है । सरकार कृषि उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धरित करती है एवं कृषि उत्पादन को सरकार ही निर्धरित मूल्य पर खरीदती थी । लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता था या बाजार में बेच दिया जाता था । सामूहिक कृषि का प्रारंभ पूर्व सोवियत संघ में हुआ था जहाँ इसे कोलखोज के नाम से जानी जाती है
खनन
मानव विकास खनिजों की खोज की अवस्थाओं से जुड़ा हुआ है जैसे ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग । खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है ।
(i) भौतिक कारक - खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था
(ii) आर्थिक कारक - खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय
खनन की विधियाँ
अयस्क की प्रकृति तथा उनकी उपस्थिति की अवस्था के आधर पर खनन के दो प्रकार हैंः
(1) धरातलीय या विवृत्त खनन – एक स्थान जहाँ मिट्टी और उसके बाहरी आवरण को पहले हटाया जाता है बाद में खनन करके खनिज या अयस्क को प्राप्त किया जाता है । धरातलीय या विवृत्त खनन कहा जाता है । यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि् में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है ।
(2) भूमिगत खनन या कूप की खनन - जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन का प्रयोग किया जाता है । खनन की इस विधि में खनिजों को प्राप्त करने के लिए पृथ्वी में गहरा भूमिगत कूप लम्बवत् रूप में खोदा जाता हैजिसमें भूमिगत गैलरियाँ क्षैतिज व तिर्यक रूप में खनिजों तक पहुँचने के लिए निर्मित की जाती हैं । खनन की यह विधि महँगी होने के साथ-साथ अनेक जोखिमों से युक्त होती हैं । क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने का खतरा रहता है । विश्व के अनेक विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश खनन उत्पादन से उच्च श्रमिक लागत के कारण पीछे हट रहे हैं दूसरी ओर विश्व के विकासशील राष्ट्र अपनी विशाल श्रमिक शक्ति के सस्ते होने के कारण खनन उत्पादन को महत्व प्रदान कर रहे हैं
1.प्राथमिक क्रियाएँ 2.द्वितीयक क्रियाएँ
3.तृतीयक क्रियाएँ 4.चतुर्थक क्रियाएँ व पंचम क्रियाएँ
प्राथमिक क्रियाएँ
वे क्रियाएँ जिनमें मनुष्य प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीधा उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है प्राथमिक क्रियाएँ कहलाती हैं विश्व की प्रमुख प्राथमिक क्रियाएँ निम्न है
1.आखेट 2.संग्रहण 3.खनन 4.पशु चारण 5.कृषि 6.मछली पकड़ना 7.लकड़ी काटना
प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोगों का कार्य क्षेत्र अपने घर से बाहर होने के कारण उन्हें लाल कॉलर श्रमिक कहते हैं ।
आखेट एवं भोजन संग्रह
आखेट तथा भोजन संग्रह मानव द्वारा की जाने वाली ज्ञात प्राचीनतम आर्थिक क्रियाएँ हैं । मानव सभ्यता के आरम्भिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने समीपवर्ती वातावरण पर निर्भर रहता था । उसका जीवन निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था-
(i) पशुओं का आखेट कर (ii) जंगलों से खाने योग्य कंद-मूल एवं जंगली पौधे आदि एकत्रित कर ।
आदिमकालीन मानवीय समाज कठोर जलवायु दशाओं में अपने भरणपोषण के लिए पूर्णतः पशुओं पर निर्भर था । अति शीत तथा अति गर्म प्रदेशों में निवास करने वाले लोग जंगली पशुओं तथा जलीय क्षेत्रों से मछलियों का शिकार कर अपनी उदरपूर्ति करते थे । वर्तमान में तकनीकी विकास के चलते मछली पकड़ने के कार्य का आधुनिकीकरण हो गया है लेकिन आज भी विश्व के अनेक तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग परम्परागत शैली से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं । प्राचीन समय में जंगली जीव-जन्तुओं का शिकार करने के लिए शिकारी पत्थर या लकड़ी से निर्मित औजारों तथा तीरों का उपयोग करते थे जिससे उनके द्वारा मारे जाने वाले जंगली जीवों की संख्या सीमित रहती थी ।
भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है
(i) उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं
(ii) निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, कालाहारी मरुस्थल(अफ्रीका), आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है
भोजन संग्रह व आखेट व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) आखेट एवं भोजन संग्रह आदिमकालीन मानवीय समाज द्वारा कठोर जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों में किया जाता है ।
(ii) आखेट व भोजन संग्रह व्यवसाय में बहुत कम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है लेकिन इसमे किसी आर्थिक क्रिया की अपेक्षा अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है ।
(iii) आखेट व भोजन संग्रह के लिए बहुत कम पूँजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है
(iv) इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है ।
(v) आदिकाल से ही मनुष्य अपने भोजन, वस्त्र एवं आवास की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वस्तुओं का संग्रह और पशुओं का शिकार करते है ।
आधुनिक समय में भोजन संग्रह का कार्य व्यवसाय के रूप में किया जाने लगा है । और ये लोग कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधें को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचते हैं । इन पौधे की छाल का उपयोग कुनैन बनाने, चमड़ा तैयार करने एवं कार्क बनाने के लिए, पत्तियों का उपयोग पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कांतिवद्धर्क वस्तुएँ बनाने के लिए, रेशे को कपड़ा बनाने, दृढ़फल को भोजन एवं तेल के लिए तथा तने का उपयोग रबड़, गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं ।
चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग चिकल कहते हैं ये जेपोटा वृक्ष के दूध् से बनता है ।
पशुचारण
शिकार पर निर्भर मानवीय समूहों ने जनसंख्या के बढ़ने पर यह अनुभव किया कि उनका भरण-पोषण केवल शिकार से प्राप्त भोजन सामग्री से नहीं हो सकता तब मानव द्वारा पशुपालन व्यवसाय अपनाने के बारे में सोचा जाने लगा तथा अपने-अपने भौगोलिक परिवेश में उपलब्ध कुछ उपयोगी पशुओं का चुनाव कर उन्हें पालतू बनाया गया ।
भौगोलिक कारकों तथा तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान में पशुपालन व्यवसाय निर्वहन अथवा व्यापारिक स्तर पर किया जाता है ।
1. चलवासी पशुचारण 2. वाणिज्य पशुधन पालन
1. चलवासी पशुचारण
चलवासी पशुचारण मानव का प्राचीन जीवन- निर्वाहक व्यवसाय है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, आवास एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता है चलवासी पशुचारण में पशुचारक अपने पालतू पशुओं के साथ पानी व उपयुक्त चरागाहों को तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित होते रहते हैं । भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के पशु पाले जाते हैं । उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका में गाय-बैल तथा सहारा व एशिया के मरुस्थलीय भागों में भेड़, बकरी तथा ऊँट पाले जाते हैं । तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेंडियर पाले जाता है
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं ।
(i) उत्तरी अफ्रीका के एटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक
(ii) यूरोप तथा एशिया के टुंड्रा प्रदेश
(iii) दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप
सभी चलवासी पशुचारक नवीन चरागाहों की खोज में ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत ऋतु में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं । इस प्रकार के प्रवास को ऋतुप्रवास कहते है । भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के समूह ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं एवं शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्र में आ जाते हैं ।
चलवासी पशुचारकों की संख्या व इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही है । इसके दो कारण हैं
(i) राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण
(ii) कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना ।
2. वाणिज्य पशुधन पालन
वाणिज्य पशुधन पालन विस्तृत घास भूमि पर आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जाने वाला व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान व्यवसाय है । वाणिज्य पशुधन पालन व्यापार के उद्देश्य से किया जाता है इसमें पशुपालक अपने पशुओं के लिए बड़े-बड़े फार्म बनाते हैं जिन्हें रेंच कहते है चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है । जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है । वाणिज्य पशुधन पालन में केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं । प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं । पशु उत्पदों को को वैज्ञानिक ढंग से संसोधित एवं डिब्बा बंद कर विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है । पशुफार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधर पर किया जाता है । इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार, बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है अलास्का में रेंडियर पालन एस्किमो जनजाति द्वारा किया हैं । विश्व में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटाइना, युरूग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है
कृषि
भू-सतह पर की जाने वाली फसलोत्पादन, पुष्पोत्पादन, फलोत्पादन व पशुपालन की क्रिया कृषि कहलाती है प्राथमिक व्यवसायों में कृषि स्थायी एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यवसाय है । कृषि उत्पादों से मनुष्य को भोजन की आपूर्ति के साथ-साथ उद्योग-धन्धों के लिए कच्चे माल की पूर्ति भी होती है । विश्व के विभिन्न भागों में मिलने वाली भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशाएँ कृषि कार्यों को प्रभावित करती हैं तथा इन्हीं प्रभावों से देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कृषि प्रणालियाँ अपनायी जाती है विश्व में निम्नलिखित प्रमुख कृषि प्रणालियाँ मिलती हैं:
1. निर्वाह कृषि
निर्वाह कृषि में सभी प्रकार के कृषि उत्पादों का सम्पूर्ण उपयोग कृषक परिवार द्वारा किया जाता है ।
इसको दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि (स्थानांतरणशील कृषि)
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आदिम जनजाति द्वारा वनों को काटकर जलाने के पश्चात उस भूमि पर की जाने वाली कृषि स्थानांतरित कृषि कहलाती है स्थानांतरित कृषि में वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसी कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है । इस कृषि की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस क्षेत्र में भूमि की उर्वरता कम होती जाती है जिससे झूम का चक्र (आग लगाकर कृषि क्षेत्र तैयार करना) छोटा होता जाता है ।
स्थानांतरणशील कृषि को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है ।
स्थानांतरणशील कृषि की विशेषताएं
1.यह कृषि का सबसे प्राचीन रूप है जो पुराने औजारों द्वारा की जाती हैं ।
2.खेतों का आकार छोटा होता है तथा यह श्रम प्रधान कृषि है ।
3.इस कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती है ।
4. कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है ।
5.यह कृषि अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया में की जाती है ।
(ii) गहन निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है । इस कृषि पद्धति में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है । भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है । उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है । इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है । गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं ।
(1) चावल प्रधन गहन निर्वाह कृषिः यह कृषि प्रयाप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में में की जाती है इस कृषि में चावल को मुख्य फसल के रूप में बोया जाता है ।
(2) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि : मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों
की भिन्नता के कारण चावल की फसल उगाना संभव नहीं है । उन क्षेत्रों में गेहूँ, सोयाबीन, जौ आदि फसलें बोयी जाती है इसे चावल रहित गहन निर्वाह कृषि कहते है इस कृषि में सिंचाई की जाती है
2. रोपण कृषि
बड़े-बड़े बागानों के रूप में की जाने वाली कृषि जिसमें एक बार वृक्षों के बागान लगा कर उनसे कई वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जाता है बागाती कृषि कहलाती है । जैसे-चाय, कोको, रबड़, कॉफी, गन्ना, केले तथा अनान्नास के बागान ।
रोपण कृषि का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहो द्वारा किया गया फ़्रांसवासियां ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध् लगाई थी । ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं लंका में चाय के बाग, मलयेशिया में रबड़ के बाग एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले के बाग विकसित किए । स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइंस में नारियल व गन्ने के बागान लगाए । ब्राजील में अभी भी कुछ कॉफी के बागान जिन्हें फजेन्डा कहा जाता है यूरोपवासियों के नियंत्रण में है । वर्तमान में अधिकतर बागानों का स्वामित्व देशों की सरकार अथवा नागरिकों के नियंत्रण में है ।
रोपण कृषि की विशेषताएँ
1. इस कृषि में भारी पूंजी निवेश, उच्च प्रबंधन तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।
2. यह एक फसली व्यापारिक कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही ध्यान दिया जाता है ।
3. इसमें कृषि क्षेत्र (बागान) का आकार बहुत विस्तृत होता है ।
4. रोपण कृषि में श्रमिकों की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
5. इस कृषि में बागानों को कारखानों तथा बाजार से जोड़ने के लिये विकसित परिवहन का प्रयोग किया जाता है ।
3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
ऐसी कृषि जिसमें फसल उत्पादन व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है वाणिज्यक कृषि कहलाती है । यह कृषि शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में की जाती है जैसे स्टेपीज- यूरेशिया, वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका, डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया, पम्पाज- अर्जनटाइना, प्रेयरीज - उत्तरी अमेरिका घास के मैदान ।
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की विशेषताएं
1.खेतों का आकार बड़ा होता है ।
2.इस कृषि में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं ।
3.मानवीय श्रम का न्यूनतम उपयोग होता है ।
4.इस कृषि प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
5.इस कृषि की मुख्य फसल गेंहू है परन्तु मक्का, जौ, राई व जई की फसले भी बोयी जाती है ।
4. मिश्रित कृषि
ऐसी कृषि जिसमें फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है मिश्रित कृषि कहलाती है यह कृषि कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है यह कृषि उत्तरी-पूर्वी अमेरिका के पूर्वी भाग,उत्तरी-पश्चिमी यूरोप तथा यूरेशिया के कुछ भागों में की जाती है शस्यावर्तन एवं अंतः फसलीकरण इस कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
मिश्रित कृषि कृषि की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है ।
(ii) फसल उत्पादन व पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता है
(iii) यह कृषि कुशल व योग्य कृषकों द्वारा की जाती है
(iv) इस कृषि में विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय होती है
(v) चारे की फसल मिश्रित कृषि का प्रमुख घटक है
5. डेरी कृषि
दुधारू पशुओं के प्रजनन, पशुचारण तथा नस्ल सुधार का विशेष ध्यान रखते हुए व्यवसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करना दुग्ध कृषि या डेयरी कृषि कहलाता है वाणिज्य डेरी कृषि तीन प्रमुख क्षेत्र हैं
1. उत्तरी पश्चिमी यूरोप 2. कनाडा 3. न्यूजीलैंड, दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है
विश्व में डेरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ-
(1) इस व्यवसाय में सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष तकनीक की सहायता से दुधारू पशुओं का वाणिज्यिक स्तर पर पालन किया जाता है ।
(2) इस व्यवसाय में गहन मानवीय श्रम तथा पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है ।
(3) पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर पर्याप्त ध्यान दिया जाता है ।
(4) डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है, क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध् एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं
(5) इस व्यवसाय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविध के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है ।
6. भूमध्यसागरीय कृषि
भूमध्यसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि को भूमध्यसागरीय कृषि कहा जाता है । यह एक अति विशिष्ट प्रकार की व्यावसायिक कृषि है जिसमें खट्टे रसदार फलों का उत्पादन प्रमुख रूप से किया जाता है । भूमध्यसागरीय कृषि में अंगूर, अंजीर तथा जैतून आदि फलों का उत्पादन किया जाता हैं । अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है । अंगूरों का उपयोग प्रमुख रूप से उत्तम गुणवत्ता वाली मदिरा उत्पादन के लिए किया जाता है । घटिया किस्म के अंगूरों से मुनक्का तथा किशमिश निर्मित की जाती है ।
विश्व में भूमध्यसागरीय कृषि भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों (दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनाशिया से अटलांटिक तट तक), दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्य चिली, दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग तथा ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण व दक्षिणी-पश्चिमी भागों में की जाती है ।
7. बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि
(i) इस कृषि के अन्तर्गत अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करने वाली कृषि फसलों जैसे-सब्जियों, फलों एवं पुष्पों की खेती की जाती है जिनकी माँग समीपवर्ती नगरीय क्षेत्रों में अधिक होती है ।
(ii) इस कृषि में अधिक पूँजी तथा गहन श्रम की आवश्यकता होती है ।
(iii) इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इन खेतों का सीधा सम्पर्क उत्तम यातायात के साधनों द्वारा उनके समीपवर्ती नगरों से होता है ।
(iv) इस कृषि व्यवसाय में पर्याप्त सिंचाई, उर्वरक, उत्तम किस्म के बीज एवं कीटनाशी रसायनों का उपयोग किया जाता है । कम तापमान वाले क्षेत्रों में हरित गृह एवं कृत्रिम ताप का प्रयोग भी किया जाता है ।
(v) इस प्रकार की कृषि उत्तरी पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी भाग एवं भूमध्यसागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से ट्यूलिप (एक प्रकार का फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
ट्रक कृषि - महानगरो से दूर जहाँ साग- सब्जियों के उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएं होती है वहाँ साग-सब्जियों की कृषि करके रातभर में ट्रको द्वारा महानगरों तक पहुँचाई जाती है इस कृषि को ट्रक कृषि कहते है ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी एक ट्रक द्वारा रात भर में तय की गई दूरी के बराबर होती है, उसी आधर पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है ।
कारखाना कृषि- पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में गाय-बैल जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पाला जाता है तथा इन पशुओं को कारखानों में निर्मित पशु आहार खिलाया जाता है । इस प्रकार की कृषि को कारखाना कृषि कहते है
संगठन के आधार पर कृषि के प्रकार
1. सहकारी कृषि
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है उसे सहकारी कृषि कहते हैं । इस कृषि पद्धति में व्यक्तिगत कृषि फार्मों को अक्षुण्ण रखते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है । सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार की सहायता करती है ।
सहकारी कृषि का प्रारम्भ एक आन्दोलन के रूप में पश्चिमी यूरोप में हुआ तथा डेनमार्क, नीदरलैण्ड , बेल्जियम, स्वीडन तथा इटली आदि यूरोपियन देशों में इसे पर्याप्त लोकप्रियता मिली । इन यूरोपियन देशों में सहकारी कृषि को सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में मिली ।
2. सामूहिक कृषि -जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं । सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें सभी कृषक अपने संसाधन जैसे-कृषि भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं । प्रत्येक कृषक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में रखता है । सरकार कृषि उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धरित करती है एवं कृषि उत्पादन को सरकार ही निर्धरित मूल्य पर खरीदती थी । लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता था या बाजार में बेच दिया जाता था । सामूहिक कृषि का प्रारंभ पूर्व सोवियत संघ में हुआ था जहाँ इसे कोलखोज के नाम से जानी जाती है
खनन
मानव विकास खनिजों की खोज की अवस्थाओं से जुड़ा हुआ है जैसे ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग । खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है ।
(i) भौतिक कारक - खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था
(ii) आर्थिक कारक - खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय
खनन की विधियाँ
अयस्क की प्रकृति तथा उनकी उपस्थिति की अवस्था के आधर पर खनन के दो प्रकार हैंः
(1) धरातलीय या विवृत्त खनन – एक स्थान जहाँ मिट्टी और उसके बाहरी आवरण को पहले हटाया जाता है बाद में खनन करके खनिज या अयस्क को प्राप्त किया जाता है । धरातलीय या विवृत्त खनन कहा जाता है । यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि् में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है ।
(2) भूमिगत खनन या कूप की खनन - जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन का प्रयोग किया जाता है । खनन की इस विधि में खनिजों को प्राप्त करने के लिए पृथ्वी में गहरा भूमिगत कूप लम्बवत् रूप में खोदा जाता हैजिसमें भूमिगत गैलरियाँ क्षैतिज व तिर्यक रूप में खनिजों तक पहुँचने के लिए निर्मित की जाती हैं । खनन की यह विधि महँगी होने के साथ-साथ अनेक जोखिमों से युक्त होती हैं । क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने का खतरा रहता है । विश्व के अनेक विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश खनन उत्पादन से उच्च श्रमिक लागत के कारण पीछे हट रहे हैं दूसरी ओर विश्व के विकासशील राष्ट्र अपनी विशाल श्रमिक शक्ति के सस्ते होने के कारण खनन उत्पादन को महत्व प्रदान कर रहे हैं
कक्षा -12 NCERT भूगोल {मानव भूगोल के मूल सिद्धांत}
अध्याय –04. प्राथमिक क्रियाएं
1. निम्न देशों में से किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है ?[अ] रूस [ब] डेनमार्क
[स] भारत [द] नीदरलैंड [ब]
2. निम्न में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है ?
[अ] कॉफी [ब] गन्ना
[स] गेहूँ [द] चाय [स]
3. फूलों की कृषि कहलाती हैं ।
[अ] ट्रक फार्मिंग [ब] कारखाना कृषि
[स] मिश्रित कृषि [द] पुष्पोत्पादन [द]
4. निम्न में से कौन-सी कृषि के प्रकार का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहों द्वारा किया गया ?
[अ] कोलखोज [ब] अंगूरोत्पादन
[स] मिश्रित कृषि [द] रोपण कृषि [द]
5. निम्न प्रदेशों में से किसमें विस्तृत वाणिज्य अनाज की कृषि नहीं की जाती है ?
[अ] अमेरिका एवं कनाडा के प्रेयरी क्षेत्र [ब] अर्जेंटाइना के पंपास क्षेत्र
[स] यूरोपीय स्टेपीज क्षेत्र [द] अमेजन बेसिन [द]
6. निम्न में से किस प्रकार की कृषि में खट्टे रसदार फलों की कृषि की जाती है ?
[अ] बाजारीय सब्जी कृषि [ब] भूमध्यसागरीय कृषि
[स] रोपण कृषि [द] सहकारी कृषि [ब]
7. निम्न कृषि के प्रकारों में से कौन-सा प्रकार कर्तन-दहन कृषि का प्रकार है ?
[अ] विस्तृत जीवन निर्वाह कृषि [ब] आदिकालीन निर्वाह कृषि
[स] विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि [द] मिश्रित कृषि [ब]
8. निम्न में से कौन-सी एकल कृषि नहीं है ?
[अ] डेयरी कृषि [ब] मिश्रित कृषि
[स] रोपण कृषि [द] वाणिज्य अनाज कृषि [ब]
9. ब्राजील में कॉफी बागान को ………….. कहा जाता है ।
[अ] फेजेण्डा [ब] रेंच
[स] पंपास [द] भेल्ड [अ]
10. निम्नलिखित में कौन-सा मानव का प्राचीन क्रियाकलाप था
[अ] आखेट एवं संग्रहण [ब] पशुपालन
[स] खनन [द] बुनाई [अ]
11. खट्टे रसदार फलों की कृषि संबंधित है-
[अ] मिश्रित कृषि से [ब] सघन कृषि से
[स] भूमध्यसागरीय कृषि से [द] रोपण कृषि से [स]
12. स्थानान्तरित कृषि को मैक्सिको में क्या कहा जाता है?
[अ] झूमिंग [ब] मिल्पा
[स] लदांग [द] रे [ब]
13. कृषि का सबसे प्राचीन रूप कौन-सा है ?
[अ] ट्रक कृषि [ब] स्थानान्तरित कृषि
[स] निर्वाहन कृषि [द] दुग्ध कृषि [ब]
14. निम्नलिखित में से कौनसी फसल भूमध्यसागरीय कृषि का प्रमुख उदाहरण है ?
[अ] गेहूँ [ब] चावल
[स] अंगूर [द] मक्का [स]
15. रबड़ किस प्रकार की कृषि का उपज है ?
[अ] रोपण कृषि [ब] भूमध्यसागरीय कृषि
[स] प्रारंभिक स्थायी कृषि [द] मिश्रित कृषि [अ]
16. निम्नलिखित में से कौन-सी एक आर्थिक क्रिया ग्रामीण बस्तियों की मुख्य आर्थिक क्रिया है ?
[अ]प्राथमिक [ब]द्वितीयक
[स]तृतीयक [द]चतुर्थक [अ]
17. रूस में सामूहिक कृषि को कहा जाता है-
[अ]सेवखोज [ब]कोलखहोज
[स]सहकारी कृषि [द]मिल्पा कृषि [ब]
18. स्थानान्तरणशील कृषि को लादांग कहा जाता है-
[अ]मैक्सिको में [ब]मलेशिया तथा इण्डोनेशिया में
[स]भारत में [द]ब्राजील में [ब]
19. चावल/धान की खेती सम्बन्धित है :
[अ]रौपण कृषि से [ब]ट्रक कृषि से
[स]भूमध्यसागरीय कृषि से [द]गहन निर्वाहन कृषि से [द]
20. किस कृषि में पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान होता है-
[अ]बागवानी कृषि में [ब]स्थानान्तरित कृषि में
[स]गहन निर्वाहक कृषि में [द] मिश्रित कृषि में [द]
21. कौनसा देश ट्यूलिप पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है ।
[अ] रूस [ब] डेनमार्क
[स] भारत [द] नीदरलैंड [द]
22. अनान्नास किस प्रकार की कृषि की उपज है ?
[अ] दुग्ध कृषि [ब] रोपण कृषि
[स] भूमध्यसागरीय कृषि [द] मिश्रित कृषि [ब]
23. प्राथमिक क्रियाकलाप में संलग्न श्रमिक कहलाते हैं ।
[अ] लाल कॉलर श्रमिक [ब] सफ़ेद कॉलर श्रमिक
[स] हरा कॉलर श्रमिक [द] नीला कॉलर श्रमिक [अ]
24. चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग को क्या कहते हैं ?
[अ]चिकल [ब] जेपोटा
[स] राल [द] गोंद [अ]
25. निम्न में से कौन सुमेलित नहीं है
[अ] वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका [ब] डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया
[स] पम्पाज- रूस [द] प्रयरीज - उत्तरी अमेरिका [स]
26. निम्न में से कौन सुमेलित नहीं है
[अ] भारत –झूमिंग [ब] मेक्सिको -मिल्पा
[स] मलेशिया –लादांग [द] चेना - थाईलैंड [द]
27. निम्न में से भू-मध्यसागरीय कृषि की उपज नहीं है
[अ] अंजीर [ब] अंगूर
[स] जैतून [द] चावल [द]
28. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में-
[अ] प्रति व्यक्ति उत्पादन कम होता है ।
[ब] प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है ।
[स] कृषि-भूमि कम होती है तथा जनसंख्या अधिक होती है ।
[द] खेतों का आकार छोटा होता है । [ब]
29. निम्न में से कौनसी गहन निर्वाहक कृषि की विशेषता है
[अ] खेतों का बड़ा आकर
[ब] उच्च यंत्रीकृत
[स] प्रति एकड़ उच्च उपज किन्तु प्रति व्यक्ति कम उपज
[द] प्रति एकड़ कम उपज किन्तु प्रति व्यक्ति उच्च उपज [स]
30. निम्न में से कौन सा कार्य प्राथमिक व्यवसाय नहीं है ?
(अ) आखेट (स) मछली पकड़ना
(ब) संग्रहण (द) विनिर्माण [द]
31. श्रम का अधिक उपयोग होता है, वह कृषि प्रकार है
(अ) स्थानान्तरित कृषि ( स ) गहन निर्वाहन कृषि
(ब) स्थाई कृषि (द) व्यापारिक कृषि । [ ]
(i) विश्व में सहकारी आंदोलन को सर्वाधिक सफलता.................देश में मिली (डेनमार्क)
(ii) स्थानातरणशील कृषि को ........... एवं दहन कृषि भी कहते है । (कर्तन)
(iii) कुनैन................नामक वृक्ष की छाल से बनाई जाती है ? (सिनकोना)
(iv) सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को.......................कहा जाता है-( कोलखहोज)
(v) ..................................की कृषि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता है । (अंगूर)
(vi) ब्राजील में.......................... बागानों को फेजेंडा कहते हैं ।
(vii) पूर्वी भारत में की जाने वाली स्थानान्तरित कृषि को..............................के नाम से जानते हैं ।
(viii) मानव व्यवसाय …………. प्रकार के होते हैं
(ix) ………………….., कृषि का सबसे प्राचीन रूप है,( स्थानान्तरित कृषि)
1. ब्राजील में कहवा बागानों को क्या कहा जाता है ?
फेजेंडा
2. मध्य अमेरिका में स्थानान्तरित कृषि को क्या कहते हैं ?
मिल्पा
3. सोवियत संघ/ रूस में सामूहिक कृषि को क्या कहते है ?
कोलखहोज
4. किस कृषि का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहो द्वारा किया गया ?
बागाती या रोपण कृषि का
5. रोपण कृषि में बोई जाने वाली फसलें कौन-कौन सी हैं ?
चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अन्नानास आदि ।
6. मिश्रित कृषि की सर्वप्रथम विशेषता क्या है
मिश्रित कृषि में फसल उत्पादन व पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता है
7. संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर पूर्वी भागों में अधिक मुद्रा प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की कृषि की जाती है
मिश्रित कृषि
8. किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?
डेनमार्क
9. वाणिज्यक कृषि से क्या अभिप्राय है ?
ऐसी कृषि जिसमें फसल उत्पादन व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है वाणिज्यक कृषि कहलाती है ।
10. मिश्रित कृषि से क्या अभिप्राय है ?
ऐसी कृषि जिसमें फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है मिश्रित कृषि कहलाती है ।
11. चलवासी पशुचारण में निरंतर कमी के कारण लिखिए ।
1. राजनीतिक सीमाओं का अध्यारोपण
2.कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना
12. विस्तृत वाणिज्यिक अनाज कृषि हेतु आप विश्व के किस प्रदेश का चयन करेंगे ?
शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान (स्टेपीज- यूरेशिया, वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका, डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया, पम्पाज- अर्जनटाइना, प्रेयरीज - उत्तरी अमेरिका घास के मैदान)
13. आर्थिक क्रिया किसे कहते हैं ?
मानव के वे क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है आर्थिक क्रियाएं कहलाती है
14. कृषि से क्या अभिप्राय है ?
भू-सतह पर की जाने वाली फसलोत्पादन, पुष्पोत्पादन, फलोत्पादन व पशुपालन की क्रिया कृषि कहलाती है
15. विश्व के प्रमुख प्राथमिक व्यवसायों के नाम लिखिए ।
1.आखेट 2.संग्रहण 3.खनन 4.पशु चारण 5.कृषि 6.मछली पकड़ना 7.लकड़ी काटना
16. प्रागैतिहासिक काल में आदिम मानव अपनी उदरपूर्ति किससे करता था ?
आखेट व संग्रहण से ।
17. कौनसा देश पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से किस फूल को पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से ट्यूलिप (फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
18. स्थानांतरित कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आदिम जनजाति द्वारा वनों को काटकर जलाने के पश्चात उस भूमि पर की जाने वाली कृषि स्थानांतरित कृषि कहलाती है ।
19. आदिकालीन निर्वाह कृषि (स्थानांतरणशील कृषि) को कर्तन-दहन कृषि क्यों कहते है
स्थानांतरित कृषि में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसी कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है
20. आदिमकालीन मानव अपना जीवन निर्वाह किस प्रकार करता था ?
आदिकालीन मानव अपना जीवन निर्वाह जंगली जानवरों के आखेट व वनोत्पाद संग्रहण द्वारा करता था ।
21. प्राथमिक क्रियाएँ किसे कहते हैं ?
वे व्यवसाय जिनमें मनुष्य प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीधा उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है प्राथमिक व्यवसाय कहलाते हैं ।
22. लाल कॉलर श्रमिक किसे कहते हैं ?
प्राथमिक क्रियाकलाप करने वाले लोगों का कार्य क्षेत्र अपने घर से बाहर होने के कारण उन्हें लाल कॉलर श्रमिक कहते हैं ।
23. धरातलीय खनन ( विवृत खनन) खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका क्यों है ?
क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है ।
24. ट्रक कृषि क्या है ?
महानगरो से दूर जहाँ साग- सब्जियों के उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएं होती है वहाँ साग-सब्जियों की कृषि करके रातभर में ट्रको द्वारा महानगरों तक पहुँचाई जाती है इस कृषि को ट्रक कृषि कहते है ।
25. कारखाना कृषि किसे कहते है ?
पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में गाय-बैल जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पाला जाता है तथा इन पशुओं को कारखानों में निर्मित पशु आहार खिलाया जाता है । इस प्रकार की कृषि को कारखाना कृषि कहते है
26. दुग्ध या डेयरी कृषि से क्या अभिप्राय है ?
दुधारू पशुओं के प्रजनन, पशुचारण तथा नस्ल सुधार का विशेष ध्यान रखते हुए व्यवसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करना दुग्ध कृषि या डेयरी कृषि कहलाता है ।
27. आर्थिक क्रियाएँ कितने प्रकार के होते हैं नाम लिखिए ।
1.प्राथमिक व्यवसाय
2.द्वितीयक व्यवसाय
3.तृतीयक व्यवसाय
4.चतुर्थक व्यवसाय व पंचम व्यवसाय
28. स्थानांतरित कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में किन नामों से जाना जाता है ?
भारत -झूमिंग
मध्य अमेरिका और मेक्सिको -मिल्पा
मलेशिया और इंडोनेशिया-लादांग
वियतनाम- रे
29. बागाती/रोपण कृषि किसे कहते हैं ?
बड़े-बड़े बागानों के रूप में की जाने वाली कृषि जिसमें एक बार वृक्षों के बागान लगा कर उनसे कई वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जाता है बागाती कृषि कहलाती है । जैसे-चाय, रबड़, कॉफी तथा अनान्नास के बागान ।
30. खनन कार्य को प्रभावित करने वाले करक कौन कौन से है ?
1.भौतिक कारक - खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था
2.आर्थिक कारक - खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध् पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय
31. ऋतु प्रवास किसे कहते हैं ?
ऋतु के अनुसार पशुओं के साथ पशुपालकों के स्थान परिवर्तन को ऋतु प्रवास कहते हैं जैसे भारत में हिमालय क्षेत्र के गुज्जर, बकरवाल, गद्दी व भूटिया लोग नवीन चरागाहों की खोज में ग्रीष्म ऋतु में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत ऋतु में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं । इस प्रकार के प्रवास को ऋतुप्रवास कहते है ।
32. शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों के नाम लिखिए ।
स्टेपीज- रूस वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका
डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया पम्पाज- अर्जनटाइना
प्रयरीज - उत्तरी अमेरिका
33. भोजन संग्रह विश्व के किन क्षेत्रों में किया जाता है ?
भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है
1.उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं
2.निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, कालाहारी मरुस्थल(अफ्रीका), आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है
34. भूमध्यसागरीय कृषि किसे कहते है ?
भूमध्यसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि को भूमध्यसागरीय कृषि कहा जाता है । यह एक अति विशिष्ट प्रकार की व्यावसायिक कृषि है जिसमें खट्टे रसदार फलों का उत्पादन प्रमुख रूप से किया जाता है । भूमध्यसागरीय कृषि में अंगूर, अंजीर तथा जैतून आदि फलों का उत्पादन किया जाता हैं । अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है ।
35. स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है । विवेचना कीजिए ।
स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है क्योंकि इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है 3 से 5 वर्ष बाद जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है तो उस भूमि को छोड़ना पड़ता है और दूसरे क्षेत्रों की भूमि की वनस्पतियों को काटकर व जलाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है अत: इस प्रकार के कृषि उत्पादन में वनस्पतियों को हानि पहुंचती है । इससे मृदा अपरदन होता है, जैव विविधता में कमी आती है, और वन क्षेत्र घटते है जिससे पर्यावरण को क्षति पहुंचती है ।
36. विस्तृत वाणिज्यक अनाज कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.खेतों का आकार बड़ा होता है ।
2.इस कृषि में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं ।
3.मानवीय श्रम का न्यूनतम उपयोग होता है ।
4.इस कृषि प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
5.इस कृषि की मुख्य फसल गेंहू है परन्तु मक्का, जौ, राई व जई की फसले भी बोयी जाती है ।
37. गहन निर्वाह कृषि एवं विस्तृत वाणिज्य कृषि में तीन अंतर बताये?
1.गहन निर्वाह कृषि में यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है । जबकि विस्तृत वाणिज्य में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं
2.गहन निर्वाह कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है ।जबकि विस्तृत वाणिज्य कृषि में प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
3.गहन निर्वाह कृषि में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है जबकि विस्तृत वाणिज्य कृषि में कम जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार बड़ा होता है
38. मिश्रित कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है ।
2.फसल उत्पादन व पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता है
3.यह कृषि कुशल व योग्य कृषकों द्वारा की जाती है
4.इस कृषि में विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय होती है
5.चारे की फसल मिश्रित कृषि का प्रमुख घटक है
39. सहकारी कृषि व सामूहिक कृषि से क्या अभिप्राय है ?
सहकारी कृषि - जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है उसे सहकारी कृषि कहते हैं । इस कृषि पद्धति में व्यक्तिगत कृषि फार्मों को अक्षुण्ण रखते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है । सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार की सहायता करती है ।
सामूहिक कृषि - जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं । सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें सभी कृषक अपने संसाधन जैसे-कृषि भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं । प्रत्येक कृषक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में रखता है ।
40. आदिकालीन निर्वाह कृषि किस रूप में की जाती है? इसकी प्रमुख विशेषताएं बताइए
आदिकालीन निर्वाह कृषि स्थानांतरित कृषि के रूप में की जाती है जिसमे वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है ।
आदिकालीन निर्वाह कृषि /स्थानांतरित कृषि की प्रमुख विशेषताएं
1.यह कृषि का सबसे प्राचीन रूप है जो पुराने औजारों द्वारा की जाती हैं ।
2.खेतों का आकार छोटा होता है तथा यह श्रम प्रधान कृषि है ।
3.इस कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती है ।
4.कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है ।
5.स्थानांतरणशील कृषि को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है ।
41. भोजन संग्रह व आखेट व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए
1.आखेट एवं भोजन संग्रह आदिमकालीन मानवीय समाज द्वारा कठोर जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों में किया जाता है ।
2.आखेट व भोजन संग्रह व्यवसाय में बहुत कम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है लेकिन इसमे किसी आर्थिक क्रिया की अपेक्षा अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है ।
3.आखेट व भोजन संग्रह के लिए बहुत कम पूँजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है ।
4.इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है ।
5.आदिकाल से ही मनुष्य अपने भोजन, वस्त्र एवं आवास की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वस्तुओं का संग्रह और पशुओं का शिकार करते है ।
42. बागाती /रोपण कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.इस कृषि में भारी पूंजी निवेश, उच्च प्रबंधन तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।
2.यह एक फसली व्यापारिक कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही ध्यान दिया जाता है ।
3.इसमें कृषि क्षेत्र (बागान) का आकार बहुत विस्तृत होता है ।
4.रोपण कृषि में श्रमिकों की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
5.बागानों को कारखानों तथा बाजार से जोड़ने के लिये विकसित परिवहन का इस कृषि में प्रयोग किया जाता है ।
43. चलवासी पशुचारण व व्यापारिक/वाणिज्यिक पशुचारण में अंतर लिखिए ।
1.चलवासी पशुचारण जीवन निर्वाह हेतु किया जाता है जबकि वाणिज्य पशुपालन व्यापार हेतु किया जाता है
2.चलवासी पशुचारण में पशुपालक अपने पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं । जबकि वाणिज्यिक पशुपालन में पशुपालक अपने पशुओं को एक निश्चित में बाड़े में रखते हैं ।
3.चलवासी पशु चारण में पशु केवल प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर रहते हैं जबकि वाणिज्यिक पशुपालन में विशाल क्षेत्रों में चारे की फसल व घास उगाई जाती है ।
4.चलवासी पशुचारण में भिन्न भिन्न प्रकार के पशु पाले जाते हैं जबकि वाणिज्यक पशुपालन में एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं ।
5.चलवासी पशुपालन परंपरागत तरीके से किया जाता है जबकि वाणिज्यिक पशुपालन वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है ।
6. चलवासी पशुचारण पशुपालन की एक प्राचीन पद्धति है जबकि वाणिज्यिक पशुचारण पशुपालन की आधुनिक पद्धति है ।
12. विस्तृत वाणिज्यिक अनाज कृषि हेतु आप विश्व के किस प्रदेश का चयन करेंगे ?
शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान (स्टेपीज- यूरेशिया, वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका, डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया, पम्पाज- अर्जनटाइना, प्रेयरीज - उत्तरी अमेरिका घास के मैदान)
13. आर्थिक क्रिया किसे कहते हैं ?
मानव के वे क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है आर्थिक क्रियाएं कहलाती है
14. कृषि से क्या अभिप्राय है ?
भू-सतह पर की जाने वाली फसलोत्पादन, पुष्पोत्पादन, फलोत्पादन व पशुपालन की क्रिया कृषि कहलाती है
15. विश्व के प्रमुख प्राथमिक व्यवसायों के नाम लिखिए ।
1.आखेट 2.संग्रहण 3.खनन 4.पशु चारण 5.कृषि 6.मछली पकड़ना 7.लकड़ी काटना
16. प्रागैतिहासिक काल में आदिम मानव अपनी उदरपूर्ति किससे करता था ?
आखेट व संग्रहण से ।
17. कौनसा देश पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से किस फूल को पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है । यहाँ से ट्यूलिप (फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है ।
18. स्थानांतरित कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आदिम जनजाति द्वारा वनों को काटकर जलाने के पश्चात उस भूमि पर की जाने वाली कृषि स्थानांतरित कृषि कहलाती है ।
19. आदिकालीन निर्वाह कृषि (स्थानांतरणशील कृषि) को कर्तन-दहन कृषि क्यों कहते है
स्थानांतरित कृषि में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इसी कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है
20. आदिमकालीन मानव अपना जीवन निर्वाह किस प्रकार करता था ?
आदिकालीन मानव अपना जीवन निर्वाह जंगली जानवरों के आखेट व वनोत्पाद संग्रहण द्वारा करता था ।
21. प्राथमिक क्रियाएँ किसे कहते हैं ?
वे व्यवसाय जिनमें मनुष्य प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीधा उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है प्राथमिक व्यवसाय कहलाते हैं ।
22. लाल कॉलर श्रमिक किसे कहते हैं ?
प्राथमिक क्रियाकलाप करने वाले लोगों का कार्य क्षेत्र अपने घर से बाहर होने के कारण उन्हें लाल कॉलर श्रमिक कहते हैं ।
23. धरातलीय खनन ( विवृत खनन) खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका क्यों है ?
क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है ।
24. ट्रक कृषि क्या है ?
महानगरो से दूर जहाँ साग- सब्जियों के उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएं होती है वहाँ साग-सब्जियों की कृषि करके रातभर में ट्रको द्वारा महानगरों तक पहुँचाई जाती है इस कृषि को ट्रक कृषि कहते है ।
25. कारखाना कृषि किसे कहते है ?
पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में गाय-बैल जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पाला जाता है तथा इन पशुओं को कारखानों में निर्मित पशु आहार खिलाया जाता है । इस प्रकार की कृषि को कारखाना कृषि कहते है
26. दुग्ध या डेयरी कृषि से क्या अभिप्राय है ?
दुधारू पशुओं के प्रजनन, पशुचारण तथा नस्ल सुधार का विशेष ध्यान रखते हुए व्यवसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करना दुग्ध कृषि या डेयरी कृषि कहलाता है ।
27. आर्थिक क्रियाएँ कितने प्रकार के होते हैं नाम लिखिए ।
1.प्राथमिक व्यवसाय
2.द्वितीयक व्यवसाय
3.तृतीयक व्यवसाय
4.चतुर्थक व्यवसाय व पंचम व्यवसाय
28. स्थानांतरित कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में किन नामों से जाना जाता है ?
भारत -झूमिंग
मध्य अमेरिका और मेक्सिको -मिल्पा
मलेशिया और इंडोनेशिया-लादांग
वियतनाम- रे
29. बागाती/रोपण कृषि किसे कहते हैं ?
बड़े-बड़े बागानों के रूप में की जाने वाली कृषि जिसमें एक बार वृक्षों के बागान लगा कर उनसे कई वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जाता है बागाती कृषि कहलाती है । जैसे-चाय, रबड़, कॉफी तथा अनान्नास के बागान ।
30. खनन कार्य को प्रभावित करने वाले करक कौन कौन से है ?
1.भौतिक कारक - खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था
2.आर्थिक कारक - खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध् पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय
31. ऋतु प्रवास किसे कहते हैं ?
ऋतु के अनुसार पशुओं के साथ पशुपालकों के स्थान परिवर्तन को ऋतु प्रवास कहते हैं जैसे भारत में हिमालय क्षेत्र के गुज्जर, बकरवाल, गद्दी व भूटिया लोग नवीन चरागाहों की खोज में ग्रीष्म ऋतु में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत ऋतु में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं । इस प्रकार के प्रवास को ऋतुप्रवास कहते है ।
32. शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों के नाम लिखिए ।
स्टेपीज- रूस वेल्डस् - दक्षिणी अफ्रीका
डाउन्स -ऑस्ट्रेलिया पम्पाज- अर्जनटाइना
प्रयरीज - उत्तरी अमेरिका
33. भोजन संग्रह विश्व के किन क्षेत्रों में किया जाता है ?
भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है
1.उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं
2.निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, कालाहारी मरुस्थल(अफ्रीका), आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है
34. भूमध्यसागरीय कृषि किसे कहते है ?
भूमध्यसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि को भूमध्यसागरीय कृषि कहा जाता है । यह एक अति विशिष्ट प्रकार की व्यावसायिक कृषि है जिसमें खट्टे रसदार फलों का उत्पादन प्रमुख रूप से किया जाता है । भूमध्यसागरीय कृषि में अंगूर, अंजीर तथा जैतून आदि फलों का उत्पादन किया जाता हैं । अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है ।
35. स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है । विवेचना कीजिए ।
स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है क्योंकि इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है 3 से 5 वर्ष बाद जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है तो उस भूमि को छोड़ना पड़ता है और दूसरे क्षेत्रों की भूमि की वनस्पतियों को काटकर व जलाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है अत: इस प्रकार के कृषि उत्पादन में वनस्पतियों को हानि पहुंचती है । इससे मृदा अपरदन होता है, जैव विविधता में कमी आती है, और वन क्षेत्र घटते है जिससे पर्यावरण को क्षति पहुंचती है ।
36. विस्तृत वाणिज्यक अनाज कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.खेतों का आकार बड़ा होता है ।
2.इस कृषि में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं ।
3.मानवीय श्रम का न्यूनतम उपयोग होता है ।
4.इस कृषि प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
5.इस कृषि की मुख्य फसल गेंहू है परन्तु मक्का, जौ, राई व जई की फसले भी बोयी जाती है ।
37. गहन निर्वाह कृषि एवं विस्तृत वाणिज्य कृषि में तीन अंतर बताये?
1.गहन निर्वाह कृषि में यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है । जबकि विस्तृत वाणिज्य में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा किए जाते हैं
2.गहन निर्वाह कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है ।जबकि विस्तृत वाणिज्य कृषि में प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है ।
3.गहन निर्वाह कृषि में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है जबकि विस्तृत वाणिज्य कृषि में कम जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार बड़ा होता है
38. मिश्रित कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है ।
2.फसल उत्पादन व पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता है
3.यह कृषि कुशल व योग्य कृषकों द्वारा की जाती है
4.इस कृषि में विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय होती है
5.चारे की फसल मिश्रित कृषि का प्रमुख घटक है
39. सहकारी कृषि व सामूहिक कृषि से क्या अभिप्राय है ?
सहकारी कृषि - जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है उसे सहकारी कृषि कहते हैं । इस कृषि पद्धति में व्यक्तिगत कृषि फार्मों को अक्षुण्ण रखते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है । सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार की सहायता करती है ।
सामूहिक कृषि - जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं । सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें सभी कृषक अपने संसाधन जैसे-कृषि भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं । प्रत्येक कृषक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में रखता है ।
40. आदिकालीन निर्वाह कृषि किस रूप में की जाती है? इसकी प्रमुख विशेषताएं बताइए
आदिकालीन निर्वाह कृषि स्थानांतरित कृषि के रूप में की जाती है जिसमे वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है । इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि भूमि तैयार की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है ।
आदिकालीन निर्वाह कृषि /स्थानांतरित कृषि की प्रमुख विशेषताएं
1.यह कृषि का सबसे प्राचीन रूप है जो पुराने औजारों द्वारा की जाती हैं ।
2.खेतों का आकार छोटा होता है तथा यह श्रम प्रधान कृषि है ।
3.इस कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती है ।
4.कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है ।
5.स्थानांतरणशील कृषि को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है ।
41. भोजन संग्रह व आखेट व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए
1.आखेट एवं भोजन संग्रह आदिमकालीन मानवीय समाज द्वारा कठोर जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों में किया जाता है ।
2.आखेट व भोजन संग्रह व्यवसाय में बहुत कम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है लेकिन इसमे किसी आर्थिक क्रिया की अपेक्षा अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है ।
3.आखेट व भोजन संग्रह के लिए बहुत कम पूँजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है ।
4.इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है ।
5.आदिकाल से ही मनुष्य अपने भोजन, वस्त्र एवं आवास की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वस्तुओं का संग्रह और पशुओं का शिकार करते है ।
42. बागाती /रोपण कृषि की विशेषताएं लिखिए
1.इस कृषि में भारी पूंजी निवेश, उच्च प्रबंधन तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।
2.यह एक फसली व्यापारिक कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही ध्यान दिया जाता है ।
3.इसमें कृषि क्षेत्र (बागान) का आकार बहुत विस्तृत होता है ।
4.रोपण कृषि में श्रमिकों की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
5.बागानों को कारखानों तथा बाजार से जोड़ने के लिये विकसित परिवहन का इस कृषि में प्रयोग किया जाता है ।
43. चलवासी पशुचारण व व्यापारिक/वाणिज्यिक पशुचारण में अंतर लिखिए ।
1.चलवासी पशुचारण जीवन निर्वाह हेतु किया जाता है जबकि वाणिज्य पशुपालन व्यापार हेतु किया जाता है
2.चलवासी पशुचारण में पशुपालक अपने पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं । जबकि वाणिज्यिक पशुपालन में पशुपालक अपने पशुओं को एक निश्चित में बाड़े में रखते हैं ।
3.चलवासी पशु चारण में पशु केवल प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर रहते हैं जबकि वाणिज्यिक पशुपालन में विशाल क्षेत्रों में चारे की फसल व घास उगाई जाती है ।
4.चलवासी पशुचारण में भिन्न भिन्न प्रकार के पशु पाले जाते हैं जबकि वाणिज्यक पशुपालन में एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं ।
5.चलवासी पशुपालन परंपरागत तरीके से किया जाता है जबकि वाणिज्यिक पशुपालन वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है ।
6. चलवासी पशुचारण पशुपालन की एक प्राचीन पद्धति है जबकि वाणिज्यिक पशुचारण पशुपालन की आधुनिक पद्धति है ।
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