ग्राही :-
हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य तंत्रिका तंत्र तथा हॉर्मोन का है। हमारे पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पता तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्टीकृत सिरों द्वारा लगाया जाता है। जिन्हें ग्राही कहते है ये ग्राही प्रायः हमारी ज्ञानेंद्रियों कान, नाक, आँख, जिह्वा, त्वचा आदि में स्थित होते हैं जसे रस संवेदी ग्राही (जीभ) स्वाद का पता लगाते हैं, घ्राणग्राही (नाक) गंध का पता लगाते हैं।, तापग्राही (त्वचा) गर्म एवं ठंडा, स्पर्श का पता लगाते हैं
तंत्रिका तंत्र :-
तंत्रिका तंत्र तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है। तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन)
तंत्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं
1. द्रुमिका :- कोशिका काय से छोटे-छोटे तंतु निकले रहते हैं जिन्हें द्रुमिका कहते हैं द्रुमिका द्वारा सूचना प्राप्त (उपार्जित) की जाती हैं।
2. कोशिका काय (सायटोन)- यह तंत्रिका कोशिका का मुख्य भाग है इसमें एक केंद्रक व अन्य कोशिकांग पाए जाते हैं कोशिका काय में द्रुमिका द्वारा प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।
3.तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन):- यह कोशिका काय से निकलने वाली एक लम्बी संरचना है यह सूचना के विद्युत आवेग को कोशिका काय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुचाता है। एक्सॉन के अंत में विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करता है। ये रसायन सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार) को पार कर अगली तंत्रिका कोशिका की द्रुमिका में विद्युत आवेग उत्पन्न करते हैं
अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार):- एक तंत्रिका कोशिका के तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार) कहलाता है।
प्रतिवर्ती क्रिया :- किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक स्वतः होने वाली अनैच्छिक क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रिया कहते है।
उदाहरण: (i) किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना।
(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना
(iii) सुई चुभाने पर हाथ का हट जाना
प्रतिवर्ती चाप:- संवेदी अंगों (ग्राही) से प्राप्त उद्दीपनों को संवेदी तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा मेरुरज्जु तक आने या मेरुरज्जु से प्रेरणाओं को प्रेरक तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा अनुक्रिया करने वाले अंगों की मांसपेशियों तक पहॅुचाने वाले मार्ग को प्रतिवर्ती चाप कहते है अधिकतर जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप इसलिए विकसित हुआ है क्योंकि इनके मस्तिष्क के सोचने का प्रक्रम बहुत धीमा है।मानव मस्तिष्क
मस्तिष्क शरीर का मुख्य समन्वय केंद्र है जो खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स(खोपड़ी) में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है। मानव मस्तिष्क तीन भागों में विभाजित होता है
1.अग्र मस्तिष्क:- यह मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग है इसमें विभिन्न ग्राही से संवेदी आवेग (सूचनाएँ) प्राप्त करने के लिए क्षेत्र होते हैं। जो सुनने, सूँघने, देखने आदि के लिए विशिष्टीकृत है अग्र मस्तिष्क का एक भाग हाइपोथेलेमस जो भूख,प्यास, निंद्रा, थकान आदि का ज्ञान कराता है
2. मध्यमस्तिष्क- मस्तिष्क का यह भाग अग्र मस्तिष्क तथा पश्च मस्तिष्क के मध्य स्थित होता है यह दृष्टि व श्रवण के लिए उत्तरदायी है
3.पश्चमस्तिष्क -इसके दो भाग होते है
अनुमस्तिष्क- अनुमस्तिष्क ऐच्छिक क्रियाओं जैसे एक सीधी रेखा में चलना, साइकिल चलाना, एक पेंसिल उठाना आदि को नियंत्रित करता है शरीर की संस्थिति तथा संतुलन बनाना आदि कार्य भी अनुमस्तिष्क द्वारा किया जाता है
मेडुलाओब्लोगेटा- यह मस्तिष्क का अंतिम भाग है जो मेरुरज्जु से जुड़ा रहता है सभी अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे हृदय की धड़कन, रक्तदाब, लार आना तथा वमन पश्चमस्तिष्क में स्थित मेडुलाओब्लोगेटा द्वारा नियंत्रित होती हैं।
तंत्रिका तंत्र की अनुक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया, ऐच्छिक क्रिया या अनैच्छिक क्रिया में वर्गीकृत किया जा सकता है।
ऐच्छिक क्रियाएं :- वे क्रियाएं जिन पर हमारा नियंत्रण होता है ऐच्छिक क्रियाएं कहलाती है ऐच्छिक क्रियाएं अग्रमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।उदाहरण: बोलना, लिखना, लिखना
अनैच्छिक क्रियाएं : वे क्रियाएं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है अनैच्छिक क्रियाएं कहलाती है अनैच्छिक क्रियाएं पश्चमस्तिष्क (मेडुलाओब्लोगेटा) द्वारा नियंत्रित की जाती है। जैसे हृदय की धड़कन, रक्तदाब, लार आना तथा वमन
1. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र- मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करते हैं।
2. परिधीय तंत्रिका तंत्र -मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तंत्रिकाओं तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिकाओं से बना होता है।
मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा
मस्तिष्क: मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है।
मेरुरज्जु: मेरुरज्जु की सुरक्षा कशेरुकदंड या रीढ़ की हड्डी करती है।
पादपों में समन्वय
पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं एक वृद्धि पर आश्रित है और दूसरी वृद्धि से मुक्त है।
1. वृद्धि से मुक्त गति
छुई-मुई के पौधे की पतियों का सिकुड़ना वृद्धि से संबंधित नहीं है जब हम छुई-मुई के पादप की पत्तियाँ छूते हैं तो वे मुड़ना प्रारंभ कर देती हैं तथा नीचे झुक जाती हैं। छुई-मुई की पत्तियाँ स्पर्श की अनुक्रिया से बहुत तेजी से गति करती हैं। कुछ कोशिकाएं जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैं, परिणामस्वरूप फूलने या सिकुड़ने में उनका आकार बदल जाता है। जिससे यह गति होती है
2. वृद्धि के कारण गति
मटर के पौधे की तरह कुछ पादप दूसरे पादप या बाड़ पर प्रतान की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं। ये प्रतान स्पर्श के प्रति संवेदनशील होते हैं। जब ये किसी आधार के संपर्क में आते हैं प्रतान का वह भाग जो वस्तु से दूर होता है, वस्तु के पास वाले भाग की तुलना में तेजी से वृद्धि करता है जिससे प्रतान वस्तु के चारों तरफ लिपट जाती है। यह गति दिशिक होती है पादप की वृद्धि संबंधित गतियाँ भी मंद होती हैं।
प्रकाशानुवर्तन: पादप प्ररोह का प्रकाश की ओर गति करना प्रकाशानुवर्तन कहलाता है। पादप प्ररोह प्रकाश के प्रति धनात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाता है तथा जड़ें प्रकाश के ये ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाती है
हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य तंत्रिका तंत्र तथा हॉर्मोन का है। हमारे पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पता तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्टीकृत सिरों द्वारा लगाया जाता है। जिन्हें ग्राही कहते है ये ग्राही प्रायः हमारी ज्ञानेंद्रियों कान, नाक, आँख, जिह्वा, त्वचा आदि में स्थित होते हैं जसे रस संवेदी ग्राही (जीभ) स्वाद का पता लगाते हैं, घ्राणग्राही (नाक) गंध का पता लगाते हैं।, तापग्राही (त्वचा) गर्म एवं ठंडा, स्पर्श का पता लगाते हैं
तंत्रिका तंत्र :-
तंत्रिका तंत्र तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है। तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन)
तंत्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं
1. द्रुमिका :- कोशिका काय से छोटे-छोटे तंतु निकले रहते हैं जिन्हें द्रुमिका कहते हैं द्रुमिका द्वारा सूचना प्राप्त (उपार्जित) की जाती हैं।
2. कोशिका काय (सायटोन)- यह तंत्रिका कोशिका का मुख्य भाग है इसमें एक केंद्रक व अन्य कोशिकांग पाए जाते हैं कोशिका काय में द्रुमिका द्वारा प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।
3.तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन):- यह कोशिका काय से निकलने वाली एक लम्बी संरचना है यह सूचना के विद्युत आवेग को कोशिका काय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुचाता है। एक्सॉन के अंत में विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करता है। ये रसायन सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार) को पार कर अगली तंत्रिका कोशिका की द्रुमिका में विद्युत आवेग उत्पन्न करते हैं
अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार):- एक तंत्रिका कोशिका के तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार) कहलाता है।
प्रतिवर्ती क्रिया :- किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक स्वतः होने वाली अनैच्छिक क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रिया कहते है।
उदाहरण: (i) किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना।
(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना
(iii) सुई चुभाने पर हाथ का हट जाना
प्रतिवर्ती चाप:- संवेदी अंगों (ग्राही) से प्राप्त उद्दीपनों को संवेदी तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा मेरुरज्जु तक आने या मेरुरज्जु से प्रेरणाओं को प्रेरक तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा अनुक्रिया करने वाले अंगों की मांसपेशियों तक पहॅुचाने वाले मार्ग को प्रतिवर्ती चाप कहते है अधिकतर जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप इसलिए विकसित हुआ है क्योंकि इनके मस्तिष्क के सोचने का प्रक्रम बहुत धीमा है।मानव मस्तिष्क
मस्तिष्क शरीर का मुख्य समन्वय केंद्र है जो खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स(खोपड़ी) में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है। मानव मस्तिष्क तीन भागों में विभाजित होता है
1.अग्र मस्तिष्क:- यह मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग है इसमें विभिन्न ग्राही से संवेदी आवेग (सूचनाएँ) प्राप्त करने के लिए क्षेत्र होते हैं। जो सुनने, सूँघने, देखने आदि के लिए विशिष्टीकृत है अग्र मस्तिष्क का एक भाग हाइपोथेलेमस जो भूख,प्यास, निंद्रा, थकान आदि का ज्ञान कराता है
2. मध्यमस्तिष्क- मस्तिष्क का यह भाग अग्र मस्तिष्क तथा पश्च मस्तिष्क के मध्य स्थित होता है यह दृष्टि व श्रवण के लिए उत्तरदायी है
3.पश्चमस्तिष्क -इसके दो भाग होते है
अनुमस्तिष्क- अनुमस्तिष्क ऐच्छिक क्रियाओं जैसे एक सीधी रेखा में चलना, साइकिल चलाना, एक पेंसिल उठाना आदि को नियंत्रित करता है शरीर की संस्थिति तथा संतुलन बनाना आदि कार्य भी अनुमस्तिष्क द्वारा किया जाता है
मेडुलाओब्लोगेटा- यह मस्तिष्क का अंतिम भाग है जो मेरुरज्जु से जुड़ा रहता है सभी अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे हृदय की धड़कन, रक्तदाब, लार आना तथा वमन पश्चमस्तिष्क में स्थित मेडुलाओब्लोगेटा द्वारा नियंत्रित होती हैं।
तंत्रिका तंत्र की अनुक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया, ऐच्छिक क्रिया या अनैच्छिक क्रिया में वर्गीकृत किया जा सकता है।
ऐच्छिक क्रियाएं :- वे क्रियाएं जिन पर हमारा नियंत्रण होता है ऐच्छिक क्रियाएं कहलाती है ऐच्छिक क्रियाएं अग्रमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।उदाहरण: बोलना, लिखना, लिखना
अनैच्छिक क्रियाएं : वे क्रियाएं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है अनैच्छिक क्रियाएं कहलाती है अनैच्छिक क्रियाएं पश्चमस्तिष्क (मेडुलाओब्लोगेटा) द्वारा नियंत्रित की जाती है। जैसे हृदय की धड़कन, रक्तदाब, लार आना तथा वमन
1. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र- मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करते हैं।
2. परिधीय तंत्रिका तंत्र -मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तंत्रिकाओं तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिकाओं से बना होता है।
मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा
मस्तिष्क: मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है।
मेरुरज्जु: मेरुरज्जु की सुरक्षा कशेरुकदंड या रीढ़ की हड्डी करती है।
पादपों में समन्वय
पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं एक वृद्धि पर आश्रित है और दूसरी वृद्धि से मुक्त है।
1. वृद्धि से मुक्त गति
छुई-मुई के पौधे की पतियों का सिकुड़ना वृद्धि से संबंधित नहीं है जब हम छुई-मुई के पादप की पत्तियाँ छूते हैं तो वे मुड़ना प्रारंभ कर देती हैं तथा नीचे झुक जाती हैं। छुई-मुई की पत्तियाँ स्पर्श की अनुक्रिया से बहुत तेजी से गति करती हैं। कुछ कोशिकाएं जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैं, परिणामस्वरूप फूलने या सिकुड़ने में उनका आकार बदल जाता है। जिससे यह गति होती है
2. वृद्धि के कारण गति
मटर के पौधे की तरह कुछ पादप दूसरे पादप या बाड़ पर प्रतान की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं। ये प्रतान स्पर्श के प्रति संवेदनशील होते हैं। जब ये किसी आधार के संपर्क में आते हैं प्रतान का वह भाग जो वस्तु से दूर होता है, वस्तु के पास वाले भाग की तुलना में तेजी से वृद्धि करता है जिससे प्रतान वस्तु के चारों तरफ लिपट जाती है। यह गति दिशिक होती है पादप की वृद्धि संबंधित गतियाँ भी मंद होती हैं।
प्रकाशानुवर्तन: पादप प्ररोह का प्रकाश की ओर गति करना प्रकाशानुवर्तन कहलाता है। पादप प्ररोह प्रकाश के प्रति धनात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाता है तथा जड़ें प्रकाश के ये ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाती है
रासायनानुवर्तन: पराग नली की अंडाशय की तरफ गति।
जलानुवर्तन: पानी की तरफ जड़ों की गति।
विद्युत आवेग की सीमाएँ
विद्युत आवेग केवल उन्हीं कोशिकाओं तक पहुँच सकता है जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं। जंतु शरीर की प्रत्येक कोशिका तक नहीं।
एक बार कोशिका विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेग उत्पन्न करने से पहले, अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है। अतः कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती।
पादप हॉर्मोन
पादप हॉर्मोन वृद्धि, विकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वय में सहायता करते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया क्षेत्र से दूर होता है और साधारण विसरण द्वारा वे क्रिया क्षेत्र तक पहुँच जाते हैं।
1. ऑक्सिन:- यह प्ररोह के अग्रभाग में संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है। जब पादप पर एक ओर से प्रकाश आ रहा है तब ऑक्सिन विसरित होकर प्ररोह के छाया वाले भाग में आ जाता है। प्ररोह की प्रकाश से दूर वाली साइड में ऑक्सिन का सांद्रण कोशिकाओं को लंबाई में वृद्धि के लिए उद्दीपित करता है। अतः पादप प्रकाश की ओर मुड़ता हुआ दिखाई देता है।
2. जिब्बेरेलिन:- यह तने की वृद्धि में सहायक होता हैं।
3. साइटोकाइनिन:- यह कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है यह फल व बीज में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
4. एब्सिसिक अम्ल :- यह वृद्धि संदमन हॉर्मोन है। पत्तियों का मुरझाना इस हार्मोन का प्रभाव है।
जंतु हॉर्मोन
हॉर्मोन की क्रिया को पुनर्भरण क्रियाविधि नियंत्रित करती है।
1. एड्रीनलीन हॉर्मोन:- एड्रीनलीन हॉर्मोन अधिवृक्क ग्रंथि द्वारा स्रावित किया जाता है एड्रीनलीन सीधा रुधिर में स्रावित हो जाता है और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिया जाता है। इस हॉर्मोन से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है जिससे हमारी पेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके। पाचन तंत्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम हो जाती है क्योंकि इन अंगों की छोटी धमनियों के आसपास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। यह रुधिर की दिशा हमारी कंकाल पेशियों की ओर कर देता है। डायफ्राम तथा पसलियों की पेशी के संकुचन से श्वसन दर भी बढ़ जाती है। ये सभी अनुक्रियाएँ मिलकर जंतु शरीर को संकटकालीन स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं।
2. थायरॉक्सिन हॉर्मोन:- थायरॉक्सिन हॉर्मोन अवटुग्रंथि (थॉयरॉइड ग्रंथि) द्वारा स्रावित किया जाता है थायरॉक्सिन हॉर्मोन निर्माण के लिए आयोडीन आवश्यक है। थॉयरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय का, हमारे शरीर में नियंत्रण करता है ताकि वृद्धि के लिए उत्कृष्ट संतुलन उपलब्ध कराया जा सके। यदि हमारे आहार में आयोडीन की कमी है तो गॉयटर से ग्रसित हो सकते हैं। इस बीमारी का एक लक्षण फूली हुई गर्दन है।
3. वृद्धि हॉर्मोन - वृद्धि हॉर्मोन पीयूष ग्रंथि (पीट्यूटरी ग्रंथि) द्वारा स्रावित किया जाता है वृद्धि हॉर्मोन शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। यदि बाल्यकाल में इस हॉर्मोन की कमी हो जाती है तो यह बौनापन का कारण बनता है।
4. टेस्टोस्टेरोन- यह नर हॉर्मोन है जो वृषण द्वारा स्रावित किया जाता है
5. एस्ट्रोजन- यह मादा हॉर्मोन है जो अण्डाशय द्वारा स्रावित किया जाता है जो मादा लैंगिक अंगों का विकास व मासिक चक्र का नियमन करता है।
6. इंसुलिन - इंसुलिन हॉर्मोन अग्न्याशय द्वारा स्रावित किया जाता है जो रुधिर में शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में सहायता करता है। यदि यह उचित मात्रा में स्रावित नहीं होता है तो रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है जिससे मधुमेह रोग हो जाता है
जलानुवर्तन: पानी की तरफ जड़ों की गति।
विद्युत आवेग की सीमाएँ
विद्युत आवेग केवल उन्हीं कोशिकाओं तक पहुँच सकता है जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं। जंतु शरीर की प्रत्येक कोशिका तक नहीं।
एक बार कोशिका विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेग उत्पन्न करने से पहले, अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है। अतः कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती।
पादप हॉर्मोन
पादप हॉर्मोन वृद्धि, विकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वय में सहायता करते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया क्षेत्र से दूर होता है और साधारण विसरण द्वारा वे क्रिया क्षेत्र तक पहुँच जाते हैं।
1. ऑक्सिन:- यह प्ररोह के अग्रभाग में संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है। जब पादप पर एक ओर से प्रकाश आ रहा है तब ऑक्सिन विसरित होकर प्ररोह के छाया वाले भाग में आ जाता है। प्ररोह की प्रकाश से दूर वाली साइड में ऑक्सिन का सांद्रण कोशिकाओं को लंबाई में वृद्धि के लिए उद्दीपित करता है। अतः पादप प्रकाश की ओर मुड़ता हुआ दिखाई देता है।
2. जिब्बेरेलिन:- यह तने की वृद्धि में सहायक होता हैं।
3. साइटोकाइनिन:- यह कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है यह फल व बीज में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
4. एब्सिसिक अम्ल :- यह वृद्धि संदमन हॉर्मोन है। पत्तियों का मुरझाना इस हार्मोन का प्रभाव है।
जंतु हॉर्मोन
हॉर्मोन की क्रिया को पुनर्भरण क्रियाविधि नियंत्रित करती है।
1. एड्रीनलीन हॉर्मोन:- एड्रीनलीन हॉर्मोन अधिवृक्क ग्रंथि द्वारा स्रावित किया जाता है एड्रीनलीन सीधा रुधिर में स्रावित हो जाता है और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिया जाता है। इस हॉर्मोन से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है जिससे हमारी पेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके। पाचन तंत्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम हो जाती है क्योंकि इन अंगों की छोटी धमनियों के आसपास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। यह रुधिर की दिशा हमारी कंकाल पेशियों की ओर कर देता है। डायफ्राम तथा पसलियों की पेशी के संकुचन से श्वसन दर भी बढ़ जाती है। ये सभी अनुक्रियाएँ मिलकर जंतु शरीर को संकटकालीन स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं।
2. थायरॉक्सिन हॉर्मोन:- थायरॉक्सिन हॉर्मोन अवटुग्रंथि (थॉयरॉइड ग्रंथि) द्वारा स्रावित किया जाता है थायरॉक्सिन हॉर्मोन निर्माण के लिए आयोडीन आवश्यक है। थॉयरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय का, हमारे शरीर में नियंत्रण करता है ताकि वृद्धि के लिए उत्कृष्ट संतुलन उपलब्ध कराया जा सके। यदि हमारे आहार में आयोडीन की कमी है तो गॉयटर से ग्रसित हो सकते हैं। इस बीमारी का एक लक्षण फूली हुई गर्दन है।
3. वृद्धि हॉर्मोन - वृद्धि हॉर्मोन पीयूष ग्रंथि (पीट्यूटरी ग्रंथि) द्वारा स्रावित किया जाता है वृद्धि हॉर्मोन शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। यदि बाल्यकाल में इस हॉर्मोन की कमी हो जाती है तो यह बौनापन का कारण बनता है।
4. टेस्टोस्टेरोन- यह नर हॉर्मोन है जो वृषण द्वारा स्रावित किया जाता है
5. एस्ट्रोजन- यह मादा हॉर्मोन है जो अण्डाशय द्वारा स्रावित किया जाता है जो मादा लैंगिक अंगों का विकास व मासिक चक्र का नियमन करता है।
6. इंसुलिन - इंसुलिन हॉर्मोन अग्न्याशय द्वारा स्रावित किया जाता है जो रुधिर में शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में सहायता करता है। यदि यह उचित मात्रा में स्रावित नहीं होता है तो रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है जिससे मधुमेह रोग हो जाता है
- मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग कौनसा है ?अग्र मस्तिष्क
- कौन-सा हॉर्मोन पादप कोशिकाओं को इस प्रकार बढ़ने के लिए प्रेरित करता हैं, जिससे पादप की ओर मुड़ा हुआ प्रतीत होता है ?ऑक्सिन
- मटर के प्रतान का किसी आधार या सहारे से लिपटना किस प्रकार के अनुवर्तन का उदाहरण हैस्पर्शानुवर्तन का
- किस हॉर्मोन निर्माण के लिए आयोडीन आवश्यक है?थायरॉक्सिन हॉर्मोन
- इंसुलिन हॉर्मोन किस ग्रंथि द्वारा स्रावित किया जाता है ?अग्न्याशय द्वारा
- मादा लैंगिक अंगों का विकास व मासिक चक्र का नियमन कौन-सा हॉर्मोन करता है ?एस्ट्रोजन
- पौधों में ऑक्सिन का संश्लेषण कहाँ होता है ?प्ररोह के अग्रभाग में
- कौनसा पादप हॉर्मोन कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है ?ऑक्सिन
- दो तंत्रिका कोशिका के मध्य खाली स्थान को क्या कहते हैं ?सिनेप्स
- यदि हमारे आहार में आयोडीन (थायरॉक्सिन हॉर्मोन) की कमी हो जाती है तो कौनसा रोग हो जाता हैगॉयटर (गर्दन का फूलना)
- किन्ही चार पादप हॉर्मोन के नाम लिखिए1. साइटोकाईनिन 2. ऑक्सिन 3. जिबरेलिन 4. एब्सीसिक अम्ल
- मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है?अनुमस्तिष्क शरीर की स्थिति व संतुलन का अनुरक्षण करता है।
- किस हॉर्मोन के प्रभाव से पौधों की पत्तियां मुरझा जाती है ?एब्सिसिक अम्ल
- मानव मादा लिंग हॉर्मोन का नाम लिखिए।अण्डाशय द्वारा स्रावित एस्ट्रोजन
- मानव नर लिंग हॉर्मोन का नाम लिखिए ।वृषण से स्रावित टेस्टोस्टेरोन हार्मोन
- कौनसा हॉर्मोन कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है ?साइटोकाइनिन
- एक वृद्धि संदमन पादप हॉर्मोन का नाम लिखिए ।एब्सिसिक अम्ल
- फल व बीज में कौनसा हॉर्मोन अधिक मात्रा में पाया जाता है ?साइटोकाइनिन
- अनैच्छिक क्रियाओं के उदहारण दीजिए ।हृदय की धड़कन, रक्तदाब, लार आना तथा वमन आना
- कौनसा हॉर्मोन तने की वृद्धि में सहायक होता हैं ?जिब्बेरेलिन
- अवटुग्रंथि (थायराइड) ग्रंथि कौनसा हार्मोन स्रावित करती है ?थायरोक्सिन
- एड्रीनलीन हार्मोन का स्राव किस ग्रंथि के द्वारा किया जाता है?अधिवृक्क ग्रंथि (एड्रिनल ग्रंथि)
- इंसुलिन की कमी से कौन सा रोग हो जाता है ?मधुमेह
- तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई क्या है ?तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन
- प्रतिवर्ती क्रिया किसके द्वारा नियंत्रित की जाती है ?मेरुरज्जु द्वारा
- हमारे शरीर का मुख्य समन्वय केंद्र क्या है ?मस्तिष्क
- मस्तिष्क का कौनसा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन बनाने कार्य करता है ?अनुमस्तिष्क
- कौनसा हॉर्मोन जंतु शरीर को संकटकालीन स्थिति से निपटने (लड़ने या भाग जाने) के लिए तैयार करता हैं ?एड्रीनलीन हॉर्मोन
- पराग नलिका का बीजांड (अण्डाशय) की ओर वृद्धि करना किस प्रकार की गति है ?रसायनानुवर्तन का
- मस्तिष्क का कौनसा भाग अनैच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण करता है ?पश्चमस्तिष्क (मेडुलाओब्लोगेटा)
- हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य कौन करता है ?तंत्रिका तंत्र तथा हॉर्मोन
- इंसुलिन का कार्य लिखिए ।इंसुलिन हॉर्मोन रुधिर में शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में सहायता करता है।
- अंतःस्रावी ग्रंथियां (नलिकाविहीन ग्रंथि)किसे कहते हैं ?वे ग्रंथियां जो अपना स्राव सीधा रक्त में स्रावित करती है अंतःस्रावी ग्रंथियां कहलाती है
- मानव में बौनेपन का क्या कारण है ?यदि बाल्यकाल में पीयूष ग्रंथि (पीट्यूटरी ग्रंथि) द्वारा स्रावित वृद्धि हॉर्मोन कमी हो जाती है तो यह बौनापन का कारण बनता है।
- ग्राही किसे कहते है ?तंत्रिका कोशिका के विशिष्टीकृत सिरे जो वातावरण से सूचनाओं का पता लगाते हैं। ग्राही कहलाते है ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों में स्थित होते हैं।
- अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार) किसे कहते है ?एक तंत्रिका कोशिका के तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान अंतर्ग्रथन (सिनेप्स या सिनेप्टिक दरार) कहलाता है।
- प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते है ?किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक की गई अनुक्रिया प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है। उदाहरण: किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना।
- पादप हॉर्मोन क्या है ?वे रासायनिक पदार्थ जो पौधों में वृद्धि, विकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया नियंत्रण एवम् समन्वय का कार्य करते हैं, पादप हॉर्मोन कहलाते हैं। जैसे -ऑक्सिन,जिब्बरेलिन, सायटोकाइनिन
- पौधों में प्रकाशानुवर्तन, गुरुत्वानुवर्तन, रासायनानुवर्तन, जलानुवर्तन का एक-एक उदहारण दीजिए ।प्रकाशानुवर्तन:- पादप के प्ररोह तंत्र की प्रकाश की और मुड़नागुरुत्वानुवर्तन:- पादप की जड़ का निचे की ओर (पृथ्वी की तरफ) वृद्धि करनारासायनानुवर्तन:- पराग नली की अंडाशय की तरफ गति।जलानुवर्तन:- पादप की जड़ों की पानी की तरफ गति।
- प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बीच क्या अंतर है?प्रतिवर्ती क्रिया अनैच्छिक क्रिया है जो मेरुरज्जू द्वारा नियंत्रित होती है। जबकि टहलना एक ऐच्छिक क्रिया है जो मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती है।प्रतिवर्ती क्रियाओं पर हमारे सोचने का कोई नियंत्रण नहीं होता है जबकि टहलने में हमारी सोच और नियंत्रण की आवश्यकता होती है
- छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है?छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, वृद्धि से संबंधित नहीं है। जबकि प्रकाश की ओर प्ररोह की गति वृद्धि से संबंधित है।छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति स्पर्श के कारण होती है। जबकि प्रकाश की ओर प्ररोह की गति प्रकाश के कारण होती है।छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति तीव्र होती है जबकि प्रकाश की ओर प्ररोह की गति मंद होती है
- पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है?पादप प्ररोह का प्रकाश की ओर गति करना प्रकाशानुवर्तन कहलाता है। पादप प्ररोह प्रकाश के प्रति धनात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाता है तथा जड़ें प्रकाश के ये ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन दर्शाती है जब पादप पर एक ओर से प्रकाश आ रहा है तब ऑक्सिन विसरित होकर प्ररोह के छाया वाले भाग में आ जाता है। प्ररोह की प्रकाश से दूर वाली साइड में ऑक्सिन का सांद्रण कोशिकाओं को लंबाई में वृद्धि के लिए उद्दीपित करता है। अतः पादप प्रकाश की ओर मुड़ जाता है।
- शरीर में सूचना प्रवाह के माध्यम के रूप में विद्युत आवेग के उपयोग की सीमाएँ लिखिए ।1. विद्युत आवेग केवल उन्हीं कोशिकाओं तक पहुँच सकता है जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं। जंतु शरीर की प्रत्येक कोशिका तक नहीं।2. एक बार कोशिका विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेग उत्पन्न करने से पहले, अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है। अतः कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती।
- छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँग में होने वाली गति के तरीके में क्या अंतर है ?1. छुई-मुई पादप में गति एक प्रकार की स्पर्शानुवार्तन गति है जबकि हमारी टाँग में होने वाली गति ऐच्छिक गति है2. छुई–मुई में जंतु पेशी कोशिकाओं की तरह विशिष्टीकृत प्रोटीन तो नहीं होती लेकिन वे जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैं, परिणामस्वरूप फूलने या सिकड़ने में उनका आकार बदल जाता है। जिससे यह गति होती है जबकि हमारी टाँग की पेशी कोशिकाओं में गति के लिए विशेष प्रोटीन होता है जो कि मांसपेशियों के सिकुड़ने में सहायता करते हैं|
- हमारे शरीर में ग्राही का क्या कार्य है? ऐसी स्थिति पर विचार कीजिए जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं कर रहे हों। क्या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं?ग्राही प्रायः हमारी ज्ञानेंद्रियों कान, नाक, आँख, जिह्वा, त्वचा आदि में स्थित होते हैं ग्राही विभिन्न सूचनाओं (उद्दीपनों ) को वातावरण से ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं। यदि ग्राही अंग ठीक से काम नहीं करते है तो हम विभिन्न सूचनाओं (उद्दीपनों ) को वातावरण से ग्रहण नहीं कर पाते है और हमें ठंडा, गर्म, तीखा, दर्द आदि का अनुभव हमें नहीं हो पाएगा और हमारा शरीर एक तरह से संवेदनाहीन हो जाएगा।
- तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन सचित्र वर्णन कीजिए ।तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं1. द्रुमिका :- कोशिका काय से छोटे-छोटे तंतु निकले रहते हैं जिन्हें द्रुमिका कहते हैं द्रुमिका द्वारा सूचना प्राप्त (उपार्जित) की जाती हैं।2. कोशिका काय (सायटोन)- यह तंत्रिका कोशिका का मुख्य भाग है इसमें एक केंद्रक व अन्य कोशिकांग पाए जाते हैं कोशिका काय में द्रुमिका द्वारा प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।3.तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन):- यह कोशिका काय से निकलने वाली एक लम्बी संरचना है यह सूचना के विद्युत आवेग को कोशिका काय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुचाता है। एक्सॉन के अंत में विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करता है। ये रसायन सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार) को पार कर अगली तंत्रिका कोशिका की द्रुमिका में विद्युत आवेग उत्पन्न करते हैं
- मानव मस्तिष्क की संरचना का वर्णन कीजिएमस्तिष्क शरीर का मुख्य समन्वय केंद्र है जो खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स(खोपड़ी) में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है। मानव मस्तिष्क तीन भागों में विभाजित होता है1.अग्र मस्तिष्क: यह मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग है इसमें विभिन्न ग्राही से संवेदी आवेग (सूचनाएँ) प्राप्त करने के लिए क्षेत्र होते हैं। जो सुनने, सूँघने, देखने आदि के लिए विशिष्टीकृत है अग्र मस्तिष्क का एक भाग हाइपोथेलेमस जो भूख,प्यास, निंद्रा, थकान आदि का ज्ञान कराता है2. मध्यमस्तिष्क - मस्तिष्क का यह भाग अग्र मस्तिष्क तथा पश्च मस्तिष्क के मध्य स्थित होता है यह दृष्टि व श्रवण के लिए उत्तरदायी है3.पश्चमस्तिष्क -इसके दो भाग होते है(i) अनुमस्तिष्क- अनुमस्तिष्क ऐच्छिक क्रियाओं जैसे एक सीधी रेखा में चलना, साइकिल चलाना, एक पेंसिल उठाना आदि को नियंत्रित करता है शरीर की संस्थिति तथा संतुलन बनाना आदि कार्य भी अनुमस्तिष्क द्वारा किया जाता है